किला राय पिथोड़ा: दिल्ली का तीसरा शहर

Tripoto
Photo of किला राय पिथोड़ा: दिल्ली का तीसरा शहर by Shubhanjal
Day 1

लगभग दो साल पहले 2017 में मैं दिल्ली के साकेत इलाके में स्थित बहुप्रसिद्ध पार्क 'गार्डन ऑफ फाइव सेंसेज' घूमने गया था। वहाँ से पैदल लौटते वक्त मैं इधर-उधर देखता चल रहा और साकेत मेट्रो स्टेशन के काफी करीब में मेरी नजर पड़ी एक कूड़े के ढेर पर। चूँकि काफी कूड़ा जमा था वहाँ, इसलिए लापरवाही की ये तस्वीर ना चाहते हुए भी मन में बैठ गयी। मैं उसे देख ही रहा था कि मुझे महसूस हुआ कि वहाँ सिर्फ कचड़े का वो ढेर नहीं, बल्कि उसकी आड़ में छिपा कुछ ऐसा है, जोकि सबके सामने होते हुए भी लोगों की नज़रों से ओझल है। असल में वहाँ कचड़े की ढेर के पीछे लाल रंग का एक धूल-धूसरित बोर्ड लगा हुआ था जिसपर धुँधले अक्षरों में लिखा था-'किला राय पिथौड़ा।'

ये वो दौर था जब मैं दिल्ली में नया-नया आया था और घूम-घूमकर इसे जानने की कोशिश कर रहा था। असामान्य चीजों ने ज्यादा आकर्षित किया इसलिए कचड़े के ढेर के पीछे छिपे इस 'किला राय पिथौड़ा' को जानने की उत्सुकता मन में घर कर गयी। मुख्य दरवाजा कचड़ों के कारण एक प्रकार से बंद ही था तो मैंने बगल की छोटी दीवार फाँदकर अंदर जाने का निर्णय लिया। अंदर कूदा तो सामने दिखी वो दीवार जोकि आप अंतिम तीन तस्वीरों में देख रहे हैं। लगभग 5-6 मीटर की ऊँची ये दीवार एक नज़र में ही देखकर महसूस हो जा रही थी कि ये ज़रूर इस किले की बाहरी दीवार है। अंदर के इलाके को ज़रूर नए जमाने की बसावट ने चट कर लिया होगा। कुछ आगे बढ़ा तो कुछ लोग बैठे दिखे जोकि समूह बनाकर ताश खेल रहे थे और उन्हें वहाँ देखकर मुझे कोई आश्चर्य भी नहीं हुआ। अनदेखी की शिकार ऐसी इमारतों का आमजनों द्वारा ऐसा ही उपयोग होता आया है, और होता रहेगा। खैर, वहाँ और कुछ था नहीं, आगे दीवार थी जोकि इस बात का संकेत दे रही थी ये जगह इतनी भर की ही है। शायद ये बात मुझे खल जाती कि यहाँ आने पर कुछ नहीं मिला अगर ढलती सांझ सांझ में मैंने दीवार की ऊँचाई पर बैठे एक शख्स की तस्वीर न खींची होती जिसके पीछे से सूरज की रोशनी तस्वीर को नया रंग दे रही थी (अंतिम तस्वीर की तरह)। कुछेक अच्छी तस्वीरें खींचने के बाद मन संतुष्ट हुआ, और मैं वापस लौट आया।

मैंने जो तस्वीर खींची थी, उसे उस समय लोग काफी पसंद कर रहे थे। लोगों को बेहद खूबसूरत लग रही थी वो। मगर बदकिस्मती से मैंने जिस फोन में उसे खींचा था, उसमें कुछ खराबी आ गयी और सभी तस्वीरों के साथ मुझे उस तस्वीर से भी हाथ धोना पड़ा। हालाँकि बात खटकती रही मगर मन में ये विश्वास भी था कि मैं वह तस्वीर फिर खींच लूँगा।

समय बीता और लगभग डेढ़ साल बाद 2019 में एक दिन दोस्तों के साथ यूँ ही घूमने निकला तो कुछ जगह घूमने के बाद ये ख्याल आया कि अब शाम होने वाली है, तो क्यों न साकेत स्थित किला राय पिथौड़ा चलें। यही अच्छा मौका है उस तस्वीर को फिर से खींचने का। मैंने अपने दोनों दोस्त को ये बात बतायी और भी झट वहाँ चलने को राजी हो गए। हम साकेत आये और किला राय पिथौड़ा की ओर चल दिये। जब हम मुख्य दरवाजे पर पहुँचे तो एक चीज बेहतर दिखी और वो ये कि कचड़े का ढेर वहाँ से साफ कर दिया गया था। अब लोहे का वो छोटा दरवाजा, जिसपर लोहे की जंजीर लगी थी, सड़क पर से साफ दिख रही थी। मगर अब भी कोई अनजाना इंसान उसे देखकर ये नहीं बता सकता था कि इस छोटे दरवाजे के पीछे इतना बड़ा राज छिपा है। खैर, हम अंदर गए और चूँकि इस बार फोटो खींचने के ही इरादे से आये थे, तो काम पर लग गए। कई अच्छी तस्वीरें ली हमनें, जिनमें से एक इन तस्वीरों में से सबसे नीचे है। फोन भरकर तस्वीरें लेने के बाद हमनें अपना बैग उठाया और वापस अपने पते पर लौट गए।

Photo of Qila Rai Pithora, New Delhi, Delhi, India by Shubhanjal

अगले 6 महीनों में मन में जिज्ञासाओं ने अलग ही बसेरा बना लिया था। नई-नई जगहों को तलाशने की गति व उत्सुकता और अधिक बढ़ती ही चली गयी। उनमें से एक उत्सुकता 'किला राय पिथौड़ा' को और अधिक जानने की भी थी। लम्बे समय से मन में सवाल था कि ऐसा कैसे सम्भव है कि कोई किला महज एक दीवार भर का हो। कुछ तो है ऐसा जोकि मुझसे छूट रहा है। उत्सुकता ने मुझे अधिक जानकारी जुटाने पर मजबूर कर दिया और काफी खोजबीन करने के बाद पता लगा कि 'किला राय पिथौड़ा' इंद्रप्रस्थ और लाल कोट के बाद दिल्ली शहर की तीसरी बसावट थी। उत्सुकता और बढ़ गयी जब ये पता चला कि 'किला राय पिथौड़ा' और किसी की नहीं, बल्कि राजा पृथ्वीराज चौहान द्वारा संरक्षित थी। 'राय पिथौड़ा' असल में राजा पृथ्वीराज चौहान ही हैं जिन्हें उस दौर में ससम्मान ये उपाधि दी गयी थी।

दिल्ली में 8वीं सदी के आसपास से तोमर वंश का शासन था और यही वो दौर था जब तोमर शासक अनंग पाल प्रथम ने दिल्ली के दूसरे शहर 'लाल कोट' की स्थापना की थी। राजा पृथ्वीराज चौहान ने 12वीं सदी सदी में तोमर वंश से 'लाल कोट' जीत लिया और नींव रखी चौहान साम्राज्य की जिसका मुख्य केंद्र बना 'किला राय पिथौड़ा।' किला राय पिथौडा अपने आप में एक विलक्षणता का प्रतीक था, जिसने अपना विस्तार दिल्ली भर में फैला दिया। आज के दौर में महरौली के इलाके में थी 'किला राय पिथौड़ा' के अवशेष मिल जाते हैं। अपनी विस्तृतता में 'किला राय पिथौड़ा' ने दिल्ली के दूसरे शहर 'लाल कोट' को भी समाहित कर लिया और बन गया दिल्ली का तीसरा शहर। चौहान वंश के बाद गुलाम वंश ने भी इसी किले से दिल्ली पर शासन किया। 12वीं-13वीं शताब्दी में 'किला राय पिथौड़ा' की महत्ता अपने चरम पर थी।

खैर, ये था इसका जरूरी इतिहास जिसे जानने के बाद मेरा विश्वास और सुदृढ़ हो गया कि मुझसे कुछ तो सच में छूटा है। और अधिक खोजबीन करने पर पता चला कि 'किला राय पिथौड़ा' की एक दीवार साकेत मेट्रो स्टेशन के पास है, जहाँ मैं जा चुका था। वहीं इसका मुख्य कॉम्प्लेक्स मालवीय नगर मेट्रो स्टेशन के करीब पड़ता है। बस पता लग गया कि क्या कमी रह गयी थी और अगले दिन चल दिया मालवीय नगर स्थित 'किला राय पिथौड़ा' के मुख्य क्षेत्र में।

कॉम्प्लेक्स में घुसते ही पहली नज़र पड़ती है राजा पृथ्वीराज चौहान की तीर-कमान साधे व घोड़े पर विराजमान एक तेजस्वी मूर्ति पर जोकि अपने-आप में एक विलक्षणता लिए हुए है। आसपास नज़र दौड़ाई तो ये समझते देर नहीं लगी कि ये इलाका एक पार्क के रूप में विकसित किया गया है। गेट पर बैठे वॉचमैन और पार्क में बैठी औरतों की कौतूहल दृष्टि ने इस बात को और पुख्ता कर दिया। खैर, पार्क के तौर पर ही सही, पर 'किला राय पिथौड़ा' को संरक्षित करने का ये तरीका भी खूबसूरत है। चारों तरफ किले की वो ऐतिहासिक दीवार, चारों तरफ पेड़, सलीके से की गयी सफाई, बीच में म्यूजियम और म्यूजियम के ऊपर राजा पृथ्वीराज चौहान की वो विशालकाय मूरत। इतना बेहतरीन माहौल एक साथ, और यही बात इसे और खूबसूरत बनाती है।

पार्क का एक चक्कर लगाने के बाद जाना हुआ उस म्यूजियम में जोकि दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के संरक्षण में एक पुस्तकालय भी है। उस भवन को म्यूजियम के रूप में विकसित करने का विचार अभी ही आया है और ये आप अगर अभी वहाँ जाएँ तो महसूस कर सकते हैं। पूरे भवन में काम चालू था। तोड़-फोड़, छैनी-हथौड़े और उन सबके बीच दिल्ली का इतिहास। शायद म्यूजियम के रूप में अभी इसका पूर्णतया विकसित न होना आपकी उत्सुकता कम कर सकता है मगर मैं आपको फिर भी कहूँगा कि आप वहाँ हो आइये, क्योंकि वहाँ की दीवारों पर जो बड़े-बड़े बोर्ड, तस्वीर व पोस्टर लगे थे, वे पर्याप्त मात्रा में दिल्ली के इतिहास सम्बन्धी आपकी जानकारी को विकसित करने में बहुत मदद करेंगे। आप इस क्षेत्र से खाली हाथ नहीं लौट सकते और हर तरफ तोड़-फोड़ के बीच वो पुरातनकालीन मूर्ति को देखना भी तो अपने आप में सोने पर सुहागा है। चाहें तो सेल्फी भी ले सकते हैं उसके साथ।

कुल मिलाकर, अलग-अलग तरह और अलग-अलग समय पर ही सही, 'किला राय पिथौड़ा' को मैंने दो साल में देखा, और मैं कह सकता हूँ कि मेरा अनुभव बेहद शानदार था। मुझे तो जानकारी देने वाला कोई नहीं था इसलिए वक्त लगा, मगर आपके लिए एक-एक डिटेल हाज़िर है, इसलिए हो आइए कभी वहाँ भी। नज़रों के सामने होकर भी नजरों से ओझल हो चुके इस ऐतिहासिक धरोहर को देखना खुद में एक उपलब्धि से कम नहीं, और अपनी उपलब्धियों में इस एक और उपलब्धि को जोड़ लेने से कोई हर्ज भी तो नहीं...????

कैसे जाएँ?

निकटतम मेट्रो स्टेशन मालवीय नगर। वहाँ से बस 400 मीटर की दूरी पर 'किला राय पिथौड़ा कॉम्प्लेक्स' है। पैदल जा सकते हैं। किले की दूसरी दीवार के लिए निकटतम मेट्रो स्टेशन है- साकेत। साकेत मेट्रो से महज 100 मीटर की दूरी पर 'किला राय पिथौड़ा' की दीवार।

प्रवेश शुल्क:- निःशुल्क

समय:- सुबह 6 बजे से शाम 5 तक का समय सबसे बेहतरीन।

Photo of किला राय पिथोड़ा: दिल्ली का तीसरा शहर by Shubhanjal
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