यारों की टोली, भांग की गोली, और पुष्कर की होली!

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Photo of यारों की टोली, भांग की गोली, और पुष्कर की होली! 1/1 by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

जयपुर से करीब 150 कि.मी. दूर पुष्कर नाम का एक गाँव है जहाँ की हवा में नशा घुला है | भारत से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी लोग यहाँ की नशीली हवा में साँस लेने आते हैं | हज़ारों लोग आस्था के नशे में धुत यहाँ के ब्रह्मा मंदिर में कतारें लगाए खड़े होते हैं, कई यहाँ की मशहूर भांग लस्सी पीकर झील किनारे डूबते सूरज का नज़ारा देखते हैं |

मगर होली के दिन सब हदें पार हो जाती हैं, जब देशी-विदेशी लोग पुष्कर बाज़ार में भंग की तरंग और ट्रांस गानों की धुन पर झूमते हुए होली खेलते हैं |

चारों तरफ रंग उड़ रहे होते हैं, बाज़ारों में स्पीकर पर कानफोड़ू गाने बज रहे होते हैं और लोग एक दूसरे के कपड़े फाड़कर होली मनाते हैं | हर साल गुजिया खा कर परिवार के साथ होली मनाने वाली मेरे कुछ दोस्तों की टोली और मैं भांग की गोली खा कर पुष्कर की होली देखने निकल पड़े |

एक दोस्त की पुरानी ऑल्टो गाड़ी में बैठ कर हम जयपुर से 150 कि.मी. दूर पुष्कर की ओर निकल चले | वैसे तो सड़क से जयपुर से पुष्कर जाने में ढाई घंटे लगते हैं मगर होली के दिन सरकारी छुट्टी थी, इसलिए नैशनल हाइवे 48 के सपाट रास्ते पर सरपट दौड़ती गाड़ी में सिर्फ़ 2 घंटे में हम पुष्कर पहुँच गए|

जयपुर से पुष्कर जाते समय रास्ते में अजमेर आता है | यहाँ मशहूर पीर बाबा ख्वाजा ग़रीब नवाज़ मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है, जहाँ फिल्म रिलीज़ से पहले बॉलीवुड के बड़े-बड़े दिग्गज चादर चढ़ाने आते हैं |

अजमेर से आगे बढ़ने पर घाटीनुमा रास्ते आ जाते हैं, जो झूले की तरह उपर-नीचे झुलाते हुए आपको पुष्कर शहर में उतार देते हैं |

सुबह 6 बजे जयपुर से निकले हम लोग करीब 8 बजे पुष्कर पहुँच गये | हमने पहले से एक होमस्टे बुक करवा लिया था, जहाँ जाकर गाड़ी खड़ी कर दी | हाथ मुँह धोने के बाद पुष्कर की मस्ती देखने निकल पड़े |

बाहर जाकर देखा तो पुष्कर के बाज़ारों की गलियों में ना तो दुकाने खुली थी, ना ही कोई भीड़ दिखाई दे रही थी | इक्का-दुक्का बच्चा रंग में सना हुआ यहाँ-वहाँ घूमता दिख रहा था | पूछने पर पता चला कि लोग आपस में होली खेलना 10 बजे बाद शुरू करते हैं | अब 2 घंटे कैसे बिताएँ, ये समझ नहीं आ रहा था |

सोचा होम स्टे में 2 घंटे बिताने की बजाए क्यों ना पुष्कर की मशहूर जगहें घूम ली जाएँ | इन जगहों में सबसे पहले नंबर पर था ब्रह्मा मंदिर |

ब्रह्मा मंदिर

लोगों को ग़लतफहमी है कि पुष्कर का मंदिर भारत ही नहीं दुनिया का भी अकेला ब्रह्मा मंदिर है | पुष्कर के अलावा राजस्थान के ही बाड़मेर, तमिलनाडु के तिरुपत्तुर, कुल्लू के कोखन, गोवा के पणजी और तमिलनाडु के कुंबकोनम में भी ब्रह्मा मंदिर हैं |

पुष्कर के ब्रह्मा मंदिर से एक दिलचस्प कहानी जुड़ी है | कहते हैं कि ब्रह्मा ने शतरूपा नाम की एक औरत को बनाया और फिर खुद ही उसके रूप से दीवाने हो गये | शतरूपा ब्रह्मा से बचने के लिए जगह- जगह छुपने लगी | ब्रह्मा अपने पाँच सिरों से चारों दिशाओं और आसमान में भी शतरूपा को ढूँढने लगे | ब्रह्मा और शतरूपा का बाप-बेटी का रिश्ता था | इस रिश्ते को कलंक से बचाने के लिए शिव ने ब्रह्मा के 5 सिरों में से एक सिर काट दिया | जिस ओर कटा सिर देख रहा था, वहाँ शतरूपा छुप गयी |

इसके चलते ब्रह्मा को त्रिमूर्ति में नहीं गिना जाने लगा और उनकी पूजा भी बंद कर दी गयी | इसीलिए भारत में गिनी चुनी 6 ही जगह ब्रह्मा के मंदिर हैं |

घाट पर बैठकर चिलम पीते एक पंडित ने हमें ये कहानी सुनाई और दम लगाकर हरिओम बोल उठकर चला गया |

घाट पर बैठे कहानी सुनने में 2 घंटे कहाँ चले गए, पता ही नहीं चला | पंडित ने बताया था कि पुष्कर में होली की सबसे ज़्यादा भीड़ वराह घाट में जमा होती है | तो हम वराह घाट की ओर चल दिए |

Photo of ब्रह्माजी मंदिर, Brahma Temple Road, Ganahera, Pushkar, Rajasthan, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

पुष्कर में कुल 52 घाट हैं, जिनमें से गाँधी घाट सबसे जाने माने घाट में से एक हैं | कहते हैं यहाँ महात्मा गाँधी की राख छिड़की गयी थी |

52 घाटों और वहाँ बने 400 से ज़्यादा मंदिरों का चक्कर काटते हुए हमें लाउडस्पिकर की आवाज़ सुनाई दे गयी थी | वराह घाट के ऊपर चढ़कर बाज़ार के चौक पर पहुँचे तो देखा कि सैकड़ों लोग अपनी- अपनी धुन में नाचे जा रहे हैं | देशी विदेशी लोग डबस्टेप संगीत की आवाज़ पर आँख बंद करे झूम रहे हैं | गिने- चुने लोगों के पास कैमरे थे, और जिनके पास थे वो भी बाज़ार की भीड़ से ऊपर घरों की छत से अपने व्लॉग बना रहे थे | हम अपने कैमरे, मोबाइल और पर्स होम स्टे में ही छोड़ आए थे, ताकि भीड़ में बिना टेंशन के खूब मस्ती कर सकें | देखकर बड़ा अच्छा लगा कि बला की खूबसूरत विदेशी कन्याओं के भीड़ में होने के बाद भी लोग अपनी शालीनता बनाए हुए थे | रंग लगाने के बहाने कोई छेड़ छाड़ नहीं चल रही थी | बाज़ार में पुलिस भी पूरी मुस्तैदी से तैनात थी | रंग से सराबोर लोगों ने एक दूसरे के और अपने कपड़े फाड़ डाले थे |

होली की इस हुड़दंगी भीड़ में आप कपड़े पहन कर मस्ती कर ही नहीं पाएँगे | आस पास का पियर प्रेशर, नशा और संगीत का जादू ही इतना सिर चढ़ जाता है कि आप जोश में आकर खुद के ही कपड़े फाड़ लेते हो |

दोपहर 3 बजे तक भीड़ छँटने लगी | हम भी थक कर अपने होम स्टे वापिस आ गये | शाम 6 बजे मंदिर से आरती की आवाज़ आने लगी और ठीक इसी समय हम गाड़ी लेकर पुष्कर से निकल गये |

अगर आप हर साल की तरह सादा होली मना कर थक गये हैं तो अगली बार  पुष्कर की कपड़ा फाड़ होली में ज़रूर जाएँ |

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