एक यात्रा ऐसी भी।

Tripoto
30th Apr 2022
Photo of एक यात्रा ऐसी भी। by Suraj Rawat

आजकल मेरे अंदर घुमक्कडी का एक अलग सा कीड़ा पनप रहा है फेमस पर्यटक स्थलों के शोर-शराबे से दूर मुझे गांव के शांत माहौल की तरफ रुझान होता जा रहा है, अभी मैं कुछ समय पहले 1 महीने तक उत्तराखंड के अलग अलग गांव में घूमता रहा। यात्रा की शुरुआत मैंने दिल्ली से की और ऋषिकेश में गंगा स्नान कर के अपनी यात्रा खत्म की 1 महीने में उत्तराखंड के 30 से ज्यादा गांव और 15 बड़े  छोटे कस्बे से होकर गया जिनमें रामनगर,         धुमाकोट ,पोड़ी ,श्रीनगर ,करणप्रयाग ,जोशीमठ ,बद्रीनाथ ,माना ,  पिंडर घाटी आदि शामिल है ।
जिसमें मैंने लगभग 15०० किलोमीटर का सफर तय किया । सफर जितना रोमांचक था उसमें उतनी ही कठिनाइयां मेरे सामने आई पहले मेरा विचार था कि मैं अपनी ही बाइक से यह यात्रा करूं पर फिर सोचा क्यों ना पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सहारा लिया जाए उससे मेरी यात्रा का खर्चा भी कम होगा ।

Photo of Pauri Garhwal by Suraj Rawat
Photo of Pauri Garhwal by Suraj Rawat

Day 1

अभी समय हो रहा है शाम के 6:00 बजे और मुझे आनंद विहार बस अड्डा जाना है रामनगर की बस पकड़ने के लिए कुछ लोगों से मुझे मालूम हुआ कि आज बहुत ज्यादा भीड़ है क्योंकि शादियों का सीजन चल रहा है ,फिर क्या आनन-फानन में एक ऑटो रिक्शा बुक किया और निकल पड़े आनंद विहार की तरफ शाम का समय और दिल्ली की सड़कों पर बेतहाशा जाम तो मामूली बात है बस जैसे-तैसे 7:30 बजे बस स्टेशन पहुंच ही गए पर आलम यह था कि रामनगर को जाने वाली कोई भी बस वहां पर उपलब्ध नहीं थी भीड़ इतनी ज्यादा थी जो बस आ भी रही थी वह पहले से ही फुल होकर आ रही थी। 7:30 बजे से रात के 10 कब बज गए पता ही नहीं चला , अब लगा कि आज की यात्रा करना संभव नहीं है पर फिर घुमक्कड़ई के कीड़े ने अपना उतावलापन दिखाना शुरू किया ,फिर सोचा क्यों ना रेल से यात्रा शुरू की जाए नजदीक पर ही आनंद विहार रेलवे स्टेशन है पर वहां जाकर पता चला की रामनगर के लिए कोई डायरेक्ट ट्रेन तो है नहीं पर मुरादाबाद तक ट्रेन कुछ ही समय पर छूटने वाली है ,और उसका टिकट वहीं प्लेटफार्म पर मिलेगा बस फिर क्या था मैंने अपना सामान उठाया और एक दौड़ लगाई जैसे मैं किसी प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक के लिए दौड़ रहा हूं आखिरकार कुछ मिनट पहले मैं प्लेटफॉर्म पर पहुंच ही गया वहां टी- टी साहब से बात हुई और सीट का बंदोबस्त हो गया। रेल में सफर करने का मजा ही अलग है समय लगभग 12 बजने को आया है और गाड़ी ने भी अपनी रफ्तार पकड़ ली , मन में एक उत्सुक सी हलचल थी मानों में भगोड़ा हूं जो भीड़भाड़ से दूर जाने की कोशिश कर रहा हूं । रात के 2:00 बजे अपना डिनर करने के बाद मुझे एक नींद की प्यारी झपकी आनी शुरू हुई परंतु शोर शराबा और गर्मी ने यह मुमकिन होने नहीं दिया । तो मैं मुरादाबाद स्टेशन पहुंचने ही वाला था अब मुझे यहां से दूसरी ट्रेन पकड़ कर रामनगर को जाना था। आखिरकार स्टेशन आ ही गया मैं अपना सामान उठा कर टिकट घर की तरफ चला गया मैंने इंटरनेट पर चेक किया था पहली गाड़ी सुबह 4:00 बजे मुरादाबाद से रवाना होती है वक्त कम था इसलिए मैंने अपने कदमताल पर जोर दिया आखिरकार पुल पार करने के बाद मैं टिकट घर के सामने पहुंच गया परंतु वहां पहुंचने के बाद लगा कि यह यात्रा इतनी भी आसान नहीं होने वाली है ,मैडम साहिबा ने कहा कि यहां से कोई ट्रेन इस समय रामनगर को नहीं जाती है जो समय इंटरनेट पर दिखा रहा था वह ट्रेन कोरोना काल से स्थगित है यह सुनकर मानों मुझे अपने फैसले पर धिक्कार हुआ।

Photo of एक यात्रा ऐसी भी। by Suraj Rawat


Day 2

समय लगभग सुबह के 4:30 बज रहे थे अपने फैसले से नाराज मैं अब दूसरे रास्तों के बारे में सोच रहा था, पास ही चाय की ठेली थी कुछ समय वहां बैठकर सुबह की चाय पी , मेरे पहुंचने से पहले मुरादाबाद से रामनगर की पहली बस निकल चुकी थी और मैं टिकट घर के चक्कर में छूट चुका था, पर मैं भी घुमक्कडी ढेट था घर से निकलने के बाद सोच लिया था कि अब पीछे नहीं हटूंगा , कुछ देर दो गिलास चाय पीने के बाद आखिर एक बस आ गई परंतु समस्या यहीं खत्म नहीं हुई यह बस गुरु द्रोणाचार्य की नगरी काशीपुर तक ही जा रही थी। जिस शादी समारोह में मैं जा रहा था कहीं मुझे देर ना हो जाए इसलिए मैंने वही बस पकड़ ली क्योंकि मुझे रामनगर से भी दूसरी बस पकड़ के पहाड़ को जाना था। समय लगभग 5 बज चुके थे और बस अब खचाखच यात्रियों से भरी हुई थी मुरादाबाद से बस रवाना हुई, सुबह सवेरे यात्रा करने का भी अपना ही एक अलग मजा है लगभग मुरादाबाद पार करने के बाद बारिश भी शुरू हो गई और सफर बदतर से हसीन होता हुआ चलने लगा । रात भर ना सोने के कारण मुझे हल्की-हल्की नींद की झपकी भी आने लगी परंतु सीट कितनी दुखदायक थी कि यह भी मुमकिन नहीं हो पाया पर एक चीज अच्छी हो गई कि मुझे खिड़की वाली सीट मिल गई थी भार का नजारा देखते हुए सफर अच्छे से कट गया। आखिर खिड़की वाली सीट का मतलब एक घुमक्कड़ अच्छे से जानता है। समय लगभग सुबह के 7:30 बज रहे थे और मैं काशीपुर पहुंच गया पहुंचते ही मुझे रामनगर के लिए बस भी मिल गई जो कि रवाना होने ही वाली थी आखिर यहां से मुझे कुछ खुली हुई सीट मिली अब मैंने अपने पैरों को थोड़ा आराम दिया ,बारिश के कारण मौसम बहुत सुहावना हो गया और गर्मी से कुछ आराम मिला।

Photo of Muradabad by Suraj Rawat
Photo of Muradabad by Suraj Rawat

लगभग डेढ़ घंटे के बाद मैं रामनगर पहुंच गया। असली मुसीबत तो अब थी भीड़ ज्यादा और बसों की कमी के कारण यात्रियों की संख्या और दिनों से अधिक दिखाई दी टिकट घर पर जाकर पता चला कि आज बस में कोई सीट नहीं है सभी सीटें लगभग फुल है और जो सीटें बची है वह बुजुर्ग और महिलाओं के लिए है अगर खड़े होकर यात्रा करनी है तो बस कंडक्टर से संपर्क करें। कुछ देर बाद एक बस निकलने वाली थी तो उसके कंडक्टर से संपर्क किया और वह राजी हो गया। कुछ हादसों के बाद सरकार ने यह नियम बनाया हुआ है कि बस में जितने सीट होगी उतने ही यात्री बस में सफर करेंगे कोई भी खड़ा होकर या ओवरलोड करके बस नहीं चलाएं इसके लिए सरकार द्वारा सख्त निर्देश दिए हुए हैं। हालांकि जहां मुझे जाना था वह मात्र 2 घंटे की दूरी पर ही था परंतु पहाड़ी रास्ते घुमावदार सड़कें यह सब इतना आसान भी नहीं था । शुरुआती सफर में मुझे इतना कष्ट नहीं हुआ परंतु 1 घंटे बाद मेरे पैरों ने और नींद ने साथ नहीं दिया, बस में और यात्री भी थे जो खड़े होकर सफर कर रहे थे।जैसे तैसे मुझे बस के फर्श पर बैठने की जगह मिल ही गई बैठकर मानो ऐसा लग रहा था जैसे मैंने कोई जंग जीत ली हो और अब आराम के दिन है।
अब बस खानपान के लिए एक जगह रुकी इस जगह का नाम मर्चुला था यह अपने रिवर साइड रिजॉर्ट जंगल रिसोर्ट के लिए जाना जाता है कॉर्बेट नेशनल पार्क के आखरी छोर पर स्थित है रामगंगा नदी के दोनों तरफ बहुत सुंदर रिसोर्ट यहां पर उपलब्ध है एक छोटा सा मार्केट भी है और यहीं से एक रास्ता पौड़ी गढ़वाल को और दूसरा रास्ता कुमाऊं गढ़वाल को जाता है लगभग सभी बसें यहां पर चाय नाश्ता के लिए रूकती है यहां के छोले पूरे क्षेत्र में विख्यात है लगभग सभी यात्री यहां पर छोले खाते हैं जोकि दही और खट्टी चटनी के साथ सर्व किया जाता है । कुछ देर शरीर की अकड़न खत्म हुई परंतु अब बस एक बार फिर अपने गंतव्य को पहुंचने के लिए चल पड़ी , अब सड़क और भी सकरी ओर खिड़की के बाहर खाई दिखाई देने लगी। अक्सर जब हम पहाड़ों पर सफर करते हैं तो इस तरह के रास्तों पर हमेशा मन में डर रहता है कि कहीं हम खाई में ना गिर जाए। रास्तों को देख यह डर लाजमी भी था परंतु यह तो शुरुआत थी अभी मुझे इस तरह के डर से और सामना करना था

मार्चुला के छोले

Photo of Marchula by Suraj Rawat
Photo of Marchula by Suraj Rawat

अब मैं अपने मंजिल पर पहुंच गया हूं आखिरकार इतनी कष्ट दाई यात्रा के बाद गांव के नजारों ने सारी मानसिक थकान चुटकियों में दूर करदी । अब वक्त था पहाड़ी शादी में रंगमत होने का पहाड़ी ढोल की आवाज कानों को सुकून दे रही थी। यहां हल्दी का कार्यक्रम होने के बाद मैं खाना खाकर आराम करने चला गया।

Photo of Dhumakot by Suraj Rawat
Photo of Dhumakot by Suraj Rawat

इस सफर के आगे की दास्तान मैं आपको अगले भाग में बताऊंगा तब तक के लिए आपसे विदा चाहता हूं उम्मीद है आपको यह भाग पसंद आया होगा अभी सफ़र में रोमांचऔर बाकी है।