मुस्कराइए, आप लखनऊ में हैं'। ये स्लोगन यूं ही नहीं बना। अदब और तहजीब के लिए दुनिया भर में मशहूर नवाबों की नगरी में मुस्कराने की कई वजहें हैं। अवध की आबो-हवा में नजाकत, नफासत और शराफत है। यहां के हाट-बाट और ठाठ निराले हैं। 'पहले आप-पहले आप' की लखनवी तहजीब मेहमाननवाजी का अनुपम उदाहरण है। हर गली का अपना लजीज व्यंजन चटखारे लेने पर विवश कर देता है। यहां की छोटी-छोटी गलियों में खो जाने का मन करता है। मुगलकालीन इमारतें गौरवशाली स्थापत्य कला की याद दिलाती हैं। इक्के और तांगे आज भी पुराने लखनऊ की शान हैं। मुंह में पान की गिलौरी भरकर इक्के की सैर हवाई जहाज के सफर से भी ज्यादा रोमांचित करती है।
बड़ा इमामबाड़ा , छोटा इमामबाड़ा, भूलभुलैया, घंटाघर, रेजीडेंसी, पिक्चर गैलरी, सतखंडा पैलेस, दादा मियां की दरगाह और जामा मस्जिद जैसी नवाबी दौर की तमाम इमारतें आज भी मुस्कराकर पर्यटकों का स्वागत कर रही हैं। ऐतिसाहिक इमारतों के अलावा चौक और अमीनाबाद की तमाम संकरी गलियां अपनी अलग कहानी कहती हैं। चूड़ी वाली गली से लेकर कंघे वाली गली, बताशे वाली गली, फूल वाली गली और बानवाली गली जैसी कई मशहूर गलियां हैं, जो अपने नाम और सामान से आज भी जानी जाती हैं। गड़बड़झाला बाजार है। जहां एकबारिगी गुम हो जाने का अहसास होता है।
जायके का जवाब नहीं -
लखनवी चिकनकारी और जायके का तो कोई जवाब ही नहीं। चौक की लस्सी, अमीनाबाद की कुल्फी, टुंडे का कबाब, शाही कोरमा, शीरमाल जैसे व्यंजनों का नाम लेते ही मुंह में पानी आ जाता है। लखनऊ चिकनकारी देसी-विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद है। आप लखनऊ आएं और चिकन के कपड़े न ले जाएं, यह हो ही नहीं सकता। यदि आप लखनऊ में हैं तो चाट अवश्य आजमाएं। कई स्थानों पर आपको ७-८ प्रकार का गोलगप्पे का पानी मिल जाएगा और आलू टिक्की के तो क्या कहने। इसके अलावा समोसे, खस्ते, जलेबी, चोखा-बाटी, दूध के पदार्थ जैसे कुल्फी, लस्सी, मक्खन आदि भी लाजवाब हैं।
गूंजती है घुंघुरूओं की रुनझुन -
लखनऊ की सरजमीं ने नौशाद, मजरूह सुलतानपुरी, कैफी आजमी, जावेद अख्तर , अली रजा, भगवती चरण वर्मा, डॉ. कुमुद नागर, डॉ. अचला नागर (निकाह, बागबान), वजाहत मिर्जा (मदर इंडिया व गंगा जमुना के लेखक), अमृतलाल नागर, अली सरदार जाफरी व व्यंग्यकार के.पी. सक्सेना ('लगान के लेखक) जैसे फनकार दिए हैं। लखनऊ कथक नृत्य की भी जननी है। प्रसिद्ध कलाकर लच्छू महाराज, बिरजू महाराज, अच्छन महाराज और शंभू महाराज ने लखनऊ की शान बढ़ाई है। आज भी भातखंडे और पुराने लखनऊ में कथक के घुंघुरूओं की रुनझुन सुनी जा सकती है।
लखनऊ दुनिया में मुस्कराहट का सबसे बड़ा प्रतीक है-
पुरातन और आधुनिकतम लखनऊ में गजब की साम्यता है। गोमती रिवर फ्रंट की खूबसूरत शाम अवध की शाम का नया नजारा पेश करती है। तो सुबह रूमी गेट से उगते सूरज को निहारना और अस्त होते सूरज के बीच हजरतगंज की गंजिंग ऐतिहासिकता का बोध कराती है। लखनऊ मेट्रो हो या फिर या फिर एशिया का सबसे बड़ा जनेश्वर मिश्र पार्क। आधुनिक सुविधाओं से लैस गोमतीनगर का इकॉना स्पोर्ट्स स्टेडियम हो या फिर ज्ञान-विज्ञान की सैर कराती एनबीआरआई, सीडीआरआई, सीमैप ये सब के सब दुनिया की सबसे तेज विकसित होती सिटी का अहसास कराते हैं। नवाबी नगरी में पांच सितारा होटलों की लंबी श्रृंखला है। जहां ठहरना नवाबी अहसास तो दिलाता ही है लक्जरी लाइफ की सुख-सुविधाएं भी मुहैया करवाता है। इसी तरह की तमाम और वजहें हैं जिनकी वजह से बरबस मुंह से निकल ही पड़ता है कि मुस्कराइए आप लखनऊ में हैं।
हर बात में अलहदा -
हजरतगंज का एक चक्कर लगा लीजिए, तो चोला मस्त हो जाएगा। लखनऊ के नवाब जहां अपनी नजाकत, नफासत के साथ ही स्थापत्य के लिए जाने गए, वहीं अंग्रेजों ने भी इल्म का परचम फहराने में पूरा जोर लगा दिया। बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबड़ा हो या भूलभुलैया या घंटाघर, नवाबी दौर कीतमाम इमारतें अब भी तनकर खड़ी पर्यटकों को आमंत्रण देती दिखती हैं। लखनऊ की गलियों के तो क्या कहने, कंघी वाली गली से लेकर बताशे वाली गली तक यहां मौजूद है। यूं भी कह सकते हैं कि वह कौन-सी गली है, जो लखनऊ में मौजूद नहीं। जी हां, चोर वाली गली भी है यहां।
पहले आप की संस्कृति -
मिजाज में नजाकत और अंदाज में नफासत। लखनवी की नजाकत का जिक्र अक्सर किसी नामालूम शायर के इस शेर से होता है। नफासत का नमूना यहां की ‘पहले आप’ वाली संस्कृति है, जो दुनियाभर में मशहूर है। इसीलिए तो कहते हैं, हम फिदा-ए-लखनऊ, है किसमें हिम्मत जो छुड़ाए लखनऊ...!
‘पहले आप! कहने की ताब वही ला पाते हैं जिनमे औरों को खुद से आगे रखने की सभ्यता हो
आधुनिकता -
चूंकि लखनऊ उत्तर प्रदेश की राजधानी है, इसलिए आधुनिक एशो-आराम के साधन प्रर्याप्त हैं। उदाहरण स्वरुप यात्रा के लिए मेट्रो, ओला, उबर, टेम्पो, रिक्शा, बस है। बेहतरीन सिनेमा हॉल, अधिकांश विदेशी कपड़ों के ब्रांड, पब, कैफे, पिज़्ज़ा, बर्गर इत्यादि बहुतायत में हैं।
चिकन -
यह खाने वाला नहीं अपितु पहनने वाला चिकन है। यहां की चिकनकारी पूरे देश में जानी जाती है। आपको यहां काफ़ी नए डिजाइन उचित दामों में मिल जाएंगे।
पर्यटन -
घूमने के लिए यहां आपको अनेक विकल्प मिलेंगे जिनमें से कुछ हैं - इमामबाड़ा (भूल-भुलैया), मोती महल, अंबेडकर पार्क, हजरतगंज मार्केट, रूमी दरवाज़ा, चिड़ियाघर, जनेश्वर मिश्र पार्क, आंचलिक विज्ञान नगरी, आनंदी वाटर पार्क, नीलांश थीम पार्क आदि।
इसके अलावा पी.जी.आई. एवं मेडिकल कॉलेज जैसे बड़े अस्पताल तथा आई.आई.एम. एवं आई.ई.टी. जैसे संस्थान भी लखनऊ में स्थित हैं।
दिलों में रस घोलते लखनवी बोल -
लखनऊवासी बोलचाल के विनम्र तरीकों के लिए जाने जाते हैं। कहते हैं ये अपने अंदाजेबयां से दुश्मनों को भी अपना मुरीद बना सकते हैं। एक बार जो लखनऊ गया, वह इसके तिलिस्म से बाहर नहीं निकल पाता और इसकी खास वजह है यहां की मिठासभरी जुबान। यहां उर्दू और हिंदी दोनों ही भाषाएं बोली जाती हैं। नवाबों के दौर में उर्दू यहां फली-फूली और एक परिष्कृत भाषा के रूप में बदल गई।
फ़िज़ा में बिखरी बहारों का शहर लखनऊ किसी विशेष नाम का मोहताज नही है। तहजीब और अदब से लबरेज इस शहर की हर चीज़ में आपको राजसी और नवाबी जीवन की झलक मिलेगी मियां। यहाँ की इमारते और पार्क हो या फिर रहन सहन और तौर-तरीके। इन्ही सब वजहों से इसे नवाबो का शहर कहकर नवाजा गया।