जब वी मेट: बस में मिले 2 अनजान बन गए ज़िंदगी भर के दोस्त

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'यूँ ही कोई मिल गया था, सरे राह चलते-चलते ' ये गाना अक्सर मेरे दिमाग में घूमता है। जब भी मैं इस गाने को गुनगुनाने लगती हुँ तो मुझे मेरी एक दोस्ती का किस्सा याद आ जाता है। वो दोस्ती जो मैंने अपनी पहली सोलो ट्रिप पर की थी।

Photo of जब वी मेट: बस में मिले 2 अनजान बन गए ज़िंदगी भर के दोस्त 1/5 by Bhawna Sati

मैं बहुत वक्त से एकल यात्रा पर जाने का प्लान बना रही थी। सोलो ट्रिप के एहसास और आज़ादी के बारे में काफी कुछ पढ़ा भी था, तो आखिरकार मैंनें 2017 में शिमला की टिकट बुक करवाई और निकल पड़ी अपने पहले एडवेंचर पर। क्योंकि मैं पहली बार अकेले यात्रा पर निकल रही थी इसलिए मैंनें जानी-मानी जगह चुनना ही बेहतर समझा।

सफर की शुरूआत- एक अजनबी से मुलाकात

थोड़ी घबराई हुई, कंधे पर बैकपैक लिए मैं मजनू की टीला पहुँची, जहाँ से मेरी बस यात्रा की शुरुआत होनी थी। लेकिन मेरी तरह, बस भी थोड़ी लेट थी। कुछ देर बाद जब बस पहुँची तो कई सारे अनजान भारतीय लोगों के साथ बस में एक जवान, लंबी-सी लाल-बालों वाली गोरी-चिट्टी फिरंगी लड़की भी कंधे पर बड़ा- सा बैग लिए सवार हो गई। कुछ परेशान होकर किसी विदेशी भाषा में वो फोन पर बात करने लगी और बार-बार खिड़की से बाहर देख रही थी। अब बस चल चुकी और बढ़ती रफ्तार के साथ मेरा उत्साह भी बढ़ रहा था। सुबह का वक्त था तो दिल्ली की सड़कें भी खाली थी। करनाल को पार करते हुए करीब 1.30 घंटे बाद हम पानीपत पहँचे। मैं शिमला घूमने का प्लान बना ही रही थी, कि वो फिरंगी लड़की कंडक्टर को कुछ समझाने की कोशिश कर रही थी। आखिर मैंने पूछ ही लिया कि क्या किसी मदद की ज़रूरत है? तब पता लगा का जिस दोस्त के साथ वो शिमला जाने वाली थी उसकी बस ही छूट गई है!

बस फिर क्या, मैंने उसके दोस्त से बात समझी और तय किया कि वो किसी टैक्सी से अंबाला पहुँचे और फिर बस वाले को मनाया कि हम कुछ देर अंबाला में रुक कर उस दोस्त को बस में बिठाले। बढ़ी मिन्नतों के बाद बस वाला मान गया और हम दोनों अपनी सीट पर बैठ गए। और इस तरह हमारी दोस्ती की शुरूआत हो गई।

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अगले 2 घंटे में हमने एक दूसरे को काफी अच्छी तरह जान लिया। मेरी इस नई दोस्त का नाम था हैनाह लैंग जो जर्मनी से पहली बार भारत घूमने आई थी। लेकिन ये जाबाज़ लड़की अब तक उज़बेकिस्तान, यूरोप, ग्रीस और क्रोएशिया समेत 8 देश घूम चुकी थी। वो भी अकेले! ये सब जान कर मुझे खुशी भी हुई और खुद पर थोड़ी शर्म भी आई, कि मैं तो अपनी पहली सोलो ट्रिप पर ही इतना घबरा रही हुँ और ये लड़की एक देश से दूसरे देश टप्पे मार रही है।

बातचीत में वक्त कैसे बीत गया पता ही नहीं चला, और अंबाला आ गया। फोन पर दूसरी दोस्त से तालमाल बिठाने में हमें कुछ वक्त लगा, लेकिन फिर 5 मिनट में हमने दूसरी दोस्त एमिली को बस में बिठाया और निकल पड़े शिमला की तरफ। अब हम तीन लड़कियों के गर्ल गैंग ने बातचीत शुरू की तो वो रुकी ही नहीं। इस बात-चीत में ही मुझे पता चला कि हैनाह और एमिली भी ऐसी ही क्रोएशिया घुमते हुए दो अनजान लोगों की तरह मिले थे, और कुछ महीनों की प्लानिंग के बाद ये दोनों पूरा भारत साथ घूमने निकल पड़े। ये फिरंगी तो बड़े ही कूल होते हैं यार!

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कुछ घंटों बाद बाहर घुमावदार मोड, हरे-भरे पेड़ और पहाड़ों के दिलकश नज़ारे शुरू हो गए। और हम तीनों कुछ देर के लिए बिल्कुल शांति में बस से बाहर झाकते रहे। ये नज़ारा ऐसा था जो मानों हम तीनों के दिलों की तारों को जोड़ रहा था। भले ही हमारा रंग-रूप, भाषा अलग थी, लेकिन ये नज़ारे हम तीनों के लिए नायाब थे।

9 घंटे की हमारी इस बस यात्रा में हमने बॉलिवुड से लेकर पॉलिटिक्स, ताजमहल और हैरी पॉटर तक, हर चीज़ पर बात कर ली थी। हमारे देशों के बीच भले ही काफी दूरी हो, लेकिन ये बस यात्रा हम तीनों को बेहद करीब ले आई थी।

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अब हम शिमला बस स्टॉप पर पहुँच चुके थे। हमारे होटल अलग-अलग थे, यानी इस तीगड़ी के बिछड़ने का वक्त आ गया था। तो हमने फटाफट एक दूसरे का नंबर लिया और बड़ी गर्मजोशी के साथ एक दूसरे को गले मिलकर अलविदा किया।

पहाड़ियों पर रंगीन घरों, मॉल रोड पर बने खूबसूरत क्राइस्ट चर्च और बर्फ से ढके देवदार के पेड़ों को निहारती, अब मैं अकेली चल रही थी। थोड़ी देर के लिए लगा कि क्या शिमला का पूरा सफर अपने नए दोस्तों के साथ ही किया जाए क्या? लेकिन फिर सोचा कि सोलो ट्रिप का असली कारण फिर कहीं पीछे न छूट जाए। मैं उस आज़ादी को महसूस करना चाहती थी जो आपको खुद अपने फैसले लेने से मिलती थी और शायद ये भी टेस्ट करना चाहती थी कि अकेले ट्रैवल करना मेरे बस का है भी या नहीं।

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अगले दो दिन मैंनें कुफरी की सुर्ख बर्फ में खेलकर, वॉइसरीगल लॉज (राष्ट्रपति निवास) में ब्रिटिश वास्तुकला का आनंद लेते हुए और मॉल रोड पर लज़ीज मोमोस खाते हुए शॉपिंग कर बिताए, अपने साथ! इस सोलो ट्रिप ने मुझे ये तो यकीन दिला दिया कि 'मैं अपनी फेवरेट हुँ '। लेकिन इस यात्रा का सबसे अच्छा हिस्सा था मेरे दो नए दोस्त जिन्हें मैं अपने शिमला के सफर में अलविदा कहने फिर एक बार मिली।

मैं भले ही घर से निकली अकेली थी, लेकिन वापसी में खूबसूरत यादें, एक अच्छा अनुभव और उससे भी अच्छे दोस्त साथ लेकर लौट रही थी। हैनाह, एमिली और मैं आज भी बहुत अच्छे दोस्त हैं और अक्सर वीडियो कॉल कर एक दूसरे की ज़िंदगी से जुड़े हुए हैं। शायद ऐसे अनुभव के लिए ही लोग अकेले यात्रा करना इतना पसंद करते हैं।

अगर आपके पास भी आपकी यात्रा के कुछ मज़ेदार किस्से हैं तो उन्हें Tripoto पर लिखें और अपना अनुभाव यात्रियों के समुदाय से बाँटें।