दिल्ली जयपुर के पास घूमने की एक सुंदर और शांत धार्मिक स्थान महाराज भर्तृहरि जी का स्थान अलवर

Tripoto
25th Dec 2022
Day 1

प्राचीन उज्जैन में बड़े प्रतापी राजा हुए। राजा अपनी तीसरी पत्नी पर मोहित थे जिसका नाम पिंगला था और वे उस पर अत्यंत विश्वास करते थे। राजा पत्नी मोह में इतने ज्यादा मोहित थे कि वो अपना राज्य कर्तव्यों को भी भूल गए थे।

उस राजा के एक गुरु थे जो काफी तपस्वी और सिद्ध योगी थे राजा ने उनसे अनुराधा किया की योगी उनको अपना शिष्य बना ले पर योगी इस बात से राजी नहीं थे राजा जब भी योगी से मिलता योगी से यही जिद्द करता की वो उनको अपना शिष्य बना ले । गुरु बोलते पहले तुम अपने सभी कर्तव्यों से मुक्त हो जाओ तक आना ।

एक दिन योगी राजा के दरबार में आए । राजा ने योगी का उचित आदर-सत्कार किया। इससे तपस्वी योगी अति प्रसन्न हुए। प्रसन्न होकर योगी ने राजा एक फल दिया और कहा कि यह खाने से वह सदैव जवान बने रहेंगे, कभी बुढ़ापा नहीं आएगा, सदैव सुंदरता बनी रहेगी।

यह चमत्कारी फल देकर योगी वहां से चले गए। राजा ने फल लेकर सोचा कि उन्हें जवानी और सुंदरता की क्या आवश्यकता है। चूंकि राजा अपनी तीसरी पत्नी पर अत्यधिक मोहित थे, अत: उन्होंने सोचा कि यदि यह फल पिंगला खा लेगी तो वह सदैव सुंदर और जवान बनी रहेगी। यह सोचकर राजा ने पिंगला को वह फल दे दिया।

अब असल बात ये थी रानी पिंगला राजा पर नहीं बल्कि उसके राज्य के कोतवाल पर मोहित थी। यह बात राजा नहीं जानते थे। जब राजा ने वह चमत्कारी फल रानी को दिया तो रानी ने सोचा कि यह फल यदि कोतवाल खाएगा तो वह लंबे समय तक उसकी इच्छाओं की पूर्ति कर सकेगा। रानी ने यह सोचकर चमत्कारी फल कोतवाल को दे दिया।

वह कोतवाल एक वैश्या से प्रेम करता था और उसने चमत्कारी फल उसे दे दिया। ताकि वैश्या सदैव जवान और सुंदर बनी रहे। वैश्या ने फल पाकर सोचा कि यदि वह जवान और सुंदर बनी रहेगी तो उसे यह गंदा काम हमेशा करना पड़ेगा। नर्क समान जीवन से मुक्ति नहीं मिलेगी।

इस फल की सबसे ज्यादा जरूरत हमारे राजा को है। राजा हमेशा जवान रहेंगे तो लंबे समय तक प्रजा को सभी सुख-सुविधाएं देता रहेगा। यह सोचकर उसने चमत्कारी फल राजा को दे दिया। राजा वह फल देखकर हतप्रभ रह गए।

राजा ने वैश्या से पूछा कि यह फल उसे कहां से प्राप्त हुआ। वैश्या ने बताया कि यह फल उसे कोतवाल ने दिया है। राजा ने तुरंत कोतवाल को बुलवा लिया। सख्ती से पूछने पर कोतवाल ने बताया कि यह फल उसे रानी पिंगला ने दिया है।

जब राजा को पूरी सच्चाई मालूम हुई तो वह समझ गए कि रानी पिंगला उसे धोखा दे रही है। पत्नी के धोखे से राजा के मन में वैराग्य जाग गया और वे अपना संपूर्ण राज्य अपने बड़े भाई विक्रमादित्य को सौंपकर उज्जैन की एक गुफा में आ गए। उस गुफा में राजा ने 12 वर्षों तक तपस्या की थी।

वो राजा और कोई नही भर्तृहरि थे और वो योगी गोरखनाथ जो अपने राजा की आंख खोलने के उद्देश्य से फल ले कर राज दरबार में आए थे

उज्जैन में आज भी राजा की गुफा दर्शनीय स्थल के रूप में स्थित है। राजा भर्तृहरि ने वैराग्य पर वैराग्य शतक की रचना की, जो कि काफी प्रसिद्ध है। राजा भर्तृहरि ने श्रृंगार शतक और नीति शतक की भी रचना की। यह तीनों ही शतक आज भी उपलब्ध हैं और पढ़ने योग्य है

उज्जैन में अपनी तपस्या कर वो आगे के ज्ञान प्राप्ति और मोक्ष के लिए भारतवर्ष की यात्रा पर निकले ।

अंत में वो अलवर आए और अलवर के सरिस्का के घने जंगलों ने तपस्या करने लगे । बोला जाता है की भर्तृहरि जी तपस्या और उनके गुरु बाबा गोरखनाथ की कृप्या से खुद सरिस्का के घने जंगलों ने रहने वाले शेर और बाघ महाराज भर्तृहरि जी की जंगल में रक्षा करते थे और जहा वो बैठ के तपस्या करते थे वहा ये जानवर उनके पास बैठे रहते थे । इसी स्थान पर महाराज भर्तृहरि जी को ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति हुई उनकी सिद्धि और तपोबल से उस वक्त के सूखे जंगल और अरावली की पहाड़ियों से जल धारा बह निकली और इस जल धारा के निकलें के पीछे भी एक कहानी है पर वो अभी नहीं ....

यही उन्होने समाधि लगाई और उनका ये स्थान अब भर्तृहरि जी के नाम से प्रसिद्ध है आस पास के सभी इलाकों के महाराज भर्तृहरि जी लोक देवता है और यहां इनको काफी मान्यता है

जयपुर से 120 km दूर और दिल्ली से 170 km की दूरी पर ये स्थान है अगर कोई अपना वीकेंड किसी शांत जगह पर गुजारना चाहता है तो अलवर उसके लिए अच्छा विकल्प है बेशर्त वो सिर्फ सर्दी और बरसात में अलवर घूमने का सोचे ।

देखें पूरा वीडियो 👉

https://youtu.be/l6uOhwE7xKU

Photo of दिल्ली जयपुर के पास घूमने की एक सुंदर और शांत धार्मिक स्थान महाराज भर्तृहरि जी का स्थान अलवर by Pankaj Sharma