उत्तराखंड प्राकृतिक सुंदरता से भरपुर एक ऐसा राज्य है, जो प्रकृति प्रेमियों को प्रकृति की सुंदरता के अनगिनत स्थानों से रूबरू कराता है...
कहने की जरूरत नहीं है कि उत्तराखंड में ट्रेकिंग रूट्स की भरमार है। लेकिन अगर बात आपकी 1.5 साल की बच्ची के साथ 3 किमी लंबे ट्रेक के बारे में है तो आपको पहले इस पर विचार करने की जरूरत पडेगी।
लेकिन आपको बता दें कि यह ट्रेक रास्ते में खूबसूरत नजारों के साथ उत्तराखंड के लोगों के पहाड़ी जीवन से भी आपका परिचय कराता है।
प्रकृति के बेहद करीब...भीड़ से बहुत दूर, एक ऐसा स्थान जहाँ आप अपने मन को भौतिकवादी दुनिया से मुक्त कर सकते हैं। मानसून में सुंदर शिवालिक पहाड़ियों के बेहतरीन नज़ारे, वाकई में एक अनछूही ख़ूबसूरती.....
यह वास्तव में इतना सुंदर है कि अगर आप इस ट्रेक के पास हैं तो इस ट्रेक पर जाने के लिए खुद को रोकना बेहद मुश्किल होगा।
तो चलिए, हम आपको अपनी इस यात्रा पर ले चलते हैं..
लैंसडाउन में मानसून के समय हरी भरी वादियों में सभी जगह घुमने के बाद हमारे पास लगभग एक दिन बचा था जिसे हम सुकून भरे पलों के साथ बिताना चाहते थे....कुछ लोगो से जानकारी ली, एक जानकार व्यक्ति ने बताया की एक बहुत ही शानदार नजारों के साथ एक ट्रेक लैंसडाउन के पास ही है जो भैरव गढ़ी तक जाता है, लेकिन 1.5 साल की बच्ची के साथ वहाँ आप नहीं जा पाएंगे।
अब हम और हमारी इहाना टहरे घुम्मकड़ और ऐसे खूबसूरत नजारों के दीवाने... तो क्या सोचना था... निकल पडे हम गढ़वाल के रक्षक भैरव बाबा के दर्शन करने, उत्तराखंड में एक और खूबसूरत सफर पर...
लैंसडाउन से कीर्तिखाल जहां से ये ट्रेक शुरू होता है वो करीब 17 किमी की दूरी पर है। रास्ते बहुत सुंदर नजारों से भरे हैं और विशेष रूप से मानसून में यहां की खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है। पुरे सफ़र की सड़क काफ़ी अच्छी है और करीब आधे घंटे में हम पहुंच गए कीर्तिखाल और कार रोड पर साइड में पार्क कर दी, क्योंकी वहां आपको अलग से कोई पार्किंग की जगह नहीं मिलेगी।
और यहां से शुरू होता है करीब 3 किमी का मुश्किल लेकिन खूबसूरत ट्रेक...
ट्रेक शूरु होते ही कुछ दुकान दिखी जहां आप प्रसाद इत्यादि लें सकते हैं और उसके बाद करीब 300-400 मीटर चलने के बाद हम पहुंचे वैष्णो देवी मंदिर जहां से भैरव गढ़ी मंदिर था करीब 2.5 किमी दूर।
वैष्णो देवी मंदिर में दर्शन करने के बाद हम चल दिए फिर से ट्रेक पर और यह से कुछ देर बाद ही असली पहाड़ी ट्रेक का आनंद आने लगा। ट्रेक का रास्ता ठीक था, जिसमे हमें कोई खास परशानी नहीं हो रही थी लेकिन खड़ी चढ़ाई थी जो थोड़ी मुश्किल थी लेकिन कुछ दूर चलने के बाद ही हमें दिखे बहुत ही खूबसूरत दृश्य, और हमने महसूस किया कि यहां आने का हमारा फैसला वास्तव में सही था।
कुछ दूर और चलने के बाद एक कुर्सी दिखी और हम कुछ देर वहां पर रुक गए। इहाना का वहां बैठकर मंत्रमुग्ध कर देने वाले पहाड़ों के नजारों को इतने अच्छे से निहारना, हम दोनो को बहुत खुशी दे रहा था।
आगे की चढ़ाई थोड़ी और खड़ी थी और अच्छा था की हम अपने साथ पानी लेकर गए थे क्योंकी रास्ते में काफ़ी दूर तक पानी की कोई सुविधा आपको नहीं मिलेगी। कुछ देर बाद हमें एक घर दिखा और घर में लगी कुछ ताजी सब्जियां। हम वहां कुछ देर रुके और सच में ये लोकेशन, ट्रेक के हमारे अनुभव को और यादगार बना रही थी।
इस जगह से हमें एक मंदिर की झलक दिख रही थी जिसे हम अपनी मंजिल मान चुके थे लेकिन कुछ देर बाद पता चला की ये भैरव गढ़ी मंदिर नहीं था। भैरव गढ़ी मंदिर से करीब 300-400 मीटर पहले यहां हमने दर्शन किए काली माता के और चल दिए आगे की ओर...
यहां एक हनुमान मंदिर भी है, लेकिन पंडित जी ने हमें भैरव गढ़ी के दर्शन के बाद ही हनुमान जी के दर्शन के लिए कहा।
काली माता मंदिर के बाद भैरव मंदिर तक थोड़ी अधिक खड़ी चढ़ाई है लेकिन साथ ही दृश्य भी बहुत अधिक मनमोहक दिख रहे थे। यहाँ से पक्का रास्ता बना हुआ था और शेड भी थे, वैसे शेड कौन देखता है जब आस – पास इतने शानदार नज़ारे हों..
भैरव गढ़ी बस कुछ कदम दूर और थी और हमें दिखी कुछ "छोटी मगर मोटी बातें" जिन्हे पढकर वास्तव में लग रहा था की इतने छोटे वाक्य में कैसे इतने सरल तरीके से एकदम सटीक बात कही गई है जैसे "तन जितना घूमता रहे उतना स्वस्थ रहता है और मन जीतना स्थिर रहे उतना ही स्वस्थ रहता है"
और अंत में हम भैरव गढ़ी मंदिर में शीर्ष पर पहुंचे। शिखर पर पहुंचना वास्तव में एक शानदार अहसास था, हालांकि यह एक एवरेस्ट की चढ़ाई नहीं थी, लेकिन अपनी बेटी के साथ चढ़ाई पूरी करने के बाद हमें जो आनंद मिला, वह उस एहसास से काफी मिलता-जुलता था।
अच्छा तो हमारी सांसे थोड़ी फूली हुई थी और ऊपर से जो नज़ारे हमें दिख रहे थे, उसे हम शब्दों में समझा ही नहीं सकते और ना ही तस्वीरें उन दृश्यों को सही तरीके से दिखा पायेंगी...
हमने अब तक का सबसे शांत और शांतिपूर्ण मंदिर देखा, सच में यह जगह अद्भुत है। पक्षियों की चहचहाहट और हवा की चलती आवाज....और वातावरण इतना सुकून देने वाला है कि कोई भी अपना पूरा दिन वहीं गुजार सकता है। यह सब बहुत ही सुखदायक होता है।
ऊपर एक व्यू पॉइंट भी बना हुआ है जहां इहाना अपनी लाइफ के सबसे खूबसूरत बालकनी व्यू का आनंद अच्छे से ले रही थी और यही हाल हमारा भी था। सच में यहां के दृश्य देखने के बाद सारी थकान मानो गायब ही हो गई।
फिर हमने दर्शन के लिए भैरव मंदिर में प्रवेश किया और पंडित जी से प्रसाद लिया। हमें कहना होगा कि मंदिर बहुत साफ था और जब आप इस मंदिर परिसर में होते हैं तो आप खुद को बेहद सुकून और सकारात्मक ऊर्जा से भरा हुआ महसूस करते हैं।
पंडित जी ने हमें बताया कि हिन्दू धर्म में काल भैरव की पूजा की जाती है। वह भगवान शिव के 14वें अवतार हैं। भैरव गढ़ी में काल नाथ भैरव की पूजा की जाती है। ऐतिहासिक रिपोर्टों के अनुसार, गढ़वाल के 52 गढ़ों में से, भैरव गढ़ एक है।
बस फिर वहां दर्शन कर कुछ अविस्मरणीय क्षण अपनी यादों में लेकर पंडित जी के बताये अनुसार नीचे हनुमान जी के दर्शन करते हुए हम ट्रेक से अपनी कार तक आ गए और फिर से लैंसडाउन में अपने होटल की तरफ चल दिए।
अधिक जानकारी के लिए आप हमारे YouTube चैनल WE and IHANA पर जा सकते हैं।
https://youtube.com/c/WEandIHANA
या फिर हमारा भैरव गढ़ी मंदिर का Vlog भी देख सकते हैं।
भैरव गढ़ी ट्रेक कैसे पहुँचे:
सड़क मार्ग द्वारा: कोटद्वार कई शहरों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली से कोटद्वार करीब 240 किमी है और कोटद्वार से लैंसडाउन करीब 40 किमी की दूरी पर है। लैंसडाउन से भैरव गढ़ी ट्रेक 17 किमी की दूरी पर है।
रेल मार्ग द्वारा: नजदीकी रेलवे स्टेशन कोटद्वार स्टेशन है। वहाँ से फिर टैक्सी या सरकारी बस आदि से भैरव गढ़ी ट्रेक पहुँचा जा सकता है।
हवाई मार्ग द्वारा: यहाँ का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्राँट एयरपोर्ट,देहरादून है जो लैंसडाउन से करीब 150 किमी की दूरी पर है।
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