अनजानी और अनछुई जगहों पर बार-बार जाना आसान नहीं है लेकिन इन जगहों पर जो भी जाता है उसकी ज़िंदगी बदल जाती है। ऐसी शानदार जगह हर किसी को रोज-रोज दिखाई नहीं देती है। बर्फ़ से ढँके पहाड़ और ठंडी हवाएं इन जगहों की ख़ासियत होती है। भारत के हर कोने में एक जगह होती है जिससे इस इलाक़े का अंतिम गाँव कहा जाता है। भारत-तिब्बत रोड पर जिस जगह को भारत का अंतिम गाँव कहा जाता है, उसे चितकुल के नाम से जानते हैं। मैंने इसी जगह पर पहली बार बर्फ़बारी का अनुभव किया। ये जगह वाक़ई में बेहद खूबसूरत है।
चितकुल हिमाचल प्रदेश के किन्नौर ज़िले में स्थित एक छोटा-सा गाँव है। बास्पा घाटी में बास्पा नदी के किनारे स्थित चितकुल समुद्र तल से 3,450 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। मैंने सांगला को एक्सप्लोर कर लिया था। अब मुझे चितकुल की यात्रा पर जाना है लेकिन मै वहाँ रूकना नहीं चाहता। सांगला में कमरे में सामान रखकर सांगला के बस स्टैंड पर पहुँच गया। वहाँ पता चला कि सांगला से चितकुल के लिए पहली बस 12:30 PM बजे निकलती है। हम वहीं बस का इंतज़ार करने लगे। लगभग 12 बजे बस सांगला आई। बस अपने तय समय पर चितकुल के लिए निकल पड़ी।
पहाड़ी रास्ता
पहाड़ी जगहों पर जाना तो सबको पसंद होता है लेकिन पहाड़ी रास्तों पर जाना सबसे कठिन होता है। यहाँ के रास्ते इतने ख़तरनाक और पतले होते हैं कि गाड़ी बेहद संभलकर चलानी होती है। लापरवाही की एकदम गुंजाइश नहीं होती है। हमारी बस इन्हीं छोटे-छोटे रास्तों से होते हुए बढ़ी जा रही थी। खिड़की से बर्फ़ से ढँके पहाड़ों का नजारा दिखाई दे रहा था। कुछ देर में हमारी बस रचक्षम पहुँच गई। रक्षम एक छोटी-सी जगह है जो सैलानियों के बीच काफ़ी फ़ेमस है।
रक्षम के बाद रास्ते में दोनों तरफ़ बर्फ़ पड़ी दिखाई दे रही थी। ये दृश्य देखने के बाद मुझे पक्का यक़ीन हो गया कि चितकुल में बर्फ़ ज़रूर देखने को मिलेगी। सांगला से चितकुल का रास्ता वाक़ई में बेहद सुंदर है। लगभग 2 बजे हमारी बस चितकुल पहुँच गई। बस से उतरते लगा कि हम अचानक से बेहद ठंडी जगह पर आ गए होंगे। सांगला में पहाड़ हम से काफ़ी दूर लग रहे थे लेकिन चितकुल में पहाड़ एकदम हमारे क़रीब आ गए। चितकुल को इलाक़े का भारत का अंतिम आबादी वाला गाँव माना जाता है। ऐसा हो भी सकता है कि चितकुल के आगे भी कोई गाँव हो लेकिन चितकुल को ही अंतिम आबादी वाली गाँव माना जाता है। चितकुल में इस इलाक़े का अंतिम ढाबा है और अंतिम डाकघर भी है।
चितकुल मंदिर
चितकुल में उतरते ही हम मंदिर की तरफ़ चल पड़े। चितकुल में एक बेहद प्राचीन मंदिर भी है जिसे देखने के लिए हम निकल पड़े। हम पैदल-पैदल चितकुल की गलियों में निकल पड़े। रास्ते में एक सरकारी स्कूल मिला जो बंद था। कुछ देर बाद हम मंदिर के गेट पर पहुँच गए। मंदिर काफ़ी नया लग रहा। यहाँ एक बोर्ड पर लिखा था कि हाल ही में चितुकल माता के मंदिर का पुनर्निमाण करवाया गया है। मंदिर का आकार और बनावट काफ़ी कुछ सांगला के बेरिंग नाग मंदिर की ही तरह है।
मंदिर को देखने के बाद हम डाकघर की तरफ़ निकल पड़े। रास्ते में स्थानीय लोग अपने रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त दिखाई दे रहे थे। एक बुजुर्ग महिला से हमने डाकघर का रास्ता पूछा तो उन्होंने भी हमसे पूछा कि जो भी आता है डाकघर का रास्ता पूछता है तो ऐसा क्या है? हमने उनको बताया कि ये इस इलाक़े का आख़िरी डाकघर है इसलिए सभी आते हैं। उनके बताए हुए रास्ते पर हम चल पड़े। रास्ते में काफ़ी बर्फ़ भी पड़ी हुई थी। हम जब डाकघर पहुँचे तो पता चला कि डाकघर बंद था। हम ख़ाली हाथ चितकुल की मुख्य सड़क पर आ गए।
पहली बर्फबारी
चितकुल में एक ढाबा भी भी जो काफ़ी मशहूर है। हम भी उसी ढाबे को देखने के लिए निकल पड़े। चितकुल के इस ढाबे को भारत का आख़िरी ढाबा भी कहा जाता है। हमने यहाँ पर राजमा थाली मँगवाई जो ज़्यादा महँगी नहीं थी। इस थाली में राजमा चावला के अलावा कढ़ी भी थी। हमने खाना ख़त्म किया ही था कि हल्की-हल्की बर्फ़ गिरने का एहसास हुआ। हल्की ही सी मैं पहली बार अपनी आँखों से बर्फ़बारी देख रहा था। मुझे लगा कि इससे ज़्यादा बर्फ़ नहीं गिरेगी लेकिन कुछ देर बाद बर्फ़ बारिश की तरह गिरने लगी।
चितकुल में बर्फ़बारी देखकर मज़ा ही आ गया। मैं जितना हो सकता था इस बर्फ़बारी का मज़ा ले रहा था। पहली बर्फ़बारी का अनुभव सभी को याद रहता है। मेरे लिए चितकुल वो जगह है जहां मैंने स्नोफॉल का अनुभव लिया। जब बर्फ़ चेहरे पर पड़ रही थी तो एक अलग ही ख़ुशी भी मिल रही थी हालाँकि ठंड भी काफ़ी लग रही थी। बर्फ़ इतनी तेज़ गिरने लगी कि हमें छत से ढाबे की तिरपाल के नीचे आने पड़ा। लगभग 4 बजे हमारी सांगला जाने वाली बस भी आ गई।
कुछ देर में हम बस के अंदर आ गए। कुछ देर में बस चल पड़ी। पूरे रास्ते हमने बर्फ़बारी देखी। 6 बजे हमारी बस सांगला पहुँच गई। हमारी चितकुल की यात्रा एक शानदार तरीक़े से पूरी हुई। मैंने ख़ुद से वायदा किया कि फिर से चितकुल आऊँगा और कुछ दिन यहाँ ठहरूँगा।
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