भगवान शिव का अद्भुत मंदिर जहां 27 नक्षत्रों और 9 राशियों में विराजमान हैं शिव!

Tripoto
13th Jul 2023
Photo of भगवान शिव का अद्भुत मंदिर जहां 27 नक्षत्रों और 9 राशियों में विराजमान हैं शिव! by Yadav Vishal
Day 1

बारिश का मौसम शुरू हो गया हैं, बारिश की रिमझिम फुहार के साथ ही सावन का पावन महीना भी शुरू हो चुका हैं। इस बार सावन में अधिमास पड़ने से शिव भक्तों को चार की बजाए आठ सोमवार भोलेनाथ की पूजन-अर्चना करने के लिए मिलेंगे। भगवान शिव को समर्पित यह महीना बहुत पावन माना जाता हैं। इस पूरे माह शिवभक्त भोलेबाबा की भक्ति में लीन होते हैं। वैसे तो सावन के पूरे माह सभी शिव मंदिरों में श्रद्धालु शिवजी की पूजा और दर्शन के लिए पहुंचते हैं। लेकिन भारत में शिवजी के कुछ ऐसे प्रसिद्ध और ऐतिहासिक मंदिर हैं, जहां सावन शुरू होते ही शिवभक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ती हैं। उन्हीं में से एक हैं श्रीकालाहस्ती मंदिर। यह भगवान शिव को समर्पित है और अत्यंत धार्मिक महत्व रखता है। जिस कारण से दुनिया भर में भगवान शिव के भक्त उनकी पूजा करने और आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर में आते हैं।

श्रीकालाहस्ती मंदिर

यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के पास श्री कालहस्ती नामक जगह पर स्थित हैं। यह मंदिर पेन्नार नदी की शाखा स्वर्णामुखी नदी के तट पर स्थित है और कालहस्ती के नाम से भी जाना जाता हैं। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं और दक्षिण भारत में स्थित भगवान शिव के तीर्थस्थानों में इस स्थान का विशेष महत्व हैं। इस मंदिर को राहू-केतु मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं। इस मंदिर में स्थापित भगवान शिव के मूर्ति में सभी 27 नक्षत्र और 9 राशि उपस्थित हैं। यह मंदिर पंच भूत स्थानों से एक के रूप में प्रसिद्ध है, जो वायु का प्रतिनिधित्व करता है। कालहस्ती मंदिर में भगवान शिव के आशीर्वाद किसी भी इन्सान की तकलीफ दूर हो जाती है। 

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श्रीकालाहस्ती मंदिर का इतिहास

ऐसा माना जाता हैं कि श्रीकालहस्ती मंदिर का निर्माण 5 वीं शताब्दी में पल्लव काल के दौरान हुआ था और विजयनगर राजवंश के दौरान 16वीं शताब्दी में श्रीकालहस्ती मंदिर में कुछ नए राजवंशों का निर्माण किया गया था। यह मंदिर दक्षिण के कुछ प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित धार्मिक स्थलों में से एक हैं। मान्यता के अनुसार इस स्थान का नाम तीन पशुओं, श्री यानी मकड़ी, काल यानी सर्प तथा हस्ती यानी हाथी के नाम पर रखा गया हैं।

श्रीकालाहस्ती मंदिर की पौराणिक कथा

इस मंदिर को लेकर कई पौराणिक कथा प्रचलित हैं उन ही में से एक हैं कि देवी पार्वती को भगवान शिव ने श्राप दिया था, बस उस श्राप से मुक्ति पाने के लिए देवी पार्वती ने कई वर्षों तक श्रीकालहस्ती में तपस्या की। भगवान शिव को उनकी भक्ति बहुत पसंद आई और उन्होंने पार्वती के स्वर्गीय अवतार को पुनः प्राप्त किया, जिसे ज्ञान प्रसूनम्बिका देवी या शिव-ज्ञानम् ज्ञान प्रसूनम्बा के रूप में जाना जाता हैं।
इसके अलावा कन्नप्पा, जो 63 शिव संतों में से एक थे। उन्होने अपना सारा जीवन शिव की पूजा अर्चना को समर्पित किया। जब कन्नप्पा ने भगवान शिव के लिंगम से प्रवाह वाले रक्त को भस्म करने को अपनी अंतिम इच्छा बताई तो उन्होंने संत को रोक दिया और जन्म और मृत्यु के रहस्यमय चक्र से उसको मुक्ति दे दी।

श्रीकालाहस्ती मंदिर की वास्तुकला

पाँचवीं शताब्दी में पल्लव राजवंश द्वारा निर्मित यह एक अनोखा मंदिर हैं, जिसकी वास्तुकला बहुत ही ख़ूबसूरत हैं। इसके प्रवेश द्वार पे एक बड़ा गोपुरम हैं, जिसकी ऊंचाई 120 फीट हैं। विजयनगर के राजाओं ने बाहरी दीवारें पर चार गोपुरमों का निर्माण कराया था। मंदिर परिसर के मंडप में 100 जटिल निर्मित दार खंभे हैं, जो 1516 में एक विजयनगर राजा, कृष्णदेवराय के शासनकाल के दौरान बनाए गए थे। भव्य मंदिर का प्रवेश द्वार दक्षिण की ओर है, जबकि मुख्य मंदिर पश्चिम की ओर है। अन्दर की तरफ भगवान शिव और पार्वती के मंदिर हैं, जबकि बाहर में एक गणपति मंदिर भी है।

श्रीकालाहस्ती मंदिर में पूजा का समय 

श्रीकालाहस्ती मंदिर खुलने का समय सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक हैं। कभी-कभी मंदिर रात 9:30 बजे बंद हो जाते हैं जब भक्त बड़ी संख्या में होते हैं। मंदिर में अभिषेक सुबह 6:00 बजे, 7:00 बजे, सुबह 10:00 बजे और शाम 5:00 बजे तक होती हैं।

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कैसे पहुंचे?

फ्लाइट से-निकटतम घरेलू हवाई अड्डा तिरूपति हवाई अड्डा हैं। जहां से आप टैक्सी या कैब ले कर यहां आसानी से पहुंच सकते हैं।
ट्रेन से-श्रीकालहस्ती का अपना एक रेलवे स्टेशन हैं। स्टेशन के बाहर से आप टैक्सी या कैब ले कर यहां आसानी से पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग से-श्रीकालहस्ती की सड़कें अच्छी तरह से बाकी जगहों से जुड़ी हुई हैं। आप आसान ड्राइव या राज्य परिवहन (एपीएसआरटीसी) द्वारा आसपास के शहरों जैसे तिरूपति, बेंगलुरु और चेन्नई से अक्सर चलने वाली बसों से यात्रा चुन सकते हैं।

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