होली स्पेशल- अगर इस होली के असली रंगो को देखना है जनाब, तो उत्तर प्रदेश के मथुरा पहुंच जाइये।

Tripoto
17th Mar 2021
Photo of होली स्पेशल- अगर इस होली के असली रंगो को देखना है जनाब, तो उत्तर प्रदेश के मथुरा पहुंच जाइये। by Smita Yadav
Day 1

होली भारत का एक ऐसा त्यौहार है जिसको देश के हर हिस्से में मनाया जाता है। मथुरा जिसे कृष्ण की जन्मभूमि के नाम से भी लोग जानते हैं। यहाँ की होली इतनी प्रसिद्ध है कि लोग दूर विदेशों से भी खींचे चले आते हैं। जहाँ देश के दूसरे हिस्सों में रंगों से होली खेली जाती है वहीं सिर्फ मथुरा एक ऐसी जगह है जहाँ रंगों के अलावा फूलों से भी होली खेलने का रिवाज है। ज्यादातर जगहों पर जहाँ होली 1 दिन खेली जाती है, वहीं मथुरा, वृंदावन, गोकुल, नंदगांव, बरसाने में कुल एक हफ्ते तक होली चलती है। हर दिन की होली अलग तरह की होती है। आपको बता दूं। कि ब्रज एक ऐतिहासिक क्षेत्र है जो मथुरा, वृंदावन और कुछ आस-पास के क्षेत्रों को कवर करता है। इस जगह की होली अपने अलग रीति-रिवाजों और परंपराओं के कारण दुनिया भर के पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करती है। तो आप भी ब्रज की होली देखने और खेलने के लिए घूम आइए मथुरा-वृंदावन।

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होली रंगों का पर्व है

होली को रंगों का पर्व भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन लोग एक दूसरे से गले मिलकर रंग लगाते हैं। होली के दिन लोग गिले शिकवे भूलाकर एक दूसरे के रंग लगाते हैं। रंग का अर्थ ही प्रेम से है। होली के पहले दिन लोग रात को लोग होलिका जलाते हैं और अगले दिन रंग खेलते हैं। पारंपरिक रूप से केवल प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता है, लेकिन आज कल कृत्रिम रंगों का इस्तेमाल अधिक होता है। होली का त्योहार सामुदायिक मेल-जोल को बढ़ाता है। इस दिन सभी के घर में पकवान भी बनाए जाते हैं।

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ब्रज की होली क्यों है इतनी खास?

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जहाँ देशभर में होली का त्यौहार 2 दिन मनाया जाता है। वहीं ब्रज में होली का रंग महीने तक उड़ता है। ब्रज श्री कृष्ण और राधा की लीला नगरी है। इसलिए यहाँ पर होली का खास महत्व है। मान्यता है कि कृष्ण राधा और उनकी गोपियों के साथ होली खेलने के लिए नंदगांव से बरसाना आते थे। कृष्ण अपने ग्वालों के साथ जब बरसाना आते तो गोपियां उन्हें लाठियों से मारा करती थीं। तभी से यह एक रस्म बन गई, जो आज भी देखने को मिलती है। आज भी नंदगांव से बरसाना होली खेलने लोग जाते हैं और गोपियां उन्हें लाठी मारती हैं, इसे ही लट्ठमार होली कहा जाता है। लट्ठमार होली पूरे विधि-विधान के साथ खेली जाती है। होली खेलने से पहले निमंत्रण जाता है और इसके बाद हुरियार अपने ढाल लेकर होली खेलने पहुंचते हैं। इस होली में किसी को चोट न लगे इसका पूरा ध्यान रखा जाता है।

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बरसाने की लठमार होली

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आप मथुरा के कस्बे बरसाने में लट्ठमार होली को भी देख सकते हैं। लट्ठमार होली डंडो और ढाल से खेली जाती है, जिसमे महिलाएं पुरुषों को डंडे से मारती हैं वहीं पुरुष स्त्रियों के इस लठ के वार से बचने का प्रयास करते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परंपरा तब से है जब श्री कृष्ण होली के समय बरसाने आए थे। तब कृष्ण राधा और उनकी सहेलियों को छेड़ने लग। उसके बाद राधा अपनी सखियों के साथ लाठी लेकर कृष्ण के पीछे दौड़ने लगीं। बस तब से बरसाने में लट्ठमार होली शुरू हो गई। बरसाने की लट्ठमार होली की शुरुआत शुक्ल पक्ष की नवमी को होती है। इस लट्ठमार होली में होरियारे जो कान्हा के सखा कहे जाते है वह सुबह से तैय्यारी शुरू कर देते है। सबसे पहले तैयारी शुरू होती है भांग की कूट के साथ और भांग की छनाई के साथ और पिसाई के साथ जहाँ नंदगाँव वासी रसिया गीत गाते हुए आनंदमय माहौल में नज़र आएंगे। नंदगांव के लोगों ने लट्ठमार होली को वर्षों पुरानी परम्परा बताया है।

नंदगांव की होली

बरसाना में होली मानाने के बाद अगले दिन नंदगाँव (कृष्णा के गाँव) में इसी तरह के खास उत्सवों के साथ होली मनाई जाती है। नंदगाँव का नाम धार्मिक ग्रंथों में शामिल है बताया जाता है कि इस गाँव में भगवान कृष्ण ने अपने बचपन का सबसे ज्यादा समय बिताया था। कहा जाता है कि जब कृष्ण राधा पर रंग डालने के लिए बरसाना गए थे तो इसके बाद राधा गोपियों के साथ कृष्ण पर रंग डालने के लिए अगले दिन नंदगांव आई थी। इसलिए होली उत्सव बरसाना में मनाने के बाद नंदगाँव में मनाया जाता है।

वृंदावन की फूलों की होली

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बांके बिहारी मंदिर में फूलों की ये होली सिर्फ 15-20 मिनट तक चलती है। फागुन की एकादशी को वृंदावन में फूलों की होली मनाई जाती है। शाम 4 बजे की इस होली के लिए समय का पाबंद होना बहुत जरूरी है। इस होली में बांके बिहारी मंदिर के कपाट खुलते ही पुजारी भक्तों पर फूलों की वर्षा करते हैं।

मथुरा की विधवा होली

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वृंदावन में देश के कई कोनों से आई विधवाएं रहती हैं। परिवार के लोग इन्हें यहाँ छोड़ देते हैं। यहाँ विधवा महिलाएं भी जमकर होली खेलती हैं। जीवन के रंगों से दूर इन विधवाओं को होली खेलते देखना बहुत सुंदर होता हैं। इसीलिए 2013 में शुरू हुआ ये इवेंट वृंदावन की होली के सबसे लोकप्रिय इवेंट में से एक हो गया है जो एक बहुत ही अच्छा और सार्थक कदम है क्योंकि पहले हमारे देश के रीति-रिवाज इसके खिलाफ थे। रूढ़िवादी सोच में इन विधवाओं की होली से हर तरह का रंग खत्म कर दिया जाता है। ये होली फूलों की होली के अगले दिन अलग-अलग मंदिरों में खेली जाती है।

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होली के दौरान वृंदावन कहाँ रुके?

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अगर आप मथुरा के होली उत्सव में शामिल होने आये हैं और यहाँ पूरे सप्ताह रुक कर होली के उत्सव का आनंद लेना चाहते हैं तो वृंदावन में रहने के लिए बहुत सारे विकल्प हैं, तो बता दूं कि यहाँ पर कमरे को पहले से ही बुक करना आपके लिए अच्छा रहेगा। इस जगह के ज्यादातर कमरे आसान और सस्ते दामों में उपलब्ध हैं। यहाँ पर एक डबल बेडरूम वाला कमरा एक रात के लिए 300 रूपये से शुरू है। इसके साथ ही वृंदावन में कुछ रिसॉर्ट और लक्जरी होटल भी हैं जहाँ आप अपने बजट अनुसार रूम ले सकते हैं।

मथुरा कैसे पहुँचे?

वायुमार्ग द्वारा

मथुरा में एयरपोर्ट नहीं है इसलिए आपको आगरा या दिल्ली तक फ्लाइट से आना पड़ेगा। आगरा एयरपोर्ट मथुरा के पास है। इसके अलावा दिल्ली में इंदिरागांधी इंटरनैशनल एयरपोर्ट भी नजदीकी एयरपोर्ट है। आप दिल्ली या आगरा तक फ्लाइट से आ सकते हैं इसके बाद मथुरा जाने के लिए बस, टैक्सी या ट्रेन से पहुंच सकते हैं।

सड़क मार्ग द्वारा

दिल्ली, आगरा, जयपुर, बीकानेर, कोलकाता, मुरादाबाद और यूपी के कई शहरों से रोडवेज बसें आपको डायरेक्ट मथुरा पहुंचा देंगी। यहाँ पहुंचने के लिए आपको प्राइवेट और सरकारी बसों के कई ऑप्शंस मिल जाएंगे।

रेलमार्ग द्वारा

किसी भी बड़े शहर के रेलवे स्टेशन से मथुरा जंक्शन के लिए आसानी से ट्रेन मिल सकती है। इसके अलावा दिल्ली, अलवर, भरतपुर और आगरा से मथुरा तक के लिए लोकल ट्रेनें भी चलती हैं, जो आपको आसानी से कृष्णनगरी पहुंचा देंगी।

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