गुरु हरगोबिन्द साहिब जी के नाम पर बसे पंजाब के गुरदासपुर जिले के श्री हरिगोबिंदपुर साहिब की यात्रा

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Photo of गुरु हरगोबिन्द साहिब जी के नाम पर बसे पंजाब के गुरदासपुर जिले के श्री हरिगोबिंदपुर साहिब की यात्रा by Dr. Yadwinder Singh

पंजाब के जिला गुरदासपुर में ब्यास नदी के किनारे श्री गुरु हरगोबिन्दपुर साहिब नाम से एक ईतिहासक कस्बा बसा हुआ है| इस शहर की सथापना पांचवे सिख गुरु अर्जुन देव जी महाराज ने 1595 ईसवी में की थी| पांचवे गुरु जी ने इस जगह का नाम गोबिंदपुर रखा| छठे गुरु हरिगोबिंद जी महाराज 1629 ईसवीं में करतारपुर दुआबा से बयास नदी को पार करते हुए इस जगह पर पधारे| गुरु हरिगोबिंद जी महाराज के यहाँ आने की वजह से इस शहर का नाम श्री हरिगोबिंदपुर रख दिया गया| भगवान दास ने गुरु जी को वंगार दिया और शहर छोड़ कर भाग जाने के लिए कहा| भगवान दास के पुत्र रतन चंद ने गुरु जी के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया| उसने मदद के लिए जालंधर के सूबेदार अबदुल्ला खां के पास अर्ज की| अबदुल्ला खां ने गुस्से में आकर अपनी फौज भेज दी गुरु जी के खिलाफ युद्ध के लिए| इस युद्ध में अबदुल्ला खां की हार हुई| अबदुल्ला खां उसके दो पुत्र और पांच जरनैल इस युद्ध में मारे गए| इस ईतिहासक युद्ध में गुरु जी की जीत हुई| यह युद्ध 1629 ईसवीं में हुआ| श्री हरिगोबिंदपुर साहिब में बहुत सारे ईतिहासक गुरुद्वारा साहिब है जैसे गुरुद्वारा दमदमा साहिब, गुरुद्वारा जानी शाह और गुरुद्वारा गुरु की मसीत आदि|

गुरुद्वारा दमदमा साहिब श्री हरगोबिन्दपुर साहिब

Photo of Shri Hargobindpur by Dr. Yadwinder Singh

गुरुद्वारा दमदमा साहिब श्री हरगोबिन्दपुर
यह पवित्र गुरुद्वारा शहर से बाहर एक किलोमीटर की दूरी पर बना हुआ है| यह ईतिहासिक गुरुद्वारा छठे गुरु हरगोबिन्द जी महाराज की याद में बना है| हरगोबिन्दपुर साहिब की जंग को जीतने के बाद गुरु हरगोबिन्द जी महाराज ने शाम को इसी जगह पर अपना कमरकस्सा खोल कर दम लिया था इसलिए इस जगह को दमदमा साहिब कहा जाता है| इसी जगह पर गुरु जी ने दीवान सजाया था| आज इस जगह पर भव्य गुरुद्वारा साहिब बना हुआ है|      करतारपुर साहिब पाकिस्तान के दर्शन करने के बाद हम शाम बजे के आसपास डेरा बाबा नानक पहुँच गए थे|
                       ‌  सर्दियों के मौसम की वजह से मैंने फैसला किया था आज रात घर न जाकर रास्ते में ही किसी जगह पर रुक जायूंगा| पहले हम अमृतसर से फतेहगढ़ चूड़िया वाली सड़क से डेरा बाबा नानक आए थे इस सड़क की चौड़ाई कम है| इसबार मैंने सोचा उस रास्ते पर जाने की बजाय डेरा बाबा नानक से बटाला जाया जाऐ| डेरा बाबा नानक से मैंने अपनी गाड़ी बटाला वाली सड़क पर चढ़ा दी | पहले कुछ किलोमीटर तो सड़क सही थी | डेरा बाबा नानक से बटाला वाली सड़क का निर्माण चल रहा था | दिन में बारिश होने की वजह से सड़क पर पानी भी खड़ा हुआ था| खैर इन सब तकलीफों को सहन करते हुए हमारी गाड़ी बटाला शहर में पहुँच जाती है| बटाला पंजाब का इंडस्ट्रियल शहर है | बटाला के टरैफ़िक को पार करते हुए मैंने गाड़ी श्री हरगोबिन्दपुर वाली सड़क पर चढ़ा दी| यह रोड़ अच्छा बना हुआ है| रास्ते में एक गाँव में मैंने अपनी बेटी नव किरन के लिए दूध का पैकेट खरीद लिया| रात को आठ बजे के आसपास हम गुरुद्वारा दमदमा साहिब श्री हरगोबिन्दपुर साहिब पहुँच गए| श्री हरगोबिन्दपुर साहिब में दो तीन ईतिहासिक गुरुद्वारा साहिब है जिनके दर्शन मैं करना चाहता था तो आज रात को हरगोबिन्दपुर साहिब में रुकने का मन बना लिया था|

गुरुद्वारा दमदमा साहिब श्री हरिगोबिंदपुर साहिब

Photo of Shri Hargobindpur by Dr. Yadwinder Singh

हमने अपनी गाड़ी गुरुद्वारा साहिब की पार्किंग में लगाई | फिर मैं गुरुद्वारा साहिब के दफ्तर में कमरे का पता करने के लिए गया| जब मैंने कमरे के लिए पूछा तो सेवादार ने कहा यहाँ पर वैसे तो सराय नहीं है लेकिन तुम अपनी बेटी और वाईफ के साथ हो तो हम आपको गुरुद्वारा के सेवादारों का कमरा दे देगें| मैंने उनको बताया था कि मैं मोगा का हूँ| मैंने कहा ठीक है | तभी एक सेवादार हमें कमरे की चाबी और दो कंबल दे गया | बाबा जी ने कहा गुरु का लंगर चल रहा है पहले आप लंगर छक लो| हम लंगर हाल पहुँच जाते हैं दाल रोटी के साथ खीर खाकर आनंद आ जाता है| थकान की वजह से हमें जल्दी ही नींद आ जाती है| अगले दिन सुबह तैयार होकर हम गुरुद्वारा दमदमा साहिब श्री हरगोबिन्दपुर साहिब के दर्शन करते है| कुछ देर गुरुद्वारा साहिब में बैठते हैं आलौकिक और शांत माहौल का आनंद लेते हैं| फिर हम किसी दूसरी जगह को देखने के लिए चल पड़ते हैं|

गुरुद्वारा दमदमा साहिब श्री हरिगोबिंदपुर साहिब के अंदरूनी दर्शन

Photo of Shri Hargobindpur by Dr. Yadwinder Singh

  गुरुद्वारा जानी शाह श्री हरिगोबिंदपुर साहिब
स्यद शाह नाम का एक व्यक्ति था जो हजरत मुहम्मद की पीढ़ी में से था इसको जानी शाह के नाम से भी जाना जाता है| वह बहुत सारे पीर फ़कीर की संगत कर चुका था लेकिन उसके मन को शांति नहीं मिल रही थी| किसी ने उसको खवाजा रोशन के बारे में  बताया| फिर वह खवाजा रोशन से मिला| खवाजा रोशन गुरु हरगोबिन्द जी के पास घोड़ो की सेवा करता था| खवाजा रोशन ने उसको बताया गुरु हरगोबिन्द जी के दर्शन कर तुम्है शांति मिलेगी| वह खुद रब का नूर है " जानी को जानी मिला देंगे " अर्थात जानी शाह को रब से मिला देंगे| तब से वह गुरु हरगोबिन्द जी के दरबार के बाहर बैठा गया और कहता रहता "जानी को जानी मिला दो" खवाजा रोशन ने उसके मन में यह बात कह दी थी गुरु जी एक दिन तुम्हारे मन की बात जरूर सुनेगें| गुरु हरगोबिन्द जी जानी जान थे उनको जानी शाह के बारे में पता लगा तो सिखों को कहा दरबार के बाहर जो फकीर बैठा है उससे पूछो तुम्हे कया चाहिए रोटी, पैसा आदि| जब सिख उससे पूछने गए तुम्हे कया चाहिए तो उसने बोला "जानी को जानी मिला दो"

गुरुद्वारा जानी शाह श्री हरिगोबिंदपुर साहिब

Photo of श्री हरगोबिंदपुर by Dr. Yadwinder Singh

गुरु जी उसको परखना चाहते थे | गुरु जी ने अपने दरबार के बाहर एक ऊंची दीवार बनवा दी ताकि वह गुरु जी से दूर ही रहे| जब दीवार को देखकर भी जानी शाह वहीं पर बैठा रहा तो गुरु जी ने उसके पास पैसे की थैली भिजवा दी| उसने पैसे की थैली को देखकर बस इतना ही कहा "जानी को जानी मिला दो" गुरु जी ने उसको संदेश भिजवाया कि अगर उसको जानी से मिलना है तो पास बहती हुई ब्यास नदी में छलाग मार दे| यह सुनकर वह नदी में छलाग लगाने के लिए भागा | जब गुरु जी को पता चला तो गुरु जी ने उसे रोकने के लिए सिखों को भेजा| सिख घोड़े दौड़ा कर उसके पास पहुंचे और उसे लेकर गुरु जी के पास आए| गुरु जी जानी शाह से मिले उसके भटकते हुए मन को शांत किया|
             गुरुद्वारा दमदमा साहिब श्री हरगोबिन्दपुर साहिब के पास ही जानी शाह की याद में गुरुद्वारा बना हुआ है| सुबह सुबह हमने दमदमा साहिब श्री हरगोबिन्दपुर साहिब के दर्शन करने के बाद गुरुद्वारा जानी शाह के भी दर्शन किए| धन्य दे छठे गुरु हरगोबिन्द जी और धन्य दे जानी शाह

गुरुद्वारा जानी शाह जी का ईतिहास

Photo of Shri Hargobindpur by Dr. Yadwinder Singh

गुरुद्वारा गुरु की मसीत
यह ईतिहासिक गुरुद्वारा श्री हरगोबिन्दपुर साहिब में बना हुआ है| जब गुरु हरगोबिन्द जी श्री हरगोबिन्दपुर साहिब में बिराजमान थे तब शहर के मुसलमानों ने गुरु जी से नमाज पढ़ने के लिए एक मसीत ( मस्जिद) बनाने की गुजारिश की| गुरु जी ने उनकी फरियाद सुनकर मुसलमानों के लिए एक मसीत का निर्माण करवाया| 1947 ईसवीं तक यह मस्जिद चलती रही उसके बाद यहाँ के मुसलमान पाकिस्तान चले गए तो यह मस्जिद खाली हो गई| बाद में इस मसीत को गुरुद्वारा साहिब में तब्दील कर दिया गया| आज इस जगह को गुरुद्वारा गुरु की मसीत के नाम से जाना जाता है|

गुरुद्वारा गुरु की मसीत

Photo of Guru ki Maseet by Dr. Yadwinder Singh

गुरुद्वारा दमदमा साहिब श्री हरगोबिन्दपुर साहिब के दर्शन करने के बाद हम गाड़ी में बैठकर श्री हरगोबिन्दपुर साहिब शहर की ओर चल पड़े| बाजार में से निकलते हुए एक ईतिहासिक दरवाजे को पार करने के बाद तंग गलियों में से गुजरते हुए मैंने अपनी गाड़ी गुरुद्वारा गुरु की मसीत के पास पार्क कर दी| गुरुद्वारा गुरु की मसीत के सामने एक खूबसूरत दरवाजा बना हुआ है| इस ईतिहासिक दरवाजे को पार करने के बाद हम गुरुद्वारा गुरु की मसीत में प्रवेश करते हैं| गुरुद्वारा गुरु की मसीत में तीन गुंबद बने हुए हैं जो देखने में काफी खूबसूरत लगते हैं| गुरुद्वारा साहिब में श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश किया हुआ है| हमने गुरुद्वारा साहिब में माथा टेका| फिर हम गाड़ी में बैठ कर अपने घर की ओर वापस चल पड़े|

गुरुद्वारा गुरु की मसीत श्री हरिगोबिंदपुर साहिब में घुमक्कड़

Photo of Guru ki Maseet by Dr. Yadwinder Singh