
जाना कहां है और जा कहां रहे हैं
टूटे पत्ते की तरह बस बह रहे हैं
सहे हैं सहे हैं पर कुछ भी न कहे हैं
जाना कहां है और जा कहां रहे हैं
सारी मुसीबतें और सारे दर्दे जहां
देखो देखते-देखते हो गए कहीं हवा
कल से पीछा छुड़ा साथ आज के चल रहे हैं
जाना कहां है और जा कहां रहे हैं
आज आवारापन का छाया नशा है
जाने रगो में कैसा जुनून जा बसा है
रास्तें तो है सीधे पर कदम बहक रहे हैं
जाना कहां है और जा कहां रहे हैं
मंजिल का नहीं पता राहों को भी किया चलता
आँख मूंद बस दौड़ रहे जिस ओर सूरज ढलता
पता लेकर तो निकले थे पर अब लापता हो रहे हैं
जाना कहां है और जा कहां रहे हैं
नजरों में करके कैद राह के नजारों को
दिन में देखे सूरज रात में चांद तारों को
हर दिन हर पहर समय के संग बह रहे हैं
जाना कहां है और जा कहां रहे हैं
राह है अनजानी, अनजाना नगर है
गांव से निकल हम पहुंच गए शहर हैं
आते-जाते सभी हमसे यही पूछ रहे हैं
जाना कहां है और जा कहां रहे हैं
- रोशन सास्तिक