यात्रा कभी रुकती नही ,बस सह - यात्री बदलते रहते है ।
अध्याय - 2 - ऋषिकेश कांड - जीवन का सत्य , रिश्ते नाते सब झूठे ।
ऑटो अपनी फुल स्पीड से ऋषिकेश की और जा रहा था कि तभी ऋषिकेश से हरिद्वार के बीच पड़ने वाली रेलवे क्रोसिन बंद थी तो ऑटो को भी वही रुकना पड़ा । ट्रैन के गुजर जाने के बाद फाटक तो खुल गया पर हमारा ऑटो स्टार्ट नही हुआ .। भगवान जाने हमारी आगे की यात्रा कैसी होनी थी , ऑटो वाले ने बोल दिया ऑटो खराब हो गया सब सवारी उत्तर जाए , तो हम भी ऑटो से उतरे और थोड़ा आगे की तरफ चलते हुए एक दूसरा ऑटो कर लिया क्योंकि हरिद्वार से ऋषिकेश के बीच ऑटो दिन भर चलते रहते है तो कोई दिक्कत होती नही है ।
ऑटो वाले ने हमे राम झूले पर उतार दिया और तब जिंदगी में पहली बार इतनी चौड़ी कोई नदी देखी थी जिसको हम सब गंगा जी बोलते है । उसपर बने राम झूले को देख आँखे फट गई और दिल मे खुशी की लहर की चलो ऋषिकेश आ गया दूसरे पड़ाव पर हम पहुँच गए । हम दोनो दोस्त जल्दी जल्दी राम झूले को पार करते हुए दूसरी तरफ आ गए और वही हमने होटल के बारे में मालूम किया । रास्ते मे ही हमे गीता भवन की पूड़ी सब्जी वाली दुकान दिख गयी और अंदर से देशी घी की खुशबू आ रही थी तो बस हम पेटू इन्शान दुकान के अंदर , जहाँ गरम गरम जेलबी बन रही थी । हमने जलेबी और दही लिया जिससे हमारा भर पेट नास्ता हो गया ( उसके बाद में जितनी बार भी ऋषिकेश गया इस दुकान पर जेलबी तो मिलती रही पर उसके साथ दही मिलना बंद हो गया है ) ।
इस बार हमें होटल ढूंढने में हरिद्वार जितनी महनत नही करनी पड़ी । हमे जल्द ही एक ठीक सा होटल मिल गया । अपने कमरे में सामान रख होटल से ही मालूम किया ऋषिकेश में घूमने की जगह तो होटल वालो ने नीलकंठ का सुझाव दिया और उसके लिए शेयरिंग टैक्सी कहाँ से मिलेगी ये भी बता दी । तो हम दोनों जल्दी ही टैक्सी स्टैंड पहुँच गए और ये टैक्सी स्टैंड हमारे होटल के एक दम पास था । शायद 70 या 80 रु प्रति सवारी में हम नीलकंठ पहुँच गए वहाँ दर्शन करें । पहली बारे आये थे तो जगह अच्छी लगी ( बाद की यात्राओं में एक बार और में नीलकंठ गया पर मुझे कोई ज्यादा अच्छा नही लगा ) ।
वपास आते वक़्त हम लष्मन झूले पर ही उतर गए और आस पास घूमने लगे तभी नज़र पड़ी गंगा जी के अंदर तैरती हुई रंग बिरंगी नावों पर , देखते ही समझ आ गया रिवर राफ्टिंग हो रही है । वैसे तो भूख लग रही थी पर इतनी भी नही की राफ्टिंग के बारे में मालूम न किया जा सके । थोड़ी देर इधर उधर राफ्टिंग के बारे में मालूम करने के बार हमें एक राफ्टिंग वाला मिल गया और सब कुछ तय हो गया । हमने सोचा चलो पहले कुछ भोजन कर राफ्टिंगन करगें पर ऋषिकेश के ये हुनरमंद हाथ आये बकरे को जाने कहाँ देते है और वो भी हम जैसे नोसिखिये जो घर से पहली बार घूमने निकले है तो बंदे ने अभी गाड़ी आ रही , अभी राफ्ट आ रही है करते करते हमे लगभग 1 घंटे दुकान पर बैठा के रखा । एक घंटे से ज्यादा के इंतजार के बाद हम दोनों को एक गाड़ी में डाल लें गए । आगे हमारे जैसे और भी भाई बहन मिले , ये देख मुझे समझते देर नही लगी , कि यहाँ छोटे छोटे दुकानदार राफ्टिंग करने वालो को पकड़ एक साथ इक्कठा करते है और जब पूरी राफ्ट की सवारी हो जाती तब राफ्ट पर ले कर जाते है
आखिरकार हम वहाँ पहुँच ही गए जहाँ से राफ्ट चलनी थी हमारे राफ्ट वाले लड़के ने हमे लाइफ जैकेट पहनने को दी और बारी बारी से सबको राफ्ट पर चढ़ा दिया । दोस्त का तो मुझे मालूम नही पर मैं तो काफी खुश था । राफ्ट वाले लड़के ने हमें काफी सारे निर्देशो के साथ सब कुछ समझा दिया और हमारी राफ्टिंग शुरू हुई । ये मेरी पहली राफ्टिंग थी तो मजा काफी आ रहा था , पर थोड़ी देर बाद मुझे मनोज कुमार की क्रांति मूवी की याद आने लगी और उसका वो गाना .. जिंदगी का न टूटे लड़ी प्यार करले घड़ी दो घड़ी...जिसमे जहाज चलाने वाले गुलामों को अंग्रेज कोड़े मार रहे थे और तेजी के साथ चप्पू मारने को बोल रहे थे , क्योंकि अब मुझे वो राफ्ट वाला लड़का फूटी आंख पसंद नही आ रहा था एक तो मैने पैसे दिए दूसरा वो हमें ऐसे निर्देश दे रहा था जैसे हम उसके गुलाम हो और अब ये राफ्टिंग थोड़ी सी उबाऊ हो रही थी मेरे दोस्त का तो भूख से बुरा हाल था । मन ही मन खूब किस्मत को कोसा क्योंकि राफ्ट पर हम 2 लड़को के अलावा एक लड़का ओर था जो पूरी एक फैमिली के साथ था और उसमें सब लड़कियां और महिलाएं थी तो अब हम 3 को राफ्ट चलाने में कुछ ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही थी क्योंकि लड़किया राफ्ट कम चला रही थी पर चिल्ला ज्यादा रही थी । राफ्ट वाले को मन ही मन कोसते हुए जैसे तैसे हम राम झूले तक आ गए । थकान और भूख से हम दोनो परेशान थे , तो हम लोग फिर पहुँच गए सुबह वाली दुकान पर और अब हमने समोसा , कचौरी के साथ वही पर पूड़ी और आलू की सब्जी वाली थाली ली और खाँ पी कर मस्त होने के बाद निकल दिए ऋषिकेश बस स्टैंड जहाँ से हमे मालूम करना था अपनी गंगोत्री की बस के बारे में , बस स्टैंड के बारे में मालूम करते कराते हम दोनों पहुँचे बस स्टैंड शायद शाम के हो रहे थे 7 , बस स्टेण्ड पर सन्नाटा और चारो तरफ छोटी बसें जो पहाड़ो के लिए होती वो खड़ी हुई थी वही मालूम किया । गोमुख के लिए कोई बस मिल जाएगी क्या रात की ? जिससे पूछा वो हमें ऐसे देखने लगा जैसे मैने मंगल ग्रह के लिए कोई बस पूछी हो , पर अब मैं क्या करूँ ? मेरे शहर में तो बसें रात भर चलती है । सामने से एक दम छोटा जवाब आया कल मिलेगी । अब जब बात कल की है तो भई सुबह जल्दी ही निकला जाए तो मैने फिर पूछ लिया सुबह सबसे पहले कितने बजे की बस मिलेगी तो फिर जवाब आया 5 बजे से पहले । जवाब ऐसे आ रहे थे जैसे हर जवाब का रुपया लग रहा हो । आप पास हमे कोई और समझदार दिख नही रहा था जो हमारे यक्ष प्रश्नो का जवाब दे सके तो ये दो जवाबों को ले हम वापस आ गए । थोड़ी देर राम झूले के आस पास घूमे और फिर चल दिये चोटी वाले वाले के ( शायद ही कोई ऐसा हो जो ऋषिकेश जाए और यहाँ न आये ) । खाना आर्डर किया और भर पेट खाना खाया जैसे मालूम नही कल खाना मिलेगा या नही और वपास आ गए होटल । अभी होटल के कमरे में गए ही थे कि मुझे मिला एक झटका हमारे दोस्त की तरफ से ...की यार तू ही चला जा में आगे नही जा सकता । एक बार के लिए तो मुझे लगा ये मजाक कर रहा है मैने फिर पूछा क्या बोल रहा है इस बार भी वही जवाब । अब बारी थी न चलने के कारण को मालूम करना । वो मालूम किया तो पता चला भाई साहब हमारे साथ आगे जाना नही चाहते क्योंकि हम अपने आस पास खड़े लोगो को सिगरेट पीने नही देते और ये चैन स्मोकर , दूसरा उसको लग रहा था पहाड़ों की ऊँचाई पर जा के उसे कोई दिक्कत न हो जाये क्योंकि सिगरेट पी पी कर उसने अपने फेफड़े खराब कर लिए है और पहाड़ों में ऑक्सिजन का लेवल कम होता है । दोनों ही परेशानी का मैने उसको उपाय बताया कि सिगरेट तू मेरे से दूर जा के पी लेना जितना पीना हो , मै कुछ नही बोलूंगा दूसरा फेफेड़े ठीक है बेकार में परेशान न हो पर उसने तो ठान ही ली थी काफी देर तक कोशिश चलती रही पर नतीजा वही । आखरी में थक हार के में सो गया क्योंकि मुझे तो सुबह जल्दी जागना था ।
राफ्टिंग की थकान से इतनी गहरी नींद आयी कि सुबह आँख जब खुली तब 6 बज रहे थे । दोस्त अभी तक सो ही रहा था में जल्दी से बाथरूम गया नहाना धोना किया । मन में उमीद थी मेरा इतना अच्छा पुराना दोस्त है मुझे ऐसे अकेले कैसे छोड देगा , तो मैने एक बार फिर पूछा चलो यार साथ मे चलते है काफी मज़े आएंगे , बाकी सिगरेट का मैने बोल ही दिया है दूर जा के पी लेना जितनी पीनी हो पर उसने तो कसम ही खाँ ली थी कि नही जाना । समय काफी तेजी से निकल रहा था 7 बज चुके थे मन मे उम्मीद कम थी कि आज गोमुख जा पाएंगे । मैने फिर बोला चलना है तो बोल हम कल निकल लेगें आराम से आज यही ऋषिकेश में रुक जाते है लेटे तो हो ही गया है पर इस बार भी वही जवाब । अब मैने घड़ी को देखा , अपने समान को उठाया और दोस्त को अलविदा बोला और कमरे से निकल गया क्योंकि अब समझ आ गया था मुझे ये यात्रा अकेले ही करनी होगी मन मे डर और घबराहट थी पर गोमुख के आगे सब कम पड़ रही थी बस स्टैंड पहुँच के में जल्दी से वही गया जहाँ कल पूछताछ की थी उम्मीद न के बराबर थी क्योंकि तब तक 8 बज चुके थे । जो बस स्टैंड कल छोटी बसों से भरा हुआ था आज खाली पड़ा था । कुछ एक बस सवारियो का इंतजार कर रहीं थी मैने वही पूछा गंगोत्री की बस जवाब आया वो नही मिलेगी कल आना ,कल सुन के दिमाग खराब हो गया । मैने फिर पूछा कोई और तरीका नही है जवाब आया उत्तरकाशी जाओ वहाँ से मिल जाएगा कुछ साधन । मैने फिर पूछा उत्तरकाशी की बस कहाँ से मिलेगी तो जवाब आया ये सामने खड़ी है पर शीट नही है कल आना । इस कल से तो अब चीड़ हो रही थी मैने फिर बोला कुछ हो सकता है तो फिर जवाब आया एक सवारी का इंतजार कर रहे है अगर वो नही आई तो तुम चल लेना । अब मन में एक साथ काफी बाते चलने लगी । हे भगवान ये एक सवारी न आये , अरेअब कैसे होगी इतनी लंबी यात्रा वो भी अकेले , गोमुख कैसे जाऊँगा आज फिर और न जाने कितने ही विचार इन सब के साथ मन मे एक उम्मीद की शायद दोस्त अब भी आ जाए तो मन मे इतने सारे विचारों के साथ मे चुपचाप खड़ा था कि तभी पीछे से आवाज़ आयी और मैने जैसे ही पीछे मुड़ के देखा ........
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शेष अगले भाग में .....