दोस्तों हर चीजों के पीछे उसकी एक सच्ची घटना छुपी हुई होती है और हर घटना के पीछे उसका सत्य। ऐसे ही हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं हाजी मलंग बाबा का रूहानी सफर के बारे में। हाजी अली की दरगाह मुंबई के वरली तट के निकट स्थित एक छोटे से टापू पर स्थित एक मस्जिद एवं दरगाह हैं। इसे सय्यद पीर हाजी अली शाह बुखारी की स्मृति में सन 1431 में बनाया गया था। यह दरगाह मुस्लिम एवं हिन्दू दोनों समुदायों के लिए विशेष धार्मिक महत्व रखती है। यह मुंबई का महत्वपूर्ण धार्मिक एवं पर्यटन स्थल भी है। रमजान का मुकद्दस महीना और हाजी मलंग बाबा का रूहानी सफर! इस सफर की मुश्किल डगर पर कौमी एकता और सांप्रदायिक के मंजर कदम-कदम पर दिखाई देते हैं।
महाराष्ट्र के मलंगगढ़ समाधि का विवाद एक बार फिर सामने आ गया। यह विवाद कोई नया नहीं है इसके पहले भी इस जगह को लेकर कई बार बवाल हो चुका है। विवाद बहुत पुराना है और दोनों ही पक्षों के अपने - अपने तर्क भी हैं। महाराष्ट्र में सत्ता की कमान संभाल रहे उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना की ओर से भी इस जगह पर समाधि होने की बात कही गई और यात्रा की शुरुआत की गई। 80 के दशक में शिवसेना की ओर से इस मुद्दे को पहली बार उठाया गया। मामला कोर्ट तक भी पहुंच गया है।
माघ पूर्णिमा के दिन यात्रा की हुई शुरुआत
'हाजी मलंग' के नाम से प्रसिद्ध पहाड़ी पर 1980 के दशक में शिवसेना ने बाबा मछिंदरनाथ की समाधि होने का दावा करते हुए माघ पूर्णिमा के दिन मलंगगड यात्रा की शुरुआत की। 3 फरवरी 1996 को शिवसेना नेता आनंद दीघे के नेतृत्व में शिवसैनिक वहां पहुंचे और पूजा की गई। शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे के साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने भी उस वर्ष पूजा में भाग लिया था और घोषणा की थी कि मलंग हिल्स को शिरडी की तर्ज पर एक धार्मिक स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा।समुद्र के स्तर से 3200 फुट ऊंची बाबा हाजी मलंग की दरगाह से दूभर बहुत सारी ऊंचाइयां होंगी,
मुंबई की चौखट पर होने के कारण यह एक दिन से ज्यादा का कार्यक्रम नहीं। बस, यहां आने के लिए भक्ति और सब्र के साथ साहस के पांव होने जरूरी हैं। घोड़े की टॉप' नामक जगह से निकली पानी की निर्मल धार पूरे इलाके की पीने के पानी की जरूरत को तृप्त करती है और हाजी मलंग बाबा के दर्शन के लिए आए भक्त इसे प्रसाद के रूप में साथ लेकर जाते हैं। बहरहाल, यह रहस्य अभी बना ही हुआ है कि ऊंचे पहाड़ पर यह चश्मा प्रकट कहां से हुआ है? यहीं पास बलासर नामक पहाड़ी को लेकर मान्यता है कि अगर कोई इंसान उस पर स्थित समाधि पर पत्थर फेंके और वह समाधि को छू ले, तो सारी मुरादें पूरी हो जाती है।
सूफी फकीर हाजी अब्दुल रहमान शाह मलंग, उर्फ मलंग बाबा 13वीं सदी में जब यमन से कल्याण आए थे पहाड़ तीन गुना ऊंचा था। मुंबई की चौखट पर होने के कारण यह एक दिन से ज्यादा का कार्यक्रम नहीं। बस, यहांँ आने के लिए भक्ति और सब्र के साथ साहस के पांव होने जरूरी हैं। घोड़े की टॉप' नामक जगह से निकली पानी की निर्मल धार पूरे इलाके की पीने के पानी की जरूरत को तृप्त करती है और हाजी मलंग बाबा के दर्शन के लिए आए भक्त इसे प्रसाद के रूप में साथ लेकर जाते हैं। बहरहाल, यह रहस्य अभी बना ही हुआ है कि ऊंचे पहाड़ पर यह चश्मा प्रकट कहांँ से हुआ है? यहीं पास बलासर नामक पहाड़ी को लेकर मान्यता है कि अगर कोई इंसान उस पर स्थित समाधि पर पत्थर फेंके और वह समाधि को छू ले, तो सारी मुरादें पूरी हो जाती है।
बलासर में सात बावड़ियां हैं और इलायची के पेड़। इन निर्जन इलाकों में खजूर की वादियां भी पाई जाती हैं जो मुख्यत: अरब की रेत में होने वाला फल है-मानो अरब से आए पीरों का ही कोई आशीर्वाद! यहां के पांच चश्मों का पानी तांबे की पाइपों के सहारे पूरी पहाड़ी की प्यास तृप्त करता है।
रिक्शे से आप ढाई-तीन सौ रुपये में यहांँ पहुंच सकते हैं। पहाड़ी सीढ़ियों पर सहारे के लिए लकड़ी लेना न भूलें। हां, रास्ते में अपने वास्ते लिए चने और सींगदाने पर निगाहें बिछाए बंदरों से बगैर ज्यादा चालाकी दिखाए थोड़ा सावधान रहिएगा।
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