कांगड़ा के राजा के शाही निवास में और राजसी अंदाज़ में बिताएं अपनी छुटि्टयां

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Photo of कांगड़ा के राजा के शाही निवास में और राजसी अंदाज़ में बिताएं अपनी छुटि्टयां by Yayawar_monk

पर्वतराज हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों की गोद में बसा नयनाभिराम प्रदेश है हिमाचल। यह एक ऐसा प्रदेश है जिसका सौंदर्य, जिसके पर्वत और जिसकी वादियां सदा ही यात्रियों को आकर्षित करती आई हैं। अंग्रेज़ों को तो शिमला ने इतना सुकून दिया था कि उन्होंने इस पर्वतीय नगर को अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया था। उस काल की निर्मितियां आज भी वहां ब्रितानिया राज की साक्षी देती हैं।

इतिहास के पन्नों को और पलटकर पीछे जाएँ तो कांगड़ा का वैभवशाली राज्य और अभेद्य दुर्ग दिखलाई पड़ता है। कांगड़ा हिमालय की तलहटी में बसी उत्तर भारत की प्रमुख रियासतों में से एक थी। बहरहाल, आज न तो वो राजशाही दौर है और न ही वैसा युद्धकाल। शेष है तो उस समय के वैभव का बयान करते महल और उनका शाही अंदाज़।

यदि आपकाे भी इतिहास से प्रेम है और शाही राज आपको भाता है तो यह जगह आपके लिए ही है।

Photo of Dharamshala, Kangra by Yayawar_monk

सबसे पहले तो यह जानना अपने आप में दिलचस्प है कि यह विला कांगड़ा के पूर्व महाराजाओं का निवास स्थान था। इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यहाँ अपनी छुट्टियां बिताने का आपका अनुभव कितना अलग होने वाला है। शहर के शोरगुल से दूर, पर्वतों से घिरे इस विला से धौलाधार पहाड़ियों के दृश्य देखते-देखते दिन बीत जाता है लेकिन मन नहीं भरता। साथ ही आपको यह भी बताते चलें कि वर्ष 1993 में टेटलर ट्रेवल गाइड द्वारा इसे दुनिया के 50 सर्वश्रेष्ठ होटलों में शामिल किया था।

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विला के विषय में

9 एकड़ में विस्तारित यह स्थान आपको एक नई, ख़ूबसूरत और कल्पनातीत संसार में ले जाता है, जिसके भीतर रंग-बिरंगे और सुंदर पुष्पों से भूषित बाग़ हैं, उद्यान हैं और आराम के लिए पर्याप्त जगह है। कांगड़ा की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर से वाबस्ता होने का एहसास मन प्रफुल्लित कर देता है। तिस पर यहां का स्थानीय लज़ीज़ खाना इस यात्रा को और सुखद बना देता है। यह धर्मशाला के कोतवाली बाज़ार और मैक्लोडगंज के तिब्बती बाज़ार के बीच स्थित है।

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बताते चलें कि अंग्रेज़ों के शासनकाल में इस विला का निर्माण किया गया था और अब इसमें यात्रियों के ठहरने के लिए 10 कमरे मौजूद हैं। कहना न होगा कि यहां से कांगड़ा घाटी का सौंदर्य से परिपूर्ण दृश्य दिखाई देता है। इस विला में आपकी आवश्यकताओं, सुविधा और बजट के अनुसार रुकने के लिए कई प्रकार के विकल्प मौजूद हैं। इस विला में डबल रूम कॉटेज, ट्विन बेड सुइट, सिटिंग व डाइनिंग एरिया के साथ डबल रूम, स्टैंडर्ड रूम, डाइनिंग एरिया मौजूद है। आप अपने बजट के अनुसार यहां स्टे चुन सकते हैं।

डीलक्स डबल कॉटेज

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डीलक्स कमरे की बैठक

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एक सबसे दिलचस्प बात जो मुझे यहां सबसे अधिक पसंद आई वो यह थी कि यहाँ पर जो पारम्परिक भोजन परोसा जाता है वो उन्हीं रसोइयों यानी शेफ द्वारा बनाया जाता है जो पीढ़ियों से कांगड़ा के महाराज का भोजन तैयाार करते हैं। राजसी जीवन, राजसी भोजन, प्रकृति, शांति और एकांत, इससे अधिक मनुष्य की और क्या चाहना हो सकती है!

मुख्य हॉल

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कांगड़ा ही क्यों?

कांगड़ा ऐसे दिलकश नज़ारों से समृद्ध है कि आंखें सच में यक़ीन नहीं कर पातीं कि क्या प्रकृति का यह शृंगार वास्तविक है। मेरा विश्वास है कि एक बार आप यदि यहाँ आए तो आप मन से तो सदा के लिए यहीं के हो जाएंगे। साथ ही यह क्लाउड्स एंड विला में अपना समय व्यतीत करना एक यादगार अनुभव होता है।

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कहाँ-कहाँ घूमें?

कांगड़ा काे देवाें की घाटी यानी 'वैली ऑफ़ गॉड्स' भी कहा जाता है क्योंकि कांगड़ा ज़िले में 300 से अधिक मंदिर है। साथ ही आपको यहाँ ट्रेकिंग, फिशिंग, क़िला, मंदिर आदि घूमने के लिए कई प्रकार के विकल्प मिल जाएँगे।

तिब्बती धर्मगुरु परम पावन दलाई लामा के निवासस्थान का भ्रमण यहां किया जा सकता है। साथ ही धर्मशाला के मुख्य आकर्षण यथा भागसूनाग झरना, स्टेडियम, चाय के बाग़ आदि स्थानों का भ्रमण आप यहां कर सकते हैं। आस-पास ट्रेकिंग के लिए कई विकल्प यहां मौजूद हैं।

यदि आपको ट्रेकिंग करना पसंद है और राजसी ठाठ-बाट आपको भाते हैं तो मैं सुझाव दूँगा कि आप ट्रिपोटो की इस माइंडफुल रिट्रीट के साथ त्रिउंड ट्रेक पर भी जा सकते हैं। इसके विषय में अधिक जानकारी आपको नीचे दी गई लिंक पर आसानी से मिल जाएगी।

रुकें कांगड़ा के महाराजाओं के निवास में और लुत्फ उठाएं त्रिउंड की ट्रेकिंग का

यह पैकेज मात्र 13750 रुपए प्रति व्यक्ति है जिसमें 4 दिन और 3 रातों में कांगड़ा, धर्मशाला घूमना शामिल है।

कैसे पहुँचें?

सड़क मार्ग- यहां से चंडीगढ़ 252 किमी तथा दिल्ली 490 किमी है।

रेल मार्ग- निकटतम रेलवे स्टेशन पठानकोट है जो कि यहाँ से 87 किमी की दूरी पर अवस्थित है। इसके अलावा जलंधर की दूरी यहाँ से 190 किमी है।

हवाई मार्ग- गग्गल एयरपोर्ट की दूरी यहाँ से महज़ 12 किमी है। आप यहाँ से अमृतसर या चंडीगढ़ के लिए भी फ्लाइट मिल जाएगी।

सबसे उपयुक्त समय

वैसे तो पहाड़ों में रोज़ ही नए-नए दृश्य उत्पन्न होते हैं और हर मौसम का यहाँ अलग ही मिजाज़ होता है। लेकिन तब भी फरवरी मध्य से लेकर जून तक और सितम्बर मध्य से लेकर मध्य दिसम्बर तक यहाँ का मौसम अच्छा होता है। दिसम्बर के बाद कड़ाके की ठंड होती है और बारिश के मौसम में पहाड़ाें के दरकने और खिसकने का ख़तरा हमेशा बना रहता है।

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