बिहार के सबसे बड़े जिलों में से एक बिहार का पूर्णियाँ प्रदेश अपनी ऐतिहासिकता, विविधता, प्रकृति के लिए जाना जाता है। देश से सबसे पुराने जिलों में से एक पूर्णियाँ महान साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु की कर्मभूमि है। पूर्णियाँ में ही एशिया का सबसे बड़ा मक्का बाजार है, और पूर्णियाँ के ही नाम पर विश्व का सबसे बड़ा तिरंगा (7100 मीटर) फहराने का गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड भी है। ऐतिहासिक भूमि पूर्णियाँ अपनी तमाम विशेषताओं के साथ-साथ अपनी पौराणिकता के लिए भी मशहूर है। इसी जिले के बनमनखी क्षेत्र में है वह पौराणिक नरसिंह स्तम्भ जिससे स्वयं भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर राजा हिरण्यकश्यप का वध कर भक्त प्रह्लाद की प्राण रक्षा की थी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार दैत्य राजा हिरण्यकश्यप अपनी क्रूरता से समस्त लोकों को ध्वस्त करने में लगा था। इसी राजा हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था- प्रह्लाद। प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था और यही बात उसके राक्षस पिता हिरण्यकश्यप को स्वीकार नहीं थी। उसने तमाम तरीकों से उसे विष्णु भक्ति से दूर करना चाहा मगर कोई नतीजा नहीं निकला। एक बार तो उसने आग में न जलने का वरदान प्राप्त कर चुकी अपनी बहन होलिका को भक्त प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठने का आदेश दिया मगर भक्ति के आगे ये युक्ति भी न चली। होलिका जल गई, प्रह्लाद फिर बच गया। इसी दिन को होली के रूप में मनाया जाता है। जब हिरण्यकश्यप ने कोई नतीजा निकलता न देखा तो प्रह्लाद को बाँधकर उसे चुनौती देते हुए कहा-"यदि तेरे भगवान होंगे, तो वे इस खम्भे से निकल आएँगे।" इतना कहते ही वह तलवार लेकर प्रह्लाद को मारने दौड़ना पड़ा कि तभी भगवान विष्णु ने खम्भा तोड़ नरसिंह रूप में अवतार लिया और हिरण्यकश्यप के प्रकोप से भक्त प्रह्लाद की रक्षा की।
पौराणिक कथाओं में इस घटना का अत्यंत महत्व है और ऐसी मान्यता है कि जिस खम्भे से नरसिंह प्रकट हुए थे वह बनमनखी, पूर्णियाँ में ही है। मैं सालों पहले भी वहाँ आया था, मगर इस बार बाकी दुनिया को उससे परिचित करवाने के लिए वहाँ गया। राष्ट्रीय राजमार्ग 107 में बनमनखी के करीब ही सड़क के बिल्कुल निकट में नरसिंह अवतार मंदिर है जिसमें आमजन की काफी आस्था है। जब आप सड़क से उतरकर मन्दिर के लिए जाएँगे तो वातावरण बिल्कुल शांत मिलेगा। होली के अलावा बाकी पूरे वर्ष शांति ही मिलेगी। मुख्य मंदिर में आपको भगवान नरसिंह की मूर्ति के साथ-साथ भगवान विष्णु के दसों अवतार दिखेंगे। इस मंदिर से बाहर निकलकर जब आप मन्दिर के पिछले भाग में जाएँगे तब वहाँ आपको दिखेगा नरसिंह स्तम्भ। नरसिंह स्तम्भ के बगल में ही एक बड़ा मटका भी है जोकि कुछ साल पहले खुदाई के दौरान मिला था। बतला दें कि इस मटके का नरसिंह अवतार से कोई सम्बन्ध नहीं है।
मंदिर के पुजारी से बातचीत के दौरान पता चला कि ये स्तम्भ यहाँ कबसे है, किसी को नहीं पता। कहते हैं कि पहले इस क्षेत्र से हिरण्यक नदी बहती थी, और जब उस स्तम्भ में बने छेद में पत्थर डाला जाता था तो उसके गिरने की आवाज़ नदी में सुनाई देती थी। वर्तमान में आपको ये स्तम्भ टेढ़ा दिखेगा पर पुजारी जी ने बताया कि एक जमाने में ये स्तम्भ बिल्कुल सीधा खड़ा था। उस दौर में जब अंग्रेज हुआ करते थे पूर्णियाँ में तब उन्होंने इस खम्भे से काफी छेड़छाड़ की। कहते हैं कि हाथी और जंजीर लगाकर इसे खींचने का प्रयास किया गया, मगर कुछ नहीं हुआ इसे। कई बार तोड़ने की भी कोशिश की गई, मगर नतीजा नहीं निकला। हाँ, इन सब प्रयास में ये जरूर हुआ कि जो स्तम्भ पहले बिल्कुल सीधा हुआ करता था, अब टेढ़ी हो गयी। मजेदार बात ये है कि लोग इसके लिए आज भी अंग्रेजों को ही जिम्मेदार ठहराते हैं।
बाकी दुनिया की नजरों से दूर पूर्णियाँ में स्थित इस नरसिंह अवतार व मंदिर के बारे में लोगों को पता चलना जरूरी है। एक ऐसी पौराणिक घटना से जुड़ी एक धरोहर गुमनामी में बिहार के एक शहर में पड़ा हुआ है, और लोगों को जानकारी नहीं। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम इसके बारे में ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को बतलाएँ। यदि कभी आपका भी बिहार के इस भाग में आना हुआ तो भगवान नरसिंह अवतार मन्दिर देखे बिना मत लौटियेगा।
कैसे जाएँ?- पूर्णियाँ जंक्शन रेलवे स्टेशन से ट्रेन से बनमनखी उतरकर या बस लेकर सीधे मंदिर के बगल में उतरा जा सकता है।
शुल्क:- निःशुल्क।
समय:- सूर्योदय से सूर्यास्त।