''पठाल'' एक यादगार लम्हा

Tripoto
2nd Dec 2019

"Pathaal " The Memorable Place.....

Photo of ''पठाल'' एक यादगार लम्हा by Ashish Lakhera

मिट्टी लगी दीवारों को जब मैंने पहली बार छूआ तो मुझे अपना बचपन याद आ गया, नानी के घर जब जाया करता था तो ठीक एसे ही अपनापन और प्यार का अहसास होता था। यहाॅं छत पर लगी देवदार की लकड़ियों की खुशबू ने दादी की कहानियों को मानो सच कर दिया हो ।

Day 1

" पठाल " यही नाम है यहाॅं का, इससे पहले यह नाम तब सुना जब बचपन में नाना जी को घर की छत, ठीक करते देखा, उन्होंने बताया कि छत पर लगे इन पत्थरों को पठाल कहते हैं।

बात कुछ दिन पहले की ही है जब बरसात का महीना खत्म होकर सर्दियाँ शुरू होने लगी थी। मैंने अपने साथियों के साथ बाज़ार की भीड़ और शोर से दूर कुछ पल साथ बिताने का मन बनाया। मेरे किसी दोस्त ने मुझे पठाल के बारे में बताया। सबसे पहले तो नाम सुनकर ही मैं खुश हो गया, यहीं चलना है।

ऋषिकेश से सुबह 9 बजे हम सब पठाल के लिए रवाना हुए, जौलीग्रांट एयरपोर्ट से सटकर रायपुर-देहरादून मार्ग में कुछ दूर बढ़ने के बाद हम गाँव बड़ासी पहुँचे। रास्ते के दोनों ओर फैली हरियाली आँखों से ज्यादा मन को सुकून दे रही थी, मेरे साथियों के चेहरे पर आयी मुस्कान इस बात की गवाह थी। हमने अपने आने की जानकारी उन्हें दी तो फौरन पठाल केयर टेकर जीतू जी आधे रास्ते हमें रिसीव करने पहुँचे, ठीक वैसे ही जैसे गाँव में कोई अपना सड़क तक आपको रिसीव करने पहुँचता है। बड़े खुशमिजाज अंदाज़ में उन्होंने हमारा स्वागत किया।

आखिरकार हम अपनी मंज़िल पर पहुँचे, पठाल, जो कि एक होम स्टे है, जिसकी आधारिक संरचना इसे अन्य होम स्टे या होटल से बिलकुल अलग करती है। बिलकुल गाँव जैसे वातावरण में घर जैसे दीवारों पर पेंट की जगह मिट्टी और गौ गोबर व अन्य मिश्रण लगा है जो कि वैज्ञानिक कारणों से भी पॉजिटिव एनर्जी का सोर्स है । छत पर लगी देवदार की बल्लियों की खुशबू यहाँ हरपल महकती है। चारों ओर घना जंगल जिसमें वन्य प्राणियों का शोर आपको प्रकृति से जोड़े रखता है। दिन के खाने के बाद धूप में टहलते हुए पठाल के नज़दीक जंगल में मौजूद नहर पर घूमने गए जहाॅं हम दोस्तों ने अलग अलग अंदाज में एक दूसरे की तस्वीरें ली। अब दिन ढलने लगा, सूरज कभी लाल तो कभी नारंगी होता हुआ दूर पहाड़ियों के पीछे अपने घर लौट गया।

शाम हुई और हम वापस पठाल पहुँचे जहाॅं गर्मा-गर्म चाय पकाड़े हमारी राह तक रहे थे। हवा में नमी और ठण्ड दोनों बढ़ने लगी थी, इतने में जीतू जी के साथियों ने आग का प्रबंध कर दिया। हम सभी लोग आग को घेरे डिनर का इंतज़ार करते हुए गप्पे लगाने लगे । यहाॅं बिताए जा रहे ये पल मेरे दिल के सबसे करीबी यादों में से एक बन रहे थे। कुछ ही देर बाद गर्मा गर्म स्वादिष्ट डिनर हमारे लिए तैयार था। सभी लोग डाइनिंग पहुँचे और डिनर का तुत्फ उठाया, उसके बाद हम सब एक हाॅल में इकट्ठा हुए बैठे एक दूसरे की बातों का मज़ाक बनाते खूब मस्ती करते , उस पल में कोई अपने दिल की बात जुबां पर ले आया, तो किसी ने इन पलों को गीत गाकर समझाया ।

मैं दूसरी मंजील पर बने कमरे से बाहर खिड़की से चाॅंद को देखते हुए इन पलों को डायरी में लिखे जा रहा हूँ, अंधेरी इस रात में जुगनुओं की टिमटिमाहट, झिंगूर की झीं-झी और हवा के थपेड़ों को सहती डाल की नन्हीं पत्तियों की सरसराहट ने मानो किसी कहानी को हकीकत में बदल दिया, हंसते गाते ये पल कब याद बन गए सचमुच पता ही नहीं चला।

आशीष लखेड़ा

Photo of ''पठाल'' एक यादगार लम्हा by Ashish Lakhera
Photo of ''पठाल'' एक यादगार लम्हा by Ashish Lakhera
Photo of ''पठाल'' एक यादगार लम्हा by Ashish Lakhera

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