करें सावन में 12 परम पवित्र ज्योतिर्लिंग दर्शन, महत्व, मंदिर का समय और जाने का साधन!!

Tripoto
Photo of करें सावन में 12 परम पवित्र ज्योतिर्लिंग दर्शन, महत्व, मंदिर का समय और जाने का साधन!! by Nikhil Vidyarthi

फोटो साभार: Pooja Tomar Kshatrani

Photo of करें सावन में 12 परम पवित्र ज्योतिर्लिंग दर्शन, महत्व, मंदिर का समय और जाने का साधन!! by Nikhil Vidyarthi

हिंदू धर्म में भगवान शिव को सृष्टिकर्ता माना जाता है। युगों पहले ब्रह्मा जी और विष्णु जी एक-दूसरे से वर्चस्व के लिए लड़ने लगे। इसी समय महादेव प्रकाश के एक विशाल स्तंभ के रूप में उनके सामने प्रकट हुए। स्तंभ के सिरों को खोजने के लिए ब्रह्मा ऊपर और विष्णु नीचे की ओर गए। विष्णु ने अंत न पाकर हार मान ली जबकि ब्रह्मा जी ने झूठ बोला। शंकर जी खंभे से निकले और ब्रह्मा जी को अनंत काल तक न पूजे जाने की श्राप दे दी। प्रकाश के इसी स्तंभ को 'ज्योतिर्लिंग' कहा जाता है। 800 सीई में हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने वाले भारतीय संत आदि शंकराचार्य ने अपने द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत्रम में 12 सबसे महत्वपूर्ण ज्योतिर्लिंगों का उल्लेख किया है। यहां शिव के 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों की पूरी जानकारी दी गई है। नीचे पढ़ें कहाँ स्थित हैं ये सभी ज्योतिर्लिंग?

भारत में कितने ज्योतिर्लिंग (All Jyotirlingas) हैं?

ऐसा माना जाता है कि मूल रूप से 64 ज्योतिर्लिंग थे, जिनमें से 12 को अत्यधिक शुभ और पवित्र माना जाता है। सभी बारह ज्योतिर्लिंगों को महादेव का अलग-अलग रूप कहा जाता है। इन सभी लिंगों की प्राथमिक छवि "लिंगम" है।

भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंग के नाम और जानकारी:

1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, गिर, गुजरात

2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, श्रीशैलम, आंध्र प्रदेश

3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, उज्जैन, मध्य प्रदेश

4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, खंडवा, मध्य प्रदेश

5. बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, देवघर, झारखंड

6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र

7. रामनाथस्वामी (रामेश्वर) ज्योतिर्लिंग, रामेश्वरम, तमिलनाडु

8. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, द्वारका, गुजरात

9. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, वाराणसी, उत्तर प्रदेश

10. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, नासिक, महाराष्ट्र

11. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड

12. घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, औरंगाबाद, महाराष्ट्र

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, गिर, गुजरात

गुजरात में वेरावल के पास स्थित सोमनाथ पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इसका नाम चंद्रमा के नाम पर रखा गया। जिन्हें सोम के नाम से भी जाना जाता है। सोम देव को उनके ससुर दक्ष ने श्राप दिया था। जिससे उनकी प्रकाशीय शक्ति चली गई। वह इससे छुटकारा पाने के लिए शिव की पूजा करने लगे। शिव की कृपा पाकर चन्द्रमा ने अपना प्रकाश पुनः पा लिया। इसलिए इस नगर को प्रभास भी कहा जाता है। मध्ययुगीन शताब्दियों में बाहरी आक्रमणकारियों ने इस मंदिर पर कई बार हमला किया। वर्तमान मंदिर लाल पीले पत्थरों से बनाया गया है। जिसका उद्घाटन 1951 में आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया था।

सोमनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं को गर्भगृह के अंदर जाने और शिवलिंग छूने पर प्रतिबंध है। आप यांत्रिक उपकरण के माध्यम से उस पर गंगा जल अर्पित कर सकते हैं। अपने साथ मोबाइल, बैग, कैमरा आदि को ले न जाएं। अन्यथा इसे प्रवेश द्वार पर लॉकर में जमा करना होगा। रात के आठ बजे एक घंटे का लाइट एंड साउंड शो जरूर देखें।

सोमनाथ मंदिर खुलने का समय क्या है?

प्रतिदिन सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक। आरती सुबह 7 बजे, दोपहर 12 बजे और शाम 7 बजे होती है। प्रसिद्ध लाइट एंड साउंड शो 'जॉय सोमनाथ' प्रतिदिन शाम 8 से 9 बजे के बीच होता है।

कैसे पहुंचें?

सोमनाथ का निकटतम रेलवे स्टेशन वेरावल रेलवे स्टेशन है। यह भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और सोमनाथ से सिर्फ 5 किमी दूर है। इस दूरी को टैक्सी या कैब से तय किया जा सकता है। वेरावल भारत के सभी महत्वपूर्ण शहरों से सड़क और रेल मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, श्रीशैलम, आंध्र प्रदेश

मल्लिकार्जुन स्वामी दूसरे ज्योतिर्लिंग हैं। आंध्र प्रदेश के दक्षिणी भाग में कृष्णा नदी के किनारे नल्लामाला पहाड़ी जंगलों में श्री शैल पर्वत पर स्थित है। जो हैदराबाद से लगभग 215 किलोमीटर दूर है। इसे "तेलुगू क्षेत्र का काशी" भी कहा जाता है। यह भारत के सबसे बड़े शैव मंदिरों में से एक है। शिव पुराण के अनुसार, भगवान गणेश का विवाह उनके बड़े भाई कार्तिकेय से पहले हुआ था। इस बात से कार्तिकेय नाराज हो गए। वह क्रौंच पर्वत पर चले गए। सभी देवताओं ने उन्हें समझाने की बहुत असफल कोशिश की। अंत में शिव-पार्वती स्वयं उनके पास गए लेकिन कार्तिक जी ने उन्हें भी लौटा दिया। इससे आहत हो कर शिव ने एक ज्योतिर्लिंग का रूप धारण किया। फिर मल्लिकार्जुन नाम से इसी पर्वत पर रहने लगे। मल्लिका का अर्थ है पार्वती, जबकि अर्जुन शिव का एक अन्य नाम है।

श्रीशैलम घूमने का सबसे अच्छा समय मानसून का मौसम है, जब जंगल हरे-भरे होते हैं। इस दौरान आस्था और प्रकृति बराबर धारा में रहते हैं।

मल्लिकार्जुन मंदिर खुलने का समय क्या है?

प्रतिदिन सुबह 4:30 बजे से रात 10 बजे तक मल्लिकार्जुन मंदिर खुला रहता है। यहां दर्शन आप सुबह 6:30 से दोपहर 1 बजे और शाम 6:30 से रात 9 बजे के बीच कर सकते हैं।

कैसे पहुंचें?

श्रीशैलम का निकटतम हवाई अड्डा हैदराबाद में है। जो श्रीशैलम से लगभग 232 किलोमीटर दूर है। हैदराबाद विशाखापत्तनम, बैंगलोर, चेन्नई, भुवनेश्वर, कोलकाता, मुंबई और दिल्ली तथा देश के कई अन्य शहरों से भी जुड़ा हुआ है। हवाई अड्डे पर टैक्सी कार और कॉल टैक्सी आसानी से मिल जाते हैं। वही अगर रेल से जाना चाहते हैं तो श्रीशैलम का निकटतम रेलवे स्टेशन मार्कापुर रोड है। जो गुंटूर-हुबली मीटर गेज रेल मार्ग पर है। रेलवे स्टेशन से कैब और कॉल टैक्सी उपलब्ध हैं। सड़क परिवहन के द्वारा भी यह तीर्थ श्रीशैलम देवस्थानम राज्य परिवहन की बसों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। श्रीशैलम बस द्वारा महबूबनगर, हैदराबाद, देवोरकोंडा, महानंदी, अनंतपुर, चित्रदुर्ग, गुंटूर, मंत्रालयम, तिरुपति और विजयवाड़ा से जुड़ी हुई है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, उज्जैन, मध्य प्रदेश

महाकालेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग मध्य भारत का प्रमुख तीर्थ स्थान है। इस ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कई किंवदंतियाँ हैं। जिसके अनुसार एक पांच वर्षीय बालक श्रीकर था, जो उज्जैन के राजा चंद्रसेन की भगवान शिव की भक्ति से प्रभावित था। श्रीकर एक पत्थर को शिव के रूप में पूजा करने लगे। कई लोगों ने तरह-तरह से उन्हें मनाने की कोशिश की, लेकिन उनकी भक्ति बढ़ती चली गई। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने एक ज्योतिर्लिंग का रूप धर कर महाकाल वन में वास करने लगे।

महाकालेश्वर मंदिर कब खुलता है?

यह मंदिर सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक खुला रहता है। दर्शन सुबह 8 बजे से 10 बजे फिर सुबह 10:30 से शाम 5 बजे, शाम 6 बजे से 7 और रात 8 से 11 बजे तक दर्शन कर सकते हैं।

कैसे पहुंचें?

उज्जैन रेलवे स्टेशन है और निकटतम हवाई अड्डा इंदौर में है। दोनों ही जगह से मंदिर के लिए टैक्सी और कैब किराए पर ले सकते हैं। उज्जैन में ऑटो रिक्शा शहर के अंदर घूमने के लिए सस्ता विकल्प हैं। महाकालेश्वर मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च है। अप्रैल से ले कर जून के बीच यहाँ बहुत गर्मी पड़ती है।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, खंडवा, मध्य प्रदेश

ओंकारेश्वर से समझ सकते हैं कि जो ओम के आकार का है। इस शब्द का मतलब होता है "ॐ के आकार का ईश्वर"! हिंदू शास्त्रों के अनुसार, भगवान और दानवों के बीच एक बड़े महायुद्ध में दानवों की जीत हुई। जिससे देवता बहुत चिंतित थे। उन्होंने भगवान शिव से मदद के लिए प्रार्थना की। खुश होकर भगवान शिव ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और दानवों को पराजित किया। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी पर मांधाता नामक एक ॐ आकार के द्वीप पर स्थित है। यह इंदौर से लगभग 80 किलोमीटर दूर है। बहुत सारे भक्त ज्योतिर्लिंग के दर्शन से पहले मांधाता द्वीप की पांच किमी लंबी परिक्रमा भी करते हैं।

मंदिर खुलने का समय क्या है?

ॐकारेश्वर मंदिर सप्ताह के सभी दिन सुबह 5 से रात 10 बजे तक खुला रहता है। दर्शन सुबह 5:30 बजे से दोपहर 12:20 बजे और शाम 4 बजे से 8:30 बजे के बीच किया जा सकता है।

कैसे पहुंचें?

इंदौर ओंकारेश्वर रोड पर स्थित निकटतम रेलवे स्टेशन और पारगमन बिंदु है। इंदौर का रेलवे स्टेशन यहां से 77 किमी दूर है। यहां से 77 किमी दूर इंदौर हवाई अड्डा और उज्जैन (133 किमी) ओंकारेश्वर के निकटतम हवाई अड्डे हैं। इंदौर, उज्जैन और खंडवा से ओंकारेश्वर के लिए बसें भी चलती हैं।

बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, देवघर, झारखंड

बैद्यनाथ मंदिर को वैजनाथ या वैद्यनाथ तथा बाबाधाम के नाम से भी जाना जाता है। यह झारखंड के दुमका में देवघर के पास स्थित है। लोगों का मानना है कि यहां सच्ची श्रद्धा से पूजा करने से व्यक्ति को सभी चिंताओं और दुखों से छुटकारा मिल जाता है। इस ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। कथाओं के अनुसार, रावण ने अपने तप से भगवान शिव को खुश करके उन्हें श्रीलंका आने और उसे अजेय बनाने के लिए कहा। रावण ने बदले में बारह ज्योतिर्लिंगों को इस शर्त पर तैयार हो लंका ले जाने लगा कि यदि इसे जमीन पर रखा गया तो यह अनंत काल तक उस स्थान पर बना रहेगा। इसे लंका ले जाते समय, भगवान वरुण ने रावण के शरीर में प्रवेश किया और उसे लघुशंका महसूस हुई। भगवान विष्णु एक पथिक के रूप में आए और शिवलिंग को पकड़े रहने की पेशकश की। हालांकि, विष्णु ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया। शर्त अनुसार लिंग वही स्थापित हो गया। यहां सालों भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

सावन, भादो और आश्विन में यहां लाखों-करोड़ों भक्तों की भीड़ उमड़ती है। बिहार और झारखंड सरकार के द्वारा सावन-भादों में श्रावण मेला का आयोजन किया जाता है। जिसमें भक्त भागलपुर के सुल्तानगंज से गंगा जल ले कर बाबाधाम की 90 किमी पैदल यात्रा करते हैं।

मंदिर खुलने का समय क्या है?

मंदिर प्रत्येक दिन सुबह 4 बजे से दोपहर 3:30 बजे तक और शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। महा शिवरात्रि, सावन मेला, भादो समेत कई शुभ धार्मिक अवसरों के दौरान दर्शन का समय बढ़ा दिया जाता है।

कैसे पहुंचें?

वैद्यनाथ धाम का निकटतम रेलवे स्टेशन जसीडीह जंक्शन है। इस स्टेशन तक रांची से पहुंचा जा सकता है। साथ ही हावड़ा मार्ग में स्थित होने के कारण देश के लगभग सभी कोनों से ट्रेन मार्ग से जुड़ा हुआ है। जसीडीह स्टेशन से मंदिर परिसर सिर्फ 15 किमी दूर है और ऑटो या कैब से पहुंचा जा सकता है।

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के सह्याद्री क्षेत्र में स्थित है। यह पुणे से 110 किलोमीटर दूर स्थित शिव का छठा ज्योतिर्लिंग है। यह भीमा नदी के तट पर स्थित है और यह इस नदी का स्रोत भी माना जाता है। इस ज्योतिर्लिंग का संबंध कुंभकर्ण के पुत्र भीमा से जुड़ा है। दरअसल भीमा को जब पता चला कि वह कुंभकर्ण का पुत्र है, तो उसने भगवान विष्णु से बदला लेने की ठानी। उन्होंने भगवान ब्रह्मा को खुश करने के लिए तपस्या की और उसे अपार शक्ति मिली। शक्ति पाकर उसने संसार में हाहाकार मचाना शुरू कर दिया। भगवान शिव के परम भक्त कामरूपेश्वर को परास्त कर कालकोठरी में डाल दिया। इससे अन्य देवता नाराज हो गए और शिव से पृथ्वी पर उतर कर अत्याचार को खत्म करने की विनती की। अंततः शिव जी ने उसे भस्म कर दिया। अब सभी देवताओं ने शिव जी से उस स्थान को अपना निवास बनाने का अनुरोध किया। तब महादेव स्वयं को भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट किया। माना जाता है कि युद्ध के बाद शिव के शरीर से निकले पसीने से भीमा नदी का निर्माण हुआ था। मराठा शैली में यह मंदिर काले पत्थरों से बना है। यहां आप गर्भगृह में प्रवेश और ज्योतिर्लिंग को छू कर आशीर्वाद ले सकते हैं।

मंदिर खुलने का समय क्या है?

प्रतिदिन सुबह 4:30 बजे से दोपहर 12 बजे तक और शाम 4 बजे से रात 9:30 बजे तक मंदिर का कपाट खुलता है। दर्शन सुबह 5 बजे शुरू होता है और रात 9:30 बजे तक चलता है। दोपहर में मध्याहन आरती के दौरान 45 मिनट के लिए दर्शन रोक दिए जाते हैं।

कैसे पहुंचें?

भीमाशंकर का निकटतम रेलवे स्टेशन कर्जत स्टेशन है। जिसकी दूरी 168 किलोमीटर है। कर्जत से भीमाशंकर की दूरी को बस या रिक्शा से तय किया जा सकता है। यह पुणे से हर आधे घंटे में चलने वाली कई राज्य परिवहन निगम की बसों के द्वारा भी जुड़ा हुआ है। जिससे कनेक्टिविटी की कोई समस्या नहीं है।

रामेश्वर ज्योतिर्लिंग, तमिलनाडु

रामेश्वरम तमिलनाडु (भारत) के पांबन द्वीप में स्थित एक छोटा शहर है। भगवान राम ने रावण से युद्ध छेड़ने के लिए यहीं से श्रीलंका तक एक पुल का निर्माण किया था। जिसे रामसेतु कहा जाता है। द्रविड़ शैली के रामनाथस्वामी मंदिर में दो ज्योतिर्लिंग हैं; एक भगवान राम द्वारा बनाया गया। दूसरा भगवान हनुमान द्वारा काशी से लाया गया। यह काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की प्रतिकृति है। यहां श्रद्धालु सबसे पहले मंदिर परिसर में मौजूद बाईस जलाशयों में स्नान करते हैं। इसके बाद ज्योतिर्लिंग के प्रति श्रद्धा अर्पित करते हैं। यह मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए खूब लोकप्रिय रहा है।

रामेश्वरम में एक और महत्वपूर्ण स्थल कोथंडरामस्वामी मंदिर है। जहां राम और रावण के भाई विभीषण की पहली मुलाकात हुई थी।

मंदिर खुलने का समय क्या है?

दर्शन हेतु सुबह 5 बजे से ले कर दोपहर 1 बजे तक और दोपहर 3 बजे से रात 9 बजे तक। आम भक्तों के लिए रात 8 बजे तक ही दर्शन की अनुमति है।

कैसे पहुंचें?

रामेश्वरम का निकटतम हवाई अड्डा मदुरै (163 किलोमीटर) में है। यह चेन्नई सहित कई प्रमुख दक्षिण भारतीय शहरों से रेलवे द्वारा भी जुड़ा हुआ है। यहां तक चेन्नई, मदुरै और कन्याकुमारी से सीधी ट्रेनों के अलावा सड़क मार्ग से भी साधन उपलब्ध हैं।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, गुजरात

नागेश्वर मंदिर गुजरात में सौराष्ट्र के तट पर गोमती द्वारका और बैत द्वारका द्वीप के बीच स्थित है। इसे नागनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत के प्रमुख सात हिंदू पवित्र तीरथों में से एक है। इस ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है क्योंकि यह सभी प्रकार के विष से रक्षा करता है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस मंदिर में पूजा करते हैं, वे सभी विषों से मुक्त हो जाते हैं। मंदिर गुलाबी पत्थर से बना है। भक्तों को गर्भगृह के अंदर जाने और केवल पारंपरिक पोशाक में इस लिंग पर अभिषेक करने की अनुमति है। मंदिर परिसर में शिव की एक विशाल मूर्ति है। जिसमें वह बैठे हुए हैं। मंदिर परिसर में एक विशाल पीपल के पेड़ के नीचे शनि की एक मूर्ति की भी पूजा की जाती है।

मंदिर खुलने का समय क्या है?

सप्ताह के सभी दिन सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक यहां दर्शन किया जा सकता है। भक्त सुबह 6 बजे से दोपहर 12:30 बजे और शाम 5 बजे से रात 9 बजे के बीच दर्शन के लिए जा सकते हैं।

कैसे पहुंचें?

नागेश्वर धाम के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन द्वारका स्टेशन और वेरावल स्टेशन हैं। जामनगर हवाई अड्डा (45 किमी) द्वारका के लिए निकटतम हवाई अड्डा है। जामनगर से द्वारका आ कर ज्योतिर्लिंग मंदिर पहुंचा जा सकता है।

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, वाराणसी, उत्तर प्रदेश

यह ज्योतिर्लिंग काशी (वाराणसी) में स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग द्वादश ज्योतिर्लिंग में सबसे महत्वपूर्ण है। गोस्वामी तुलसीदास, आदि शंकराचार्य, गुरु नानक, स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, संत कबीर आदि जैसे सभी महत्वपूर्ण संतों ने इस मंदिर का दौरा किया है। वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार महेश्वर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। राजा रणजीत सिंह ने अठारहवीं शताब्दी में मंदिर के दो गुंबदों को सोने से मढ़वाया था। मंदिर में प्रति दिन करीब पांच से दस हजार श्रद्धालु और भक्त आते हैं। महाशिवरात्रि जैसे कुछ शुभ दिनों में यह संख्या लाखों में पहुंच जाती है। यहां सुरक्षा के कड़े इंतजाम हैं और मंदिर के बाहर मोबाइल फोन और कैमरे जमा करना पड़ता है।

मंदिर खुलने का समय क्या है?

काशी विश्वनाथ मंदिर प्रतिदिन सुबह 2:30 बजे से रात 11 बजे तक के लिए खुलता है। दैनिक पूजा अनुष्ठान और दर्शन समय के लिए नीचे पढ़ें।

मंगल आरती: सुबह के 3 बजे से 4 बजे तक

सर्व दर्शन: सुबह के 4 बजे से 11 बजे तक

भोग आरती: दिन के 11:15 से दोपहर 12:20 बजे तक

मुफ्त दर्शन: दोपहर 12:20 से शाम 7 बजे तक

संध्या आरती: शाम 7 बजे से रात के 8:15 तक

शृंगार आरती: रात्री 9 से 10:15 तक

शयन आरती: रात्रि 10:30 से 11:00 बजे तक

कैसे पहुंचें?

काशी रेलवे स्टेशन सबसे नजदीकी स्टेशन है। यहाँ से काशी विश्वनाथ मंदिर की दूरी लगभग 3.2 किलोमीटर है। काशी स्टेशन से ऑटो या टैक्सी ले कर आसानी से काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंच सकते है। वाराणसी जंक्शन से इसकी दूरी 4 किलोमीटर है। दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन (पूर्व में मुगलसराय) से यहाँ की दूरी करीब 14 किमी है और 1 घंटे में ऑटो, टैक्सी से पहुँच सकते हैं।

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, नासिक, महाराष्ट्र

त्र्यंबकेश्वर महाराष्ट्र के नासिक के पास गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। नासिक में हर 12 साल में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। हिंदुओं का मानना है कि महाराष्ट्र का यह ज्योतिर्लिंग सबकी मनोकामनाएं पूरी करता है। त्र्यंबकेश्वर कथा में कहा गया है कि शिवजी सहित तीन करोड़ हिंदू देवताओं का पूरा देवालय गौतम ऋषि और उनकी पत्नी अहिल्या की महान तपस्या देखने के लिए प्रकट हुए। शिव जी ने न केवल उन्हें एक ज्योतिर्लिंग प्रदान किया, बल्कि अपनी जटाओं से गंगा की एक धारा भी निकाली। जिसे अब दक्षिण की गोदावरी के रूप में जाना जाता है। अगर आपको रुद्राक्ष धारण करना हो तो दोस्तों यहाँ पर असली रुद्राक्ष भी बेचे जाते हैं।

मंदिर खुलने का समय क्या है?

नासिक स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में भक्तों के दर्शन करने के लिए सप्ताह के सभी दिन सुबह 5:30 बजे से रात 9 बजे तक कपाट खुले रहते हैं।

कैसे पहुंचें?

त्र्यंबकेश्वर पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा छत्रपति शिवाजी महाराज अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, मुंबई है। निकटतम रेलवे स्टेशन इगतपुरी रेलवे स्टेशन है। नासिक में स्थित त्र्यंबकेश्वर तक सड़क मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है। बसें यहां परिवहन का सर्वोत्तम साधन हैं। वे हर आधे घंटे में नासिक सीबीएस बस स्टैंड से चलती हैं। यानि आपको इस तीर्थ तक पहुंचने के लिए दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा।

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तराखंड

केदारनाथ मंदिर, 12000 फीट की ऊंचाई पर उत्तराखंड में रुद्र हिमालय श्रृंखला पर स्थित है। भारत के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। केदारनाथ सभी ज्योतिर्लिंगों में सबसे ऊंचा और सबसे दूर भी है। केदार तीर्थ चमोली जिले में स्थित है। इस मंदिर का नाम सतयुग के एक शासक राजा केदार के नाम पर रखा गया है। यह मंदिर साल में केवल छह महीने के लिए ही खुला रहता है। यहां जाने से पहले सरकारी पंजीकरण कराना पड़ता है। इसके लिए सरकारें विज्ञापन भी करती है।

केदारनाथ के लिए कोई मोटर योग्य सड़क नहीं है। मंदिर तक पहुँचने के लिए या तो गौरीकुंड से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है या घोड़े की सवारी करनी पड़ती है। दूसरा रास्ता हेलीकॉप्टर के जरिए है। मंदिर बर्फ से ढकी चोटियों से घिरा हुआ है। जो श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर लेते हैं। भगवान विष्णु के दो अवतार नर और नारायण की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इस ज्योतिर्लिंग रूप में केदारनाथ में स्थायी रहने लगे।

लोगों का मानना है कि यहां दर्शन करने से सभी मनोकामना पूरी होती है। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने यहां तपस्या की थी। परिसर के पास में ही एक मंदिर आदि शंकराचार्य को भी समर्पित है। केदारनाथ मंदिर के बाहर मंदिर के रक्षक देवता भैरवनाथ का मंदिर है। वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद भक्तों के लिए इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से पहले अनुमति लेना अनिवार्य हो गया है।

मंदिर खुलने का समय क्या है?

केदारधाम मंदिर सुबह 4 बजे से ले कर दोपहर 12 बजे तक और फिर दोपहर 3 से रात 9 बजे तक खुला रहता है। समय में बदलाव होती रहती है जिसकी सूचना मंदिर प्रबंधन और सरकार देती है।

कैसे पहुंचें: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में जॉली ग्रांट एयरपोर्ट निकटतम हवाई अड्डा है। ऋषिकेश केदारनाथ का निकटतम रेलवे स्टेशन है। निकटतम सड़क संपर्क गौरकुंड तक है, जहां से आप केदारनाथ तक पैदल यात्रा कठिन चढ़ाई करके पहुंच सकते हैं।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, औरंगाबाद

घृष्णेश्वर मंदिर दौलताबाद से 11 किमी और महाराष्ट्र के औरंगाबाद से 30 किमी दूर एलोरा गुफाओं के पास वेरुल गांव में स्थित है। यह मंदिर अहिल्याबाई होल्कर द्वारा बनवाया गया था जिन्होंने वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर का भी पुनर्निर्माण किया था। घृष्णेश्वर मंदिर को कुसुमेश्वर, घुश्मेश्वर, ग्रुश्मेश्वर और घृष्णेश्वर जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है।

मराठा शैली में बना यह मंदिर लाल और काले पत्थर के काम के कारण बेहद खूबसूरत दिखता है। मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशी जटिल है और देखने लायक है। घृष्णेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के अंदरूनी हिस्सों में सबसे दूरस्थ ज्योतिर्लिंगों में से एक है और छुट्टियों और शुभ दिनों को छोड़कर बहुत कम लोग आते हैं। यदि आप शांति से पूजा करना चाहते हैं, तो यह सबसे अच्छा है क्योंकि यह बड़ी भीड़ से बचा हुआ है।

मंदिर खुलने का समय क्या है?

पूजा के लिए सुबह 5:30 बजे से रात 9:30 बजे के बीच मंदिर खुले रहते हैं। सावन महीने के दौरान दर्शन दोपहर 3 बजे से रात 11 बजे के बीच होता है। आमतौर पर दर्शन में लगभग कुछ घंटे लगते हैं। श्रावण के महीने में यहाँ भारी भीड़ होती है और दर्शन करने में 5 घंटे भी लग सकते हैं।

कैसे पहुंचें?

आप भारत के अन्य हिस्सों से ट्रेन या फ्लाइट द्वारा औरंगाबाद पहुंच सकते हैं। दिल्ली से इस शहर के लिए सीधी ट्रेनें और उड़ानें हैं। औरंगाबाद घृष्णेश्वर से 30 किमी दूर है और यह दूरी सड़क मार्ग से, टैक्सी से तय की जा सकती है। यहां पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका औरंगाबाद से कैब लेना ही है।

----

क्या आपने हाल में कोई यात्रा की है? अपने अनुभव को शेयर करने के लिए यहाँ क्लिक करें

बांग्ला और गुजराती में सफ़रनामे पढ़ने और साझा करने के लिए Tripoto বাংলা और Tripoto ગુજરાતી फॉलो करें

More By This Author

Further Reads