कहते हैं कि लोग प्यार में किसी भी हद से गुज़र जाते हैं, और अगर उनका प्यार घुमक्कड़ी हो फिर तो क्या कहने। घूमने-फिरने की इस दीवानगी में कुछ अनोखा कर दिखाया पुणे की वेंदांगी कुलकर्णी ने। 20 साल की वेदांगी ने तो मानों पूरी दुनिया को ही अपना घर बना लिया है। शायद इसिलिए सिर्फ 159 दिनों में वो पूरी दुनिया की सैर कर चुकी हैं, वो भी साइकल पर!
159 दिनों में 29,000 कि.मी. की दूरी तय करने के साथ वेदांगी दुनिया का चक्कर लगाने वाली सबसे तेज़ एशियाई होने का रिकॉर्ड भी अपने नाम कर चुकी हैं।
सफर की शुरूआत
वेदांगी ने ऑस्ट्रेलिया के पर्थ से अपनी यात्रा शुरू की। पूरे ऑस्ट्रेलिया को साइकल पर घूमने का ये सफर ब्रिस्बेन में खत्म हुआ और इस यात्रा को पूरा करने तक ही वेंदांगी लोगों में मशहूर हो गई थी। ऑस्ट्रेलिया के बाद वेदांगी पहुँची न्यूज़ीलैंड, जहाँ उन्होंने उत्तर से लेकर दक्षिण तक इस देश को कवर किया।
ओशियनिया में अपनी हैरतंगेज़ यात्रा शुरू कर वो पश्चिम कनाडा के शहर वैंकूवर पहुँची और फिर पूर्वी कनाडा के हैलिफैक्स में आकर अपने सफर के इस हिस्से को पूरे किया।
कनाडा के बाद, आइसलैंड की ओर जाती वेदांगी की यात्रा कठिन होती जा रही थी लेकिन अपने सपने का पीछा करते हुए ये सफर जारी रखा। इसके बाद उसने रूस में प्रवेश करने से पहले पुर्तगाल, स्पेन, फ्रांस, बेल्जियम, जर्मनी, डेनमार्क, स्वीडन और फिनलैंड से होते हुए यूरोप के विशाल विस्तार को मापा।
रूस को कवर करने के बाद, यात्रा के अंतिम 4,000 कि.मी. का पड़ाव उसे उसकी मातृभूमि भारत वापस ले आया। इसके पूरा करने के बाद वो वापस पर्थ के लिए उड़ान भरकर इस सफर के शुरुआती पाइंट पर पहुँची और अपने इस अनोखे सफर की कहानी पूरी कर दी।
घरवालों के भरोसे ने सफर को बनाया आसान
वेदांगी के माता-पिता के विश्वास के बिना यह बेहतरीन यात्रा मुमकिन नहीं थी। वेदांगी अपने माता-पिता को अपनी शक्ति और सफलता का स्तंभ मानती है। वो शुक्रिया करती है अपना माता-पिता का कि उन्होंने 19 साल की लड़की पूरी दुनिया को घूमने को वो सभी सपोर्ट और प्रोत्साहन दिया जिसकी ज़रूरत थी। जब भी उन्हें घबराहट होती तो उनके माँ-बाप दुनिया के दूसरे छोर पर फोन पर हमेशा मौजूद थे। कुछ खराब अनुभवों के बावजूद वेदांगी के अभिभावकों ने वेदांगी की हिम्मत नहीं टूटने दी और हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहे, भले ही ये माँ-बाप की चिंताओं के उलट ही क्यों ना जाता हो।
वेदांगी के माता-पिता जिन्होंने इस पूरे सफर को स्पॉन्सर किया, उन्हें अपनी बहादुर बेटी पर गर्व है।
वेदांगी के पिता विवेक कुलकर्णी का मानना है कि वेदांगी का अपने सपने को पूरा करने की इच्छाशक्ति और दृढ़ निश्चय ही था जिसने उसे सफल बनाया है और उन्हें यकीन है कि आने वाले वक्त में वो और भी कई उपलब्धियाँ अपने नाम करेगी।
चुनौतियों से भरा सफर
वेदांगी ने अपनी यात्रा में कई चुनौतियों का सामना किया, जैसे, कनाडा में एक भयंकर भालू द्वारा पीछा किया जाना, स्पेन में चाकू के बल पर लूटपाट करना, खराब मौसम को झेलना जहाँ तापमान -20 डिग्री से -37 डिग्री सेल्सियस तक था।
दुनिया भर में साइकिल चलाना कोई आसान खेल नहीं है, और वो भी तब जब आपके सफर के ज्यादातर हिस्से में कोई साथ देने वाला ना हो।
Tripoto को वेदांगी कुलकर्णी के शानदार करतब पर गर्व है। वेदांगी का ये सफर सभी उम्र के पुरुषों और महिलाओं को प्रेरित करने के लिए एक नायाब उदाहरण है।
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