हर घूमने वाला व्यक्ति नई-नई जगहों पर जाना चाहता है। ऐसे ही सफर की तलाश में कहीं न कहीं निकल जाते हैं। ऐसे ही सफर पर मैं निकला था जो दिल्ली से शुरू होकर हिमाचल की स्पीति घाटी में पहुँच गया। स्पीति वैली के काजा शहर में पैदल चला तो लगा कि ये जगह तो लोगों से भरी हुई है लेकिन ऊँचाई से देखने पर ये शहर सुंदर-सा लगा। अब काजा नहीं हमें स्पीति की यात्रा करनी थी।
काजा को हमने लगभग एक्सप्लोर कर लिया था और बुलेट के लिए दुकानदार से बात भी हो गई थी। हम अगले दिन सुबह-सुबह तैयार होकर दुकान पर पहुँच गए। दुकान पर पहुँचे तो दुकान बंद मिली। हमने नंबर लगाया तो उठा नहीं। कुछ देर में हमारी तरह दो लोग और आ गए। उन्होंने कॉल किया तो किस्मत से फोन उठ गया। कुछ देर में दुकान खुल गई। हमने कल की बुकिंग के बारे में बताया। उसने गाड़ी चेक की और हमें टेस्ट ड्राइव के लिए दे दी।
हम काजा से निकलकर एक ऑफ रोड पर टेस्ट ड्राइव के लिए निकल पड़े। मुझे तो बाइक चलानी आती नहीं है तो देवेश को ही पूरे दिन गाड़ी चलानी है। हम फिर से दुकान लौटे और ओके बोलकर निकल पड़े। हम काजा में ही थे की एक जगह हमारी गाड़ी फिसलकर गिर गई। हालांकि हमें कुछ नहीं हुआ और गाड़ी भी ठीक थी। हम थोड़ी देर में पेट्रोल पंप पर पहुँचे। हमने अपनी जरूरत के अनुसार पेट्रोल भरवाया और फिर निकल पड़े स्पीति की यात्रा पर।
रोमांच तो है!
काजा से निकलते ही रास्ता एकदम शानदार मिला। चारों तरफ ऊँची पहाड़ी, बगल में स्पीति नदी और हम इन वादियों के बीच में सरपट दौड़ते है। मैंने सोचा कि पूरा ऐसा रास्ता तो हमारा सफर तो मजेदार हो जाएगा। रास्ते में एक जगह तिराहा मिला। वहाँ एक बोर्ड भी लगा हुआ था। सीधा जाने पर लांगजा पहुँचेंगे और दाहिने तरफ जाने वाला रास्ता कोमिक जा रहा था। हमने लांगजा वाला रास्ता पकड़ लिया। अब यहाँ से कच्चा रास्ता शुरू हो गया।
पहाड़ों में बाइक चलाने का एक अलग अनुभव होता है। खासकर स्पीति और लद्दाख के इलाके में। हम दोनों को ही वो अनुभव नहीं था। अब तक रास्ता पक्का था तो बुलेट चलाने में दिक्कत नहीं हो रही थी लेकिन कच्चा रास्ते आते ही दिक्कतें शुरू होने लगी। हमारी गाड़ी बार-बार रूक जा रही थी। मोड़ पर सबसे ज्यादा परेशानी हो रही थी। ऐसे ही रूकते हुए हम बढ़ते जा रहे थे। जिनको पहाड़ों में गाड़ी चलाने का अनुभव है, वो हमसे आगे निकलते जा रहे थे।
लांगजा
रास्ता कच्चा तो था ही, साथ में बड़े-बड़े पत्थर भी पड़े हुए थे जिससे काफी परेशानी हो रही थी। नजारे तो खूबसूरत ही थे लेकिन ऑफ रोड वाला ये रास्ता काफी परेशान कर रहा था। रास्ते में कुछ जगहों पर काम भी चल रहा था। काफी घुमावदार रास्तों को पार करने के बाद सीधा रास्ता शुरू हो गया। कुछ देर में हमें दूर से लांगजा गाँव दिखाई देने लगा। लांगजा गाँव से थोड़ी देर पहले पक्का रोड भी शुरू हो गया। हम कुछ देर में लांगजा पहुँच गए।
लांगजा स्पीति की सबसे ऊँचाई पर स्थित गाँव है। समुद्र तल से 14,500 फीट की ऊँचाई पर स्थित इस गाँव में पहुँचकर गाड़ी अपनी रोड किनारे लगाई। इसके बाद हम पैदल-पैदल बौद्ध स्टैच्यू की ओर निकल पड़े। बौद्ध स्टैच्यू लांगजा गाँव का मुख्य आकर्षण है। लांगजा तेज और सर्द हवा चल रही थी। स्टैच्यू वाकई में शानदार था। पहाड़ों के बीच में स्थित इतनी बड़ी मूर्ति मुख्य आकर्षण तो होना ही था।
बौद्ध स्टैच्यू को देखने के बाद हम पैदल-पैदल गाँव घूमने लगे। लांगजा गाँव में पारंपरिक मडहाउस बने दिखाई दे रहे थे और सभी पर होमस्टे का बोर्ड लगा हुआ था। हम एक जगह बैठे थे। तभी एक कच्चे घर से औरत निकली और चाय के बारे में पूछा। हम मना नहीं कर पाए और उस कच्चे घर में पहुँच गए। बात करने पर पता चला कि गाँव की कुछ महिलाओं ने मिलकर इस कैफे को शुरू किया है। हमने यहाँ चाय पी और जौ का लड्डू भी खाया। इसके बाद हम वापस अपनी बाइक के पास पहुँच गए। अब हमें यहाँ से हिक्कम जाना था।
हिक्किम
लांगजा की तरह हिक्किम भी एक छोटा-सा गाँव है। जहाँ पर दुनिया की सबसे ऊँचाई पर स्थित डाकघर है। अब उसी डाकघर को देखने के लिए हम निकल पड़े। रास्ता पक्का तो था तो गाड़ी भी बढ़िया चल रही थी और नजारे तो ऐसे कि हर जगह रूकने का मन कर रहा था। चेहरे पर पड़ने वाली ठंडी-ठंडी हवाएँ इस सफर को और भी शानदार बना रही थी। कुछ देर बाद दो रास्ते दिखाई दिए। पक्का रास्ता कोमिक ले जाता और कच्चा रास्ता हिक्किम के लिए था। हमने कच्चा रास्ता पकड़ लिया।
अब हम धीरे-धीरे कच्चे रास्ते पर बढ़ते जा रहे थे। कुछ देर बाद हम हिक्कि पहुँच गए। यहाँ आकर देखा तो लोगों का हुजूम उमड़ा था। यहाँ पोस्टकार्ड मिल रहे थे। जिन पर स्पीति के मुख्य आकर्षणों की फोटो बनी हुई थी। 30-35 रुपए में मिल रहे पोस्टकार्ड को खरीदा और फिर कुछ लिखा भी। अब हम हिक्किम गाँ की ओर बढ़ चले। डाकघर के पीछे की तरफ मुहर लगवाई और फिर आगे की तरफ जाकर डाकघर के डिब्बे में डाल दिया। मैं डाकघर के अंदर भी गया। दो महिलाएँ थीं, उन्होंने बताया कि ये उनका ही घर है और इसी में एक कमरे में डाकघर है।
कोमिक
हिक्किम से एक रास्ता सीधा कोमिक की ओर जाता है। हमने उसी कच्चे रास्ते को पकड़ लिया। कुछ देर बाद ये रास्ता पक्के रास्ते से मिल गया। इतनी ऊँचाई पर होना अपने आप में एक शानदार एहसास है। रास्ते में हरे-भरे बुग्याल थे। इतना साफ और सुनहरा आसमान शायद ही मैंने पहले कभी देखा था। कुछ मिनटों में हम कोमिक पहुँच गए। कोमिक दुनिया की सबसे ऊँचाई पर स्थित जगह है जहाँ तक मोटरेबल रोड है। कोमिक समुद्र तल से 15,550 फीट की ऊँचाई पर स्थित है।
कोमिक में दुनिया की सबसे ऊँचाई पर स्थित रेस्टोरेंट भी है। हम सबसे पहले इसी जगह पर पहुँचे। जाहिर है कि यहाँ हर चीज बहुत महंगी थी। हमने यहाँ कुछ नहीं खाया। इस जगह को देखने के बाद मोनेस्ट्री देखने के लिए निकल पड़े। मोनेस्ट्री का गेट बंद था लेकिन यहाँ से सुंदर नजारा देखने को मिला। इस नजारे को देखने के बाद हम एक और मोनेस्ट्री में गए। ये कोई मोनेस्ट्री नहीं है बल्कि लामा यहाँ रहते हैं। यहाँ बहुत सारे कमरे भी बने हुए हैं। इस जगह को देखने के बाद हम वापस लौटने लगे। हमने तय किया कि अब हम किब्बर की तरफ जाएँगे।
काजा
रास्ता शानदार था तो पता ही नहीं चली कि अब लांगजा गाँव पार कर गए। लांगजा गाँव के पार करने के बाद फिर से कच्चा रास्ता शुरू हो गया। हम आराम आराम से चलते जा रहे थे लेकिन एक मोड़ पर हमारा गिरना लिखा हुआ था। मैं, देवेश और गाड़ी तीनों जमीन पर पड़े हुए थे। हल्की-हल्की चोट आई और गाड़ी को भी कुछ चोट आ गई। गिरकर हम उठे और धीरे-धीरे बढ़ने लगे। दिमाग एकदम खराब हो गया और हमें जाना था किब्बर की तरफ लेकिन हम काजा लौट आए।
हमने यहाँ लंच किया और फिर धनकर मोनेस्ट्री देखने का तय किया। धनकर ताबो की तरफ है। उसी रास्ते से हम बस से काजा आए थे तो हमें रास्ता पता था। थोड़ी देर बाद हम उसी रास्ते से धनकर की ओर बढ़ते जा रहे थे। देवेश गिरने से पहले कच्चे रास्तों पर भी गाड़ी भगा रहा था लेकिन अब कोई गाड़ी आती तो देवेश बुलेट को एकदम धीमा कर लेता। लंगती गाँव पार करने के बाद हमें रास्ते में एक खूबसूरत झरना दिखाई दिया।
धनकर
इस वाटरफॉल को देखने के बाद हम घनकर की तरफ बढ़ चले। कुछ देर बाद हम धनकर गोंपा गेट पर पहुँच गए। गेट से धनकर 8 किमी. है। अब इस 8 किमी. के रास्ते को तय करने के लिए हम बढ़ने लगे। धनकर का रास्ता एकदम पक्का था लेकिन घुमावदार भी बहुत था। हम हर मोड़ के बाद ऊँचाई पर चले जा रहे थे। काफी देर बाद हमें धनकर दूर से दिखाई देने लगा और कुछ देर बाद हम धनकर पहुँच गए। इस जगह को दूर से देखने पर लगता कि मिट्टी के पहाड़ पर ये जगह बसी हुई है।
हम सीधे मोनेस्ट्री की तरफ बढ़ते चले गए। मोनेस्ट्री के अंदर फोटो और वीडियो लेना मना है तो हमने वो काम नहीं किया। मोनेस्ट्री के एक कमरे में घुसा तो वहाँ कोई नहीं था सिर्फ एक मूर्ति थी। दूसरे तल पर गया तो वहाँ कुछ लोग और लामा थे। एक कमरे में लामा मंत्र पढ़ रहे थे। मुझे कुछ समझ तो नहीं आया लेकिन मन को अच्छा ही लगा। शाम होने को थी और हमें काजा लौटना था। धनकर में लेक भी है लेकिन उसके लिए ट्रेक करना पड़ता है और हमारे पास उसका समय नहीं है।
हम शाम 7 बजे से पहले काजा पहुँच गए और बाइक भी लौटा दी। अब हमें लौटना था। हमारे पास दो रास्ते थे। पहला कि जिस रास्ते से आए हैं उसी से लौटे। काजा से शिमला होते हुए लौटना काफी लंबा और टाइम ले रहा था। दूसरा काजा से मनाली के लिए एक बस सुबह-सुबह जाती है। हमने रात में ही बस में टिकट बुक कर ली थी। जब मडहाउस लौटा तो दिन भर में काफी कुछ जी चुका था। कई खूबसूरत जगहें देखीं और गिरा भी तो हूं। स्पीति की कुछ जगहें अभी भी रह गई हैं जो अगली यात्रा के लिए छोड़ दिया हूं।
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