मानसून में उत्तराखंड यात्रा... भाग 1....

Tripoto

वर्षा ऋतु आते ही प्रकृति जैसे झूम उठती है। धुले धुले वातावरण, चारों तरफ हरियाली और सुहाने मौसम के कारण वर्षा ऋतु का इंतजार सबको बेसब्री से रहता है, खासकर तब जब 3 महीने की तपती गर्मियों के बाद बारिशों का आना किसी सुकून से काम नहीं होता है। इस मौसम में पहाड़ों की सुंदरता और भी बढ़ जाती है। इन गर्मियों में हमने सपरिवार देहरादून जाने का कार्यक्रम बनाया। गर्मियों की छुट्टियों की वजह से ट्रेन में टिकट मिलना मुश्किल था तो अपनी गाड़ी से जाना ही तय रहा। हमेशा की तरह सप्ताहांत की बजाय सप्ताह के बीच के दिनों का प्रोग्राम रखा ताकि भीड़ भाड़ कुछ काम मिले। बेटे की छुट्टियाँ तो चल ही रहीं थी। मेरी छुट्टियाँ अप्रूव होने में भी कोई दिक्कत नहीं आयी।

निश्चित दिन पर, जो कि बुधवार था, सुबह 6 बजे हम चारों (मैं, पत्नी, बेटा और बेटी) घर से निकल पड़े। गाड़ी में टैंकफुल पेट्रोल और टायरों में हवा, मैं एक दिन पहले ही डलवा चुका था। पीने का पानी, हल्का फुल्का स्नैक्स और जूस वगैरह भी घर से ही ले कर चले थे। 15 मिनट में हम हिंडन एयर बेस के सामने थे। राज नगर एक्सटेंशन से जाने वाली नयी सड़क बन जाने के कारण अब मोहन नगर के जाम में फंसने की ज़रूरत नहीं होती है। अगले 15 मिनट में हम NH 58 पर थे। सड़क मेरठ बाईपास तक काफी संकरी है और ट्रैफिक भी बहुत होता है इसलिए स्पीड 50 से ज्यादा नहीं जा पायी। ये सफर पूरा करने में लगभग एक घंटा लगा फिर भी हम उम्मीद से तेज ही चल रहे थे। मेरठ बाईपास शुरू होते ही चौड़ी सड़क मिलती है और गाड़ी 80-90 के बीच चलने लगी।

सुबह जल्दी निकलने की वजह से हम खाली पेट ही घर से चल पड़े थे। सबको भूख लगने लगी थी और बच्चे शांत बैठ गए थे। बच्चों का शांत बैठना यानी कि उनके पेट में चूहे कूदना। मेरठ बाई पास पार करते ही पल्लवपुरम पर बीकानेरवाला है और हमने वहीं कुछ खाने का प्लान किया। वहाँ पहुँचे तो देखा कि रेस्टोरेंट खुल तो गया था मगर सर्विंग में समय था। हमने इतना इंतजार ना करते हुए आगे चलने का सोचा। जैसे ही बाहर आए तो देखा कि बीकानेरवाला के साथ ही अन्नपूर्णा रेस्टोरेंट था। बाहर कुछ गाड़ियाँ खड़ीं थी। अंदर गए तो देखा कि वहाँ काफी लोग खानेपीने में लगे थे। वेटर को मेनू पूछा तो बोला कि अभी सिर्फ ब्रेडपकोड़े, चाय और इडली सांभर मिलेंगे। हमने 3 ब्रेडपकोड़े पैक करवाए और आगे की यात्रा पर निकल पड़े। गाड़ी में ही सबने पकोड़े खाये तो पेट के चूहे कुछ शांत हुए।

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