
उत्तराखण्ड के चमोली जिले में गोपीनाथ मंदिर स्थित है जो भगवान शिव को समर्पित है। पुरातात्विक दृष्टि से इस मंदिर को आठवीं सदी का निर्मित बताया जाता है, लेकिन धार्मिक मान्यता के अनुसार यह मंदिर आदि काल से ही भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर अपनी अलग वास्तुकला के लिए जाना जाता है। गोपीनाथ मंदिर का शीर्ष गुम्बद और इसका 30 फुट का गर्भ गृह है। स्थापत्य शैली के आधार पर मुख्य मंदिर का निर्माण नवी और ग्यारहवीं सदी के मध्य या संभवतः कत्यूरी शासकों द्वारा किया गया। मंदिर के अगले भाग में शेर हाथी के कंधे पर सवार होकर नियंत्रित करते दिखता है, जिसे तंत्र साधना का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है। मंदिर के अग्र भाग में नटराज की दिव्य मूर्ति भी है।
पंचकेदारों में से एक है यह मंदिर

गोपीनाथ मंदिर पंच केदारों में से चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ का गद्दी स्थल है। मंदिर की अलग-अलग किवदंतियां हैं जिसमें कि एक यह भी है कि भगवान श्रीकृष्ण जब यहां रासलीला कर रहे थे, तब भगवान शिव गोपी का रूप धारण कर रासलीला में शामिल हो गए। इतने में ही कृष्ण ने भगवान शिव को पहचान लिया और उन्हें प्रणाम करते हुए कहा कि आप तो गोपियों के नाथ है, तब से इस स्थान का नाम गोपीनाथ पड़ा।
दूसरी कथा के अनुसार देवी सती के शरीर त्यागने के बाद और ताड़कासुर नामक राक्षस के वध का सम्बन्ध भी स्थान से लगाया जाता है। जब देवी सती ने अपना शरीर त्याग का तो भगवान शिव इस स्थान पर ध्यान मुद्रा में बैठ गए। दूसरी तरफ ताड़कासुर के आतंक के कारण इन्द्र ने स्वर्ग या सिंहासन छोड़ भागे और ताड़कासुर ने तीनों लोकों पर युद्ध छेड़ दिया। ताड़कासुर को वरदान था कि उन्हें सिर्फ शिवपुत्र ही मार सकता है। यही कारण है कि देवों ने ब्रह्मा से इसका उपाय पूछा तुम ब्रह्मदेव ने कामदेव को शिव की तपस्या भंग करने के लिए भेज दिया। जब कामदेव के तीरों के कारण शिव की तपस्या भंग हो गयी तो वे अधिक अत्यधिक क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से कामदेव को भस्म किया।
मंदिर परिसर में रखे त्रिशूल का रहस्य

अष्टधातु से बने इस त्रिशूल पर किसी भी मौसम का कोई प्रभाव नहीं पड़ता और वर्तमान समय में यह एक आश्वर्यजनक बात है। यह भी मान्यता है कि कोई भी मनुष्य अपनी शारीरिक शक्ति से त्रिशूल को हिला भी नहीं सकता, यदि कोई सच्चा भक्त त्रिशूल को कोई सी ऊंगली से छू लेता है, तो उसमें कंपन पैदा होने लगती है। भगवान गोपीनाथजी के इस मंदिर का विशेष महत्व माना जाता है। हर रोज सैकडो़ श्रद्धालू यहां भगवान के दर्शन करने के लिए आते हैं। इस मंदिर में शिवलिंग ही नहीं बल्कि परशुराम और भैरव जी की प्रतिमाएं भी स्थापित है। मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है और मंदिर से कुछ ही दूरी पर वैतरणी नामक कुंड भी बना हुआ है, जिसके पवित्र जल में स्नान करने का विशेष महत्व है।
गोपीनाथ मंदिर खुलने व बंद होने की तिथि

यह मंदिर भक्तों के लिए वर्षभर खुला रहता है। हालाँकि सर्दियों में यहाँ भीषण ठंड पड़ती है लेकिन भक्तगण उस समय भी यहाँ आते हैं और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मंदिर भक्तों के लिए सुबह 6 बजे खुल जाता है और शाम में 7 से 8 बजे के बीच बंद हो जाता है।
कैसे पहुंचें गोपीनाथ मंदिर?

हवाई मार्ग से: यहाँ का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून का ग्रांट जॉली हवाई अड्डा है। यहाँ से बस या टैक्सी करके गोपेश्वर पहुँचना पड़ेगा।
रेल मार्ग से: यहाँ का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश का है। यहाँ से फिर आपको बस या टैक्सी की सहायता से गोपेश्वर पहुंचना पड़ेगा।
सड़क मार्ग से: वर्तमान समय में उत्तराखंड राज्य का लगभग हर शहर व कस्बा बसों के द्वारा सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हैं। आपको दिल्ली, चंडीगढ़, जयपुर इत्यादि से ऋषिकेश तक की सीधी बस आसानी से मिल जाएगी। फिर वहां से आप आगे के लिए स्थानीय बस या टैक्सी कर सीधे गोपेश्वर तक पहुँच सकते हैं।
ध्यान में रखें ये बातें:
1. यहाँ वर्षभर ठंडा मौसम रहता हैं, इसलिए गर्म कपड़े हमेशा साथ लेकर चले।
2. ट्रैकिंग करने के लिए ट्रैकिंग वाले जूते व एक छड़ी भी साथ में रखेंगे तो पहाड़ों पर चढ़ने में आसानी होगी।
3. होटल इत्यादि की बुकिंग पहले ही करवा कर रखे।
4. बारिश के मौसम में यहाँ आने से बचें।
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