सराहन मे भीमकाली माता के स्थापित होने के के बारे मे कहा जाता है कि यहां भीमगिरी नाम का एक संत रहा करता था!जिसने काफ़ी समय तक यहां तपस्या की थी!उसके पास एक लाठी हुआ करती थी जिसमे माता भीमकाली को स्थापित किया गया था!तपस्या समाप्त होने के बाद जब वह संत वहाँ से जाने लगा तो वह लाठी इतनी भारी हो गयी कि वह उसे उठा नहीं पाया!संत समझ गया कि माता भीमकाली यही रहना चाहती है!संत भीमगिरी के आग्रह पर बुशहर रियासत के राजा ने उसे अपनी कुलदेवी मान कर वहीं स्थापित कर दिया!बजुर्गों का मानना है कि यहां माता सती का दाहिना कान गिरा था जिसके कारण माता भीमकाली यहां प्रकट हुई थी!बुशहर रियासत के पूर्व राजा देवी सिंह ने सराहन बुशहर मे माता के लिए भव्य मंदिर बनाकर साथ मे देवता लंकड़ा वीर जी को भी वहीं साथ मे स्थापित कर दिया!देवी कि मूल प्रतिभा अभी भी पुराने मंदिर मे ही रहती है जिसमे आम इंसान नहीं जा सकता है!वहाँ पर सिर्फ व सिर्फ राजवंश परिवार व राजा के पुरोहित ही पूजा अर्चना करने जा सकते है!नए मंदिर मे मूर्ति कि स्थापना सन 1962 मे की गई!प्रांगण व प्रवेश द्वारों को सन 1927 मे बनाया गया था
प्रथम प्रांगण के दोनों प्रवेश द्वारों को को पीतल के पतरो से डिजाइन किया गया है!आँगन मे पत्थरों के स्लेट बिछाए गए है!
पुजारी के अनुसार कगा जाता है कि यह मंदिर राजाओं का निजी मंदिर हुआ करता था!माता भीमकाली की मूर्ति का निर्माण सराहन से 1किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ गमसोट की एक गुफा मे किया गया था!जिससे 200 साल पहले मंदिर मे स्थापित किया गया था!
सराहन बुशहर का पुराना नाम शोणितपुर था!यह बाणासुर की राजधानी हुआ करती थी! बाणासुर भक्त प्रह्लाद के पौत्र बलि जो पुत्रों मे से सबसे बड़ा था उसने अपने राजा की बागडोर श्रीकृष्ण के पुत्र वह अनिरुद्ध के पिता प्रद्युम को सौंपी थी! प्रद्युम शोणितपुर(सराहन बुशहर )का राजा था!राजा छत्र सिंह के समय बुशहर की राजधानी स्थायी रूप से कामरू से सराहन बुशहर स्थानातरित हुई!उसे पहले कामरू हुआ करती थी!
सन 1550 के आस पास राजा राम सिंह ने ही सराहन से अपनी राजधानी रामपुर लाई थी और उसके नाम से ही इसका नाम रामपुर बुशहर पड़ा!
सराहन बुशहर एक शांत व सुन्दर जगह है!यहां देवदार के घने जंगल बहुत ही सुन्दर है!