#फाजिल्का_यात्रा
#भाग-2
#दरबार_साहिब_मुक्तसर
सरायेनागा में गुरुद्वारा के दर्शन के बाद मैं मुक्तसर शहर की ओर बढ़ गया जो वहां से मात्र 15 किमी दूर था, रास्ते में अमरुद के बाग हैं, वहां अमरूद भी बेच रहे थे, थोड़े अमरुद कटवा कर खाकर , फिर मैंने सफर जारी कर दिया, जलदी ही मैं पंजाब के एक ईतिहासिक गुरू द्वारा दरबार साहिब मुक्तसर पहुंच गया। मुक्तसर शहर पंजाब के 22 जिलों में एक जिला श्री मुक्तसर साहिब का मुख्यालय हैं। मुक्तसर शहर राजधानी चंडीगढ़ से 270 किमी, बठिंडा से 55 किमी और मेरे घर से 75 किमी दूर हैं। मुक्तसर शहर में पंजाब रोडवेज का डिपो भी हैं, यहां से तकरीबन सारे पंजाब के लिए, पश्चिमी राजस्थान और हरियाणा के लिए बसें भी मिल जाती हैं। दोस्तों पंजाब में बहुत सारे ईतिहासिक गुरू द्वारे हैं, जो गुरू ईतिहास से जुड़े हुए है और दर्शनीय भी हैं। यह ईलाका राजस्थान से सटा हुआ हैं, यहां पानी की कमी होती थी, लेकिन जिस जगह पर मुक्तसर साहिब का सरोवर हैं, यहां एक पानी की ढाब होती थी, जिसे खिदराणे की ढाब कहा जाता था, ढाब को हम तालाब भी बोल सकते हैं, कैसे इस खिदराणे की ढाब को साहिबे कमाल गुरू गोबिंद सिंह जी ने मुक्तसर साहिब बना दिया जो हम आगे पढेंगे। मुक्तसर साहिब का सरोवर पंजाब के गुरू द्वारों में दूसरा सबसे बड़ा सरोवर हैं, पहले नंबर पर तरनतारन साहिब का सरोवर हैं।
#मुक्तसर साहिब का ईतिहास
दोस्तों 1704 ईसवीं में जब गुरू गोबिंद सिंह जी आनंदपुर साहिब में थे तो 6 महीने तक मुगलों और पहाड़ी राजों की सैना ने घेरा डाल रखा, इस समय गुरू जी के 40 सिख उनका साथ छोडकर कर अपने घर चले आए, गुरू जी ने कहा आप एक चिठ्ठी या बेदावा लिख कर जाओ कि मैं आपका गुरू नहीं हूँ, उन्होंने बेदावा लिख दिया और अपने घर पहुंच गए, इधर गुरू जी ने आनंदपुर साहिब का किला छोडकर मालवा की धरती पर भ्रमण करने लगे। जब वह 40 सिख गुरू जी से बेमुख होकर अपने घर पहुंचे तो उनकी बीवियों और भहनों ने उनको बहुत फटकार लगाई, बोली आप हाथों में चूडियां. डाल लो, गुरू जी का साथ छोड़ कर आ गए। माई भागो नाम की एक सिख शेरनी ने कमाल संभाली और गुरू जी को मिलने के लिए सभी 40 सिखों को लेकर मालवा की यात्रा शुरु की, इधर गुरू जी भी खिदराणे की ढाब के पास थे, मुगल सैना उनका पीछा कर रही थी, गुरू जी भी खिदराणे की ढाब पर मुगलों से युद्ध करना चाहते थे कयोंकि वहां पर पानी था, जब 40 सिखों को पता चला तो उन्होंने माई भागो जी की कमान में मुगल सैना से युद्ध किया, इस युद्ध में मुगल मैदान छोडकर भाग गए, 40 सिख भी शहीद हो गए, गुरू जी के जीवन का यह आखिरी युद्ध था, एक टिब्बी पर गुरू जी सारा युद्ध देख रहे थे और तीर चला रहे थे, गुरू जी की जीत हुई, जब गुरू जी मैदान में आए तो 40 सिखों का सरदार महां सिंह सहक रहा था, गुरू जी ने उसका सिर अपने जाघ पर रख कर कहा बोल महा सिंह कया चाहिए तुझे जिंदगी दे देता हूँ, महा सिंह की आखों में पानी आ गया और बोला गुरू जी हमसे भूल हो गई हम बेदावा लिख कर आ गए, आप वह बेदावा फाड़ दो, दयालु गुरू महाराज ने अपनी जेब में से बेदावा निकाल कर फाड़ दिया, उसे फिर गुरू जी का पयार मिला, गुरू जी ने इन 40 सिखों को जन्म मरण के चक्कर से मुक्ति देकर मुक्त कर दिया और खिदराणे की ढाब को मुक्तसर साहिब बना दिया, फिर अपने हाथों से सिखों का अंतिम संस्कार किया। मैं बहुत बार मुक्तसर साहिब के दर्शन करने गया हूँ, गुरू द्वारा साहिब में रहने खानपान का बहुत बढिय़ा प्रबंध हैं, जब आप पंजाब आओ तो यहां भी दर्शन जरूर करें।
धन्यवाद 🙏🙏🙏
![Photo of Muktsar sahib by Dr. Yadwinder Singh](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/1609956/SpotDocument/1654913395_1654913394625.jpg.webp)
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