जबसे वीर झारा मूवी देखा तबसे पंजाब से लगाव हो गया था। वो हरे भरे खेत.. वो लस्सी और बहोत कुछ... जानना था। लेकिन तबसे आज तक बहोत कुछ बदल गया था। वीर झारा से लेके उड़ता पंजाब तक आ गयी थी। लेकिन इस बीच बोहोत सारी जगह देखेने की इच्छा थी। 2 साल पहले उन्नयन की प्रिंसली पंजाब टूर की जानकारी देखी। मूवी के अलावा भी पंजाब की और येसी जगह है। और वो देखेना है। हर साल 1 दिसंबर को जन्मदिन के अवसर पर मैं नई जगह जाती हूं। इस साल वो सद्दा पंजाब था। केलिन कुछ काम की वजह से जा नही 1 दिसम्बर को जा नही हो रहा था। और उन्नयन की ट्रिप 4 दिसंबर को थी। और मेरी न होने वाली लदाख ट्रिप के कारण मुझे इस ट्रिप की जरूरत थी। जादा न सोचते हुवे मैन उन्नयन की प्रिंसली पंजाब टूर बुक की। वैसे तो वैभव मतलब उन्नयन के मालिक और अभी 5 सालो से दोस्त ही था। उसके साथ मेरी 6 ट्रिप थी। उसके साथ जाना मतलब सोच से भी ज्यादा देखेंने मिलेगा ये जानती थी।
4 दिसंबर को सुबह 8.35 की चंडीगढ़ की filet थी। रात को नींद ही नही लगी सुबह जल्दी उठके एयरपोर्ट आ गयी थी। 6.30 को ही एयरपोर्ट को बैठ कर kfc के चिकन बर्गर खा रही थी। उसके बाद चेकइन करके सो गई । 7. 30 को आँख खोली तो उन्नयन के कुछ लोग दिखे। हातो में उन्नयन की बॅग थी। उन्नयन के जादा तर टूर मेंबर सीनियर सिटीजन होते है। ऐसे ही 10 नए दोस्तो के साथ मेरा सफर सुरु होने वाला था। लेकिन मेरा और इंडियन एयर लाइन का कुछ पन्गा है। हमेशा मेरे वाली flight का मैटर होता है। 30 मिनिट से देर हो गयी थी। कब flight उड़ेगी ऐसा हो रहा था। लदाख वाली वो 3 दिन याद आ रहे थे। लेकिन फ्लाईट उड़ी । और उसके साथ मैं भी। 2 घंटे बाद हम चंडीघर एयरपोर्ट उतरे। एक और नया एयरपोर्ट था। उड़ता पंजाब में मैं उड़ाने वाली फीलिंग आ रही थी। बैग लेने के वक्त सबसे जान पहचान हो रही थी मुझसे सब 30 साल बड़े थे लेकिन सॉलिड मस्त थे। एयरपोर्ट के बाहर ही गाड़ी थी। हम वह से सीधा राजश्री होटल में आ गए। सब से बातचीत हो रही थी । लेकिन समझ नही आ रहा था । मेरा रूम पार्टनर कौन था। क्यों कि सब किसी के साथ मे थे। मेरी पाटर्नर मिना ताई नाम एक 75 उम्र की औरत थी। हम कुछ की मिनिट में जाते ही दोस्त बन गए थे। फ्रेश होक हम नीचे खाना खाने आ गए थे। खाना खाते वक्त हमारा पहचान अच्छे से हुई।सबसे से छोटी होने के कारण मुझे बोहोत मजह आ रहा था। वैसे तो मुम्बई में पंजाबी खाना बोहोत बार खाया था। लेकिन पंजाब में बैठकर पंजाबी खाना खाना अलग ही swag था। वैसे तो पनीर मुजे उतना पसंद नही है। लेकिन पहले ही बार मे पंजाब के पनीर की फैन हो गयी थी। इसका मतलब मुम्बई वाला पनीर था ही नही। मुह में पिघल रहा था। पालक पनीर , मिक्स वेज नान , पंजाबी अचार और रायता... दिन बन गया था। फिर से हम रूम में चले गए और थोड़ी देर आराम कर के 4 बजे चंडीगढ़ के जगह देखने निकले। पहले स्थान सुखना लेक था। सुखना झील भारत के चण्डीगढ़ नगर में हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में स्थित एक सरोवर है। यह झील 1958 में 3 किमी² क्षेत्र में बरसाती झील सुखना खाड को बाँध कर बनाई गई थी। पहले इसमें सीधा बरसाती पानी गिरता था और इस कारण बहुत सी गार इसमें जमा हो जाती थी। अभी एक दर्शनीय स्थल है। आप वह बोटिंग कर सकते है। लेकिन वो दूर दूर तक दिखने वाला पानी ही नजर नही हटा रहा था। अंधेरा होने लगा था। तो हमने अपना रास्ता चंडीगढ़ के शॉपिंग की तरफ मोड़ लिया। मुझे लोकल शॉपिंग एरिया देखना था। तापमान 10 dg था। हम मुम्बई वालों के लिए कुछ जादा ही था। हम चाय ढूंढ रहे थे। लेकिन हमें चाय नही मिली। एक दुकान में शॉपिंग करते वक्त दुकानदार को पूछा तो उसने ही हमारे लिए चाय मंगवा दी। उसके बाद हमे एक मस्त म्यूजिकल लेज़र फाउंटेन शो देखा।आखो को बहुत सुकून मिल रहा था । शो देखकर हम होटल आ गए। ठंड जादा ही बढ़ गयी थी। रात को मस्त चंडीगढ़ के लजीज खाने का स्वाद लिया। खाने के बाद रोज की तरह walk ली। लेकिन थोड़े कम टाइम किया। और सोने आ गई। पूरे दिन के बारे में सोचते हुवे नींद लग गई।
सुबह हमेशा की तरह 6 बजे आँख खुल गयी। लेकिन आज हमेशा की तरह नही थी मैं खुशी से उठ गयी। तैयार हो के हम नीचे नाश्ते के किये पोहचे। खाना देख के मैं और भी फ्रेश हो गयी। बहोत सारी वैराटी थी। चंडीगढ के पराठे सोने पे सुहागा था। मुझे उस रेस्टोरंट का अचार बहोत अच्छा लगा। मैन थोड़ा पैक कर के भी लिया।आज का दिन के सैर के लिए निकल पड़े। रॉक गार्डन आज का पहिला स्टॉप था। हमे जल्दी पोहच गए थे। 9 बजे चालू होने के बाद हम अंदर चले। हमेशा की तरह वैभव की अच्छी प्लानिंग के वहज से गार्डन मैं सिर्फ हम थे। अच्छे से देखेने मिला। रॉक गार्डन ऑफ़ चंडीगढ़ एक शिल्पकृत गार्डन अर्थात उद्यान है। ये मुख्य रूप से नेक चन्द सैनी गार्डन के नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण नेक चन्द सैनी ने करवाया था। पूर्व में यह इतना बड़ा नहीं था लेकिन वर्तमान में यह लगभग ४० एकड़ में विस्तृत है। यह सुखना झील के निकट स्थित है। रॉक गार्डन बनाने में 30 साल लगे थे। अंदर के स्टेचू देखकर दंग हो गए थे। बहोत अच्छे से सोच अपने कला में डाली थी। सूंदर झरने देखकर और भी प्रसन्न हो गया था। थोड़ी देर बैठकर हमे बाहर आ गए। बाहर मैन ट्रिप की पहेली शॉपिंग की । सूंदर कंनग मिल गए। उसके बाद हम जलन्दर के लिए निकल गए। चंडीगढ़ के वो रास्ते मुजे बहोत याद आएंगे। वह से अगला स्टॉप था आनंदपुर साहिबा । गोल्डन टेम्पल तो सब जाते है। लेकिन आनंदपुर साहिबा भी एक सूंदर गुरुद्वारा है। 1.30 घंटे में हम वह पोहच गए। बहोत ही सूंदर और भव्य था। दर्शन होने के बाद प्रसाद खाया। दोपहर हो गयी थी यह की लंगर में भोजन किया । काली दाल रोटी अचार और खीर सादा सा पर स्वाद भरा भोजन था। थोड़ी देर के बाद हम आये बढ़ गए। रास्ते मैं हमे बहोत सारे संतरे के ठेले दिखाई दे रहे थे। वो देख कर हमने गाड़ी रोक दी । और मस्त संतरे का रस पिया। और बहोत सारे संतरे भी खरीदे। अब हम जा रहे दे मेरे सब से चहिते क्रांतिकारी शहीद भगत सिंग के घर देखने के लिए। हमे थोड़ी देर हो गयी थी। लेकिन हमे वो देखने को मिला। आज़ादी के बाद भगत सिंह जी के माता पिता यह आके रहने लगे। उनका जन्म स्थान अभी पाकिस्तान में है। लेकिन एक दिन वो भी देखेन जरूर जाउंगी। इस घर को उनके यादो से सजा के रखा गया है। आज उनके बलिदान के स्वरूप ही हम ये आज़ाद जिंदगी जी रहे है। यही सोच कर मन भर आया था। उसके बाद हम जालन्धर के लिए निकले । अंधेरा हो गया था। एक ढाबे पे हमने चाय पी और होटल के निकले। आज रात हम होटल अम्बासिडर में रुकने वाले थे। बहोत ही आलीशान होटल था। फ्रेश होकर हम खाने के लिए नीचे आये। ज़ायका नाम होटल मैं हमने बहोत ही स्वाद भरा खाना खाया। मुझे कुछ मीठा खाना था। केलिन पेट फूल हो गया था। थोड़ी देर टेहलके मैं सोने चली गयी। मीना ताई मेरी रूम पार्टनर के साथ बाते करते हुए हम सो गए।
सुबह नीद खुली बाहर देखा तो बहुत कोहरा था। ठंड भी बहुत थी। नाश्ता करने के लिए नीचे गए और नाश्ते मैं गुलाब जामुन थे। मेरा तो दिन ही बन गया था। काल रात मीठे में गुलाबजामुन के बारे मैं ही सोच रही थी। और भी बहोत सारि वराइटी थी। पेट भर के गुलाब जामुन खाके हम ने जालन्धर को bye bye बोला। अब हम अमृतसर के लिए निकल गए थे। आज का पहिला स्टॉप महाराजा रणजीत सिंह पैनोरमा संग्रहालय। राम बाग पैलेस को 1977 में एक संग्रहालय में बदल दिया गया था और इसमें महाराजा रणजीत सिंह के दरबार से अभिलेखीय अभिलेखों का एक दिलचस्प संग्रह है, जिसमें सिख योद्धाओं द्वारा चित्रित पोशाक, चित्र, लघुचित्र, सिक्के और हथियार शामिल हैं। संग्रहालय की निकटता में महाराजा रणजीत सिंह पैनोरमा निहित है, जो महाराजा के जीवन का एक स्थायी दृश्य दस्तावेज है। इस उल्लेखनीय विशेषता को एक बड़ी दो मंजिला वृत्ताकार इमारत में रखा गया है और ऊपरी स्तर पर उसके प्रमुख युद्धों में से छह को दर्शाती एक शानदार पेंटिंग है। दृश्यों को दोहराते हुए तीन आयामी आंकड़ों के साथ, यह दर्शनीय स्थलों और युद्ध की ध्वनियों के एक मल्टीमीडिया प्रतिनिधित्व के साथ है। अन्य आकर्षणों में आजीवन आकार के चित्र, साथ ही महाराजा के प्रारंभिक जीवन के ड्योराम (तीन आयामी दृश्य) और लाहौर में उनके न्यायालय में से एक विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उत्तरार्द्ध एस्ट्रो-हंगेरियन कलाकार, अगस्त शॉफ़्ट द्वारा एक पेंटिंग की समानता है; इसे 'लाहौर का न्यायालय' भी कहा जाता है, इसे 1852 में पूरा किया गया और 1855 में पहली बार वियना में प्रदर्शित किया गया। वह के गार्डन मैं हातो मैं संविधान लेके खड़े हुए बाबासाहेब आम्बेडकर की मूर्ति है। 6 दिसंबर के दिन मुजे उस मूर्ति का दर्शन होना मेरे लिए भाग्य की ही बात थी। वह से हम दुर्ग्याणा देवी के मंदिर गए। अमृतसर में श्री दुर्गियाना मंदिर हिंदुओं के लिए विश्वास का एक केंद्र बिंदु है। तीर्थयात्रियों ने न केवल भारत से बल्कि विदेशों से भी इस मंदिर में झुकाव। वर्षों से, यह हिंदू पुनर्जागरण और कायाकल्प का एक केंद्र बन गया है। ये मंदिर गोल्डन टेम्पल की प्रतिकृति है। उसके बाद हम अपने होटल चले गए। थोड़ी देर आराम करके श्यामको शॉपिंग के लिए निकले । गोल्डन टेम्पल के नजदीक के जगह में हम ने शॉपिंग की। कल सुबह हम गोल्डन टेम्पल जाने वाले थे। लेकिन मुजे रात में चमकता हुवा गोल्डन टेम्पल भी देखना था। ठंड के कारण अंधेरा जल्दी होता था। वैभव के कारण मुझे वो भी देखेने को मिल गया। 6 बजे मैं गोल्डन टेम्पल के अंदर चली गयी। और एक सूंदर श्याम का नजारा मुजे देखेने को मिल गया। मैं उसकी के सामने बहोत टाइम बैठ गयी। बाहर जाने का दिल ही नही कर रहा था। श्याम से रात होने का वो नजारा दिल में भर के वापस आ गयी थी। अभी हम गोबिंदगढ़ फोर्ट के तरफ जाने को निकले। वैसे हो हम दिन में भी यह आ सकते थे । लेकिन वह जाने के बाद मुझे समझने आया वैभव हमे रात को क्यों लेके आया। गुरु गोबिंद का पूरा जीवन चरित्र हमने उसी फोर्ट के वाल पे 7d शो में देखा। सबसे बाद वाले चलने वाला वन्दे मातरम ने तो देशभक्ति जग दी थी। शो के बाद ज़ायका गल्ली का मस्त वाला खाना खा के होटल आ गए । और एक बढ़िया दिन को सोचते हुए मैं सो गयी।
आज का दिन था टिपिकल अमृतसर टूर का था। गोल्डन टेम्पल जलियाँवाला बाग और अटारी वाघा बॉर्डर आज देखेने वाले थे। वैसे तो कल ही गोल्डन टेम्पल देख लिया था। लेकिन आज दिन में देखना था। गोल्डन टेम्पल के लिए रवाना हो गए थे। 9 बजे हम मंदिर के अंदर चले गए। आज मैं पूरी पंजाब की कुड़ी बन गयी थी। कल शॉपिंग किये हुए चीजो के साथ पंजाबी ढंग था। टेम्पल के अंदर जाने के लिए हमे 1 घंटा लगा। बहोत सारि बाते वह के दीवारों पे लिखी थी। वो पढ़ेंगे की कोशिश कर रही थी। बाजू में चलने वालो को उसका अर्थ पूछ रही थी। वो गुरुमुखी थी। अंदर दर्शन बहुत अच्छे हुए। फिर मैं ऊपर भी गुरु ग्रंथ साहेब देखेने गयी। कुछ देर वह बैठ गयी। इतने लोग होते हुवे भी। एक अजीब सी शांत वातावरण था। थोड़ी देर बाहर आकर मैं पानी के पास बैठ गयी रंगिबेरंगी मछलिया गोल्डन टेम्पल की शोभा और भी बडा रही थी। कुछ देर वह बैठ के मैं अपने ग्रुप के साथ आ गयी। अभी हम जालियां वाला बाग में जा रहे थे। यह के बारे में बहोत पढ़ा था। लेकिन आज वो देख रही थी। जलियाँवाला बाग हत्याकांड आप सब को ही मालूम होगा। कुछ काम चालू होने के कारण भीड़ थी। फुलोरी मूवी का सीन याद आ रहा था। हमारे समझ से भी ऊपर की वो भयानक घटना थी। कुछ लोक वह अजीब तरह से फ़ोटो निकल रहे थे। इनको एक दो गोली मारने की इच्छा हो रही थी। हमे यह जगह से क्या सोच लेनी च्चाहिये ये कोई भी सोच नही रहा था। मन में बहोत सारे विचार लेके वह से निकली वैभन ने हमे 2 घंटे शॉपिंग के लिए दिए। वैसे तो मुजे घर के लिए खाने के चीजे लेके जानी थी। लेकिन उसके साथ बहोत कुछ ले लिए। हमे 12 बजे brothrs ढाबे पे मिलना था। मैं वह चली गयी। आज का मेनू था। सरसो का साग और मक्के दी रोटी और थड़ी लस्सी । मस्त खाना खा के हम अटारी
वाघा बॉर्डर के लिए निकल पड़े थे। 45 मिनिट में हम वह पोहच गए। वह का वातावरण मैं सोच रही थी उससे भी भारी था। वैभव ने मुझे बोला वो पेड़ देख रही हो वो पाकिस्तान है। एक लाइन से वो पेड़ पाकिस्तानी हो गया था। ऊपर पंछी उड़ रहे थे। उनके लिए कोई सीमा नही थी। वो देख कर जलेसि हुई। मुजे हमेशा से ही मेरे चेहरे पे भारत का झंडा निकलना था। और ये सही मौका था। मेरे साथ मेरे ग्रुप मेंमबर ने भी निकाला। खून में तिरंगा फैल रहा था। बोहोत सारे चेकिंग के बाद हम अंदर पोहच गए। वो आवाजे ही सॉलिड थी। देशभक्ति सबकी उमड़ रही थी। आज यह कोई किसी धर्म का नही था। सिर्फ भारतीय था। और सामने वाले पाकिस्तान को गुस्से से देख रहा था। हमारे सामने वो छोटा ही देश था। लेकिन आज कितना छोटे सोच वाला था ये भी देख लिया था। मुझे गुस्से से जादा उनकी दया आ रही थी। देश के एक से एक बढ़कर एक गाने लगाए थे। थोड़ी ही देर में सेरेमनी सुरु हुवी। बहोत सारी औरते नीचे अपने हात में तिरंगा लेके वह दौड़ रही थी। वैभव ने मुजे भी जाने के लिए कहा केलिन मुजे वो नजारा देखे में ही बड़ा मजा आ रहा था। हमारी 500 से भी जादा औरते वह नीचे नाच रही थी। नाचने के लिए जगह कम पैड रही थी। शायद कुछ दिनों के बाद उस बाजू में नाचते हुए जाना पड़ेगा। वही सोच के हस रहे थे। सामने कुछ भी आवाज नही थी। और यह पे तो फूल माहौल था। फिर परेड चालू हुवी। एक कप्तान पूरे जोरो से भारतमाता के नारे बोल के प्रोसहित कर रहा था। बहोत ही फुर्तीला था। इतना फुर्तीला इंसान मैन शायद देखा नही था। फिर पूरी सेरेमनी हुवी। वो श्याम ही यादगार हो गयी थी। सामने पाकिस्तान का झंडा उड़ ही नही रहा था। और हमारा तिरंगा हवा में लहरा था। यही फर्क था। उनमे और हम में । परेड खत्म होने के बाद मैं नीचे गयी। मुजे बॉर्डर के नजदीक जाना था। जितना हो सके मैं जाके आयी। कभी न कभी उसके पर भी जाना ही है। वो जहा भी देखना है ही। दुशमन है लेकिन पड़ोसी है ना। थोड़े नाराज है लेकिन अपने ही तो है। मुजे उस कप्तान को मिलना था। लेकिन वो उस भी में कही चले गए थे। में कुछ देर उनको डुंडा लेकिन वो मेरी तरह थोड़ी थे। वो अपने काम के लिए चलए गए। मैं वही याद लेके वापस आ गयी थी। शायद नसीब में होगा तो हम जरूर मिलेंगे उसे आशा पे मेरे ग्रुप के पास आ गयी। फिर से हम वापस आ गए थे। आज अमृतसर में लास्ट दिन था । कल हम निकलने वाले थे। इसलिए हमे आज नॉन वेज खाना खाने का सोचा। आज हमे भी वैभव ने मनचाहा खाना आर्डर करने को कहा। हमने मुर्ग बिरयानी , मसाला पापड़ और बूंदी रायता आर्डर किया। बहोत ही मस्त था। पहेली बारे मसाला पापड़ पे पनीर और चीज़ भी डालके आया था। आज दिन के बाते करते करते सो गए। एक और यादगार दिन
आज अमृतसर में हमारा लास्ट दिन था। हमने सब बैग पैक कर लिए थे। सुबह मस्त अमृतसरी पोहे का नाश्ता किया। हमारी flight 3.30 की थी तब तक हम कुछ और भी देखना बाकी था। हमारा लास्ट पॉइंट था। पर्तितिओं म्यूज़ियम भारत के अमृतसर में टाउन हॉल में स्थित एक सार्वजनिक संग्रहालय है। संग्रहालय का उद्देश्य विभाजन के बाद के दंगों से संबंधित कहानियों, सामग्रियों और दस्तावेजों का केंद्रीय भंडार बनना है,संग्रहालय का उद्घाटन 25 अगस्त 2017 को हुआ था। 15 अगस्त 1947 का the हिन्दू न्यूज़ पेपर वह रखा है। वो दिन कितना सुहाना होगा ना। ये सोच के मन धन्य हो गया था। वो पुरानी चीजे जिंदा लग रहि थी। हमारी स्वतंत्रता की किम्मत थी । एक बड़े स्क्रीन पे उन दिनों की कुछ वीडियो चल रहे थे। और वो आवाजे सुन कर मन सुन्न हो गया। हमारे सोच से भी वो परे था। वो आवाज कानो मि गूंज रही थी। आज जो हम सुख का आनंद ले रहे है वो उनकी कुर्बानी के कारण है। और वो कुर्बानी हमे जाया नही करनी है। पर्तितिओं म्यूज़ियम बहोत ही अच्छे से सम्भालके रखा है। उसके बाद हम बाहर से पर्तितिओं म्यूज़ियम देख रहे थे। वह पे गुरुमुखी में लाइन लिखे हुए थे। वो लोकल लोगो से अर्थ पूछने की कोशिश कर रही थी। लेकिन अपनी जगह की अपने ही लोगो को कदर नही होती। ये समझ मैं आ गया। वह से हम भरावन डा ढाबा में खाना खाने चले गए। आलू पराठा और बैगन का भरता और मैन चूरचूर नान मंगवाए। उसके बाद मिना ताई ने हमे फिरनी की ट्रीट दी। वो भरपेट खाके बाहर निकले। लेकिन गोलगप्पे खाने बाकी थे। फिर हम सबने गोलगप्पे ट्राय किये। और अमृतसर को bye bye बोलके एयरपोर्ट के तरफ निकले। लेकिन अमृतसर मुझे छोड़ ही नही रहा था। मेरी flight 4 घण्टे देर से थी। वैसे तो वो मेरे लिए नया नही था। मेरा और एयरलाइन का वसे भी पन्गा है। उसी घण्टो में बहोत सारि बाती की। नए दोस्तो से नए अनुभव मिले। मेरे लिए उनोने दुवा भी की।
मेरे ये 5 दिन सॉलिड ही थे। मुझे चाहिये जैसे ये ट्रिप हो गयी थी। वैसे तो ये ट्रिप मुजे मेरे मम्मी पापा के साथ करनी थी। लेकिन कुछ कारणों के वजह से वो नही कर पाई। लेकिन भगवान ने मुजे 10 माता पिता के साथ बुलाया था। और वैभव ने उसमे चार चांद लगा दिए थे। एक बात रह गयी थी। मुजे सरसो के खेतो में जाके दौड़ाना था। लेकिन इस साल के वातावरण के वजह से मुजे वैसे खेत दिखे ही नही। शायद वो सीन करने के लिए पंजाब फिर से जाना होगा। वैसे तो पंजाब में कुछ रह ही गया है। क्यों की मुजे वापस आने का दिल ही नही था। ऐसे होने वाली मेरी पहेली ट्रिप थी। चलो देखते है पंजाब कब बुलाता है।
आपको भी मेरी तरह ये ट्रिप करनी है तो कांटेक्ट करे उन्नयन के वैभव प्रभुदेसाई को
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