कालिंजर किला । सतयुग का कीर्तिनगर आज का कालिंजर

Tripoto
30th Nov 2021
Photo of कालिंजर किला । सतयुग का कीर्तिनगर आज का कालिंजर by Ankit Upadhyay

इतिहास के उतार-चढ़ावों का प्रत्यक्ष गवाह बांदा जनपद का कालिंजर किला हर युग में विद्यमान रहा है। इस किले के नाम जरुर बदलते गये हैं। सतयुग में कीर्तिनगर, त्रेतायुग में मध्यगढ़, द्वापर युग में सिंहलगढ़ और कलियुग में कालिंजर के नाम से ख्याति पायी है।

कालिंजर का अपराजेय किला प्राचीन काल में जेजाक भुक्ति साम्राज्य के अधीन था। जब चंदेल शासक आये तो इस पर मुगल शासक महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक और हुमायूं ने आक्रमण कर इसे जीतना चाहा पर कामयाब नहीं हो पाये। अंत में अकबर ने 1569 में यह किला जीतकर बीरबल को उपहार स्वरूप दे दिया। बीरबल के बाद यह किला बुंदेले राजा छत्रसाल के अधीन हो गया। इनके बाद किले पर पन्ना के हरदेव शाह का कब्जा हो गया। 1812 में यह किला अंग्रेजों के अधीन हो गया।

यहां के मुख्य आकर्षणों में नीलकंठ मंदिर है। इसे चंदेल शासक परमादित्य देव ने बनवाया था। मंदिर में 18 भुजा वाली विशालकाय प्रतिमा के अलावा रखा शिवलिंग नीले पत्थर का है। मंदिर के रास्ते पर भगवान शिव, काल भैरव, गणेश और हनुमान की प्रतिमाएं पत्थरों पर उकेरी गयीं हैं। इतिहास वेत्ता राधाकृष्ण बुंदेली व बीडी गुप्त बताते हैं कि यहां शिव ने समुद्र मंथन के बाद निकले विष का पान किया था। शिवलिंग की खासियत यह है कि उससे पानी रिसता रहता है। इसके अलावा सीता सेज, पाताल गंगा, पांडव कुंड, बुढ्डा-बुढ्डी ताल, भगवान सेज, भैरव कुंड, मृगधार, कोटितीर्थ व बलखंडेश्वर, चौबे महल, जुझौतिया बस्ती, शाही मस्जिद, मूर्ति संग्रहालय, वाऊचोप मकबरा, रामकटोरा ताल, भरचाचर, मजार ताल, राठौर महल, रनिवास, ठा. मतोला सिंह संग्रहालय, बेलाताल, सगरा बांध, शेरशाह शूरी का मकबरा हुमायूं की छावनी आदि हैं।

इस दुर्ग के निर्माण का नाम तो ठीक-ठीक साक्ष्य कहीं नहीं मिलता पर जनश्रुति के मुताबिक चंदेल वंश के संस्थापक चंद्र वर्मा द्वारा इसका निर्माण कराया गया। कतिपय इतिहासकारों के मुताबिक इस दुर्ग का निर्माण केदार वर्मन द्वारा ईसा की दूसरी से सातवीं शताब्दी के मध्य कराया गया था। कुछ इतिहासकारों का मत है कि इसके द्वारों का निर्माण मुगल शासक औरंगजेब ने करवाया था। कालिंजर दुर्ग में प्रवेश के लिए सात द्वार थे। इनमें आलमगीर दरवाजा, गणेश द्वार, चौबुरजी दरवाजा, बुद्धभद्र दरवाजा, हनुमान द्वार, लाल दरवाजा और बारा दरवाजा थे। अब हालत यह है कि समय के साथ सब कुछ बदलता गया। दुर्ग में प्रवेश के लिए तीन द्वार कामता द्वार, रीवां द्वार व पन्नाद्वार है। पन्नाद्वार इस समय बंद है।

व्यवसायिक क्षेत्र में महत्व
बांदा : कालिंजर दुर्ग व्यवसायिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहां पहाड़ी खेरा और बृहस्पतिकुंड में उत्तम कोटि की हीरा खदानें हैं। दुर्ग के समीप कुठला जवारी के जंगल में लाल रंग का चमकदार पत्थर से प्राचीनकाल में सोना बनाया जाता था। इस क्षेत्र में पर्तदार चट्टानें व ग्रेनाइट पत्थर काफी है जो भवन निर्माण में काम आता है। साखू, शीशम, सागौन के पेड़ बहुतायत में है। इनसे काष्ठ निर्मित वस्तुएं तैयार होती हैं।

वनौषधियों का भंडार
बांदा : कालिंजर दुर्ग में नाना प्रकार की औषधियां मिलती हैं। यहां मिलने वाले सीताफल की पत्तियां व बीज औषधि के काम आता है। गुमाय के बीज भी उपचार के काम आते हैं। हरर का उपयोग बुखार के लिए किया जाता है। मदनमस्त की पत्तियां एवं जड़ उबालकर पी जाती है। कंधी की पत्तियां भी उबाल कर पी जाती है। गोरख इमली का प्रयोग अस्थमा के लिए किया जाता है। मारोफली का प्रयोग उदर रोग के लिए किया जाता है। कुरियाबेल का इस्तेमाल आंव रोग के लिए किया जाता है। घुंचू की पत्तियां प्रदर रोग के लिए उपयोगी है। इसके अलावा फल्दू, कूटा, सिंदूरी, नरगुंडी, रूसो, सहसमूसली, लाल पथरचटा, गूमा, लटजीरा, दुधई व शिखा आदि औषधियां भी यहां उपलब्ध है।

Photo of कालिंजर किला by Ankit Upadhyay

कालिंजर के राजा जयशक्ति_चन्देल के द्वारा निर्मित यह मंदिर भगवान_विष्णु के वराह_अवतार को समर्पित है...🚩 इस मंदिर में वराह को विशाल छवि रूप में दर्शाया गया है। यह मंदिर #खजुराहो में स्थित है वराह की मूर्ति 2.6 मीटर लंबी और 1.7 मीटर ऊंची है। मूर्ति विशाल और अखंड है और बलुआ पत्थर से बनी हुई है। मूर्ति में पूरे शरीर पर कई आकृतियों उकेरी गई हैं जो भगवान के विभिन्न अवतार के कारणों को बतलाती हैं...🚩

Photo of कालिंजर किला । सतयुग का कीर्तिनगर आज का कालिंजर by Ankit Upadhyay
Photo of कालिंजर किला । सतयुग का कीर्तिनगर आज का कालिंजर by Ankit Upadhyay

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