दोस्तों के साथ सफर या परिवार के साथ यात्रा- आखिर किसमें है ज़्यादा मज़ा?

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कुछ सवाल हैं, जिनके जवाब कोई नहीं दे पाता। ये ठीक वैसा ही है जैसे दो पलड़ों में एक किलो रुई और एक किलो लोहा रख दो, फिर पूछो कौन ज़्यादा भारी है। ऐसा ही एक सवाल ट्रैवल से जुड़ा है, किसके साथ सफ़र ज़्यादा बढ़िया होता है, परिवार या दोस्त। मैं भी इन अनुभवों में इसी सवालों का जवाब ढँढने की कोशिश कर रहा हुँ!

1. परिवार के साथ सफर मतबल बजट के झंझट से आज़ादी

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घर वालों के साथ घूमने का सबसे बड़ा फ़ायदा है पैसों के झंझट से आज़ादी। क्योंकि सारी ज़िम्मेदारी पापा ने सँभाल रखी होती है। क्या चाहिए क्या नहीं, ज़्यादा सोचना नहीं पड़ता। लेकिन अगर आपके पापा की शक्ल अमिताभ बच्चन से नहीं मिलती है तो भी आपको 'परम्परा प्रतिष्ठा अनुशासन' मानना ही पड़ेगा। अब सफ़र में आए हो तो किस बात का अनुशासन? अगर पापा का बस चले तो वो सफ़र में भी सुबह पाँच बजे उठा दें।

2. बीच घूमने की उम्र में मंदिर घुमाते हैं घर वाले

भगवान जाने कौन सी घड़ी में फ़ैमिली वालों को आइडिया आया और उन्होंने गोवा का फ़ैमिली ट्रिप प्लान कर लिया। गोवा तो यार हम जैसे 22-23 साल के लड़के-लड़कियों को जाना चाहिए, जिनकी उमर ही पाप करने की हो। उसमें पापा भी साथ चलें तो माहौल नहीं बन पाता।

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लेकिन सच मानिये, मुझे नहीं पता था कि गोवा में बीच के अलावा मंदिर भी हैं। घर वालों ने सप्तकोटेश्वर मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर, मारुति मंदिर और महादेव मंदिर सब घुमा डाला।

वहीं दोस्तों के साथ मंदिर घूमने जाओ तो उसका भी अलग आनंद होता है। हम साथी दोस्तों ने एक बार मनसा देवी घूमने का प्लान बनाया। हम 10 लोग गए थे कॉलेज से। कितनी बेवकूफ़ी भरी बातें करते हैं हम लोग, इसका कोई अन्दाज़ा ही नहीं होगा अगर आप दोस्तों के साथ कभी ट्रिप पर नहींं गए।

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दोस्तों के साथ घूमने का फ़ायदा है कि रास्ता चाहे जितना भी ख़राब क्यों न हो, ओवरऑल सफ़र हमेशा शानदार होता है। इस क़िस्म की आज़ादी आपने शायद ही कहीं महसूस की हो।

3. परिवार के नियम और दोस्तों का दोस्ताना

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दुनियादारी में ख़ुद को सभ्य और अच्छा दिखाने और शोशेबाजी के चक्कर में हम वो कभी नहीं हो पाते जो हम सच में होते हैं। यहीं फ़र्क समझ में आता है परिवार के साथ और दोस्तों के साथ घूमने में। परिवार आपको हर क़िस्म की सुरक्षा देता है लेकिन एक सभ्य इंसान होने की उम्मीद नहीं छोड़ता। यानी सफर पर भी आपको कई नियमों को मानना ही पड़ता है।

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वहीं दोस्त आपको हर क़िस्म की आज़ादी देता है, सारी दुनिया को अपने होने का सबूत दे सकते हो आप, बीच सफ़र में उनको छोड़ भी सकते हो लेकिन इन सबसे होने वाले पचड़े की ज़िम्मेदारी भी आपको ही सँभालनी होगी। अगर किसी दोस्त ने दारू पी के कुछ भी हंगामा किया तो पिटाई आपकी भी हो सकती है।

4. परिवार के साथ प्लानिंग और दोस्तों के साथ प्लानिंग

दोस्तों के ट्रिप से जुड़े मीम आपने सोशल मीडिया पर ख़ूब देखे होंगे। एक ट्रिप होना इतना ही मुश्किल है, जितना कि चन्द्रयान मिशन। बहुत भयंकर प्लानिंग करनी पड़ती है, दसियों जगह हाथ जोड़ना पड़ता है, पचासों जगह धमकी भी देनी पड़ती है। उसके बाद भी मिशन पॉसिबल होने की संभावना 1% से कम होती है।

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वहीं परिवार के साथ तो जब मन करे तब ट्रिप प्लान कर लो। कहीं दूर नहीं तो नज़दीक ही, किसी हिल स्टेशन ना सही तो किसी मेले में, कहीं घूमने की जगह प्लान कर सकते हो। वरना हर साल वैष्णो देवी की ट्रिप तो हमेशा से ही पापा ने प्लान कर रखी होती है।

5. दोस्तों की फोटो या परिवार की एल्बम

अगर आपको अच्छी तस्वीरें खिंचानी हैं, तो दोस्तों के साथ ट्रिप पर निकल जाइए। बस ये सारी तस्वीरें उनसे माँगने के लिए कम से कम दस बार हाथ जोड़ना पड़ेगा। एक दो बार तो सबके सामने दंडवत प्रणाम भी करना पड़ सकता है।

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परिवार वाले आपके साथ ऐसी फ़ोटो खिंचाते हैं जैसे पासपोर्ट वाले की दुकान में हों। मम्मी इतना मुस्कुरा रही होती हैं कि उनके दाँत न दिखें। पापा कैमरे को ऐसे देख रहे होते हैं जैसे पहली बार देखा हो। उनके चेहरा हमेशा ऐसा लगता है कि किसी सवाल का जवाब ढूँढ़ रहे हैं। छोटे भाई का सारा प्लान तुम्हारी तस्वीर को ख़राब करने का होता है और बड़ी बहन का फ़ोन से ध्यान हट जाए तो दुनिया न पलट जाए।

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