सोने की लंका सुनी है? सबने सुनी है। सबको ये भी पता होगा कि पुराणों के अनुसार असल में सोने की यह लंका भगवान शिव जी ने माता पार्वती के आग्रह पर विश्वकर्मा भगवान के जरिए बनवाई थी। लेकिन रावण ने लंका प्रवेश की पूजा के बदले की दक्षिणा में सोने की लंका ही मांग ली थी। और हमारे भोलेनाथ ने अपने भक्त को बगैर सोच विचार सोने की लंका दे भी दी थी। अब शिव जी के भोले स्वभाव के चलते उनके हिस्से उस वक्त भले सोने की लंका न आई हो, लेकिन भगवान ने जब 'खंडोबा' के रूप में अपना रौद्र अवतार लिया, तब उनके लिए भक्तों ने जेजुरी में सोने-सा सुंदर एक मंदिर जरूर बना दिया।
जी हां, महाराष्ट्र के पुणे जिले से करीब 50 किमी दूर स्थिति एक इलाका है जेजुरी। जहां भगवान शिव जी के रौद्र अवतार खंडोबा का मंदिर है। और यह भारत का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां भक्त साल में 8 बार भगवान खंडोबा के साथ हल्दी की होली खेलते हैं। मंदिर परिसर से लेकर समूचे जेजुरी इलाके में जब लाखों की संख्या में भक्त भगवान के साथ पीले रंग की हल्दी से होली खेलते हैं, तब खंडोबा का मंदिर समेत पूरे परिसर का रंग एकदम सोने सरीखा पीला हो जाता है। साल भर हल्दी के पीले रंग की चादर ओढ़ होने के चलते इस इलाके को 'सोन्याची जेजुरी' यानी सोने की जेजुरी भी कहा जाता है।
खंडोबा मंदिर और और उसका परिसर
पुणे के धार्मिक और ऐतिहासिक इलाके जेजुरी में एक पहाड़ी पर भगवान खंडोबा का मंदिर बना हुआ है। मंदिर के प्रांगण तक पहुंचने के लिए भक्तों को करीब 200 सीढियां चढ़नी होती है। हालांकि, मंदिर परिसर में भक्तिभाव का माहौल इतने चरम पर होता है कि आप अपने आसपास के आध्यात्मिक वाइब को फील करते-करते कब 200 सीढियां चढ़ जाते हैं, आपको इसकी भनक तक नहीं लगती। मंदिर के प्रांगण तक पहुंच जाने के बाद जब आप पलटकर देखते हैं, तब आपको पहाड़ की इस ऊंचाई से समूचे जेजुरी इलाके की प्राकृतिक खूबसूरती को 360 एंगल के साथ देख पाने का सुख नसीब होता है। जमीन से करीब 2500 फीट की ऊंचाई पर स्थित होने के चलते खंडोबा मंदिर किसी पहाड़ी किले की तरह भी प्रतीत होता है।
खंडोबा देवता से जुड़ी पौराणिक कथा
भगवान शिव जी को उनके भोले स्वभाव के लिए भोलेनाथ भी कहा जाता है। लेकिन जेजुरी में आपको भगवान के सबसे रौद्र रूप के दर्शन होते हैं। दरअसल, इस इलाके में जब मल्ल और मणि नाम के 2 राक्षसों का आतंक हद से ज्यादा बढ़ गया। तब भगवान शिव जी भक्तों की पुकार पर खंडोबा के रूप में धरती पर अवतरित हुए। दोनों राक्षसों को मारने के लिए उनके अवतरित रूप खंडोबा के पूरे शरीर पर हल्दी लगी हुई थी और वह सोने की तरह चमक रहे थे। इसलिए उनके इस रूप को हरिद्र भी कहा गया।
भगवान ने मणि नामक राक्षस को माफी मांगने और मानवसेवा करने की बात कहने पर तो जिंदा छोड़ दिया। लेकिन दुष्ट मल्ल द्वारा किसी तरह का पश्चताप न किए जाने के चलते उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। इसलिए भक्त भगवान के खंडोबा अवतार को मल्लहारी कहकर भी पुकारते हैं। मल्ल का सिर से अलग धड़ प्रतीकात्मक रुप से आज भी मंदिर के सीढ़ियों पर पड़ा हुआ है। ताकि मंदिर में प्रवेश करते वक्त भक्तों के पैरों तले मल्ला का सिर कुचला जाए।
खंडोबा नाम के पीछे का इतिहास
दरअसल भगवान शिव जी ने मल्ल और मणि का संहार करने के लिए बड़ी खड्ग का इस्तेमाल किया था। और इस खड्ग शब्द से पहले खंड और फिर खंडोबा नाम निकलकर सामने आया। मराठी भाषा में किसी के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए बा, राव और राया जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। इसलिए भगवान शिव जी के इस रौद्र रूप को लोग खंडोबा, खंडेराव या खंडेराया नाम से भी पुकारते हैं। मंदिर में भगवान शिव जी की खंडोबा के रूप में जो प्रतिमा स्थापित है, उसमें भी भगवान आपको हाथों में एक बड़ा सा खड्ग लेकर घोड़े पर सवार आक्रामक मुद्रा में ही नजर आते हैं।
खंडोबा मंदिर में हल्दी की होली
भगवान खंडोबा द्वारा मल्ल और मणि पर उनकी जीत का जश्न मनाने के लिए जेजुरी में हर साल मार्गशीर्ष महीने में मेले का आयोजन किया जाता है। और यह मेला एक दो दिन नहीं बल्कि पूरे 6 दिन तक चलता है। इस दौरान खंडोबा मंदिर का कोना-कोना हल्दी के पीले रंग से रंग जाता है। सिर्फ खंडोबा मंदिर ही नहीं बल्कि समूचा जेजुरी इलाका भगवान खंडोबा के पीले रंग में रंगकर एकदम सोने की नगरी जैसा नजर आने लगता है। भक्तों द्वारा भगवान खंडोबा पर हल्दी फेंक कर इस उत्सव को मनाया जाता है। इस उत्सव में सबसे पहले राज्यभर से जेजुरी शहर में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का हुजूम जमा होता है और फिर शहर भर से भगवान खंडोबा के सम्मान में उनके मंदिर के प्रांगण तक शोभायात्रा निकाली जाती है।
मार्गशीर्ष महीने में होने वाले 6 दिवसीय मेले के दौरान भक्त 'येलकोट-येलकोट' और 'जय मल्हार' की गुंज के साथ जब जेजुरी की गलियों से गुजरते हैं, तब समूचा इलाका खंडोबा की भक्ति में डूब जाता है। जय मल्हार की गूंज और हवा में हल्दी फेंकने के लिए लहराते हाथ की लय जेजुरी इलाके में भक्ति का एक अलग ही समा बांध देती है। एक मान्यता के अनुसार तो यह सब कुछ भगवान खंडोबा के मल्ल और मणि राक्षस पर जीत का जश्न मनाने का तरीका है। तो कुछ अन्य मतों के अनुसार हल्दी की होली उत्सव का आयोजन भगवान खंडोबा और उनकी पत्नी मालशा के मिलन की खुशी मनाने के लिए किया जाता है। कारण कोई भी हो पर आयोजन ऐसा होता है कि देखने वाला इन दृश्यों को फिर जीवनभर भूल नहीं पाता है।
मंदिर की वास्तुकला
बात अगर हम मंदिर की बनावट की करें तो इसका निर्माण हेमाडपंथी शैली में किया गया है। समूचा मंदिर मुख्यतः पत्थर से बनाया गया है और इसे 2 भागों में विभाजित किया गया है। पहला भाग मंडप कहलाता है जहां भक्त जमा होकर भगवान की पूजा करते हैं। और मंदिर के दूसरे भाग में गर्भगृह है जहां भगवान खंडोबा की मूर्ति स्थापित है। खंडोबा मंदिर का निर्माण सबसे पहले 12वीं सदी में यादवों द्वारा कराया गया। और फिर मराठा पेशवाओं के शासनकाल में मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया। मंदिर के बाहर बने द्वीप स्तंभों की खूबसूरती देखते ही बनती है। और यहां का मुख्य आकर्षण मंदिर के प्रांगण में 28 फीट की आकर का पीतल से बना है।
खंडोबा मंदिर में दर्शन का समय
खंडोबा मंदिर के द्वार भक्तों के लिए सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक खुले रहते हैं। सबसे पहले सुबह 5 बजे मंदिर के प्रवेशद्वार खुलते हैं। फिर 6:30 बजे तक आरती होती है। इसके बाद दोपहर 12 बजे तक भक्तों के पास भगवान खंडोबा के दर्शन करने का मौका होता है। दोपहर 12 बजे से 12:30 बजे तक आरती की जाती है। इसके तुरंत बाद 12:30 बजे से 2 बजे तक भक्तों के लिए महाप्रसाद की व्यवस्था की जाती है। फिर मंदिर को दोबारा दर्शन के लिए खोल दिया जाता है। रात 9 बजे अंतिम आरती के बाद मंदिर को बंद कर दिया जाता है। मंदिर और दर्शन से जुड़ी और अधिक और विस्तृत जानकारी के लिए आप इनकी आधिकारिक वेबसाइट https://www.khandoba.com/index विजिट कर सकते हैं।
खंडोबा मंदिर के प्रांगण तक कैसे पहुंचे?
मंदिर तक पहुंचने के लिए देश के हर कोने से आपको सबसे पहले महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे आना होगा। पुणे रेलवे स्टेशन और पुणे एयरपोर्ट से महज 50 किमी की दूरी पर ही जेजुरी स्थित है। पुणे से आप लोकल ट्रेन पकड़कर पहले जेजुरी रेलवे स्टेशन और फिर वहां से बस या टैक्सी के जरिए बड़ी आसानी से खंडोबा मंदिर तक पहुंच सकते हैं। अगर आप सड़क मार्ग के जरिए आना चाह रहे हैं, तो इसमें भी आपको कोई खास दिक्कत नहीं आएगी। क्योंकि जेजुरी का इलाका सड़क मार्ग के जरिए अन्य सभी बड़े इलाकों से अच्छी तरह कनेक्टेड है। मुंबई से आने वाले भक्तों को खंडोबा मंदिर तक पहुंचने के लिए कुछ 200 किमी का सफर तय करना होता है।
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