शहर के भागमभाग भरी जिंदगी से कुछ दिन हो दूर जाने का मन कर रहा था। यहां पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में दुर्गा पूजा सबसे बड़ा उत्सव और सबसे बड़ा छुट्टी भरा मौसम है। दुर्गा पूजा में मुझे 5 दिनों की ऑफिस से छुट्टी मिली। छुट्टी का छुट्टी का भरपूर लाभ उठाने का अवसर भी मिल गया। मन किया कि शहर से दूर भाग आ जाए और सीधे सिक्किम जाया जाए। 5 अक्टूबर को सियालदह से कंचन कन्या एक्सप्रेस रात 8:00 बजे मिल गई। मैं मेरी पत्नी और दो बच्चे ट्रेन पर सवार हुए। रात का खाना खाकर सो भी गए। अगले दिन नींद खुली सीधे न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन में। स्टेशन से हम लोग टैक्सी लेकर सिलीगुड़ी पहुंचे। सिलीगुड़ी के तेनजिंग नोर्गे बस स्टैंड के बाहर हम लोग सरकार से ₹300 प्रति व्यक्ति 4 सीटें बुक की और पहुंच गए क्वीन ऑफ हिल्स दार्जिलिंग।
हालांकि हम लोग सिक्किम जाने वाले थे लेकिन दार्जिलिंग को बिना छुए सिक्किम जाने का मन नहीं किया। इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना 2 दिन दार्जिलिंग में बिताया जाए। मैं इससे पहले भी कई बार दार्जिलिंग गया हूं। लेकिन मेरे सहयात्री आज तक बाहर नहीं देखे हुए थे। सिक्किम की ऊंचाई में उन्हें एल्टीट्यूड सिकनेस ना हो जाए इसीलिए दार्जिलिंग में 2 दिन ठहरना जरूरी था। इसके अलावा भी 7 अक्टूबर को मेरा जन्मदिन था इसलिए दार्जिलिंग में जन्मदिन मनाना भी परिवार का एक उद्देश्य था। 6 और 7 तारीख हम लोग दार्जिलिंग में खूब घूमे। आसपास साइड सिन के लिए हम लोग महाकाल मंदिर, कई चाय बागान, चिड़ियाघर, जापानी मॉनेस्ट्री सहित तिब्बती मोनेस्ट्री और भी कई जगह पर गए। हालांकि बच्चों को दार्जिलिंग माल पर घूमने में सबसे ज्यादा मजा आया। बच्चों ने खूब मस्ती की। 7 अक्टूबर रात 12:00 बजे से ही मेरा जन्मदिन मनाया गया। यह दिन मेरे लिए काफी अनमोल था।
7 तारीख दोपहर को हम हम लोग सिक्किम के लिए रवाना हुए। हालांकि यह काफी बिजी सीजन था। ऑन सीजन होने की वजह से गाड़ी मिलने में काफी दिक्कत आई। हम लोग यहां से नामची जाना चाहते थे। लेकिन नामची के लिए कोई गाड़ी नहीं मिली। गंगटोक के लिए भी कोई सवारी नहीं मिला। कोई गाड़ी गंगटोक या नामची जाने के लिए तैयार नहीं हुआ। छोटी गाड़ी भी नहीं। मिली मुझे लगा कि हम लोग बुरे फंस गए। सारे गाड़ियां सिर्फ सिलीगुड़ी के लिए रवाना हो रही थी। क्योंकि इस समय लोग सिलीगुड़ी की तरफ ज्यादा जा रहे थे। सारे लोग वापस सिलीगुड़ी आने की होड़ में गाड़ियों का भाव भी बढ़ा हुआ था।
मैंने स्थानीय बंदे से पूछा कि भाई क्या किया जाए? लोगों ने बताया कि गंगटोक या नामची आप कहीं भी नहीं जा पाओगे। एक काम कर सकते हो, यहां से लोकल लोगों के साथ जोड़थांग चले जाओ। शेयर गाड़ी में ₹300 पड़ेगा। प्रति व्यक्ति जोरथांग से फिर आपको नामची के लिए गाड़ी मिल जाएगी। वहां से ₹100 प्रति व्यक्ति आप आराम से नामची पहुंचे। ब्रेक जर्नी करके जाओ तो बिंदास आप नामची पहुंच जाओगे। आपको थोड़ा समय ज्यादा लगेगा। बस बिना देरी किए हम लोग दार्जिलिंग के निचले हिस्से वाले टैक्सी स्टैंड से स्थानीय लोगों के साथ ग्रुप बनाकर एक गाड़ी में जोड़थांग के लिए रवाना हो गए। कुल मिलाकर करीब 5 घंटे के जर्नी करके शाम को पहुंचे नामची।
नामची में लोकल वाइन का मजा लिया। लोकल फूड का भी मजा लिया। चिल्ली पोर्क, थूकपा, नूडल्स, टाइफू, मोमो जमकर खाया यहां। आठ और नौ तारीख हम लोग जम के नाम की में मजाकिया यहां की तीखी मिर्ची वाली चटनी का मजा लिया। जमकर शॉपिंग की। शॉपिंग में सिक्किम की डिस्टलरी से बनी हुई वाइन भी थी। कुछ गर्म कपड़े भी खरीदे। आसपास में पैदल घूमे। साइट सीन के लिए 9 तारीख हमने एक छोटी वागनऔर बुक की। वहां से हम लोग समुद्रपसे मंदिर, रोज गार्डन, रॉक गार्डन, सिद्धेश्वर मंदिर, साईं बाबा मंदिर, टेमी टी गार्डन, रॉबंगला घूमे। 10 तारीख को जब हम लोग वापस आ रहे थे तब मन बहुत खराब था। मन में सिर्फ पहाड़ की यादें मचल रही थी। लेकिन क्या करें वापस कोलकाता तो आना ही था। और वापस नहीं आते तो ट्रिपोटो के लिए लिखते कैसे। चलिए फिर मुलाकात होगी अगले ट्रेवल स्टोरी में। वैसे आगे तो अच्छा ही हुआ क्योंकि अभी सिक्किम में मौसम बहुत खराब है। और जब मैं यह स्टोरी लिख रहा हूं आज 11 अक्टूबर टीवी चैनल में मैंने देखा किस सिक्किम दार्जिलिंग हाईवे लैंडस्लाइड की वजह से तबाह हो गया है। और काफी टूरिस्ट फंसे हुए हैं। मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया चलो मुझे सही सलामत अपने शहर ले आए।