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अगली सुबह सो कर उठे तो 7 बज चुके थे। दिल्ली जैसे महानगर में सुबह भी भाग दौड़ भरी होतीं हैं लेकिन यहाँ सड़के लगभग खाली थीं। शायद रविवार होने की वजह से भी ट्रैफिक न के बराबर था। क्योंकि हमने पिछले दिन में ही 3 जगह घूम ली थीं, इसलिए आज का प्रोग्राम काफी रिलैक्स था।
तैयार हो कर नीचे रेस्टोरेंट में ब्रेकफास्ट करने पहुंचे तो देखा कि रेस्टोरेंट बिलकुल खाली था। क्यूंकि यह होटल एक बिज़नेस होटल है इसलिए रविवार होने की वजह से होटल के काफी कमरे खाली थे। बच्चों ने भी आराम से नाश्ता किया और बुफे की लगभग हर शाकाहारी डिश try की। वापस रूम में आ कर सामान समेटा, पैकिंग की और नीचे आ कर बिल पे किया। सामान गाड़ी में रख जब पार्किंग से निकले तो 10 बज चुके थे। गर्मी की वजह से रॉक गार्डन जाना कैंसिल ही कर चुके थे तो सबसे पहले सेक्टर 22 की शास्त्री मार्किट पहुंचे । यहाँ मार्किट दिल्ली की सरोजिनी नगर मार्किट की तरह है। यानि ढेर सारी दुकानें, किफायती दाम, मोल भाव वाली खरीदारी और खूब भीड़। हालाँकि सुबह के समय ज्यादा भीड़ नहीं होती मगर आप अगर शाम को जाओ तो वहां पैर रखने की जगह भी नहीं होती।
लगभग २ घंटे शोपिंग कर वहां से निकले और दिल्ली रोड पर गाड़ी दौड़ा दी। थोड़ी ही देर में जीरकपुर पार किया और टोल नाका पहुंचे। टोल पार करते ही वेरका बूथ आया। बस फिर क्या था, बच्चों ने जिद पकड़ी तो हमने भी गाड़ी बाएं मोड़ ली। बूथ क्या, ये तो पूरा बच्चों का पार्क ही था। ढेर सारे झूले, घने पेड़, पार्क में बैठने के लिए बैंच और कच्ची आमियों से लदे हुए पेड़। जिसको जो जो खाने तो वो लिया और बाहर पार्क में आ कर बैठ गए। बच्चे तो झूलों पर व्यस्त हो गए लेकिन मैं यही सोच रहा था कि क्या शानदार शहर है चंडीगढ़ !
कुछ आधे घंटे बाद हम लोग वहां से दिल्ली की लिए निकल पड़े। बूथ पर खर्च हुआ 110 रुपये जिसमें कुल्फी, चोको बार, खीर और फ्लेवर्ड मिल्क शामिल थे। सड़क पर भीड़ बढ़ चुकी थी। अम्बाला पार कर आगे बढे तो कुरुक्षेत्र जाने का प्रोग्राम बनने लगा कि आज कुरुक्षेत्र के मंदिर भी देखे जाएँ । अम्बाला से लगभग 50 किलोमीटर आगे पीपली है, जहाँ से 2 किलोमीटर दाएं जाने पर कुरुक्षेत्र है। लेकिन गर्मी बहुत बढ़ चुकी थी और इसीलिए कुरुक्षेत्र का प्लान कैंसिल करना पड़ा।
फिर प्लान बना कि कर्ण की नगरी करनाल से पहले करणा झील है, तो वहीँ चला जाये। अगले आधे घंटे में हम वह पहुँच गए। झील घने पेड़ों से घिरी हुई हैं। कुछ लोग झील में बोटिंग का आनंद ले रहे थे। झील के किनारे हरयाणा सरकार का रेस्टोरेंट हैं जहाँ चंडीगढ़ जाने वाली वोल्वो बस रूकती हैं। हम लोग काफी देर वहां रहे, बच्चों ने झील के किनारे घूम रही बत्तखों के साथ खेलकूद किया और 3 बजे हम दिल्ली के लिए निकल लिए।
वेरका बूथ पर किये गए दूसरे नाश्ते की वजह से अभी ज्यादा भूख नहीं थी। इसलिए यही निश्चित हुआ की लंच मुरथल पर ही करेंगे। लगभग 1 घंटे में करनाल,पानीपत,गन्नौर इत्यादि पर करते हुए हम मुरथल पहुंचे और मुरथल हवेली रेस्टोरेंट में लंच के लिए बैठे। खाना खाने के बाद बच्चे फिर अपने खेल में लग गए और मैं भी कमर सीधी करने लगा। थोड़ी देर आराम कर और गरम चाय पी कर जब वापस चले तो 5 बज गए थे। अभी घर लगभग 60 किलोमीटर दूर था लेकिन रविवार की वजह से ट्रैफिक कम मिलने वाला था। इसलिए ज्यादा टाइम नहीं लगने वाला था। लगभग 6.30 पर हम घर पहुंचे। इस तरह एक छोटे पर शानदार ट्रिप का अंत हुआ। बच्चे खुश थे की उनको एक और जगह घूमने को मिला और मैं खुश था कि बच्चों से किया वादा पूरा हुआ।
यह वृतांत पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद। जल्दी ही मिलते हैं अगले वृतांत के साथ।