गंगा किनारे सुबह बिताने के बाद मैं नीलकंठ महादेव मंदिर की ओर जाने के लिए अग्रसर हो गया। पिछली बार जब मैं ऋषिकेश आया था तो किसी कारण वश महादेव का दर्शन नहीं कर पाया था।तब से ही धुन सवार था कि महादेव का दर्शन करना हैं।वैसे भी अकेला मुसाफिर किसी की मर्जी का मोहताज नहीं होता हैं उसे जिस वक्त जहां जाना होता हैं वो वहां जाता हैं।
नीलकंठ महादेव मंदिर जाना थोड़ा दुर्गम भी है और सुगम भी।कहते हैं ना महादेव के दर्शन पाना इतना आसान नहीं होता। पर जो महादेव को दिल से मानते हैं वो उनके दर्शन के लिए कुछ भी कर सकते हैं। नीलकंठ महादेव मंदिर दर्शन के लिए दो रास्ते हैं अगर पैदल जायें तो दुर्गम और बेहद थकाऊ व खतरनाक रास्ता है ऋषिकेश से चौदह किलोमीटर की अनवरत खड़ी चढाई करनी पड़ती है और दूसरा रास्ता जीप,टैक्सी वाला है, जो करीब तीस किलोमीटर पड़ता है।मैंने टैक्सी बुक किया और निकल लिया महादेव का नाम ले कर।
ऋषिकेश से नीलकंठ पहुंचने में लगभग एक घंटे का समय लगता है। नीलकंठ महादेव मंदिर के रास्ते में बहुत ही सुन्दर पहाड़ियां है और पहाड़ों के बीच से गुजरती हुई गंगा नदी है। सड़क की एक ओर ऊँचे पहाड़ और दूसरी ओर कल कल करके बहता पवित्र जल। आँखों के लिए इस से सुन्दर और नज़ारा क्या होगा। जहा देखो प्रकृति ने अपना आँचल फैलाया हुआ है।गंगा का जल अत्यंत साफ़ व निर्मल दिखाई देता है। नीला नील पानी, हरयाली से भरे पहाड़ और घुमावदार रास्ते इस यात्रा को और अधिक उत्साहजनक बनाते हैं।
नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश के सबसे पूज्य मंदिरों में से एक है।इसकी वास्तुकला बहुत ही सुंदर है।नीलकंठ महादेव मंदिर में बड़ा ही आकर्षित शिव का मंदिर बना है एवम् मंदिर के बाहर नक्काशियो में समुन्द्र मंथन की कथा बनायी गयी है | हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार जिस स्थान पर नीलकंठ महादेव मंदिर है, यह वही जगह है जहां पर भगवान शिव ने विष पीया था। यह विष देवताओं व दानवों के मध्य अमृत की प्राप्ति के लिए हुए समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न हुआ था। इस विष को पीते ही शिव का कंठ नीला हो गया था। बस तभी से भगवान शिव की नीलकंठ के रूप में पूजा की जाने लगी थी। अत्यन्त प्रभावशाली यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर परिसर में पानी का एक झरना है जहाँ भक्तगण मंदिर के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं।
मंदिर पहुंच के मैंने दर्शन किया। वैसे अमूमन यहां श्रद्धालु की भीड़ रहती हैं पर जिस वक्त मैं दर्शन करने गया था उस वक्त इतनी भीड़ नहीं थीं। वैसे साल में दो बार शिवरात्रि के त्यौहार पर यहाँ मेला लगता है तथा श्रद्धालु दूर दूर से भोले बाबा के दर्शनों के लिए आते है।
तो कुछ ऐसे ख़तम हुआ मेरा ऋषिकेश ट्रिप का दूसरा दिन।