आज़ाद मन

Tripoto
6th Nov 2019
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सब दिनों की शुरुआत सुबह जल्दी जाग कर इधर उधर भागते भागते निकल जाती है । रोज़ की तरह नींद को ठुकरा कर आज भी मै जैसे तैसे उठ गया। पर आज रोज़ जैसा दिन नहीं था। 

आज मेरा मन शांत नहीं था । कुछ पीछे छूट रहा था तो मैंने 

कॉलज की बस छोड़ कर ऋषिकेश की ट्रेन पकड़ ली।

तब कुछ नहीं सोचा क्या होगा। घर प्र क्या बोलूंगा सब बस 

अगर अपने दिमाग में चल रही जंग को शांत करना था तो यही एक मात्र रास्ता मेरे पास था। शुरू से ही इस क़दर आजाद सा रहा हूं तो घर वालो को समझाने में परेशानी नहीं होती। 

अब शुरू हो चुका था। मर एकांकी यात्राओं में एक कहानी और जुड़ने वाली थी।

हमेशा की तरफ जल्दबाजी म लिया गया फैसला था तो

परेशानी होना लाज़मी तो था ही। और जहां परेशानियां होती ह

वहा यादें अक्सर बन जाती । अच्छी होती  है कभी बुरी और कभी अजीब । पर यादगार होती है।

ट्रेन के दरवाज़े पर ही कुछ घंटे बीते। लेकिन डर अभी वैसा ही था। ट्रेन का टिकट अभी तक नहीं था मेरे पास ।पीछली बार की तरह मुझे इस बार नहीं फसना ना था। किसी बड़े स्टेशन पर उतरना समझदारी नहीं होती , तो मैंने इंतज़ार किया ।

किसी खोए हुए स्टेशन का जहां में उतर कर टिकेट ले सकु।

ये जगह कुछ वैसे ही थी एक छोटा सा स्टेशन जहां में उतर 

पाया इस स्टेशन का नाम तो मुझे याद नहीं , पर इस पर पेड़ों

का कब्ज़ा था! टिकट लेने के बाद थोड़ा सुकून मिला।

सीट तो मुझे अभी भी नहीं मिली थी, लेकिन अब शान से गेट 

पर खड़े होने में झिझक नहीं हो रही थी। कॉलेज से घर जाने का वक़्त हो चुका था थोड़ी देर बाद घर से फोन भी आने ही वाला होगा। क्या बोलूं इस बार । ये सोचते सोचते सूरज ये दूर तक फैले 

खेतो के पीछे कहीं गायब होने लगा।

एक छोटे से झूट ने मुझे घर वालो से बचा तो लिया था। प्र अभी रात पड़ी थी पूरी शहरानपुर पीछे छूट चुका था और अब जैसा देर नहीं थी। मंजिल आने में पर वो मेरी मंज़िल है या नहीं

ये नहीं पता था। शाम अपनी जवानी पर थी। बाहर से आती रोशनी अब चेहरे पर आकर गिरने लगी । धीरे धीरे अब रफ्तार धीमी होने लगी। रोशनियों के झुंड ने बता दिया कि कोई शहर 

आने वाला है । ऋषिकेश ही होना चाहिए था।

तो मै उतर कर बस पहाड़ों की थोड़ी हवा अंदर भरी और बस स्टैंड की तरफ चल दिया , दोस्त के घर हूं तो सुबह सुबह अपने घर भी पहुंचना था। दिल्ली की बस पकड़ ली सोते सोते कब वापस दिल्ली आया पता नहीं लगा सुबह मेरा मन शांत था।

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