यात्रा कभी रुकती नही ,बस सह -यात्री बदल जाते है ।
अध्याय - 3 - उत्तरकाशी कांड - स्थायी कुछ भी नही क्योंकि जीवन एक यात्रा है ।
तभी पीछे से आवाज आई और मैने पीछे मुड़ के देखा तो बस का कन्डेक्टर खड़ा हुआ बोल रहा था , चलो भाई सवारी का इंतजार करना बेकार है वो नही आ रही तुम ही चलो । तो इस तरह से मेरी किस्मत ने जोर मारा और मुझे बस में एक आखरी बची हुई सीट मिल गयी । हमारी बस नरेन्द्र नगर टिहरी होते हुए जा रही थी रास्ता बहुत ही सुंदर था । हम रेगिस्तान के प्राणी , जहाँ सुखी और पथरीली अरावली है , तो इन ऊँचे ऊँचे और हरे भरे पहाड़ो को देख मन काफ़ी खुश था और अब छुटे हुए साथी की कमी पहाड़ों के सुंदर रास्तो ने भर दी थी । बस में ज्यादा तर लोकल सवारी थी बस कुछ एक लोगो को देख के ही लग रहा था कि वो मेरे जैसे यात्री है जो गंगोत्री जा रहे है उसी बस में 2 लड़के थे जो देखने से दिल्ली के लग रहे थे और सबसे पीछे की 6 सीट पर कुछ लड़के बैठे थे जिनका शोर बता रहा था वो बिहारी , बंगाली या उड़िया है और सब दोस्त एक साथ घूमने निकले है ।
पहाड़ों की सर्पीली रोड का आनंद लेते हुए में पहुँच गया उत्तरकाशी दोपहर के शायद 1 या 2 बज रहे थे दिन में उत्तरकाशी गरम रहता है तो पसीने आ रहे थे भूख लग रही थी क्योंकि सुबह से पानी के आलवा कुछ पेट मे गया नही था पर सबसे पहले जाना था फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के ऑफिस और वहाँ से लेनी थी गोमुख के लिए परमिशन , तो दो भारी भारी बैगों के साथ मै चल दिया फारेस्ट ऑफिस । रास्ते मे ही आस पास वालों से मालूम किया ऑफिस कहॉ पर है ऒर धीरे धीरे ऑफिस की तरफ चलने लगा । काफी दूर चलने के बाद मेरी हिम्मत जवाब दे गई और मैने उत्तरकाशी के ऑफिस से परमिशन लेने का विचार त्याग दिया और गंगोत्री से परमिशन लेने की सोच में वपास मुड़ गया क्योंकि अब मुझे होटल लेना था । गंगोत्री के लिए अब इस वक़्त कोई साधन नही मिलेगा ये मैने अपने ऋषिकेश बस वाले से ही पूछ लिया था ( हालाकि बाद की यात्राओं में मुझे मालूम लगा मुझे कोशिश करनी चाहिए थी )
मै अपनी धुन में वापस उत्तरकाशी बाजार की तरफ जा ही रहा था कि मुझे वो 6 लड़के जो बस की सबसे पीछे वाली सीट पर बैठे थे , रोड के किनारे खड़े मिले जो आपस मे बात कर रहे थे कि फारेस्ट डिपार्टमेंट किधर है वहाँ जाना है परमिशन लेनी है ये बात मेरे कानों में पड़ गयी और में मन ही मन खुश की चलो कोई मिला साथ देने के लिए , मैं तुरन्त ही उन लोगो के पास गया जो उम्र में मरे बराबर के ही होंगे और उनको बताया कि ऑफिस किस तरफ है पर थोड़ा दूर है तो कोई एक ही मेरे साथ चले वहाँ से सब की परमिशन मिल जाएगी पर आप लोगों को मेरा एक बैग अपने पास संभालना होगा क्योंकि दूरी से परेशानी नही हो रही थी परेशानी थी इन भारी बैगों से , मेरे सुझाव को सुन वो एक दम खुश हो गए उनका लीडर मेरे साथ हो लिया मैने अपने कपड़ों वाला बड़ा बेग वही रखा और लैपटोप वाला बेग अपने साथ लिया और अब हम दो लोग ऑफिस की तरफ चल दिये ,जो रास्ता थोड़ी देर पहले इतना लंबा लग रहा था वो अब छोटा और आसान हो गया था । जल्दी ही हम दो अंजान लोग दोस्त बन गए और पहुँच गए फारेस्ट ऑफिस , यहाँ आ के मालूम लगा किस्मत सब कुछ पहले ही निश्चित कर देती है अगर में बीच रास्ते से वपास मुड़ता नही अगर में इन लड़को से मिलता नही , तो शायद ऑफिस आ कर मुझे बैठना पड़ता क्योंकि बस हमारे पीछे पीछे ये राज्य सरकार के कर्मचारी आराम से लंच ब्रेक पूरा कर के आ रहे थे । अंदर जा के हम दोनों उस अधिकारी के पास गए जो गोमुख के लिए रजिस्टर में एंट्री कर रहा था । अब मेरे सामने दो समस्या आ गयी पहली ये की जिस तारिक की मुझे एंट्री चाहिए थी उसकी एंट्री लिमिट पूरी हो चुकी थी ( तब शायद एक दिन में सिर्फ 150 लोगो को गोमुख जाने की परमिशन मिलती थी ) दूसरी ये की मेरे पास अभी अपना कोई पहचान पत्र नही था , तो मैने थोड़ा दिमाग लगाया और बोल दिया मैं इनके साथ हूँ , पर फिर तीसरी समस्या की मुझे जो तारीक का चाहिए था वो सब लड़के उसके अगले दिन गोमुख जा रहे थे पर इस समस्या का समाधान उस अधिकारी ने ही कर दिया कोई भला मानस था उसने एक ही पहचान पत्र से दोनों की अलग अलग तारीक के लिए एंट्री करने को राजी था पर समस्या तो अब भी वही थी मेरी तारीक फुल हो चुकी थी तब मैंने उस अधिकारी से फिर से बोला देखो अंकल जी कुछ हो सकता है क्या , तब अधिकारी ने एक बार फिर से रजिस्टर खोला और देखने लगा तभी उसकी नजर एक नाम की एंट्री पर गयी जो कटी हुई थी बस वही मेरी उमीद थी क्यो उसकी जगह अब मेरा नाम वहाँ लिखा जाना था गोमुख के एंट्री चार्जेज और रेजिस्ट्रेशन होने के बाद हम दोनों वापस वही आ गए जहाँ बाकी लोग हमारा इंतजार कर रहे थे , उसके बाद वो निकल गए बाबा काली कमली की धर्मशाला क्योंकि उनके डोरमेट्री में जगह पहले से बुक थे पर मुझे अपने लिए होटल लेना था तो काफी देर तक तलाश के बाद मुझे एक होटल में रूम मिला दिक्कत आ रही थी कि वहाँ अकेले को कोई रूम देने को राजी नही हो रहा था और जो होटल वाले राजी हो रहे थे वो काफी महँगे कमरे थे तो इस तरह से बड़ी दिक्कत से एक कमरा लेने के बाद और थोड़ा सा आराम करने के बाद में निकल लिया बाजार की तरफ क्योंकि भूख के मारे बुरा हाल था शाम के शायद 6 हो रहे थे तो सोचा खाना खाया जाये सुबह से कुछ भी नही खाया पर बाजार के रास्ते मे ही मुझे मिल गए वो 6 बंगाली लड़के जो जा रहे थे गंगा जी मे नहाने और गंगा जी मे नहाने का नाम सुन में भूख को एक तरफ कर हो गया उनकी टोली में शामिल हो गया । हम सब अच्छे से नहाये पूरे दिन की गर्मी और थकान मिटाने में लगे थे कि फिर वही गंगा जी से बाहर निकलो की आवाज़ आने लगी मालूम लगा आरती का वक़्त हो गया है और जहाँ हम नहा रहे थे वही एक छोटा सा मंदिर है जिनके पुजारी गंगा आरती करेगें । हम सब जल्दी जल्दी बाहर आये और तभी मालूम लगा कि जिस वक्त आरती होती है तब आप गंगा जी मे नही नहा सकते आरती के आगे पीछे नहाने में कोई दिक्कत नही है और वही हम फिर आरती में शामिल हुए और तब तो और भी ज्यादा खुशी हुई जब पुजारी जी ने आरती की थाली बारी बारी से हम सब के हाथों में दे दी ।
आरती कर के हम वहाँ से निकल लिए और फिर बाजार की तरफ आ गए । तभी इन लड़को में से एक लड़का बोला आपने गंगोत्री की टिकट बुक करवा ली , मै थोड़ा आश्चर्य से बोला टिकट तो सुबह ही मिल जाएगी हाथों हाथ , तो फिर जवाब आया मुस्किल है क्योंकि गंगोत्री की सुबह की सिर्फ एक ही बस है जो की डायरेक्ट है जिसकी टिकट हम लोगो ने करवा ली है आप भी करवा लो , तो हम सब चल दिये वही बस स्टैंड की तरफ जहाँ टिकट मिलनी थी पर वहाँ जा के देखा तो विण्डो बंद थी मालूम किया तो अब वो सुबह ही खुलेगी ये देख मुझे समझ नही आया अब क्या होगा । उन्ही 6 लड़को में से एक बोला कोई नही आप सुबह आ जाना 5 बजे की बस है सीट मिल जाएगी । ये सुन थोड़ी आशा जागी । उसके बाद वो लड़के निकल गये अपनी धर्मशाल की तरफ और मैं लग गया रात के खाने की तलाश पर तो थोड़ी ही दूर मुझे एक अच्छा सा ढाबा दिखा , अंदर जा के देखा तो पूरा ढाबा लोगों से भरा हुआ वही ढाबे के कर्मचारी से बोला तो वो मुझे एक टेबल पर ले गया जहाँ 1 कुर्सी खाली थी और उस टेबल पर बैठे थे वो दो लड़के , ये दो लड़के वही थी जो सुबह बस में ऋषिकेश से मेरे साथ उत्तरकाशी आये थे । मै वही उनके सामने बैठ गया ओर उनसे थोड़ी बात चीत करने की कोशिश की जिससे मालूम लगा ये भी दिल्ली से आ रहे है और गंगोत्री जा रहे है पर शायद ये दोनों कुछ निजता चाहते है इसलिए दोनों ही कुछ असहज सा महसूस कर रहे थे तो मैने भी ज्यादा बात नही की और जल्द ही खाना खत्म किया और हम अपने अपने रास्ते निकल गए । अपने होटल पहुँच मैने जल्दी जल्दी सामान लगाया क्योंकि सुबह जागने और बस पकड़े का हिसाब किताब लगाने के बाद , ये निष्कर्ष निकला कि मुझे सुबह 4 बजे जागना है तो जल्दी ही सोना होगा और इसलिए सब समान पहले ही लगा लिया जाए ।
सुबह के 4 कब बजे मालूम ही नही लगा ,जोरो की नींद तो आ रही थी पर देरी का मतलब बस में जगह मिलना मुश्किल तो जल्दी जल्दी नाहा धो के तैयार हो के निकल दिया उस तरफ जहाँ गंगोत्री की बस मिलनी थी । मुझे लग रहा था , शायद में सबसे पहले आने वाले यात्रियों में से हूँ पर वहाँ तो मेरे से पहले ही सब पहुँच चुके थे । वही वो 6 बंगाली लड़के , वो 2 दिल्ली के लड़के जो शायद अब भी निजता के चक्कर मे सबसे दूर खड़े थे । तो उनसे तो बात करना ही बेकार था मैं तुरन्त उन बंगाली दोस्तो के पास गया और फिर हम सब ने बस वाले से बात की पर जवाब आया सीट नही है जाना हो नही पायेगा मेरा , ये सुन के मुझे धक्का सा लग गया जैसे में दसवीं के बोर्ड में फैल हो गया पर वो बंगाली लड़के अब भी मुझे हिम्मत दे रहे थे और उन लोगों ने फिर बस वाले को बोला ये हमारे साथ सबसे पीछे की 6 सीट जो एक साथ होती है उसमे बैठ जाएंगे ।ये सुझाव बस वाले ने भी मान लिया और शायद अब फिर से वही ख़ुशी जैसे दसवीं का बोर्ड पास कर लिया । बड़ा बैग बस की छत पर छोटा बैग हाथ रख चल दिये बस के अंदर सबसे पीछे वाली सीट पर 6 जनों के साथ मे 28 इंच की कमर वाला इन्शान भी फिट हो गया , पर पहाड़ों की बसें जिनमे हल्की सी भी गुंजाइश नही होती तो दिक्कत हो रही थी पर क्या कर सकते थे ।
बस में गंगा मईया का जोर का हुँकार लगा और बस चल दी गंगोत्री के लिए ,अभी मुस्किल से 5 मिनट ही हुए थे कि मुझे आगे वाली सीट खाली दिखी तो मैंने बगल में बैठी महिला से पूछ में उसके बगल में बैठ गया और मन ही मन खुश की सीट मिलगई ओर ये बस वाला बोल रहा था सीट नही है अभी बस और 5 मिनट आगे चली होगी कि तभी एक शायद वही का लोकल सवारी जो बस में आगे खड़ा बस वालो से बात कर रहा था वो आ गया और मुझे उठने को बोला कि ये सीट मेरी है में कुछ बोलता उससे पहले मेरे बगल में बैठी बंगाली महिला बोल दी ( उसके बोलने से में समझ गया था वो बंगाली है ) की ये कही नही जाएगा आप कही और बैठ जाओ ( शायद वो महिला को वो इन्शान वेश भूषा से पसंद नही आया ) कुछ देर महिला और उस पुरुष के बीच बहस होती रही और फिर बस वाले को बीच मे आना पड़ा जिसने मुझे आगे की सीट देने की बोली पर मुझे कुछ देर खड़े हो के जाना होगा क्योंकि आगे की सीट पर बैठा यात्री थोड़ी दूर उत्तर जाएगा । थोड़ी देर खड़े हो के यात्रा करने के बाद मुझे वो सीट मिली जहाँ से मै बड़े आराम से रास्तों में पड़ने वाले सुंदर सुंदर गाँव , पहाड़ , नदियों को आराम से देख सकता था ।
बीच मे बीच मे मेरी उन बंगाली लड़को से बात होती रहती थी । वही पहली बार मुझे गंगनानी के बारे में मालूम लगा जहाँ गर्म पानी के झरने है और तभी निश्चित भी किया कि अब जब कभी दूबारा आना हुआ तो गंगनानी जरूर आऊँगा ( इसके बाद की यात्रा में 2 बार खास तौर पर गंगनानी गया ) ।
गंगनानी के बाद आया हर्षिल जहाँ इन 6 लड़को को उतारना था क्योंकि ये 1 दिन गंगनानी में रुक के अगले दिन गंगोत्री के लिए निकलेंगे और इसलिए ही हमारी गोमुख की तरीके एक दिन आगे पीछे थी । इन लड़को को उतरता देख एक बार फिर मुझे लगा ये यात्रा फिर से अकेले करनी पड़ेगी । इनके साथ ने काफी मदद और हिम्मत दी थी पर खेर हर किसी को एक न एक दिन अकेले जाना ही होता है अब ये समझ आने लगा था । बस से ही हाथ हिला और आगे कही मिलने का बोल में निकल गया गंगोत्री के लिए , रास्ते मे आने वाली भरो घाटी ने तो एक बार मुझे डरा ही दिया कि बस इसमें गिर न जाये पर बस वालो के लिए ये रास्ते नए नही थे और जल्द ही हम सब गंगोत्री पहुँच गए ।
गंगोत्री पहुँच ने के बाद सबसे पहला काम था एक रुकने के लिए जगह दूसरी सुबह से कुछ नही खाया था और अभी बज रहे थे शायद 3 तो भूख भी जोरो की लगी थी । बस से निकल में चल दिया होटल की तलाश में , वैसे तो होटल धर्मशाला , आश्रम काफी है पर मुझे मेरे हिसाब से सस्ता और अच्छा नही मिल रहा था तो आखरी में गया मै गढ़वाल मंडल के गेस्ट हाउस में वहाँ जा के मालूम लगा पूरा गेस्ट हाउस फुल है और यहाँ एडवांस बुकिंग चलती है वही मैनेजर से कुछ और रुकने के बारे में पूछा , भला इन्शान था उसने मेरा बजट पूछा और मुझे एक जगह बताई और वहाँ तक जाने का रास्ता भी , तो फिर एक नई उम्मीद के साथ हम चल दिये , पीठ पर एक बारी बैग , दूसरा बैग लैपटॉप का और अब तक ये समझ आ गया था कि कौन पागल लैपटॉप ले कर यहाँ आता है जिसका अकेले वजन ही 4 kg होगा । थोड़ा आगे चलने में एक कुंड दिखा जिसमे तेजी से गर्जना करते हुए गंगा जी गिर रही थी । देखने मे वो झरना काफी सुंदर पर भयानक डर पैदा कर रहा था ( बाद में मालूम लगा ये सूर्य कुंड है ) तो बस उसके किनारे चलते चलते , जो रास्ता मैनेजर ने बताया था चल रहे थे पर मन मे लगा जैसे ये रास्ता गलत है तो आस पास देखा कोई मिल जाए जिससे आगे का रास्ता पूछा जाए । थोड़ा और आगे चलने पर मुझे दो बुजुर्ग आपस मे बात करते दिखे तो मैने उनसे ही उस जगह के बारे में पूछा उनके हिसाब से वो जगह बस थोड़ी ही आगे थी तो मैं उसी तरफ चल दिया , अभी थोड़ा आगे गया ही था कि पीछे से आवाज़ आयी मैने पीछे मुड़ के देखा .....
शेष अगले भाग में.