गोरखपुर की सुबह कुछ अलग थी मैं निकल रहा था भारत के सबसे खूबसूरत राज्य मेघालय की तरफ और पहला पड़ाव था सिलीगुड़ी पहले दिन की यात्रा सुबह से शाम ट्रेन में
4:35 सुबह की ट्रेन गोरखपुर में जहाँ है विश्व का सबसे लंबा प्लेटफॉर्म
रास्ते मे मैं सोनपुर में केला जरूर खाता हू अगर यात्रा पूर्वोत्तर राज्यों में होती है तो बिहार का एक ऐसा स्थान जहाँ इंसान तक बिकते थे मेले में
शाम की चाय नसीब हुई सिलीगुड़ी में ।।
रात के लिए होटल नहीं एक परिचित हैं BSF में तो BSF headquater में रात्री आराम...
आज का नया प्लान add on हुआ दार्जिलिंग वन डे एक्सप्लोर का तो सुबह सिलीगुड़ी मे एक चौराहा है जिसका नाम है दार्जिलिंग मोड़ वहां से दार्जिलिंग के लिए शेयर टैक्सी जिसका भाड़ा हुआ ₹300 जो कि बजट में है और रास्ते में सुंदर नजारे तो पैसा वसूल है ही 7 बजे सुबह के निकले 10 बजे मैं था दार्जिलिंग के toy ट्रेन स्टेशन पर भाँप के इंजन की आवाज अहा ❣
फिर स्टेशन घूम के विश्व के सबसे ऊंचाई पर स्थित चिड़ियाघर में रेड पांडा और बंगाल टाइगर का दर्शन प्राप्त हो ही गया।।
ढलती शाम के बीच चाय के बागान में चाय की खुशबू और खूब सारी सुनहरी यादें लिए वापस सिलीगुड़ी के लिए बस में बैठना हुआ इधर से भाड़ा मात्र ₹125
अरे हां इसी बीच ₹60 में पूरी छोला पेट भर के
सुबह 4:00 बजे की ट्रेन सिलीगुड़ी से कामाख्या के लिए विंडो सीट का फायदा हुआ खूबसूरत नजारे जिस का बयान एहसासों में है बारिश मौसम में चार चांद लगा रही थी दोपहर के 2:00 बजे मैं कामाख्या स्टेशन पर हूं और आगे मंदिर के दर्शन के लिए निकल पड़ा हूं पहुंचते-पहुंचते लेट हो जाने पर यह पता चलता है कि मंदिर का द्वार शाम 4:00 बजे बंद हो जाता है लंबी लाइन होने की वजह से प्लान को अगले दिन के लिए पोस्ट पोन करना पड़ा ।।।
सुबह 5:00 बजे से मंदिर में दर्शन के लिए लाइन में लगे हैं और दर्शन शाम के 3:00 बजे हो पाता है खैर माता रानी की कृपा जब बरसे तब बरसे जय माता दी जय मां कामाख्या आज सिर्फ विश्राम होगा ।।।
देर रात्रि तक सोने और सुबह लेट से उठने की वजह से 11:00 बजने को है और मैं हूं खानापारा गुवाहाटी मे और यहां से शेयर टैक्सी शिलांग के लिए प्लान के मुताबिक शिलांग से दावकी नदी जाना है जहां पर रात्रि में टेंट लगाकर नदी के किनारे पहाड़ों के गीत सुनने हैं
रास्ते में कुल चार कप चाय और एक प्लेट चावल और दाल मतलब पेट भर गया है भरपूर ।
हां शिलांग में रुक कर थोड़ी देर खासी जनजाति का एक त्यौहार शाद सुक देखने का आनंद प्राप्त हुआ
आहा नदी के किनारे सुबह की चाय गुनगुनाते पहाड़ संगीत पंछियों का नदी की कलकल और जीवन का असली आनंद अब बारी थी अल्हड़ पन की तो निकल पड़े नदी में डुबकी लगाने और छपक छपक कर जी भर के खूब नहाए नदी में नाव भी चलाई ऊंचे झूले से पहाड़ों का नजारा भी लिया और वापसी की तैयारी करते ही खूब सारी यादें जेहन में लेकर मेघालय से वापस गोरखपुर