125 साल पुराने इस महल की गिनती दुनिया के सबसे बड़े और लग्ज़री महलों में की जाती है.

Tripoto
7th Dec 2021
Day 1

लक्ष्मी विलास पैलेस को अगर वडोदरा की पहचान कहा जाए तो गलत नहीं होगा। 125 साल पुराना भव्य महल अपने राजसी वैभव की पहचान बरकरार रखे जहन में उभर आता है| इस शानदार पैलेस का निर्माण 1890 में महाराजा सयाजीराव गयकवाड़ ने करवाया था।लक्ष्मी विलास पैलेस भारत की सबसे राजसी संरचनाओं में से एक है जो महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ का निजी निवास स्थान था। यह शानदार महल वडोदरा 700 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है जो अभी भी वडोदरा के गायकवाड़ के शाही परिवार का घर है। लक्ष्मी विलास पैलेस गुजरात के वडोदरा में स्थित है जहाँ की यात्रा के लिए हर पर्यटक को अवश्य जाना चाहिए। यह शानदार महल कई तरह के हरे-भरे बगीचे से भरा हुआ है जो यहाँ की सुंदरता को बेहद बढाते हैं। पर्यटक यहाँ पर बंदरों या मोरों को घूमते हुए भी देख सकते हैं। लक्ष्मी विलास महल के मैदान में 10-होल गोल्फ कोर्स भी शामिल है।

पहले यहाँ एक छोटा चिड़ियाघर भी हुआ करता था लेकिन अब यहाँ एक छोटा तालाब और कुछ मगरमच्छ बचें हुए हैं।

Photo of Lukshmi Vilas Palace by Trupti Hemant Meher
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Photo of Lukshmi Vilas Palace by Trupti Hemant Meher
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लक्ष्मी विलास पैलेस का इतिहास

लक्ष्मी विलास पैलेस का निर्माण 1890 में हुआ था जिसे पूरा होने में लगभग बारह साल का समय लग गया था। उस समय इस संरचना की लागत लगभग 180,000 के आसपास थी। और इसके मुख्य वास्तुकार मेजर चार्ल्स मांट थे। उन्होंने इस महल का निर्माण इंडो-सारासेनिक शैली में किया था, जिसमें गुंबद, टकसाल और मेहराब शामिल हैं। लक्ष्मी विलास महल में कई अन्य संरचनाएं भी शामिल हैं जिसमें बैंक्वेट्स और कन्वेंशन, मोतीबाग पैलेस और महाराजा फतेह सिंह संग्रहालय भवन शामिल हैं।

लक्ष्मी विलास पैलेस की वास्तुकला

लक्ष्मी विलास महल भारत में आज तक के सबसे प्रभावशाली राज-युग के महलों में से एक है। इस महल का अंदरूनी हिस्से में असेंबल, कलाकृति और झूमर हैं। इस महल को इसके निर्माण के समय लिफ्ट सहित सबसे उच्च तकनीकी सुविधाओं के साथ बनाया गया था ताकि इसे पश्चिमी सुविधाओं के लिए अधिक उपयुक्त स्थान बनाया जा सके। लक्ष्मी विलास पैलेस में170 कमरे हैं जिसमें सिर्फ दो लोगों यानी महाराजा और महारानी के लिए बनाया गया था। मेजर चार्ल्स मांट को महल के वास्तुकार के रूप में काम पर रखा गया था लेकिन उनके आत्महत्या कर लेने के बाद रॉबर्ट फेलोस चिशोल्म को शेष काम पूरा करने के लिए काम पर रखा गया था। लक्ष्मी विलास पैलेस इंडो-सारासेनिक रिवाइवल वास्तुकला का एक शानदार नमूना है |

इसका प्रवेश द्वार पर, दरबार हॉल मोज़ेक फर्श, फर्नीचर, विनीशियन झूमर और बेल्जियम ग्लास खिड़कियों से सजा हुआ है। महल में महाराजा के समय में युद्ध में इस्तेमाल होने वाले तलवारों और हथियारों के युद्ध का एक विशेष संग्रह भी प्रदर्शित किया गया है।

हाल ही में संग्रहालय में महाराजा रणजीत सिंह गायकवाड़ द्वारा एकत्र किए गए हेडगियर्स प्रदर्शित किए गए थे। अब यह भारत के उन संग्रहालयों में से एक है, जिसमें हेडगियर गैलरी है। लक्ष्मी विलास महल के प्रवेश द्वार में एक आकर्षक फव्वारे से सजा हुआ एक आंगन है। महल के अंदरूनी हिस्से को आकर्षक बनाने के लिए कई संगमरमर की टाइलें और अन्य कलाकृतियाँ इस्तेमाल की गई हैं। महल में कई उद्यान स्थित हैं जो प्रसिद्ध वनस्पति विज्ञानी सर विलियम गोल्डिंग द्वारा डिजाइन किए गए थे। जिन्होंने लंदन के प्रसिद्ध केव बॉटनिकल गार्डन को भी डिजाइन किया था।

लक्ष्मी विलास पैलेस का क्षेत्र

लक्ष्मी विलास पैलेस में तस्वीरें क्लिक करना मना है। यह एक प्राइवेट पैलेस है, जिसे देखने के लिए 150 रूपए का टिकट लगता है। 700 एकड़ में फैला ये महल बंकिघम पैलेस से चार गुना बड़ा है।

सभी आधुनिक सुविधाओं से लैस है। ये भारत में अभी तक का बना सबसे बड़ा पैलेस है जिसके अंदर और भी कई बिल्डिंग जैसे मोती बाग पैलेस, माकरपुरा पैलेस, प्रताप विलास पैलेस और महाराजा फतेह सिंह म्यूजियम भी है।

लक्ष्मी विलास पैलेस की बनावट

इस पैलेस का डिज़ाइन बनाने की जिम्मेदारी अंग्रेज आर्किटेक्ट चा‌र्ल्स मंट को दी गई थी। लक्ष्मी विलास पैलेस इंडो सरैसेनिक रिवाइवल आर्किटेक्चर में बनी एक ऐसी संरचना है, जिसका शुमार दुनिया के आलीशान महलों में किया जाता है।

इस विशाल पैलेस की नींव 1880 में रखी गई थी और इसका निर्माण कार्य 1890 में पूरा हुआ था। इस महल की संरचना में राजस्थानी, इस्लामिक और विक्टोरियन आर्किटेक्चर का अनोखा संगम देखने को मिलता है।

दरअसल, गायकवाड़ राजवंश मूल रूप से मराठा हैं, इसलिए इनके द्वारा बनवाए गए भवनों में मराठी वास्तुकला के नमूने जैसे तोरण, झरोखे, जालियां आदि देखने को मिलती हैं।

महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय गायकवाड़ राजवंश के अति प्रतापी राजा थे उनके राज में बड़ौदा रियासत का कायाकल्प हुआ। यह महल अपने आप में गयकवाड़ राजवंश की बहुमूल्य वस्तुओं का संग्रहालय है।

यहां पर एक दरबार हॉल है, जिसमें राजा रवि वर्मा द्वारा बनाए गए बेशकीमती चित्र लगे हुए हैं। इन चित्रों को बनाने के लिए राजा रवि वर्मा ने पूरे देश की यात्रा की थी।

लक्ष्मी विलास पैलेस खुलने और बंद होने का समय

लक्ष्मी विलास पैलेस के लिए पर्यटक सुबह 9:30 से शाम 5:00 बजे तक जा सकते हैं। दोपहर के समय 1:00 बजे- 1:30 बजे तक महल की यात्रा करने की सलाह नहीं दी जाती। बता दें कि सोमवार को महल बंद रहता है।

लक्ष्मी विलास पैलेस एंट्री फीस

लक्ष्मी विलास पैलेस का प्रवेश शुल्क 150 रूपये प्रति व्यक्ति है।

महाराजा फतेह सिंह संग्रहालय का प्रवेश शुल्क 60 रूपये प्रति व्यक्ति है। इस एंट्री फी में आपको एक जानकारी देनेवाला हेडफोन दिया जाता है। पैलेस घूमते वक्त आप उसे साथ पैलेस की जानकारी ले सकते है।

फ्लाइट से लक्ष्मी विलास महल कैसे पहुंचे

अगर आप हवाई मार्ग से लक्ष्मी विलास महल वडोदरा की यात्रा करना चाहते हैं तो बता दें कि वडोदरा का अपना एक एयरोड्रम है, लेकिन यह सिर्फ केवल घरेलू उड़ानों को ही संचालित करता है।

वडोदरा का हवाई अड्डा भारत के सभी शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है इसलिए आपको यहां पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं होगी। इसके अलावा अहमदाबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी इसके पास स्थित है जो 100 किमी दूर है।

ट्रेन से लक्ष्मी विलास पैलेस वडोदरा कैसे जायें

वडोदरा जंक्शन रेलवे स्टेशन भारत के सबसे प्रमुख रेलवे स्टेशनों में से एक है और गुजरात का सबसे व्यस्त स्टेशन भी है। लक्ष्मी विलास पैलेस वडोदरा जाने के लिए पर्यटक दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों से शताब्दी और राजधानी एक्सप्रेस प्रीमियम और सुपर फास्ट ट्रेनों से भी यात्रा कर सकते हैं।

सड़क मार्ग से लक्ष्मी विलास पैलेस कैसे जायें

अगर आप सड़क मार्ग से वडोदरा की यात्रा करना चाहते हैं तो बता दें कि सड़क मार्ग भी यहां की यात्रा के लिए बेहद अनुकूल है। यह शहर अच्छी तरह से विकसित है और सुपर फास्ट राजमार्गों के साथ भारत के अन्य हिस्सों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।वडोदरा जाने के लिए आप एसटीसी बस स्टेशन से बसों की सुविधा का लाभ उठा सकते हैं जो वड़ोदरा जंक्शन के पास स्थित है।

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