घने जंगल, साल पेड़ों की कतार शांत वातावरण यानी झारखंड।
पहले भी आपको कई सफर पर ले के गया हूं, आज एक नई रोमांचक सफर पर ले चलूंगा।रास्ते कम पर रोमांच बहुत है इस यात्रा में।
इस बार सूरज, शास्वत, आदित्य साथ नहीं है ।
देर रात रोशन भाई ने कॉल किया।
रोशन - मेरा एक भाई कोलकाता से आया है जरा झारखण्ड की सैर करा दो भाई इसे।
मैं - चलो मैंने कब ना बोला है।
रोशन - यार उधर ही कहीं कुछ बना कर खा लिया जाएगा
मैं - ठीक है क्या खाना है बताओ। पकाने की जिम्मेदारी मेरी और सुमित भाई की।
समय तय हुआ 11 बजे जगह हमने तय किया पहाड़भांगा जो कि हमारे शहर जमशेदपुर से मात्र 20 km की दूरी पर है। अगले दिन मैं ठीक सुबह 11 बजे रेल्वे स्टेशन के पास वाले पेट्रोल पम्प पर पहुँच गया और इस बार दोस्तों ने 1 घंटे इन्तेज़ार करवाया। थोड़ी बहस के बाद हमलोग निकल पड़े।
कुल 3 बाइक और सात लोग सभी तेजी में थे थोड़े देर के बाद रास्ते मे एक जगह छोटी सा बाज़ार लगा हुआ था। हमे फ्रेश फिश नजर आई और हमलोग ने सोचा ये ले लेते हैं। आधा किलो हमने ले लिया। और एक किलो चिकन दोस्तों ने पहले ही ले रखा था सीख कबाब बनाने के लिए। और सारा जुगाड़ सुमित भाई के जिम्मे था ।
मछली ले कर हमलोग निकले और हमने पत्ता पहले ले लिया था। थर्मोकोल या प्लास्टिक का समान ना ले जाए तो बेहतर होगा। क्योंकि हम सभी प्लास्टिक प्रोडक्ट इस्तेमाल कर वही फेंक देते है और वो प्रकृति को कितना नुकसान पहुँचता है आप सभी जानते हैं।
कुछ 10 km के बाद हम स्टेट हाईवे से अब गाँव के अंदरुनी भाग के और बढ़ने लगे
शांत वातावरण, चारो ओर आकर्षित करते पहाड़, आदिवासियों के मिट्टी के सुंदर घर, जानवर, पंछी मानो किसी स्वर्ग मे आ पहुचे हो। थोड़ी दूर और चलने के बाद हमरा तय स्थान आ गया।
नदी का किनारा और ऊँचे पहाड़, मखमली शांत वातावरण, हवायें भी गुज़रे तो एहसास खास हो। हालांकि ये स्थान शहर से ज्यादा दूर नहीं है पर लोगों को पता ही नहीं इसके बारे मे। अच्छा भी है ज्याद भीड़ नहीं है तो स्थान की सुंदरता बरकरार है।
सबने बाइक नीचे तक उतार दिया। तस्वीर का सिलसिला शुरू हो गया। मैं और सुमित भाई मछली चिकन धो कर तैयार कर दिए
अब लकड़ी इकठ्ठा करना था। परसों रात बारिश हुई थी सुखी लकड़ी बडी मुश्किम से मिल रही थी। दोस्तों ने नदी के उस पार जा कर लकड़ी लाने की कोशिश की। इस बीच जो कांड हुआ बता नहीं सकता, मेरे मना करने के बाद भी ये लोग नहीं सुनते हैं।
आग तैयार हो रही थी। चिकन और मछली मे मसाला लपेट दिए गए थे। और भूख लगना चालू???? पहले चिकन को सीख में डाल कर आग के आंच के ऊपर पका रहे थे उसके बाद मछली की बारी थी। और उसकी खुशबु भूख बढ़ा रही।
मछली को साल के पत्ते मे लपेट कर आग मे डाल कर भुनना, ये सबसे खास था जो मैंने सोच रखा था और घर से सिल्वर फोईल ले लिए थे। साल पत्ते मे तेल लगा कर मछली पर लपेट सिल्वर फोईल मे लपेट कर आग मे डाल कर मैं नहाने चला गया। और सभी भी नहा रहे थे। थोड़ी देर में आ के आग से मछली को निकाला।
वाह क्या खुशबु आ रही। मन तो कर रहा था सारा अकेले खा जाऊ पर नामुमकिन है दोस्तों के साथ एसा कर पाना।
सभी आइटम को एक जगह कर नमक छिड़क कर नींबु डालने की देरी थी सब टूट पड़े। भाई जल्दी दे भूख लगी है। सबका हिस्सा लगा के सभी साथ खाए। खाने के बाद अब समय हो चुका था 5 अब हमें घर भी निकालना था अंधेरा होने से पहले। सभी अपनी अपनी फोटो ले रहे थे। और फिर हम सभी निकल पड़े । रास्ते मे चाय पीए और सब रवाना हो चले अपने अपने घर की ओर।
शोहरत के महल तुम्हें मुबारक, हम तो मलंग ही अच्छे हैं
तुम रहना दायरों मे सिमट कर, हम तो खानाबदोश अच्छे हैं। ????
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