दुनिया कहती है, गूगल बाबा सब जानते हैं। लेकिन वो सिर्फ़ उतना ही जानते हैं जितना उनको कोई बताता है। सरकिट की भाषा में बोले तो मुन्ना भाई वाले गाँधी जी। जितना मुन्ना को जानकारी है, उतना ही गूगल को भी। नेलोंग वैली ऐसी ही जगह है जिसको मुन्ना ने कभी नहीं घूमा। इतनी फ़ेमस ही नहीं है।
फ़ेमस नहीं है तो हमने घूम ली। और आपको बता रहे हैं कि आप भी इसे अपनी ट्रैवल लिस्ट में शामिल कर लो और जब घूमने जाना मुमकिन हो, तब निकल पड़ना।
गंगोत्री राष्ट्रीय पार्क के पास एक चट्टानी रेगिस्तान है, जिसे नेलोंग वैली बोलते हैं। किसी ज़माने में जब तिब्बत पर चीन ने क़ब्ज़ा नहीं किया था, तब तिब्बत और भारत के बीच व्यापार वाले रास्ते की तरह इसका इस्तेमाल किया जाता था।
ये जो लकड़ी वाला ब्रिज देख रहे हो आप, ये भी दोनों देशों के बीच व्यापार का एक रास्ता हुआ करता था।
ये रेगिस्तान वैसा ही है जैसे लाहौल, स्पीति और लद्दाख हैं। ये क़िस्मत वाली बात ही कहिए कि इतनी सुन्दर होने के बाद भी यह जगह बहुत प्रसिद्ध नहीं हो पाई, बस अपने राजनीतिक और सीमा रेखा वाले विवाद के कारण। 1962 में इस गाँव के लोगों को भारत चीन युद्ध के कारण अपने घर खाली करने पड़े, और इस पर सेना का आधिपत्य हो गया।
क्योंकि अभी भी सीमा पर गंभीर माहौल रहता है इसलिए यात्रियों को यहाँ महज़ 25 किमी0 अन्दर तक ही जाने की इजाज़त है। जैसे ही आप नेलोंग वैली पहुँचते हो, आपको कोई पुलिस वाला जवान रोक कर आपका परमिट जाँचेगा। बहुत बड़े सेना बल की मौजूदगी साफ नज़र आती है यहाँ।
नेलोंग वैली के उप ज़िलाधिकारी ने एक झील के बारे में बताया जो अभी कुछ समय पहले ही अस्तित्त्व में आई है। एक टीम ने इसकी लम्बाई चौड़ाई पता करने के लिए भी गई। हमने उनसे उसकी तस्वीर भी माँगी। और उन्होंने जो तस्वीर दिखाई, उसे देखकर तो मानों चन्द्रशिला की याद आ गई। ये लद्दाख की पैंगोंग झील जितनी बड़ी तो नहीं है, लेकिन बहुत छोटी भी नहीं है। सबसे बड़ी बात ये है कि अभी तक इस झील में कोई नहीं गया है, क्योंकि यह भारत चीन बॉर्डर के बहुत क़रीब पड़ती है।
3. इसके बाद आप कोटबंग्ला के वन विभाग पहुँचिए। उत्तरकाशी से 2 किमी0 की दूरी पर पड़ेगा कोटबंग्ला। पैदल जा सकते हैं आप लेकिन टैक्सी लेंगे तो बेहतर रहेगा। आने जाने का कुल मिलाकर ₹200 से ज़्यादा मत देना। वन विभाग के मुख्य ऑफ़िस में भी एक सेट माँगा जाएगा और ओरिजिनल सेट पर अनुमति दी जाएगी। इसके साथ एक सहमति पत्र भी दिया जाएगा। अब आप फिर से उत्तरकाशी जाइए।
4. यहाँ से थाणा नाम के ज़िले को जाएँ, उत्तरकाशी के प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर के पास में ही है। यहाँ पर लोकल इंटेलीजेंस यूनिट जाकर अपना पहचान पत्र वाला एक सेट दीजिए। यहाँ पर थोड़ा सा समय लग सकता है। आपका नाम, पहचान पत्र, आपके बारे में कुछ सामान्य जानकारी नोट की जाएगी। ओरिजिनल कॉपी पर उनकी अनुमति ले लें। इसके बाद फिर से ज़िलाधिकारी ऑफ़िस जाएँ।
5. अपने सारे अनुमति पत्र दिखाइए। ज़िलाधिकारी के सहयोगी आपका पत्र बना देंगे जिस पर ज़िलाधिकारी की अनुमति होगी। यही आपका परमिट है।
कैसा रहा मेरा निजी अनुभव
उत्तरकाशी के ड्राइवरों को जगहों और ख़ास जानकारी नहीं है । वो आपसे पैसे भी ज़्यादा माँगेंगे। अगर आप सच में नेलोंग घूमने की इच्छा रखते हो तो अपनी गाड़ी से ही जाना। यहाँ की सड़कें लद्दाख जैसी चट्टानी हैं, लेकिन घूमने में जो मज़ा आएगा, वो किसी दूसरे अनुभव से जुदा है। ये 25 किमी0 का रास्ता और इससे मिलने वाली ख़ुशी आपसे कोई नहीं छीन सकता।
इस रास्ते पर चलने से पहले आपको प्रो लेवल की ड्राइविंग आनी चाहिए।
जब तक नेलोंग वैली लोगों के लिए खुल नहीं जाती, तब तक आपको इतनी आज्ञाओं के साथ ही जाने का मौक़ा मिलेगा।
अगर आपके पास एसयूवी या फ़िर एनफ़ील्ड है तो आपका सफ़र थोड़ा बेहतर हो जाएगा। गंगोत्री का रास्ता भी 30 मिनट में पूरा हो जाएगा।
सालों पहले कैसी लगती थी नेलोंग वैली या इसका ऐतिहासिक महत्त्व क्या है, इसके बारे में उत्तरकाशी के ज़िलाधिकारी और लोकल लोग कुछ रोचक ही जानकारी देते हैं।
ज़िलाधिकारी ने एक लाल बाबा का मंदिर भी बताया जहाँ पत्थरों पर किसी पुरानी भाषा में कुछ कुछ तो लिखा है। शायद ही उसको कोई पढ़कर समझ पाए। अगर इस जगह के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं मिली तो इसका इतिहास और संस्कृति सब ख़त्म हो जाएगी।
कैसे पहुँचें नेलोंग वैली
परमिट मिलना बहुत मुश्किल काम है। इसके लिए आपको दो तीन दिन पहले ही वक्त निकालना पड़ेगा। आपको समझाने के लिए इस प्रोसेस को पाँच आसान स्टेप में बता रहा हुँ:
1. ज़िलाधिकारी को हिन्दी भाषा में एक पत्र लिखें जिसमें आप बताएँगे कि नेलोंग वैली क्यों घूमना चाहते हैं, किसके साथ जा रहे हैं, किस गाड़ी से जा रहे हैं और ड्राइवर का क्या नाम है। एसयूवी लेकर ही जाएँ, दूसरी छोटी कार नहीं। इस पत्र के साथ सभी का पहचान पत्र की फ़ोटोकॉपी संलग्न करें। इस पूरे सेट की तीन फ़ोटोकॉपी भी साथ रखें।
2. जैसे ही आप उत्तरकाशी पहुँचें, भटवारी के ज़िलाधिकारी से संपर्क करें। अन्नपूर्णा मंदिर से पाँच मिनट की दूरी पर है ज़िलाधिकारी का ऑफ़िस। उम्मीद करें कि वे वहीं हों। वो आपको अनुमति देंगे और आपका पहचान पत्र वाला एक सेट अपने पास रख लेंगे।
नोटः ये पूरा काम होने में कितना समय लगेगा, भगवान भी नहीं बता सकते। हफ़्ते के शुरू होते ही आप उत्तरकाशी पहुँच जाएँ और उसी वक़्त जाएँ जब बीच में कोई छुट्टी ना पड़ रही हो। अगर ये पता कर सकते हैं कि ज़िलाधिकारी वहाँ हैं या नहीं। अगर वो नहीं हुए तो काम नहीं हो पाएगा।
कहाँ ठहरें
गंगोत्री और हर्षिल में रात गुज़ार सकते हैं। दोनों ही बहुत अच्छी जगहें हैं। भैरोंघाटी में मत रुकिएगा, लेकिन मिट्टी की चूल्हे की चाय का लुत्फ़ लेने जा सकते हैं। उत्तरकाशी से गंगोत्री पाँच घण्टे का रास्ता है, हर्षिल चार घण्टे और गंगोत्री के आगे पड़ती है नेलोंग वैली।
ये तो लिख के रख लो कि नेलोंग वैली बेहद ख़ूबसूरत है। इतनी परमिशन लेने के बाद जो सफ़र मिलता है, वो वाकई शानदार है। बस उम्मीद करिए कि यहाँ पर इतना तनाव चल रहा है, वो जल्दी से जल्दी ख़त्म हो जाए।
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