सातारा ये नाम कुछ सालो से कास फ्लॉवर फेस्टिवल के लिये प्रसिद्ध हो गया है। हर साल लाखो लोग आते है। लेकींन इस के अलवा भी सातारा मे देखणे जैसी बहुत जगह है। वही देखने के लिये हमने 2 दिन की backpack ट्रिप की योजना की। मैं और मेरे दो दोस्त निकल पडे इस सफर के लिये। मुम्बई में ज़ोरो की बारिश के साथ गर्मी होने के कारण ठंडी के कपड़े नही लिए। सुबह 6 बजे हम सातारा बस डेपो में उतरे। और हालात खराब हो गयी थी । 15 डीग्री तापमान था। मुह से बाफ निकल रही थी। सुपर वाली ठंडी होने के कारण हमने थोड़ा प्लान बदल लिया था। हम हमारे सातारी दोस्त विशाल का इंतजार कर रहे थे। उसीकी बाइक से हम 2 दिन घूमने वाले थे। विशाल हमे उसके घर ही रुकने के लिए आग्रह कर रहा था। लेकिन हमारे प्लान कुछ और ही थे। फिर हम फ्रेश होने के लिए Oyo पर होटल ढूंढने लगे। लेकिन सातारा सिटी में oyo के होटल कम थे। विशाल के ही पहचान से हमे एक मस्त होटल मिला। hotel mountain view नाम की तरह ही नजारा था। फ्रेश हो के हम अपने आज के सफर पे निकल पड़े। पहेली मंजिल थी ठोसघर वॉटरफॉल।हमारे होटल से 25 km पे ही था। जाते वक्त हमे सज्जनगढ़ का फोर्ट लगा था। लेकिन वो बाद में था। पहले हम ठोसघर पोहचे। वडापाव का नाश्ता किया। पहिली बार किसी वॉटरफॉल की इतनी हिफाजत देखी थी। टिकिट निकालके हम अंदर चले गए। पेडो से जाते हुए हम वह पोहच गए थे। वो दृश्य बोहोत ही मोहक था। एक धूप छाव का कोई खेल चल रहा है ऐसा लग रहा था। वो देख के हम छोटे वॉटरफॉल के पास आग गए। वो तो बहोत ही भारी था। वह एक छोटी गुफा है। वह से भी वो नजारा मस्त लग रहा था।वॉटरफॉल में उतर नही सकते थे। अच्छी सुरक्षा थी। वो होने के बाद हमे सज्जनगढ़ पोहचना था। वैसे तो हम वही रहने वाले थे। लेकिन थड़ी का मोहोल देख के हमने प्लान बदला था। 12 बजे हम सज्जन गड के नीचे पोहच गए थे। ऊपर जाने के लिए 200 सीढ़िया थी। सुबह से जो लोकल लोग मिल रहे थे उनोने वह के प्रसाद के बारे में बतातया था। अब तो वही खाना खाने जाना था। वैसे तो मैं एक lazy ट्रेककर हु लेकिन भूक के मारे 15 मीन में 200 सीढ़िया चढ़ गई थी। ऊपर जा के हात मु धोके प्रसाद खाने बैठ गए। खाने के मामले में बहुत बेशर्म हु। वो प्रसाद सच मे बहोत स्वादिष्ठ था। मैंने 2 बार खीर ली। खाना होने के बाद हम फोर्ट गुमने चले गए। रामदास स्वामी का बहोत ही सुंदर मंदिर था। उनकी चीजे बहोत अच्छे से सम्भल के रखी हुई थी। सज्जनगढ़ जिसका अर्थ है "अच्छे लोगों का किला", के शहर के पास स्थित। यह 17 वीं शताब्दी के भारत (1608 में जन्म) में का अंतिम विश्राम स्थल है। दासबोध जैसी पुस्तकों में लिखी गई उनकी शिक्षाएँ और कृतियाँ आज भी महाराष्ट्र राज्य में बहुत से लोग पढ़ते हैं और उनका अनुसरण करते हैं और सज्जनगढ़ एक लोकप्रिय तीर्थस्थल है। बहोत सारे फ़ोटो निकाले । वह हमें कुछ नए लोकल दोस्त मिले। वो भी हमारे तरह फोटोग्राफी लवर थे। वैसे तो अभी जो कोई फोटोग्राफर बन रह है । स्वप्निल और मैन एक फोटो देखा था। वो फ़ोटो निकालके सज्जनगढ़ को राम राम किया। अब हमारा स्टॉप था,अजिंक्यतारा फोर्ट ।अजिंक्यतारा (जिसका अर्थ है "द इम्प्रेसिवेबल स्टार") महाराष्ट्र में सातारा शहर के आसपास के सात पहाड़ों में से एक पर एक किला है। मराठी उपन्यासकार नारायण हरि आप्टे ने किले का नाम "अजिंक्यतारा" रखा, जब उन्होंने अपना पहला उपन्यास उसी नाम पर लिखा, जो पहली बार 1909 में प्रकाशित हुआ था। अब यह सतारा शहर के लिए टेलीविजन टॉवर भी रखता है। यह किला वह स्थान रहा है जहाँ मराठा इतिहास में कई महत्वपूर्ण क्षण हुए। ऊपर बहोत सारे लोग सैर के लिए आते है। ऊपर से सातारा शहर का बोहोत ही अच्छा नजारा दिखता है। सूर्यास्त होते हुए हम नीचे आने लगे। मुजे रुकना था। रात का नजारा देखने था। लेकिन हम सातारा में किसी और कि गाड़ी पे ट्रिपल सीट घूम रहे थे। और हमारे गाडि के ब्रेक भी अच्छे नही चल रहे थे। इसलिए स्वप्निल ने मुझे बोला अच्छे से नीचे चलते है। नए शहर में क्यों कुछ पंगे करे। वो नजारा दिल मे लेके हम नीचे उतरे। आज का दिन खत्म हो गया था। ठंड बढ़ गयी थी। हम होटल आ गए थे। अभी क्या रात का खाने का प्रोग्राम बना रहे थे। रात को विशाल हमे मिला। उसके साथ हमने डिनर का प्रोग्राम बनाया। लेकिन दिन अभी बाकी था। विशाल हमे चार भित्ति नाम के जहग लेके गया। अजिंक्यतारा फोर्ट के नीचे ये जगह थी। यह से पूरा सातारा दिख गया। वो भी चमकीला सातारा दिवाली के दिनों के कारण फटाके फुट रहे थे। मेरी विश विशाल ने पूरी कर दी थी। ऊपर कुछ देर बैठकर हम डिनर के लिए नीचे आ गए। अब हम जा रहे थे दादा बिरयानी हाउस । सातारा की सबसे प्रसिद्ध बिरयानी खाने के लिए। लेकिन हमें देर हो गयी थी। तो हमे थाली लेनी पड़ी। लेकिन हमारे रिक्वेस्ट पे हमे 1 छोटी प्लेट में बिरयानी टैस्ट करने मिली। पेट भरके हम सोने चले गए। एक बहोत ही फ़ास्ट दिन निकल गया था। थके होने के कारण जाते ही सो गए थे।
आज का दिन हमारा लास्ट दिन था। सुबह उठकर पूरा समान पैक कर लिया था। आज हम समान विशाल के घर रखकर सातारा लोकल घूमने वाले थे। सुबह हम 9 बजे विशाल के घर पोहच गए। समान रख के हम नाश्ता करने निकल पड़े। झटका मिसळ नाम के यह के सुप्रसिद्ध होटल में आ गए। पहले मिसळ, उसके बाद लस्सी और उसके बाद चाय पिया। ये 3 चीजें यह कि प्रसिद्ध है। और सच मे बहोत ही स्वाद था। ग्रीन टी पीने वाली मैन 3 कप चाय पि थी। पेट भर के नाश्ता करके हम आज के दिन के लिए निकल पड़े। पहिली जगह थी लिंब गांव की बारा मोटाची विहीर। ये एक शिवकालीन ऐतिहासिक वास्तु है। वैसे मैं यह मई के महीने में सोलो ट्रिप की थी। लेकिन मुजे ये पानी से भरी हुवी देखेनि थी। और स्वप्निल और सचिन को दिखानी थी। हमे 30 मिनिट में वह पोहच गए थे। और सच मे वो पानी से भरी हुवी थी। दिल खुश हो गया था। वो हरा पानी देख के। कुछ टाइम वह बैठ के हम बाहर आये। फिर मस्त खेतो में जाके गन्ने का रस पिया। वह के लोकल लोको से बाते करते हुवे एक नई जगह का पता मिल गया। श्री कोटेश्वर देव कह के शिव का मंदिर था। कोटेश्वर मंदिर 18 वीं शताब्दी में गोसावी द्वारा बनाया गया था। ऐसा कहा जाता है कि, वह भगवान शिवशंकर के भक्त थे। सतारा शहर के पास के गाँव (जिसे अंग कहा जाता है) के कोटेश्वर मंदिर में प्रतिदिन प्रार्थना के लिए जाते थे। एक दिन, उन्होंने अपने सपने में भगवान शंकर को देखा जिन्होंने कहा, "लिंब पर जाएं और" SHIVLING "को अपने घर पर रखें, मैं आपका अनुसरण करूंगा और वापस नहीं देखूंगा, अन्यथा आप मुझे खो देंगे"। लेकिन उसने पीछे मुड़कर देखा और उसने प्रभु को खो दिया। फिर से उसने बहुत प्रार्थना की, फिर उसके सपने में भगवान शंकर ने कहा, "उस जगह पर खोदो जहाँ तुमने मुझे खोया था" ... वह शिवलिंग मिला। वही पे ये मंदिर है। वह से एक नदी जाती है। और एक कुंड भी है। कुछ देर वह बैठकर हम निकल पड़े। भूक लगी थी। आते वक्त हमने नागपुरी मटन भाकरी नाम का होटल देखा था। वही चले गए। एक नंबर खाना खाया। वह पे हमन सोल कडी पी। वैसे हो कोकण में सोल कड़ी बहोत प्रसिद्ध है। लेकिन यह के भी सोल कडी का मस्त स्वाद था। वह में हमने प्रितम नाम के नए दोस्त बनाया। हमने उसे इसकी ब्रांच मुम्बई में चालू करने के लिए कहा । और दो जगह हमारी बाकी थी। हम उसी जहग के लिए निकल पड़े। काल से हम ट्रिपल सीट ही घूम रहे थे । स्वप्नील कि हालात खराब हो गयी थी। लेकिन फूल मजे कर राह थे। अब हम पोहच गए थे। माहुली संगम नाम की जगह पे। सातारा बस स्टेशन से 5 किमी की दूरी पर, संगम महुली और क्षेत्र माहुली महाराष्ट्र के सातारा जिले में कृष्ण और वेन्ना नदियों के संगम पर स्थित दो पवित्र गाँव हैं। नदियों के अभिसरण के आसपास 2 प्रसिद्ध मंदिर हैं - विश्वेश्वर और रामेश्वर। श्री काशी विश्वेश्वर मंदिर संगम महुली में स्थित है और भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर का निर्माण 1735 ईस्वी में श्रीपात्रो पंत प्रतितिनिधि ने करवाया था। इस भूमि को शाहू महाराज ने श्रीपत्रा पंत पृथ्वीनिधि को एक ब्राह्मण दक्षिणा के रूप में दान किया था। बहुत ही सुकून भरी जगह थी। नजदीक के लोक अपनी पूजा विधि के लिए यह आते है। लेकिन बहोत सारे कॉलेज के बच्चे tikitok के लिए भी आये थे। हम क्या कर सकते थे। भगवान शिव के दर्शन लेके हम अगले स्टॉप के लिए निकले। अगला स्टॉप था सातारा का नटराज मंदिर महाराष्ट्र राज्य में स्थित है। जैसा कि यह तमिलनाडु में चिदंबरम मंदिर की प्रतिकृति है (जिसे श्री नटराज मंदिर भी कहा जाता है), इसे उत्तरा चिदंबरम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान विष्णु के एक अवतार नटराज इस स्थल के देवता हैं। मंदिर राष्ट्रीय राजमार्ग 4 के साथ स्थित है, जो सोलापुर और सतारा के कस्बों को जोड़ता है, और क्षेत्र में सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। नटराज मंदिर 1985 के वर्ष में वापस स्थित था और अपनी शानदार वास्तुकला के कारण आज तक देश भर के पर्यटकों को आकर्षित करता है, और यह प्रदान करता है शांत वातावरण। यह हमारा लास्ट स्टॉप था। 5 बज गए थे। हमे चाय पीने थी । फिर से हमने हमारा मोर्चा झटका मिसळ की तरफ मोड़ा और मस्त चाय और बनमस्का खाया। सातारा आये और कंदी पेड़े नही ली ऐसे हो ही नही सकता। फिर मार्केट में घूमे। रात की 10 बजे की हमारी गाड़ी थी। फिर हम विशाल के घर चले गए। थोड़ा फ्रेश हो के वह ही बैठ गए। विशाल की आई मुम्बई गयी थी। उनकी राह देख रहे थे। उनसे मिल के ही जाना था। विशाल की हमे बडी मदत हुवी थी । 1 दिन के मुलाकत से उसने हमारी ये ट्रिप सही बना दी थी। आई से भी कुछ देर बाते कर के फिर से आने का वादा कर के निकले। ट्रिप हमेशा ही मस्त होती है। लेकिन ये मिलने वाले नए लोग और भी चार चांद लगा देते है। अभी सातारा तो अपना ही हो गया था। फिर विशाल के साथ हम बस डेपो आगये थे। हमें bya बोलकर वो चला गया। बस छूटने में अभी टाइम था। इसलिए लास्ट राउंड खाने का मारा। लाजवाब बिरयानी हाउस में सच मे लाजवाब बिरयानी खाई। और बस में बैठ गए।
दो दिन कैसे चले गए हमे पता ही नही चला। वैसे तो ट्रिप का बजट हमने 3000 था। लेकिन नैये दोस्तो की वहज से 2000 में हो गयी थी। प्रशांत, विशाल और उसके फैमिली का बहोत ही धन्यवाद। जल्दी ही सातारा आएंगे। कुछ जगह बाकी है दोस्तो।
ऐसी ही बहुत सारी ट्रिप के लिए कांटेक्ट कीजिये
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Trupti meher : 9930307525.
video link https://youtu.be/b2g7v56vL6s