मौन: दोहरी नागरिकता, 60 पत्नियाँ और आदम शिकारी जैसे अजीब रिवाज़ हैं भारत के इस गाँव में! 

Tripoto
7th Apr 2020

 नागालैंड के पहाड़ों में समुद्रतल से क़रीब 900 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है एक अनोखा ज़िला मौन। लोगों की नज़रों से दूर ये धरती ऊँचे पहाड़ों, हरी वादियों, कल-कल करती नदियों और नीले आकाश से सजी हुई है। ये जगह लोगों की नज़रों से दूर इसलिए है क्योंकि यह आम जगहों से बहुत ही अलग है। अब भी मौन में जनजातीय संस्कृति का वास है और यहाँ के आदमखोर शिकारी भी बदनाम हैं। बाहरी लोगों का पहले यहाँ पहुँच पाना नामुमकिन था। पर अब मौन धीरे-धीरे बदलती दुनिया कि संस्कृति और बाहरी लोगों का आवागमन स्वीकार कर रहा है। तो चलिए आपको ले चलते हैं बादलों में छुपे, एल्डर के झुरमुटों से घिरे भारत म्यांमार की सीमा पर बसे मौन की अलग दुनिया में।

साल 1973 में मौन को नागालैंड के तुएनसांग ज़िले से विभाजित कर के बनाया गया था। राजधानी कोहिमा से 360 किलोमीटर दूर मौन असम के पास स्थित है। उत्तर में असम और पूर्व में म्यांमार इसकी सीमा से लगते हैं। पहाड़ों और उनके बीच छोटी-छोटी घाटियों से भरा हुआ है मौन।

जनजातीय जीवन के क़रीब आईए

किसी दिलचस्प रोमांचक उपन्यास की तरह मौन के कोन्याक जनजाति का इतिहास भी हैरतअंगेज़ और रहस्यों से भरा हुआ है। नागालैंड के आधिकारिक तौर से पहचान प्राप्त 16 जनजातियों में से कोन्याक जनजाति का इस इलाके में भारी वर्चस्व है और ख़ास कर मौन में।

कोन्याक पूर्वज ये मानते थे कि उनकी उत्पत्ति  बाइबल में नामांकित नोआह से हुई थी और वे ख़ुद को मूसा और कैसा ऐरोन जैसे नामों से जानते हैं। इस जनजाति के लोग दूर से ही आपको नज़र आ जाएँगे क्योंकि उनका चेहरा टैटू से भरा होता है और दांत काले किए हुए। तिब्बत्ती-बर्मीज़ भाषा और नागा बोलने वाली इस जनजाति की भाषा भी कम लोग ही समझ पाते हैं। हर गाँव का एक मुखिया होता है जिसे वांग अंग कि उपाधि दी जाती है। यह मुखिया सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति होता है जिसकी अनुमति के बिना गाँव का कोई काम नहीं होता। वांग अंग के घर को जानवरों के कंकालों और सींगों से सजाया जाता है। मौन के मुखिया का घर भारत और म्यांमार के बीच स्थित है और वह बिना किसी आज्ञा या अनुमति के दोनों देश के बीच आवाजाही कर सकता है।

कोन्याक जनजाति नर-संहार के लिए भी बदनाम  है। वे तरह-तरह के पारम्परिक गहनों से लदे होते हैं और खोपड़ियों की आकृति वाले ताम्बे के नेकलेस बताते हैं कि उन्होंने अपने नाम कितने सर किए हैं। घरों के बाहर हॉर्नबिल के चोंच और हाथी के दांतों से सज्जा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार जितने सर ये कलम करते थे उतनी ही फसल की उपजाऊता बढ़ती थी। पर बीसवीं सदी की शुरुआत में ईसाई मिशनरी के यहाँ आने के बाद इनके रीति-रिवाज़ों में बदलाव आया और उनकी क्रूरता नियंत्रित की गई।

क्या देखें

लोंगवा

मौन के सबसे बड़े गाँव की बात ही निराली है। भारत-म्यांमार की सीमा-रेखा इसके मध्य से गुज़रती है। यहाँ के निवासियों के पास दोनों देशों की नागरिकता है और वे आसानी से दोनों देशों में घूम सकते हैं। ऐसा भी होता है कि कुछ लोग सुबह म्यांमार में खाना पकाते हैं और रात को भारत में सोते हैं।

लोंगवा में ही रहने वाले मुखिया की साठ पत्नियाँ हैं और वह सत्तर गाँवों पर राज करता है जो नागालैंड, म्यांमार, असम और अरुणाचल तक फैले हैं।

अप्रैल के पहले हफ्ते में ओलिंग मोन्यु का त्यौहार मनाया जाता है। यह मौन जाने का सबसे बढ़िया समय है। नव वर्ष की शुरुआत के तौर पर मनाये जाने वाले इस पर्व पर लोग सड़कों पर इत्र छिड़क कर नाचते-गाते हुए जुलूस निकालते हैं। यह नागा रिवाज़ों को समझने के लिए एक मत्त्वपूर्ण त्यौहार है। जनजातियाँ पर्यटकों के आगमन के साथ ही भारतीय सरकार से अपनी दूरी कम करने का प्रयास भी करती हैं।

शांग्यू

शांग्न्यु मौन ज़िले का सबसे सुन्दर गाँव है। यहाँ के मुखिया के घर के अहाते में काठ की एक विशालकाय ईमारत है जिसके बारे में माना जाता है कि हज़ारों वर्ष पूर्व जब धातुओं की खोज हुई थी, तब एक आलौकिक शक्ति का आह्वान कर दो भाईयों ने बनाया था। मौन के सबसे ऊँचे पर्वत वेदा से आप ब्रह्मपुत्र और चिंदविन नदियों को भी देख सकते हैं। 11 किलोमीटर दूर नागनिमोरा इस ज़िले का हेडक्वार्टर है जो दिखू नदी के किनारे बसा है। नागनिमोरा का अर्थ है वो जगह जहाँ रानी कि समाधि है।

क्या खाएँ

नागा भोजन अन्य किसी भी भोजन से काफी अलग है। आम तौर पर चावल के साथ उबली सब्ज़ियाँ, तीखी चटनियाँ, बैम्बू शूट होता है। नागालैंड के लोग पोर्क और बीफ भी बहुत पसंद करते हैं। भुने और धूप में सुखाए हुए माँस स्नैक्स के तौर पर खाए जाते हैं। यहाँ की राजा मिर्च के शोरबे में पका माँस बहुत ही तीखा होता है। राइस बियर भी यहाँ लोकप्रिय है।

कब जाएँ?

मार्च-अप्रैल मौन जाने के लिए उपयुक्त समय है।

कैसे जाएँ?

हवाई जहाज द्वारा: निकटतम हवाई अड्डा जोरहाट असम में है जोकि 161 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ से आप कैब बुक कर के मौन जा सकते हैं।

रेल द्वारा: निकटतम रेलवे स्टेशन भोजू असम में है। यहाँ से आपको सोनारी जाना होगा जहाँ से मौन के लिए बस मिल जाएगी।

रोड द्वारा: अगर आप रोड से जा रहे हैं तो कोहिमा या दीमापुर से बस ले सकते हैं या फिर जोरहाट से सोनारी जा कर।

इनर लाइन परमिट: नागालैंड में घूमने के लिए आपको इनर लाइन परमिट अनिवार्य रूप से लेना होगा। इनर लाइन परमिट आपको दिल्ली, कोलकाता और दीमापुर स्थित नागालैंड हाउस से मिल जाएगी। यह परमिट सोमवार से शुक्रवार को ही मिलता है और इसे मिलने में आधे दिन का समय लगता है।

कहाँ ठहरें?

लोंगचेन होमस्टे

होटल एरियल

अगर आप भी मौन जैसी किसी अद्भुत, अनोखी या विचित्र जगह के बारे में जानते हैं तो हमें ज़रूर बताएँ। अपना अनुभव लिखने के लिए यहाँ क्लिक करें।

रोज़ाना वॉट्सऐप पर यात्रा से जुड़ी जानकारी के लिए 9319591229 पर HI लिखकर भेजें या यहाँ क्लिक करें।

ये आर्टिकल अनुवादित है। ओरिजनल आर्टिकल पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

Further Reads