विश्वप्रसिद्ध अक्षरधाम मंदिर

Tripoto
27th Dec 2019

अक्षरधाम मंदिर

Photo of विश्वप्रसिद्ध अक्षरधाम मंदिर by Kavi Preet (Gurpreet Sharma)

विश्वप्रसिद्ध अक्षरधाम मंदिर

भारत देश में लोग अपने-अपने धर्म को पूरी निष्ठा और प्रेम के साथ मानते हैं। हिंदू धर्म में मंदिरों का विशेष महत्त्व है। देश में लाखों मंदिर हैं, जहाँ प्रतिदिन लाखों-करोड़ों लोग श्रद्धा भाव से जाते हैं, इनमें से कुछ मंदिर तो विश्व प्रसिद्ध हैं। ऐसे ही विश्व प्रसिद्ध मदिरों में से एक है- भारत की राजधानी नई दिल्ली में स्थित स्वामिनारायण अक्षरधाम मंदिर। यह मात्र मंदिर नहीं है, बल्कि देश की विभिन्न संस्कृतियों का बेजोड़ संगम है। यहाँ भारत की दस हजार साल पुरानी रहस्यमय सांस्कृतिक धरोहर मौजूद है। यह अभिनव संस्कृति-तीर्थ है। साथ ही, यह भारतीय कला, प्रज्ञा, चिंतन और मूल्यों का अद्वितीय परिसर है। सौ एकड़ भूमि में फैला यह मंदिर शांति, सौंदर्य एवं दिव्यता का दर्शन कराता है। यहाँ ऐसी गूढ़ जानकारियाँ उपलब्ध कराई गई हैं, जिन्हें जानने के बाद कई लोग कह उठते हैं कि हम अभी भारत के बारे में बहुत कम जानते हैं।

अक्षरधाम मंदिर के कण-कण में कुछ-न-कुछ छिपा है। यहाँ जो भी आता है, वह अपने मन में कोई-न-कोई याद संजोकर ले जाता है। यदि अक्षरधाम के आगे मंदिर न लगाएँ, तो भी सुनने वाले को पता चल जाता है कि अक्षरधाम मंदिर की बात हो रही है। आखिर इस मंदिर ने भारत का गौरव बढ़ाया है। साथ ही, इसने दिल्ली की शान को भी दुगुना किया है। आज विदेशों से आने वाले पर्यटक सर्वप्रथम इसे ही देखने की चाह व्यक्त करते हैं।

अक्षरधाम मंदिर विश्व में सबसे तेजी से प्रसिद्ध हुआ है। वहीं इस विख्यात मंदिर का नाम गिनीज बुक ऑफ़ द वर्ल्ड में भी दर्ज हो गया है। इस मंदिर के साथ इसका इतिहास भी जुड़ा है। सन 1968 में दिव्य महापुरुष योगी जी महाराज ने आशीर्वाद दिया था कि यमुना के तट पर भव्य आध्यात्मिक केंद्र बनेगा। यह एक आर्षदर्शन था- स्वामिनारायण अक्षरधाम का। उनकी इच्छा थी कि यमुना के तट पर स्वामिनारायण जी के जीवन-चरित्र को दर्शाता हुआ एक भव्य मंदिर बनाया जाए। स्वामिनारायण अक्षरधाम मंदिर, दिल्ली के संस्थापक प्रमुख स्वामी जी महाराज उसी समय से योगी जी महाराज के संकल्प को पूरा करने के लिए अथक प्रयास कर रहे थे। अंततः उन्होंने दिल्ली में यमुना नदी के तट पर मंदिर बनाने का निश्चय किया। यमुना के रेत में खड़े जामुन के पेड़ के नीचे उन्होंने संकल्प लिया कि हम यहीं मंदिर बनाएँगे। यह जामुन का पेड़ संगीतमय फव्वारे के दाहिनी ओर स्थित है। मंदिर के निर्माण में पहले कुछ बाधाएँ आईं, लेकिन स्वामी जी महाराज ने अपनी लगन व दृढ़ इच्छा शक्ति से उन बाधाओं को दूर किया। आखिरकार 6 नवंबर, 2005 के दिन इस मंदिर का भव्य शुभारंभ किया गया। उस दिन भारत के दिल दिल्ली ने अपने को गौरवान्वित महसूस किया। यह स्मारक इसलिए भी अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि भगवान स्वामिनारायण की ऐतिहासिक कुमकुम, चरणमुद्रा, माला, पादुका, वस्त्र आदि भी यहाँ रखे गए हैं। स्मारक के अंदर पाँच सौ परमहंस संतों की सेवामुद्रा में मूर्तियाँ, सेवा की भावना को जागृत करती हैं। इस मंदिर में अनेक ऐसी विशेष बातें हैं, जो हमें रोमांचित कर देती हैं। इन सभी को हम अलग-अलग समझें, तो अधिक उपयुक्त रहेगा।

सर्वप्रथम हम दश द्वार की बात करते हैं। यहाँ दश द्वार दसों दिशाओं के प्रतीक हैं, जो वैदिक शुभकामनाओं को प्रतिबिबित करते हैं। भक्ति द्वार परंपरागत भारतीय शैली का प्रवेश द्वार माना जा सकता है। यह आपको भक्तिभाव के एक अनोखे विश्व में ले जाता है। यहाँ भक्ति का अर्थ है- परमात्मा के प्रति विशुद्ध प्रेम। सनातन धर्म परंपरा में भक्त-भगवान के दिव्य युगल भक्ति के आदर्शों का शाश्वत बोध देते हैं। भक्ति एवं उपासना के ऐसे कई युगल स्वरूप इस भक्तिद्वार में मंडित हैं।

भारत का राष्ट्रीय पक्षी मयूर सौंदर्य, संयम तथा शुचिता के प्रतीक के रूप में भारतीयों का प्रिय पक्षी रहा है। अक्षरधाम मंदिर के स्वागतद्वार में परस्पर गूँथे गए भव्य मयूरतोरण एवं कलामंडित स्तंभों के 861 मयूर आनंदनृत्य कर रहे हैं। यह मयूरद्वार भारतीय शिल्पकला की अद्भुत तथा सुंदरतम कृति है। इनमें से दो मयूरद्वारों के मध्य में 16 मांगलिक चिह्नों से अंकित श्रीहरि-चरणारविद हैं। ये चरणारविद इस धरा पर भगवान श्री स्वामिनारायण के दिव्य अवतरण की स्मृति में स्थापित किए गए हैं। ये श्वेत संगमरमर से निर्मित हैं, इन पर चार शंखों द्वारा जलधाराओं का अभिषेक, भगवान स्वामिनारायण के ऐतिहासिक जीवन एवं कार्यों के प्रति भावांजलि अर्पण करता है।

अक्षरधाम महालय विशाल परिसर के केंद्र में है। यह भव्य महालय गुलाबी पत्थर तथा श्वेत संगमरमर के संयोजन से बनाया गया है। इसमें 234 कलामंडित स्तंभ, 9 कलायुक्त घुमटमंडपम्, 20 चतुष्कोण शिखर तथा 20,000 से भी अधिक कलात्मक शिल्प हैं। इसकी ऊँचाई 141 फुट, चौड़ाई 316 फुट और लंबाई 356 फुट है। बिना लोहे के बनाए गए इस महालय में प्राचीन भारतीय स्थापत्य परंपरा को पुनर्जीवित किया गया है। महालय के मध्य में भगवान स्वामिनारायण की पंचधातु से निर्मित स्वर्णमंडित 11 फुट ऊँची सुंदर मूर्ति है। वहीं अंदर ही स्थित श्री रामचंद्र-सीता जी, श्री कृष्ण-राधा जी, श्री शिव-पार्वती जी की संगमरमर की मूर्तियाँ भी मनोहारी हैं।

मंदिर-महालय की बाह्य दीवार को ‘मंडोवर’ कहा जाता है। इसकी कुल लंबाई 611 फुट तथा ऊँचाई 25 फुट है। यह गढ़े हुए पत्थरों से निर्मित है। इसमें प्राचीन भारतीय महापुरुषों, ट्टषियों, आचार्यों तथा देवताओं के कलात्मक शिल्पों की स्थापना की गई है। अक्षरधाम मंदिर का भव्य महालय गजेंद्र-पीठ पर स्थित है, जो 3,000 टन पत्थरों से निर्मित है। ये हाथी दिखने में जीवंत प्रतीत होते हैं तथा इन्हें देखते ही स्पर्श करने का दिल करता है। मंदिर की छत में सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती आदि देवियों के अद्भुत शिल्प हैं। गजेंद्र-पीठ के प्रत्येक हाथी के साथ बदलती कलात्मक हाथी मुद्राएँ एक कथा व्यक्त करती हैं।

सहजानंद दर्शन में रोबोटिक्स-ऐनिमेट्रोनिक्स, ध्वनि-प्रकाश, सराउंड डायोरामा आदि आधुनिक तकनीकों के माध्यम से श्रद्धा, अहिसा, शांति आदि मूल्यों की प्रस्तुति की गई है। प्रत्येक प्रस्तुति भगवान स्वामिनारायण के जीवन-प्रसंगों द्वारा नई अनुभूति तथा नया प्रेरणासंदेश देती है। महाकाय चित्रपट के माध्यम से भगवान नीलकंठ के जीवन-दर्शन पर प्रकाश डाला गया है। सत्य घटना पर आधारित इस पि़फ़ल्म में भारत के तीर्थों, उत्सवों, सांस्कृतिक परंपराओं तथा उच्च मूल्यों को प्रस्तुत किया गया है। संस्कृति विहार (नौका विहार) के माध्यम से 14 मिनट में लगभग 10,000 वर्ष पुरानी भारतीय संस्कृति की भव्यता की अद्भुत झाँकी देखने को मिलती है। सरस्वती नदी के तट पर पनपी भारतीय संस्कृति का प्राचीन युग यहाँ जीवित हुआ प्रतीत होता है। इस विहार के माध्यम से हम सुश्रुत के प्राचीन अस्पताल, विश्व की सर्वप्रथम यूनिवर्सिटी तक्षशिला तथा नागार्जुन की रसायन प्रयोगशाला के मध्य पहुँच जाते हैं।

लाल पत्थरों से निर्मित यज्ञपुरुष कुंड प्राचीन भारतीय कुंड परंपरा का विशालतम कुंड है। कुंड के मध्य में कमलाकार जलकुंड में, अद्भुत संगीतमय फव्वारों द्वारा विभिन्न प्रक्रियाएँ देखना एक रोचक अनुभव है। कुंड के सामने स्थापित 27 फुट ऊँचा बालयोगी नीलकंठ ब्रह्मचारी का मनोहर धातुशिल्प उन्नत प्रेरणा देता है। अभिषेक मंडपम् में दर्शक शुभकामनाओं तथा प्रार्थनाओं के साथ नीलकंठ ब्रह्मचारी की मूर्ति पर गंगाजल से विधिपूर्वक अभिषेक कर धन्य होने का अनुभव करते हैं। लाल पत्थरों से निर्मित 155 चतुष्कोण शिखरों, 1152 स्तंभों तथा 145 झरोखों से युक्त दो मंजिली परिक्रमा अक्षरधाम मंदिर के चारों ओर पुष्पमाला की भाँति शोभायमान है, जिसे देखकर मन को अपार शांति मिलती है। योगी-हृदय कमल मनोहारी ढलान पर छाई हरी घास के मध्य में स्थित एक विशाल अष्टदल कमल है, जो पवित्र भावनाओं का प्रतीक है। यहाँ शिलालेखों में विश्व के महापुरुषों और धर्मशास्त्रें द्वारा भगवान तथा मानव में दर्शाया हुआ असीम विश्वास प्रस्तुत किया गया है। यहाँ स्थित प्रेमवती आहारगृह अजंता की अद्भुत कलासृष्टि के मनोहारी वातावरण के बीच शुद्ध तथा ताजा भोजन करने की सुविधा प्रदान करता है। वहीं अक्षरधाम हाट से विविध भाषाओं में संस्कार प्रेरक धार्मिक साहित्य, भक्ति भाव से पूर्ण ऑडियो-वीडियो, पुस्तकें, सजावटी सामान, भेंट देने योग्य वस्तुएँ, औषधियाँ, पूजा-सामग्री आदि खरीदी जा सकती हैं।

भारत उपवन सांस्कृतिक उद्यान 22 एकड़ में फैला है। यहाँ ऊँची हरी ढलानों के बीच वृक्षों, पौधों तथा पुष्पों की कलात्मक अभियोजना है। यहाँ दोनों ओर भारत के महान व्यक्तित्वों की कांस्य से निर्मित मूर्तियाँ हैं, जो हमें राष्ट्रीय गौरव की अनुभूति कराती हैं।

अक्षरधाम मंदिर विशिष्ट नहीं, अतिविशिष्ट है। इसीलिए 17 दिसंबर, 2007 को इसे गिनीज बुक में स्थान दिया गया। सन 2007 में यहाँ लगभग 10 लाख श्रद्धालु आए, जो अपने-आप में एक रिकार्ड है। मंदिर का आकर्षण ही है कि अब तक यहाँ आम लोगों के साथ-साथ कई विशिष्ट हस्तियाँ भी आ चुकी हैं। वहीं कई विदेशी मेहमान भी यहाँ आए हैं। यहाँ आने वालों में भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ० ए० पी० जे० अब्दुल कलाम, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, डॉ० मनमोहन सिह, शीला दीक्षित, महानायक अमिताभ बच्चन, स्वामी रामदेव, मुकेश अंबानी, सुनीता विलियम्स आदि प्रमुख हैं। इनके अलावा न जाने कितने ही लोग प्रतिदिन यहाँ खिंचे आते हैं। भारतीय संस्कृति के इस परिसर की अद्भुत शांति, अपार सौंदर्य एवं दिव्यता हरेक व्यक्ति को यहाँ आने को विवश कर देती है। वहीं यह अभिनव संस्कृति-तीर्थ भी हर किसी के स्वागत को तैयार रहता है।

तो देर किस बात की है, पहुँच जाइए और मन की शांति प्राप्त कीजिए...