अगर पक्के घुमक्कड़ आदमी हो तो ज़माने से ख़ूब ताने सुने होंगे आपने। साथ में सलाह में लिपटा हुआ ख़ूब सारा ज्ञान भी, जैसे मॉनसून में ट्रैवल मत करना, कहीं फँस जाओगे तो कैसे बचोगे। लेकिन मेरी मानो तो ये बारिश का मौसम ही है, जो आपको ट्रैवलिंग के सबसे यादगार अनुभव देता है।
और सच मानो तो मेरी जान ट्रैवलिंग करते कभी मुसीबत में नहीं पड़ी। भारी बारिश और भूस्खलन के कारण एक बार मेरी ट्रिप थोड़ी बर्बाद ज़रूर हुई है। लेकिन यही ख़राब क़िस्मत मेरी ज़िन्दगी की सबसे यादगार ट्रिप भी लेकर आई।
कैसे शुरू हुआ ये सफ़रनामा
बात है अगस्त 2019 की, आज़ादी वाली सुबह के बाद ठीक अगला दिन। मनाली में दोस्त की शादी में जाने की पूरी प्लानिंग के साथ मैं अपने घर पालमपुर से निकल रहा था। भीनी भीनी बारिश होने लगी थी, लेकिन ये तो हिमाचल में आम है। मैं भी कानों में इयरफ़ोन और आँखों में आइकैप लगाकर सोने की कोशिश करने लगा।
जब उठा तो नज़ारा तो कुछ और ही था, लोग पता नहीं क्यों ख़ूब सारा शोर कर रहे थे। किसी ने बताया कि हमारी गाड़ी ने बीच सड़क में तगड़ा जाम लगा रखा है। बारिश तेज़ थी और बिजलियाँ अलग चमक रही थीं।
थोड़ा समझ आया तो किसी ने बताया कि आगे भूस्खलन हुआ है। यहाँ से कुल्लू लगभग 20 कि.मी. दूर था। ऐसे में बस एक ही ख़्याल आता है, "अगर ये बस भी खाई में गिरी तो मैं बचूँगा या नहीं।" लेकिन बाहर निकलना भी कोई उपाय नहीं था। रात की भयंकर सर्दी और तेज़ बारिश में हम बेवकूफ़ों की तरह बस में बैठे थे।
तेज़ बारिश में कैसे चमकी मेरी क़िस्मत
"क्या लगता है कब तक खुल जाएगा?", मैंने अपने साथ बैठे सज्जन से पूछा।
"इसमें तो टाइम लग जाएगा, कहाँ जाना है आपको?"
"नग्गर", मैंने कहा।
और फिर हम दोनों अपने गाँव की बातें करने लगे। उसने बताया कि उसका गाँव यहाँ से क़रीब 3-4 कि.मी. दूर है।
मैंने कहा,"फिर तो सही है। बारिश थोड़ी कम हो तो आप जल्दी ही घर जा पाएँगे। मुझे तो जाना भी दूर है और घर तो और भी दूर।"
बाहर तेज़ बारिश दोनों ही के अरमानों पर बस बरसती जा रही थी।
यहाँ मैं अपने अगले दिन की ख़ुशियों को लेकर मन मसोस रहा था। अब तो मेरी चिन्ता अपने ही घर पहुँचने को लेकर थी।
काफ़ी देर बाद वो सज्जन बोले, "यहाँ से रास्ता खुलने में टाइम लगेगा और आगे नग्गर जाने में आपको और भी मुश्किल होगी। आप एक काम करो, आप सुबह मेरे साथ चलो। मेरा घर पास में ही है। रास्ता आज शाम या कल सुबह तक क्लियर हो जाएगा। तब अपने घर निकल जाना आप।"
मेरी फूटी क़िस्मत थोड़ी बहुत सुधारने का यही सही तरीका था। मैं भी उनकी बात तुरन्त मान गया। हमने एक टैक्सी की और उनके घर की ओर रवाना होने लगे और यहाँ जो देखा मैंने, उस नज़ारे को बताने के लिए मेरे पास अल्फ़ाज़ नहीं हैं। उनका घर जिस रास्ते से होकर जाता था, क्या कहने उसके।
बिना बुक किए मिला वो शानदार होमस्टे
लगभग शाम हो चुकी थी। अमित फ़ोन पर कुछ बात कर रहे थे और मैं खिड़की पर बैठकर यूँ ही कुछ सोच रहा था। बारिश और बादलों ने जो तूफ़ान मचाया था, वो बाहर देखने की तो मेरी ख़ास ख़्वाहिश नहीं थी। फिर अमित ने कहा, "पहुँच गए"।
जब हम उतरे तो बाहर एक आदमी दो छाते लेकर खड़ा था। आवभगत अच्छा था उन लोगों का। मेरे दरवाज़ा खोलते ही उसने मेरा बैग भी ले लिया। "ये सुमित, मेरे छोटे भाई।", अमित कुछ भीग चुके थे। इतना सुन्दर और सहज आवभगत देखकर मन बहुत ख़ुश हुआ।
हम उनके घर की ओर बढ़े। जो नज़ारे थे, उनको शायद ही कोई भूल पाए। एक नीले रंग की दो मंज़िला इमारत, जिस पर टिन की छत थी। संभवतः यही उनका घर था।
कैसे मैं यहाँ पहुँचा, बारिश हो रही थी और अमित का व्यवहार और उनकी भलमनसाहत ही थी कि मैं इस सुन्दर सी जगह आ पाया, यही सोचते हुए मैं चल रहा था कि उनका घर आ गया। कुछ लकड़ीवाला और कुछ ईंटों का सजा, घर में एक बगीचा भी था। उसके बगल में दीवार पर ब्यास नदी और पहाड़ों की तस्वीरें थीं। अब सच पूछो तो इतना सुन्दर घर देखकर मुझे थोड़ी सी जलन भी होने लगी थी।
हिमाचली चाय संग आवभगत
मैं अब तक उनका पूरा घर देख ही नहीं पाया था कि अमित की मम्मी गर्म हिमाचली चाय और बिस्किट लेकर आईं। चाय पीकर तो मानो आत्मा ही तृप्त हो गई। उनका परिवार अब मुझे अपना ही लग रहा था।
"ये आपका कमरा। आप थोड़ा आराम कर लो, थके होंगे", सुमित ने कहा। उस कमरे की खिड़कियों से हरे रंग की पहाड़ियाँ दिखती थीं, ब्यास नदी ठीक बगल से गुज़रती थी।
"ये होमस्टे आपने पहले से बनाया है क्या?" मैंने बाहर देखते हुए पूछा।
"होमस्टे, वो क्या होता है?" सुमित नादानी भरी आँखों से देख रहा था। मैं बहुत ख़ुशक़िस्मत था कि इतने अच्छे होमस्टे में रहने का मौक़ा मिला।
मैं दोपहर के खाने के लिए उठा। खाने में कुल्लू की कोई प्रसिद्ध देसी डिश थी, साथ में था चना मद्रा और कुल्लू ट्राउट। खाना खाकर दिल और पेट दोनों भर गए। शायद ही वो मेरे नाम के सिवा मेरे बारे में कुछ भी जानते थे, फिर भी उन्होंने मेरा इतना आवभगत किया।
और फिर आया शुक्रिया अदायगी का वक़्त
दोपहर के दो बज रहे थे और बारिश थम चुकी थी। अमित और मैं बाहर देखने गए कि रास्ता साफ़ है कि नहींं। अगर मुझे और रुकने का मौक़ा मिलता तो बिल्कुल भी नहीं छोड़ता। बाहर निकले तो गाँव पानी की बारिश में अपनी सुन्दरता के शबाब पर था। आधा दिन इस सुन्दर जगह की ख़ूबसूरती निहारने के लिए बहुत ही कम है।
सूरज लगभग डूबने को था और रास्ता आगे साफ़ हो गया था। गाँव वालों ने भी इसकी तस्दीक की। इतनी सुन्दर जगह को छोड़ने का वक़्त आ गया था। मैं बैग पैक कर ही रहा था कि अंटी ने बहुत मातृ लहजे में कहा, "आज यहीं रुक जाओ। दोस्त को बोल देना कि रास्ता बन्द है इसलिए नहीं आ पाऊँगा। आगे फिर कहीं फँस गए तो?"। मैं बहुत कृतज्ञ होते हुए कहा, "नहीं फँसता अंटी जी। और फँस भी गया तो क्या पता, कोई और अमित बन के मेरी मदद कर दे।"
टैक्सी तैयार थी। अमित ने कार में बैग रखने में मदद की। साथ में खाने का कुछ सामान भी अंटी ने बाँध दिया। कार चल दी, मैंने हाथ हिलाकर उनका शुक्रिया अदा किया और इन चंद पलों को याद करने लगा। बहुत यादगार था पूरा क़िस्सा। मैं समय रहते अपने दोस्त की शादी में भी पहुँच गया, और फिर अपने घर पालमपुर में कुछ समय बिताया। लेकिन उनके साथ बिताया समय बिल्कुल नहीं भूल सकता। किस तरह एक ख़राब मौसम और मेरी बदक़िस्मत ने मुझे इतने प्यारी जगह और शालीन परिवार की आवभगत पाने का मौक़ा दिया।
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