भूटान की बाइक से यात्रा -8

Tripoto
Photo of भूटान की बाइक से यात्रा -8 by Rishabh Bharawa

‘पारो’ शहर मे हमारी होटल शहर से पांच किलोमीटर दूर थी।हम यहाँ कुल दो रात रुके थे और दोनों बार रात की एक बजे तक हम बाइक्स लेके इधर उधर घूमते थे। छोटे छोटे रेस्टॉरेंट एवं क्लब मे यहाँ सभी जगह लाइव म्यूजिक का एन्जॉय भी ले सकते थे।

पारो मे सबसे एडवेंचर वाली अगर कोई जगह है तो वो हैं Paro Taktsang जिसको tiger 's nest भी बोलते हैं। पारो शहर से 10 km दूर एक पहाड़ी के बीच एक बड़े घोसले की तरह दिखाई देने वाले इस मोनेस्ट्री तक पहुंचने के लिए काफी खतरनाक पैदल ट्रेक पूरा करके जाना पड़ता हैं। सुबह जल्दी उठा कर हमको ट्रैकिंग गियर्स के साथ तैयार रहने को बोल दिया गया एवं एजेंसी की तरफ से सभी को एक जैसे टीशर्ट पहन कर ही ट्रेक करने को बोला।

Photo of भूटान की बाइक से यात्रा -8 by Rishabh Bharawa

नाश्ता कर हम निकल पड़े कुछ पहाड़ो से होते हुए मोनेस्ट्री की तरफ।एक बड़े से मैदान मे बाइक खड़ी कर टिकट विंडो से 500 rs प्रति टिकट की दर से टिकट लिया।टिकट विंडो पर हमे बताया गया कि यह ट्रेक 12-13 km का आना और जाना मिला कर रहेगा। सभी अपने हिसाब से ट्रेक पूरा करके अपने हिसाब से वापस होटल पहुंच सकते थे। बारिश का अनुमान तो गहरे काले बादलो को देख कर हो ही गया था।

ट्रेक से ठीक पहले एक छोटा सा बाजार था जहां से यादगार के तौर पर यहाँ से जुडी चीजों की खरीदारी की जा सकती थी। जहा से सभी को ट्रैकिंग के लिए छड़ी खरीदने को बोल दिया गया। मुझे और पांडेय जी को पूर्व काफी ट्रेक का अनुभव था तो हम दोनों बिना छड़ी के ही ट्रेक करना उचित समझ रहे थे इसीलिए हमने छड़ी नहीं ली। इसी छोटे से बाजार से होकर हम आगे बढ़े। आगे बढ़ते ही घना और शांत जंगल शुरू हो गया। जहा से कुछ ही आगे एक झरना आया जिसके पास कई प्रार्थना ध्वज एवं चक्र थे। यहाँ से आगे चढ़ाई शुरू होने वाली थी। सभी को पता था कि अब आगे सभी बिछड़ जायेंगे तो यही हम सब का एक ग्रुप फोटो करा दिया गया। कुछ चंद कदम चढ़ते ही सबके पैर डगमगाने लगे। क्योकि कल की बारिश की वजह से सारा ट्रेक कीचड़ और पानी से भरा हुआ था। चढ़ाई भी काफी सीधी थी जिससे पैर फिसलते ही कोई भी सीधा कीचड़ मे गिरे।

Photo of भूटान की बाइक से यात्रा -8 by Rishabh Bharawa
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हम दो ग्रुप मे बंट गए। एक ग्रुप के साथ पांडे जी हो गए और दूसरे ग्रूप जिसमे मेरे साथ डी जे के अलावा 6 सहयात्री हो लिए। डी जे को यह ट्रेक पूरा करवाना मेरे लिए बहुत बड़ा चेलेंज हो गया। क्योकि शुरू के एक किलोमीटर मे ही कई बार गिर जाने के कारण उसका हौसला टूट गया और अब वो पूरा मुझ पर निर्भर हो गया। बाकी लोग आगे बढ़ लिए। हर 5 5 मिनट मे कठिन चढ़ाई से उसकी सासे फूलने लगी तो हम दोनों करीब हर 10 मिनट चढ़ कर 5 मिनट आराम करने लगे।मैं ,अब डी जे के साथ सबसे पीछे रह गया।

कुछ दो किलोमीटर चढ़ने पर हमे एक भारतीय दम्पति मिली जिनके बच्चे काफी आगे जा चुके थे। उन्होंने मुझे रोका और 2 टिकट्स देकर अपने बच्चो के नाम बताये और कहा कि वो अब सांस की प्रॉब्लम की वजह से चढ़ाई नहीं कर सकते तो उनके बच्चो तक मुझे टिकट पहुँचाना था।उन्होंने मुझे टिकट दिए और उनके साथ वापस निचे जाने के लिए डी जे भी जिद्द करने लग गया। थोड़ा इमोशनल अत्याचार कर मेने उसको रोक दिया और चढ़ने के लिए मोटीवेट किया। करीब आधे किलोमीटर बाद हमे दो इंडियन लड़किया मिली जिसमे से एक अपने साथ ब्लूटूथ स्पीकर मे लाउड म्यूजिक चला कर चढ़ रही थी। दूसरी लड़की उसको मोटीवेट करके ट्रेक मे मदद कर रही थी।डी जे के शरीर मे तो जान भी नहीं बची थी। दोनों लड़कियों से बात की तो उनमे से एक थी एक सोलो ट्रैवलर एवं ब्लॉगर थी प्रियंका,दूसरी उसके साथ थी । दोनों दिल्ली से ही थी और आपस मे इस ट्रेक पर ही मिली थी। दूसरी लड़की मणिका के साथ उसके दो भाई थे जो कि कुछ कदम ही आगे थे वो थे । उन दोनों की हालत भी डी जे जैसी ही हो रही थी।हमउम्र होने के कारण हम छहो आपस में कुछ ही देर मे घुल मिल गए।

Photo of भूटान की बाइक से यात्रा -8 by Rishabh Bharawa
Photo of भूटान की बाइक से यात्रा -8 by Rishabh Bharawa

अब हमारी सबकी जिम्मेदारी थी कि आपस मे पुरे ट्रेक पर एक दूसरे की मदद करके ट्रेक बिना किसी भी प्रकार के नुक्सान के पूरा करे। हम बारी बारी हाथ पकड़ पकड़ कठिन जगहों से निकालने लगे। अब बारिश भी चालू हो गयी। मेरे एक साथ से मुझे अब कैमरे को भी ढ़क कर रखना था क्योकि पॉलीथिन भूटान मे बेन होने के कारण मै उसका इस्तेमाल नहीं कर सकता था। मेने कैमरे को अपने पहने हुए रेनकोट के अंदर छिपा लिया अब बस एक हाथ से मुझे बहते हुए पानी को कैमरा बैग मे जाने से रोकना था।

बारिश बढ़ने से अब ये चारो लोगो का गिरना और तेजी से शुरू हो गया। किसी भी एक के कीचड़ मे गिर जाने पर दुसरो का हस हस कर हाल खराब हो जाता था। हम जिस पहाड़ी से मोनेस्ट्री की तरफ बढ़ रहे थे ,वो यहाँ से अब दूसरी और स्थित पहाड़ी पर दिखाई देने लगी। जहा से ये दिखाई देने लगती है वही पर एक फोटो शूट पॉइंट भी बना हुआ था और साथ साथ एक केंटीन भी बना हुआ था। सभीने कैंटीन मे चाय बिस्किट ले कर ट्रेक चालू किया। इस कैंटीन के बाद के बचे हुए डेढ़ किलोमीटर के रास्ते में अब केवल सीढिया थी ,जो सीधे एक विशाल झरने से होती हुई मोनेस्ट्री ले जाती हैं। इस 6 किलोमीटर को पूरा कर हम 4 घंटे मे पहुंच गए मोनेस्ट्री की मुख्य इमारत के पास।

तीनो भाई बहन किसी का इंतजार करने लगे तो मेने उनको बताया कि उनके टिकट मेरे पास है। दरअसल ये उस दम्पति के ही बच्चे थे जिन्होंने हमे टिकट्स अपने बच्चो तक पहुचाने को दिए थे।लॉकर रूम मे अपने कैमरे एवं छड़ी रख हम टिकट्स चेक करवाने अंदर गए तो पता चला कि मैंने मेरा टिकट कही गिरा दिया। मुझे अंदर प्रवेश से मना कर दिया। बाकी पांचो अब मुझे सुना भी रहे थे और मेरी कंडीशन पर हस भी रहे थे। मेने वहा टिकट चेकर्स से पूछा कि क्या यहाँ से टिकट खरीद सकते है तो उन्होंने बताया कि ऐसी कोई सुविधा हैं। उनलोगो ने वहा के ऑफिसर्स से कई देर तक मेरे लिए मिन्नतें की ,लेकिन किसी ने भी मुझे प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी।

To be continued….