मै अपने परिवार और एक मित्र के परिवार तथा कुछ परिचितों के साथ निकला हुआ था सोमनाथ ,द्वारका ,दीव की और। सबसे पहले हम मेरे शहर भीलवाड़ा से पहुंचे अहमदाबाद काइट फेस्टिवल मे। इस साल फेस्टिवल का 30वां साल था ।रिवर फ्रंट पर आयोजित इस काइट फेस्टिवल का मुख्य आकर्षण होता हैं अलग-अलग शेप, साइज और कलर में दिखने वाली लाखों पतंगें।इस फेस्टिवल में सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के पतंगबाजी में महारथ हासिल कर चुके लोग शामिल होते हैं। साथ ही इस महोत्सव में बेस्ट पतंग की प्रतियोगिता का आयोजन भी होता है।यहाँ प्रवेश के लिए कोई टिकट भी नहीं होता हैं। करीब 3 घंटे यहाँ गुजार कर हम सीधे द्वारका ,बेट द्वारका ,सोमनाथ ,दीव मे छह दिन गुजार कर अंतिम दिन हम गए सोमनाथ से गिर नेशनल पार्क की और।
गिर नेशनल पार्क एशियाई बब्बर शेरो के लिए प्रसिद्द हैं। इसमे प्रवेश पाने के लिए करीब 15 दिन पहले ही ऑनलाइन बुकिंग करनी होती हैं जो की आप girlion.gujrat.gov.in से करवा सकते हैं।बुकिंग करवाने से पहले आपके पास सभी यात्रियों का आधार कार्ड होना जरुरी होता हैं।एक दिन मे यहाँ 3 स्लॉट चलते है - सुबह 6.45 ,8.30 और दोपहर 3 बजे। वैसे सबसे अच्छा स्लॉट सबसे जल्दी वाला माना जाता है क्योकि सुबह सुबह शांत वातावरण मे शेर दिखने के चांस काफी ज्यादा होते हैं। यहाँ एक खुली जीप मे ज्यादा से ज्यादा छह लोग बैठ के जा सकते हैं जिसका किराया 4800rs प्रति जीप सफारी बुकिंग के साथ ही ऑनलाइन जमा करवाना होता हैं।
हम यहाँ से पहले दो रात सोमनाथ के किसी कार्यक्रम मे रुके हुए थे। सोमनाथ से इसकी दूरी करीब 70 km हैं तो मेने 8.30 के स्लॉट मे हम 12 लोगो के लिए दो जीप बुक करवाई हुई थी। अंतिम समय पर हमारे साथ 2 लोग और सोमनाथ से गिर तक हमारी गाडी मे आ गए थे उन्होंने सोचा कि कुछ पेमेंट ज्यादा दे कर वही टिकट ले लेंगे और हमारे साथ घूम आएंगे। लेकिन लाख कोशिश के बाद भी वहा बिना बुकिंग वालो को एंट्री नहीं दी जाती हैं और उन दोनों को पास ही स्थित देवलिया पार्क मे जाना पड़ा।
देवलिया पार्क गिर नेशनल पार्क से कुछ ही दूरी पर बना एक छोटा सा पार्क है जिसमे कुछ शेरो को छोड़ा गया है , एक तरह से ये अपने आप मे बड़ा सा चिड़ियाघर मान सकते है बस फर्क यह है कि इसमें शेरो को पिंजरे मे नहीं रखा गया हैं।जिन लोगो को गिर नेशनल पार्क मे एंट्री नहीं मिल पाती ये शेर नहीं दिख पाता तो उनके लिए शेर देखने के लिए देवलिया पार्क एक उचित जगह है जहा एक बस मे बैठकर निश्चित जगहों पर छोड़े हुए शेरो को दिखा दिया जाता है। जहा गिर पार्क मे शेर देखने के चांस 50 प्रतिशत होते है वही देवलिया पार्क में करीब यह 85 फीसदी चांस होते हैं। इसके अलावा यह काफी सस्ता भी हैं।
लेकिन एडवेंचर की दृष्टि से और जंगल सफारी का असली मजा तो गिर नेशनल पार्क मे ही मिलता हैं। हम लोग सोमनाथ से करीब डेढ़ घंटे मे सुबह 7 बजे शासन गिर पहुंच चुके थे।समुद्री क्षेत्र से सीधे हम इधर आये तो हमे लगा यहा भी ठंड काफी कम मिलेगी लेकिन सुबह सुबह तो यहा भी सबके गर्म कपड़े बाहर निकल ही गए। सुबह सुबह ठंड मे कुछ फाफड़े और खमण का नाश्ता करने के बाद हमने पार्क मे प्रवेश किया। पार्क का प्रवेश द्वार काफी आकर्षक बना हुआ था जिसके ऊपर साप और चीते के असली दिखने वाले पुतले लगे हुए थे। अंदर प्रवेश होते ही टिकट विंडो पर सभीके आधार कार्ड चेक करके 12 लोगो को दो जीपो मे बिठाया गया। भीड़ होने से इस प्रक्रिया मे करीब एक घंटा लग गया था। हर जीप मे 6 लोगो के अलावा एक ड्राइवर और एक गाइड साथ होता हैं। दो पानी की बड़ी बोतले भी साथ में दी गयी और शुरू हो गया हमारा जंगल एडवेंचर।
सूने खतरनाक घने जंगलो से दोनों गाड़ियों को साथ ही रखने के लिए एक ही रूट दिया गया। दरअसल यहाँ अलग अलग जीप को अलग अलग रूट दिए जाते है ,जिसकी किस्मत अच्छी होती है उन्हें शेर दिख भी जाता हैं। हमारे गाइड ने हमे बताया कि हमारे वाले स्लॉट मे शेर बहुत ही कम चांस मे दीखते है तो हमे भी बड़ी अच्छी किस्मत होने पर ही दिखेगा वरना हमे ऐसे ही लौटना पड़ेगा। पहले कुछ किलोमीटर तो कुछ ग्रामीण बस्तियों से ले जाते हुए हमे जंगल की तरफ बढ़ाया गया जहा कई निवासी खेती करते हुए दिखाई दे रहे थे उनके आस पास कई जगह खूब मोर और अन्य पक्षी दिखाई दे रहे थे। जैसे ही हम गांव से आगे बढे ,अचानक शुरुवात मे ही एक तेंदुआ भागता हुआ नजर आया। वो केवल चंद सेकंड मे हमारी आँखों के सामने से घने जंगल मे ओझल हो गया। गाइड ने बताया कि आप लोगो ने कम से कम तेंदुआ दिख लिया तो भी पेसे वसुल हो गए अब आपके।
अब जंगल मे गाडी की रफ़्तार करीब 20 km प्रति घंटा की हो गयी। सब ग्रामीण वातावरण खत्म। दूर दूर तक केवल पक्षियों एवं जंगली कीटो की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी। गाइड ने कहा सब नजरे चारो तरफ चौकस रखना। कही भी किसी भी समय कोई भी जानवर दिख सकता हैं। जीपो मे भी सायलेंसर लगा होने से उनमे से चलने की आवाज़ नहीं आ रही थी। अचानक एक जगह कुछ झाड़ियों के पीछे उथल पुथल की आवाज़ सुनाई दी ,ड्राइवर ने तेजी से ब्रेक मारा। देखा तो शेर तो नहीं कुछ साम्भर वहा मौजूद थे। ये करीब 5 साम्भर एक साथ थे। कुछ देर उनके फोटो ले के हम वहा से आगे बढे ,तो जगह जगह हिरन रास्तो पर ,जंगल के बीच या पेड़ की छाव मे अटखेलिया करते हुए मिले। कई जगह तो हमारी गाडी के काफी करीब आ गए परन्तु उनके छूने के लिए ड्राइवर ने मना किया हुआ था। गाइड ने बताया कि किसी भी अवस्था मे हमे गाडी से निचे पैर भी नहीं रखने है अन्यथा कोई भी जानवर हमला कही से भी आकर कर सकता हैं।
फिर कुछ देर कई दूरी तक अलग अलग जगह झाड़ियों मे खलबली देख कर कई जगह गाडी हमने रोकी ,लेकिन हर जगह हिरन ,सांभर या मोर ही हमे मिले। फिर एक जगह हम पहुंचे जंगल के एकदम बीचोबीच एक बस्ती मे। ड्राइवर ने उतर कर वहा दूसरी अन्य जीपो के ड्राइवर से पूछा की क्या किसी को कही कुछ दिखा लेकिन किसी को आज कुछ नहीं दिखाई दिया था। तभी गाडी मे बैठे बैठे मेने गांव के कुछ लोगो को देखा। पहले तो मेने ऐसे ही टाल दिया लेकिन जब कई औरतो और बच्चो को देखा तो रहा नहीं गया तो मुझे कुछ अजीबोगरीब लगा , मेने गाइड से पूछा की ये लोग अफ्रीका के लोगो जैसे क्यों दिख रहे है।
गाइड ने कहा इस गांव को ‘जंबूर’ कहते हैं। दक्षिण अफ्रीका में हबसी के रूप में पहचाने जाने वाली नीग्रो प्रजाति के लोग गुजरात में लंबे समय से रहते आ रहे हैं। ये लोग सिर्फ गुजराती भाषा ही जानते हैं। उसने कहा कि यहाँ सिद्धि जनजाति के आदिवासी रहते हैं सिद्दी आदिवासी मूल रूप से अफ्रीका के एक समुदाय से जुड़े हैं। आज भी इनकी सभ्यता-संस्कृति में अफ्रीकी रीति-रिवाज की छाप स्पष्ट देखी जा सकती है। टूरिस्ट लोग इनके नाच गान का भी आनंद ले सकते हैं।
इतिहासकारों की माने तो आज से लगभग 800 साल पहले इन्हें एक पुर्तगाली गुलाम बनाकर भारत लाया गया था। कोई कहता है कि गिर के पास ही स्थित जूनागढ़ शहर के तत्कालीन नवाब एक बार अफ्रीका गये और वहां एक महिला को निकाह करके साथ भारत लाये और वह महिला अपने साथ लगभग 100 गुलामों को भी लाई।तभी से उनकी संताने यहाँ निवास कर रही हैं जो कि पूर्ण रूप से अफ़्रीकी ही दिखाई देते हैं। भारत मे अलग अलग जगह ऐसे करीब 50000 लोग आज रहते है जिनमे से अधिकतर लोग ईसाई या मुस्लिम धर्म को अपना चुके हैं।
गांव में आने के बाद आपको बिल्कुल ऐसा ही लगेगा, मानो आप अफ्रीका के इलाके में आ गए हैं।जंगल के बीच बसे इन लोगो का कभी बब्बर शेरो ने भी कुछ नहीं बिगाड़ा।
बातो मे उलझने की वजह से मे यहाँ किसी के ज्यादा फोटो नहीं ले पाया और अब हमारी जीप रवाना हो गयी आगे के जंगल मे। एक जगह आगे एक सुनसान शांत तालाब बना हुआ था जिसके काफी पास से हमारी गाड़िया निकली। उसमे मगरमच्छ थे ,परन्तु हमे दिखाई नहीं दिए थे। यहा से आगे निकलते ही अचानक फिर एक जगह हलचल नजर आयी। दोनों गाड़ी ने ब्रेक लगाए ,सफ़ेद सुखी झाड़ियों के बीच एक शेरनी नजर आयी जो कि छाव मे बैठकर अटखेलिया कर रही थी। हमारी जीप मे साथी लोगो की एक छोटी बच्ची भी थी वो इतने पास शेरनी देख डर के चिल्लाने लगी। गाइड व ड्राइवर ने सबको एकदम चुप रह कर उसे देखने को कहा। कभी वो उठती ,थोड़े कदम चलती वापस बेथ जाती ,कभी उलटी लेट जाती। हमने सोचा कि हो सकता है पास मे शेर और इसके बच्चे भी हो। करीब आधे घंटे तक हमने उसको इधर उधर जाते हुए देखा। वो करीब हमसे 25 मीटर की दूरी पर रही होगी। पीछे हमारे दो गाड़िया और भी आ चुकी थी ,पर इतने लोग आ जाने के बावजूद भी माहौल एकदम शांत। वो सबको देख रही थी पर अपने हाल मे ही मस्त थी। बस आधे घंटे बाद उसके जंगल मे भाग जाने के बाद सबका बोलना चालू हुआ।
सभी ख़ुशी के मारे पागल हो रहे थे कि आज शेरनी दिख ही गयी। गाइड ने बताया यहाँ लोग कई दिनों तक लगातार आते है फिर भी उन्हें ऐसे ही निराश ही लौटना पड़ता है ,लेकिन हमारी किस्मत अच्छी रही कि हमे तेंदुआ भी दिख गया और शेरनी भी। हालाँकि मुझे बब्बर शेर भी देखना था पर ये सपना अधूरा रहा। लगता है कि इसका मतलब यह है कि गिर नेशनल पार्क बहुत ही जल्द वापस मुझे बुलाएगा। 😂
हां ,अहमदाबाद से गिर की दुरी करीब 325 किलोमीटर हैं ,वैसे अहमदाबाद से गिर तक काफी लोकल बस सेवा और ट्रैन आपको मिल सकती हैं।आप अहमदाबाद से गाडी किराए पर लेकर रोड ट्रिप भी कर सकते हैं,जैसे हमने इस यात्रा पर किया था।
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