नालंदा विश्वविद्यालय

Tripoto
15th Jan 2023
Photo of नालंदा विश्वविद्यालय by Aawara Mushafir
Day 2

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था, जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे। मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुंदर मूर्तियां स्थापित थीं, जो अब नष्ट हो चुकी हैं। नालंदा विश्वविद्यालय की दीवारें इतनी चौड़ी हैं कि इनके ऊपर ट्रक भी चलाया जा सकता है।

Photo of नालंदा विश्वविद्यालय by Aawara Mushafir

इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम (450-470) ने की थी। इस विश्वविद्यालय को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त थी, लेकिन अब यह एक खंडहर बनकर रह चुका है, जहां दुनियाभर से लोग घूमने के लिए आते हैं। 

Day 1

नालंदा विश्विद्यालय का उदय 5वीं शताब्दी में माना जाता है। नालंदा विश्वविद्यालय विश्व के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है। वर्तमान समय में यह बिहार में स्थित है।ह्यून सांग ( Xuanzang ) 7 वीं शताब्दी में नालंदा आते हैं। वे इसकी स्थापना का श्रेय गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्ता 1 को देते हैं। वे लिखते हैं कि यहाँ 10,000 विद्यार्थी और  2,000 से अधिक अध्यापक रहते थे। मतलब यह एक रिहायशी विश्वविद्यालय हुआ करता था। जहाँ चीन, जापान, कोरिया, इंडोनेशिया, पर्शिया, तुर्की और श्री लंका जैसे देशों से लोग पढ़ने के लिए आते थे।

Photo of नालंदा विश्वविद्यालय by Aawara Mushafir
Day 3

दुर्भाग्यवश नालंदा विश्वविद्यालय को एक सनकी-चिड़चिड़े स्वभाव वाले तुर्क लुटेरे बख्तियार खिलजी ने 1199 ई. में जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया, साथ ही उसने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया। उसने इस विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में आग लगा दिया, जिससे किताबें छः महीने तक धू-धू कर जलती रहीं। दरअसल उसने देखा की यहाँ के भारतीय वैद्यों का ज्ञान उसके हाकिमो से श्रेष्ठ है।

एक बार उसके हाकिम से उसका इलाज नहीं हो पाया, मज़बूरी में उसे एक बौद्ध वैद्य को बुलाना पड़ा। वैद्य ने उसका इलाज कर तो कर दिया, लेकिन फिर भी उस लुटेरे तुर्क शासक को यह बात रास नहीं आई l
एहसान मानने के बजाय उसने इर्श्यावश विश्वविद्यालय में ही आग लगवा दिया। उसने अनेक आचार्यों और बौद्ध भिक्षुओं को भी मार डाला। इस प्रकार नालंदा का यह स्वर्णिम इतिहास काल के गाल में समा गया। 
नालंदा के गौरवमयी इतिहास का सफ़र अब यहीं ख़त्म होता हैl