आज हम बात करने जा रहें हैं उत्तराखंड के एक खूबसूरत पागंला गाँव की, जो ऊंची ऊंची बर्फ से लढी पहाड़ियों में बसा हैं। जब हम इस गांव में आये थे तो इस गांव की खूबसूरती नें मुझे मंत्र मुग्ध कर दिया था। आप इस गांव की खूबसूरती इसी बात से लगा सकते हैं की हमारे देश की सबसे बड़ी कैलाश मानसरोवर यात्रा इसी गांव से होकर गुजरती है और इसके साथ काली नामक नदी भी इसी गांव के पास से होकर बहती है जो कि भारत और नेपाल की सीमा के बीचों-बीच है। यह नदी पूरे पागंला गांव को अपनी खूबसूरती से चार चांद लगा देती है और मेरी कहानी भी यहीं से शुरू होती है।
हमारे जीवन में कुछ ऐसे दिन आते हैं जो कई दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होते हैं, ऐसे कुछ दिन याद रखने योग्य होते हैं जिन्हें भूल पाना कठिन होता है क्योंकि ये दिन हमारे मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ जाते हैं। इस घटना में मैंने जीवन और मृत्यु को अपने सामने एक साथ खड़े देखा। हाँ दोस्तों यह बात आपको अटपटी जरूर लग रही होगी पर यह बात एक दम सही है। आपको तो पता ही होगा कि प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनीज की जॉब कैसी होती हैं, ऐसे में आज यहाँ तो कल वहांँ। बस ऐसी ही जिंदगी चलती है कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करने वालों की।
छुट्टी का दिन
एक दिल दहला देने वाली घटना मेरे साथ ऐसी हुई थी कि उस घटना को हम आज तक नहीं भूला पाऐं हैं। आज हम उसी घटना को आपके साथ शेयर कर रहे हैं। यह घटना चार पाँच वर्षो पुरानी हैं।
दोस्तों यह घटना उत्तराखंड स्थित एक खूबसूरत गांव पागंला के पास बहने वाली काली नामक नदी की हैं। यह नदी भारत और नेपाल के बॉर्डर से होकर हमारे कैम्प के पास से गुजरती थी। और इसी के चलते हम सभी का मछली पकड़ने का प्रोग्राम दो चार दिन से बन रहा था। रविवार छुट्टी का दिन था तो मैं और मेरे साथ काम करने वाले चार सहकर्मियों का मछली पकड़ने का प्रोग्राम अचानक बन गया।
चेतावनी नजरअंदाज करना पड़ा महंगा
हालांकि वो दिन बरसात के चल रहे थे मछली पकड़ने के चक्कर में मानों इस बात से सभी अनभिज्ञ से हो गए थे। हमें क्या पता था कि 14 जुलाई 2015 का वो दिन हमारे लिए मौत का दिन बन जाता। लेकिन दो चार दिन से बारिश भी नहीं हुई थी। हालांकि पास में रहने वाले एक दो व्यक्तियों नें हमें चेतावनी भी दी थी कि पहाड़ों के ऊपर मौसम खराब चल रहा हैं और काली नदी का पानी कभी भी बड़ सकता हैं, आज मछली पकड़ने मत जाओ। उस दिन बेशक मौसम थोड़ा खराब जरूर चल रहा था पर छुट्टी के चलते बस मछली पकड़ने का जुनून हम सभी के दिमाग में था। उन व्यक्तियों को हम सभी नें नजर अंदाज कर दिया और निकल पड़े मछली पकड़ने।
मौसम को किया नजरअंदाज
मछली पकड़ने की अच्छी जगह की तलाश में हम नदी के किनारे होते हुए एक दो किलोमीटर दूर पहुँचे ही थे कि एकाएक बारिश की कुछ बूंदे गिरने चालू हो गई। उस समय दिल थोड़ा भयभीत भी हुआ था पर नहीं हम सभी के दिमाग में तो बस मछली ही पकडने का भूत सबार था। हम बारिश की बूँदों की परवाह ना करते हुए आगे बढ़ते गए। अभी हमें आगे बढ़ते हुए 15-20 मिनट ही हुए थे कि बिजली की जोर जोर से गड़गड़ाहट के साथ बारिश भी शुरू हो गई। मानों हम सभी के दिमाग में अब मछली पकड़ने का भूत कम होता नजर आ रहा था।
उम्मीद टूटना
अब मछली छोड़ सभी नें वापिस कैम्प में जाने का मन बना लिया। पर अब देर काफी हो चुकी थी। क्योंकि अब हमें नदी का जल स्तर भी बढ़ता नजर आने लगा था। सभी ने सोच लिया था के आज बच पाना बहुत ही मुश्किल है। हमारी आँखों के आगे चारों ओर मृत्यु नाचती हुयी दिखाई देने लगी। हमें जीने की आशा शेष न रह गयी थी। देखते ही देखते नदी का जल स्तर बहुत तेजी से बड़ने लगा, इतना के हमारे घुटनों के आसपास पहुँच गया था। हम सभी ने एक दूसरे को आपस में पकड़ लिया जिससे कि पानी के बहाव से हम अलग ना हों पाऐं, पर आजतक पानी के बहाव के आगे किसकी चली हैं।
अपनों को खोना
एकाएक पानी का बहाव ऐसा आया कि हम सभी एक ही झटके से एक दूसरे से अलग थलग हो गए। उसके बाद कुछ पता नहीं चला हमारे साथ क्या हुआ। जब हमारी आँखे खुली तो हमने अपने आप को हॉस्पिटल के बिस्तर पर पाया। मेरे शरीर पर बहुत ज्यादा ज़ख्म थे जिससे हम बिस्तर पर आसानी से बैठ भी नहीं पा रहे थे। (मेरे द्बारा पूछे जाने पर) मेरे बाकी के सहकर्मी कैसे है और कहाँ हैं तो हॉस्पिटल में मौजूद मेरी ही कंपनी के मैनेजर ने बताया कि सब कुशल हैं और अपना इलाज करवा रहे हैं हालांकि यह झूठ था क्योंकि बाद में पता चलने पर मैंने पाया के मेरे साथ गए चार सहकर्मियों में से मात्र दो ही जिंदा बच पायें हैं और दो सहकर्मियों नें हॉस्पिटल में आकर दम तोड़ दिया था। मैं आज तक उन सहकर्मियों की कमी महसूस करता आ रहा हूं। क्योंकि उनके साथ काम करते करते कुछ अपनापन सा हो गया था। जीवन और मृत्यु के पारस्परिक संघर्ष का चित्र मेरी आँखों के सामने आता रहता हैं। वस्तुत: यह घटना मुझे सदा स्मरण रहेगी। आज जब भी मुझे वो घटना याद आती हैं तो मेरे हाथ पाँव के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
"ज़िन्दगी ज़ख्मो से भरी है वक्त को मरहम बनाना सीख लो
हारना तो मौत के सामने है फ़िलहाल ज़िन्दगी से जीना सीख लो"
नोट:
दोस्तों मेरी इस घटना को आपके साथ शेयर करने का प्रमुख मकसद यही हैं कि आप कभी भी कहीं ऐसी जगह घुमने जातें हैं आप उस जगह के बारे में बिलकुल अनजान होते हैं। आपको उस जगह के बारे में जानकारी कम होती हैं जिससे कि बहुत बड़े हादसे होने का अंदेशा सदैव बना रहता हैं। इसलिए कहीं जाने से पहले उस जगह की पूरी जानकारी लें, तो आपकी यात्रा के लिए बहुत अच्छा रहेगा। और आपकी यात्रा भी सुखदाई रहेगी।
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जय भारत
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