अपने बाप की अधूरी इच्छा पूरी करने के लिए बेटा 75 देश घूम आया!

Tripoto

साल 1963 की बात है | 24 साल के अरुण नारायण को अपने नासिक के घर में पिता की चीज़ें टटोलते हुए इटली के पोंपेली शहर की तस्वीर मिली | ये इटली की उन तस्वीरों में से एक थी, जो अरुण के पिता ने अपने सामान में सहेज कर रही थी | उनका सपना था कि एक बार वो इटली ज़रूर जाएँगे | मगर अब उनका ये सपना कभी पूरा नहीं हो सकता था | मौत के बाद दुनिया कौन घूम सकता है! तस्वीरें देख कर अरुण ने अपने स्वर्गीय पिता के इस अधूरे सपने को पूरा करने की ठानी |

पिता की अचानक हुई मौत के बाद अरुण को मुंबई में अपनी PhD छोड़ कर नासिक में अपनी माँ के पास आना पड़ा, जिन्हें इतने बुरे वक़्त में सहारे की ज़रूरत थी | पैसे कमाने का बोझ भी अरुण के कंधों पर आ गिरा |

Photo of अपने बाप की अधूरी इच्छा पूरी करने के लिए बेटा 75 देश घूम आया! 1/4 by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni
जुलाई 2015 में आइसलैंड के ब्लू लगून जियोथर्मल स्पा में डुबकिया खाते हुए |

अब अरुण खुद बूढ़े हो चुके, मगर अपने पिता की यादें अभी भी मन में छपी हुई है | अरुण के पिता घर में काफ़ी कम बात करते थे और धीर-गंभीर रहा करते थे | कम उम्र में ही उन पर अपनी पत्नी और पाँच बच्चों की ज़िम्मेदारी आ गयी थी | ऐसे में दुनिया घूमने का उनका सपना महज़ सपना ही बन कर रह गया | वो सपना जो उनकी मौत के बाद उनका बेटा अरुण पूरा करेगा |

मुंबई से PhD छोड़ने के बाद अरुण अपनी माँ के पास अपने घर नासिक आ गए | अमेरिका के कॉलेज में पढ़ने का प्लान भी नहीं पूरा हो पाया | भारत में रहकर काम करते हुए अरुण अपनी होने वाली पत्नी से मिले | मुंबई यूनिवर्सिटी से मनोविज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन किए हुए अरुण को 7 साल बाद अमेरिका के कॉलेज से पढ़ने का मौका मिला, वो भी राज्य सरकार से मिली पूरी स्कॉलरशिप के साथ | मगर हेल्थ ग्राउंड्स पर उनका वीज़ा खारिज हो गया |

तीसरी बार अरुण की किस्मत ने उनका साथ दिया | फ़ोर्ड फाउंडेशन की स्कॉलरशिप के साथ सन 1973 में अरुण इंग्लैंड निकल गए | इंग्लैंड में अरुण ने यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंडन में अर्बन स्टडीज़ की पढ़ाई की | उनकी पत्नी मंजिरी को उनके दो बच्चों की देखभाल करने के लिए भारत में ही रहना पड़ा | बेटी सुप्रिया पिेलगाओंकर आज मराठी और हिन्दी मनोरंजन जगत में जानी जाती हैं, और बेटा सुमित सब्निस रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के मुकेश अंबानी का प्राइवेट प्लेन उड़ाता है |

Photo of अपने बाप की अधूरी इच्छा पूरी करने के लिए बेटा 75 देश घूम आया! 2/4 by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni
श्रेय : श्रिया पीलगाओंकर

सब्निस अपने परिवार के ऐसे पहले व्यक्ति थे, जो विदेश घूमने गए थे |

इंग्लैंड जाने के बाद अरुण पढ़ाई के सिलसिले में पूरा यूरोप घूम लिए | जहाँ भी जाते, वहाँ नए दोस्त बना लेते, जिन्होनें उन्हें नए ख़याल, नई सोच के साथ जीना सिखाया | अरुण ने देखा कि रंग, नस्ल, धर्म और जाति को लेकर दुनिया में काफ़ी भेद भाव भी है | इन्हीं चीज़ों को और गहराई से समझने के लिए अरुण के अंदर जलती घूमने की आग और धधक कर जलने लगी |

इतना घूमने से ही अरुण को समझ आया कि दुनिया में लोग चाहे कहीं भी रहे, मगर उनकी सोच एक जैसी ही होती है | अरुण युरोप, ऑस्ट्रेलिया, अमरीका, कनाडा, ग्रीनलैंड, और अफ्रीका घूम चुके हैं |

Photo of अपने बाप की अधूरी इच्छा पूरी करने के लिए बेटा 75 देश घूम आया! 3/4 by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni
साल 2012 में बर्फ़ीले अंटार्कटिका में गर्मजोशी से घूमते हुए

2012 में उनकी अंटार्कटिका की ट्रिप सबसे यादगार थी | 2011 में उन्होनें अंटार्कटिका जाने वाले एक छोटे जहाज़ की टिकट बुक करवा जी, जिसमें उनके अलावा 85 और यात्री भी थे | जहाज़ का रास्ता साउथ अमरीका और अंटार्कटिका के साउथ शेट्लैंड आईलैंड के बीच में बने ड्रेक पैसेज से निकल कर था | 11 किलोमीटर लंबे लीमायर चैनल से निकलते वक़्त उन्होनें असीम शांति और चुप्पी महसूस की | जैसे सारी आवाज़ें दूर कहीं पीछे छूट गयी हो | पानी पर तैरते पहाड़ों जैसे बड़े बर्फ के टुकड़ों पर पेंग्विन और सील अरुण का जहाज़ को मानों हाथ हिलाकर विदा कर रहे हों |

60 घंटे की इस यात्रा के दौरान जहाज़ पर कई लोग बीमार हुए | अरुण को भी ऐसा लगा जैसे उनकी मौत करीब है | रात को ऐसे सपने आते थे, मानों लोग जहाज़ पर उनकी लाश ढूँढ रहे हों |

वैसे तो अरुण की पत्नी उनके साथ विदेश घूमने नहीं जाती, मगर शादी की 50वीं सालगिरह पर जश्न मनाने अरुण उन्हें इंग्लैंड ले गए थे | इंग्लैंड से भारत वापिस आने के कुछ वक्त बाद अरुण अपनी पोती श्रिया पीलगाओंकर के साथ आइसलैंड घूमने निकल पड़े |

Photo of अपने बाप की अधूरी इच्छा पूरी करने के लिए बेटा 75 देश घूम आया! 4/4 by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni
2011 में टर्की के कैपाडोशिया में

अरुण को पता है कि वो अब पहले की तरह जवान नहीं है, जो जब चाहे बैग उठाकर कहीं भी निकल पड़े | अब उन्हें कहीं घूमने का विचार बनाने से पहले अपने आराम और सुरक्षा का सबसे ज़्यादा ध्यान रखना होता है |

इतनी दुनिया घूमने और इतने लोगों से मिलने के बाद भी उन्हें आज तक अपने पिता की मजबूरियाँ याद है, जिनके चलते वो अपना दुनिया घूमने का सपना पूरा नहीं कर पाए थे | अरुण का मानना है कि उनके पिता अब अरुण की आँखों से दुनिया देख रहे हैं|

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