पुष्कर को तीर्थराज भी कहा जाता है और पुष्कर को पुष्करराज भी कहा जाता है।
इस जगह का महत्व ठीक वैसे ही है जैसे प्रयागराज का महत्व है।
पुष्कर मेला कार्तिक महीने में दीवाली के बाद नवमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है।
कार्तिक पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्व है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही बाराणसी में देव दिपावली मनायी जाती है और
कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही सिखों के प्रमुख गुरु श्री गुरुनानक देव जी का जन्म भी हुआ था।
तो आप सभी का #अद्वैत्य_घुमक्कड़ की तरफ से तीर्थराज पुष्कर में हार्दिक स्वागत है।
पुष्कर में गुलाब की खेती ज़बरदस्त होती है...सो यहां का गुलकंद ओर गुलाबजल भी बहुत प्रसिद्ध है...चारो तरफ गुलाब ओर गुलकंद की खुशबू...पुष्कर के देशी घी के मालपुओं की महक बस चलते जाओ महसूसते जाओ पुष्कर को....
जब तक कि आपकी साँसों में पुष्कर की खुशबू ना आने लगे....जब तक आपका दिल दिमाग पुष्करमय ना हो जाये
इतनी ऊर्जा है इस कस्बे में की कोई निराश में निराश व्यक्ति भी यहां आके सुकून पा जाए।
पुष्कर पहुंचने के सबसे पहले आपको अजमेर जंक्शन पहुंचना होता है।
अजमेर से आप चाहें तो विश्व प्रसिद्ध दरगाह भी जा सकते हैं।
अजमेर स्टेशन से दरगाह 1.4kms है जहाँ आप आराम से पैदल जा सकते हैं।
ऑटो वगैरह ना ही लें तो अच्छा है, क्योंकि रास्ते बहुत ही संकरे हैं।
तो ऑटो वाले आपको बहुत पीछे भी उतार सकते हैं।
आप आते हैं पुष्कर की तरफ, अजमेर से पुष्कर करीब 15kms है।
और अजमेर से पुष्कर आने में आपको 30 मिनट लग सकते हैं।
अगर आप स्टेशन से बस लेकर जाते हैं तो आपको वो 30 रुपये लेता हैं।
और अगर बस स्टैंड से बस लेते हैं तो आपको 15 रुपये लगते हैं,
जबकि स्टेशन से बस स्टैंड तक के 10 रुपये ऑटो में लगेंगे।
पुष्कर:- एक बहुत ही छोटा सा शहर है जहाँ आपको कहीं भी
ऑटो या कुछ और लेने की जरूरत नहीं है। अब हर एक जगह पैदल ही जा सकते हैं।
यहाँ पुष्कर में पुष्कर झील बहुत ही प्रसिद्ध तथा हिंदुओ का प्रमुख श्रद्धा का केंद्र है।
पुष्कर झील में 52 घाट हैं कि आपस मे वेल कनेक्टेड है मतलब आप पैदल पैदल सभी 52 घाट घूम सकते है लगभग 2 किलोमीटर का चक्कर लगेगा...जिनमे बराह घाट और गऊ घाट प्रमुख हैं।
इन 52 घाटो में से वराह घाट प्रमुख है जहां रोज़ शाम को आरती होती है।
सभी घाटों पे पैदल ही जा सकते हैं। और पूरी झील का परिक्रमा का अपना ही महत्व है।
एक चीज यहाँ महत्वपूर्ण है कि आप घाटों पे जूतों में नही जा सकते हैं,
या तो आपको जूते हाथ में पकड़ने होंगे या फिर बैग में रखने होंगे।
जयपुर घाट से सूर्यास्त बहुत ही सुंदर दिखता है और रात में इसी घाट से
तिरंगे और अन्य चीजों का बहुत ही मनमोहक दृश्य दिखता है।
पुष्कर जाने का सही समय है अक्टूबर से मार्च, मतलब दीपावली से होली तक।
पुष्कर की होली मनाने भी लोग दूर दूर से आते हैं।
सर्दियों में पुष्कर जवान हो जाता है,गर्मियों में माहौल यहां बहुत उदासी भरा हो जाता है।
सो गर्मियों में पुष्कर जाना अवॉयड करना चाहिए,
इन दिनों पुष्कर अपने अलग ही रंग में है हो।
आइये!एक बार
पुष्कर के दर्शनीय स्थल:- ब्रह्मा मंदिर, सावित्री मंदिर, रंग मंदिर, गुरुद्वारा साहिब और अन्य छोटे बड़े मंदिर।
सावित्री मंदिर
पुष्कर में ब्रह्माजी के मंदिर के अलावा उनकी पत्नी सावित्री का भी मंदिर है,
जो कि अरावली पर्वतमाला के रत्नागिरी पहाड़ पर बना हुआ है।
वैसे तो ये मंदिर 7 वी शताब्दी का है पर इसका निर्माण 1687 में विधिवत रूप से करवाया गया।
ब्रह्मा जी का पुष्कर में एकमात्र मंदिर होने और उनकी पत्नी
गायत्री से मंदिर अलग अलग होने के पीछे एक पौराणिक कथा है।
धरा पे एक राक्षस का बहुत आतंक हो गया था,
ब्रह्मा जी ने उस राक्षस का जहां वध किया वो जगह पुष्कर ही थी।
इस युद्ध के दौरान ब्रह्मा जी के हाथ का नीला कमल का फूल जमीन पे तीन टुकड़ो
में गिरा वहां तीनो जगह सरोवर बने- ज्येष्ठ पुष्कर, बूढ़ा पुष्कर ओर कनिष्क पुष्कर।
राक्षस के वध के पश्चात शुद्धिकरण के लिए बृह्मा जी ने पुष्कर में ही यज्ञ का मन बना लिया,
अगले दिन सुबह यज्ञ प्रारंभ हुआ तब तक सावित्री यज्ञ स्थल नही पहुंची।
यज्ञ स्थल पर पत्नी का बैठना आवश्यक होता है तो ब्रह्मा जी पास ही बैठी कन्या गायत्री से
आनन फानन में विवाह किया जिसमे विष्णु भगवान ने मुख्य भूमिका निभाई,
और गायत्री के साथ यज्ञ में बैठे।
यज्ञ के दौरान सावित्री वहां पहुंच गई और बृह्मा जी के साथ गायत्री को देखते ही रुष्ट हो गयी,
और वहीं चलते यज्ञ में बृह्मा जी को श्राप दिया की आज के बाद तुम पुष्कर के अलावा
कहीं नही पूजे जाओगे और यहां के अलावा कोई भी तुम्हारा मंदिर बनवायेगा तो उसकी मृत्यु निश्चित है।
भगवान विष्णु जिन्होंने गायत्री विवाह में मुख्य भूमिका निभाई उनको श्राप दिया
कि तुमको पत्नी वियोग सहना पड़ेगा, इसीलिए विष्णु के रामावतार को सीता जी से वियोग सहना पड़ा
और नारद जी भी वहीं बैठे थे उनको श्राप मिला कि तुम आजीवन कुंवारे रहोगे,
इतने सारे श्राप देकर सावित्री पहाड़ी पर जाकर तपस्या लीन हो गयी जहां आज सावित्री मंदिर है।
पुष्कर में सबसे प्रसिद्ध खाने वाली चीज है- माल पुआ
ये शुद्ध देशी घी के बने होते हैं और इन्हें रबड़ी के साथ खाने में एक अलग ही स्वाद आता है।
अगर आप पुष्कर जा रहे हैं तो ये माल पुआ खाये बिना आना नहीं।
इनकी कीमत होती है 400 रुपये प्रति किलो और अगर आपको 2 माल
पुए चाहिए तो आपको देने होंगे 40 रुपये और रबड़ी के साथ 60 रुपये।
पुष्कर अपने पशु मेले की वजह से विश्व प्रसिद्ध है जिसमे देश तथा विदेश
के सैलानी हिस्सा लेते हैं। इस बार का मुख्य आकर्षण घोड़े, ऊंट
और भीम नाम का भैंसा था, जिसकी कीमत 15 करोड़ थी।
अब आते हैं पुष्कर के सबसे प्रसिद्ध ट्रेक सावित्री मंदिर के
यहाँ तक आपको जाने के लिए 30 से 40 मिनट चलना पड़ता है।
अगर आप चाहें तो रोपवे का प्रयोग भी कर सकते हैं जिसकी
कीमत एक तरफ से 86₹ और दोनों तरफ से 126₹ है।
अगर आप मेले में जा रहे हैं तो एक चीज का विशेष ध्यान रखें कि
अगर आप ऐसे ही किसी भी ऊँट या व्यक्ति/महिला की फ़ोटो ले रहे हैं
तो 10 या 20₹ हमेशा तैयार रखें क्योंकि वो आपसे ऐसे करने के लिए पैसे मांगेंगे ही।
तो इस बात के लिए बहस ना ही करें, या फिर उनकी फोटो ना ही खींचें।
अब आते हैं पुष्कर घूमने के लिए आपके पास कितने दिन होने चाहिए?
तो आपके पास होने चाहिए कम से कम 2 दिन।
जी हाँ 2 दिन, 2 दिन में आप सब कुछ ही घूम सकते हैं।
अब आते हैं मेरी यात्रा पे
Day:1- सुबह अजमेर पहुचा उसके बाद स्टेशन से बस लेकर पुष्कर पहुँच गया।
वहाँ जाकर होस्टल लेकर तैयार हुआ। होस्टल सस्ते मिल जाते हैं
और बाकी घुमक्कड़ों से भी मुलाकात हो जाती है।
फिर घाटों पे घूमने गया और फिर ब्रह्मा जी के मंदिर फिर वहीं से मेला गया।
शाम को होस्टल आ गया।
Day:2- अगली सुबह जागकर तैयार होके घाटों की तरफ गया और सावित्री देवी के मंदिर गया।
सावित्री देवी के मंदिर से पुष्कर का बहुत ही सुंदर दृश्य दिखता है।
फिर वापस से मेला घूमने गया।
आप चाहें तो रात को ही अजमेर आ सकते हैं या फिर रात रुक भी सकते हैं।
तो मैं रात को यहीं रुक गया। दोस्तों के साथ बातचीत की व बहुत ही मस्ती ही।
Day:3- अगली सुबह जाग कर अजमेर गया वहाँ से मुझे बनारस जाना है तो
अजमेर से बनारस की ट्रेन पकड़नी है और में मेरी आगे की यात्रा आपको अगले पार्ट में बताऊँगा और दिखाऊँगा।
I❤️ Pushkar
Incredible Pushkar
Rangilo Rajasthan