#फाजिल्का_यात्रा
#भाग-1
दोस्तों 16 अगस्त 2020 दिन रविवार को घूमने का पलान बनाया, जाना तो दरबार साहिब मुक्तसर था, जो मेरे घर से 75 किमी दूर हैं लेकिन चला मैं फाजिल्का शहर के पार सादकी बारडर पर गया जो घर से 150 किमी दूर हैं, सुबह उठ कर मैं जल्दी ही नहा धोकर तैयार होकर, बाईक को भी धो दिया, पानी से , दो पराठें सिंपल नमक मिर्च वाले खाकर चाय के कप के साथ, आठ बजे मैं घर से निकल पड़ा अपनी मंजिल की ओर, बाघापुराना शहर में ही एक पैटरोल पम्प पर बाईक में तेल डालकर कोटकपूरा की तरफ बढ़ने लगा, कोटकपूरा शहर को पार करके, मैं जल्दी ही मुक्तसर साहिब जिले में दाखिल हो गया, गांव आया सरायेनागा जिसे तीन गुरू साहिब के चरण छोह प्राप्त हैं, पहले, दूसरे और दसवें गुरू जी।
सरायेनागा गांव से पहले ही हाईवे पर बोर्ड लगा हुआ हैं
गुरूद्वारा जनमसथान गुरू अंगद देव जी , बाईक को इस ईतिहासिक जगह की ओर मोड़ लिया, इसी गुरूद्वारे में से लाईव होकर आपको दर्शन और ईतिहास बताया था।
#गुरूद्वारा_जनमसथान_गुरू_अंगद_देव_जी
दोस्तों गुरू अंगद देव जी सिख धर्म के दूसरे गुरु हैं, जहां उनका जन्म हुआ है उस जगह को दूसरा ननकाना भी कहते हैं कयोंकि ननकाना साहिब जो पाकिस्तान में हैं वहां पहले गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ, वहां जाना कठिन हैं लेकिन यहां आप आसानी से जा सकते हो। गुरू अंगद देव जी का जन्म 31 मार्च 1504 ईसवी को मते की सरा जिला मुक्तसर में हुआ, इनके पिता जी का नाम फेरू मल जी और माता जी का नाम निहाल जी था, गुरू जी ने अपने बचपन के 11 साल इस जगह पर बिताये, फिर अपने माता पिता के साथ खडूर साहिब जिला तरनतारन चले गए, आगे जाकर इनका गुरू नानक देव जी के साथ मेल हुआ और गुरू जी ने इनकी सेवा से खुश होकर इनको गुरगददी सौंप दी, इनहोंने पंजाबी गुरूमुखी लिपी का प्रचार किया, खडूर साहिब को तीर्थ बनाया, आज गुरू जी की याद में बहुत खूबसूरत गुरूद्वारा बना हुआ है साथ में सुंदर सरोवर भी, इस पवित्र जगह के दर्शन करके मन निहाल हो गया, कुछ देर गुरू घर में बैठा दुनियाभर की चिंता को छोड़कर मन शांत हो गया, गुरूद्वारा में बैठकर, फिर आगे मुक्तसर की ओर बढ़ गया, मैंने फाजिल्का यात्रा को एक दिन में ही पूरा किया हैं। सुबह घर से चलकर रात को घर वापिस आ गया लेकिन इस दिन में ही बहुत सारे टूरिस्ट सथलों को देखा जिसमें सबसे पहली जगह यह गुरुद्वारा साहिब था।