फुगताल मठ: 2500 साल पुराने मोक्ष के द्वार तक का सफरनामा

Tripoto
12th Oct 2023
Photo of फुगताल मठ: 2500 साल पुराने मोक्ष के द्वार तक का सफरनामा by रोशन सास्तिक

हम सब सफर करना पसंद करते हैं। हमारा जीवन भी अपने आप में एक तरह का सफर ही है। जिसकी शुरुआत हमारे जन्म से होती है और एक दिन मौत के रूप में मंजिल से मुलाकात हो जाती है। लेकिन इस सफर का एक हिस्सा ऐसा भी होता है जो हमारे अंदर चल रहा होता है। इस सफर के जरिए हम अपने सभी सवालों के जवाब ढूंढकर या फिर सारे सवालों से मुक्त होकर शांति तक पहुंचने का प्रयास करते हैं। और आज हम आपको एक ऐसे ही सफर पर लेकर जाने वाले हैं, जिसकी मंजिल पर पहुंचकर आपको असीम शांति का अनुभव होगा। इस जगह पर आकर आपको मोक्ष मिले ना मिले लेकिन यहां मोक्ष पाए लोगों की वाइब जरूर मिल जाएगी। जो आपको सुकून के समुंदर में डुबाने का काम करेगी।

हम आपको लद्दाख के जांस्कर घाटी में स्थित एक ऐसी पहाड़ी पर लेकर जाएंगे, जहां प्राकृतिक रूप से एक गुफा बनी हुई है। ज़ाराप नदी के ठीक बगल में खड़ी चट्टान पर मौजूद गुफा के अंदर बनाए गए इस मठ का नाम फुगताल हैं। मान्यता के अनुसार करीब 2500 साल पहले महात्मा बुद्ध के 16 अनुयायी इस जगह पर आए थे। यहां रह कर उन्होंने करीब 3000 बौद्ध भिक्षुओं को दीक्षा दी। और इसके बाद से ही यह स्थान लद्दाख के सबसे पवित्र स्थलों की सूची में शामिल हो गया। लंबे समय से बौद्धों धर्म के भिक्षुओं के लिए ध्यान का अहम केंद्र रहने के चलते इस जगह का नाम फुगताल पड़ गया। फुग यानी गुफा और ताल यानी आराम की जगह। वैसे फुगताल को फुगथार नाम से भी जाना जाता है। यहां थार का अर्थ मुक्ति होता है। इसलिए लोग इस जगह को मुक्ति मठ की गुफा भी कहते हैं।

वर्तमान में जो मठ यहां मौजूद नजर आता है उसका निर्माण करीब 600 साल पहले जांगसेम शेराप जांगपो द्वारा किया गया। फुगताल मठ में रहने वाले लोगों के लिए चार प्रार्थना कक्ष बने हुए हैं। पठन-पाठन के लिए स्कूल की सुविधा भी मौजूद है और अलग से एक पुस्तकालय भी बनाया गया है। यहां आने वाले पर्यटकों के लिए स्थानीय लोगों द्वारा अतिथि कक्ष और रसोईघर की भी व्यवस्था की गई है। इस जगह को दूर खड़े होकर देखने पर पहाड़ पर मौजूद फुगताल मठ आपको गुफा में किसी मधुमक्खी के छत्ते की तरह लटकी हुई संरचना सा नजर आएगा। इसकी बड़ी ही जटिल संरचना को देखकर इस बात का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसके निर्माण के वक्त कितनी ही मुश्किलें आई होंगी।

लकड़ी और मिट्टी से बनाए गए फुगताल मठ की दीवारों पर आपको आज भी यहां सर्वप्रथम आने वाले 16 बौद्ध अनुयायियों की छवियां देखने को मिल जाएंगी। यहां मौजूद एक पत्थर पट्टिका पर आपको पहले अंग्रेजी-तिब्बती शब्दकोश के लेखक अलेक्जेंडर सीसोमा डी कोर का नाम लिखा हुआ दिख जाएगा। और इसके जरिए यह जानकारी भी हाथ लगेगी कि इन्होंने ही साल 1826 में अपनी लद्दाख यात्रा के दौरान दुनिया से अलग-थलग पड़े फुगताल मठ की खोज की थी। वैसे आपको यह जानकर बेहद हैरानी होगी कि साल 1826 में खोज लिए जाने के बावजूद साल 2022 तक भी यहां पर पहुंचने के लिए कोई सीधी और पक्की सड़क तक नहीं बन पाई थी। कुछ समय पहले तक यह लद्दाख के एकमात्र बौद्ध मठों में से था जहां केवल पैदल ही पहुंचा जा सकता था।

फुगताल मठ दिखने में जितना मनमोहक है; उतना ही खतरनाक और रोमांचक है यहां तक पहुंचने के लिए तय किया जाने वाला पैदल ट्रेक का रास्ता। सड़क बनने से पहले अपनी सुविधा और रिस्क लेने की क्षमता के अनुसार फुगताल मठ तक पहुंचने के लिए लोगों को एक से दो दिनों का ट्रेक करना होता है। इस दौरान आप कई बार ऐसे रास्तों से होकर गुजरते हैं, जहां अगर आप एक भी गलती करते हैं तो दुनिया से ही गुजर जाने का खतरा बन जाता है। इसलिए बहुत जरूरी है कि सिर्फ खूबसूरती देखने और सुकून पाने के लालच में आकर ही फुगताल मठ आने की गलती मत कर दीजिएगा। फुगताल मठ आने से पहले अपने मन और शरीर दोनों को इस बात के लिए तैयार कर लीजिएगा कि आपका रास्ता बहुत ज्यादा मुश्किल रहने वाला है।

मठ में घूमते हुए आपको ढेर सारे गुफानुमा पतले-संकरे रास्ते देखने को मिलेंगे। जिनसे होकर गुजरना आपको भूलभुलैया में भटकने का अहसास दिलाएगा। इन मजेदार गलियों के जरिए मठ का कोना-कोना घूमते वक्त आपको रास्ते में रंग-बिरंगे कपड़े पहने बच्चे दौड़ते-भागते नजर आ जाएंगे। ऐसे समय आपके लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा यह तय करना कि आप अपने नजरों को किसकी खूबसूरती निहारने पर फोकस करें। चट्टान पर अप्रत्याशित रूप से मौजूद प्राकृतिक गुफा में लकड़ी और मिट्टी से बने फुगताल मठ को देखे और देखते रह जाए या मठ की तरफ पीठ कर खड़े होने के बाद सामने नजर आते बेइंतहा दिलकश नजारों पर निहाल हो जाए या फिर आप इन सबको किनारे कर टमाटर जैसे लाल-लाल गाल लिए यहां-वहां उछल-कूद बच्चों की खिलखिलाहट में गुम हो जाए।

जमीन से करीब 16,600 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित फुगताल मठ में घुमने के लिए बतौर पर्यटक आपको सुबह 6 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक प्रवेश मिल जाता है। पर्यटक से फुगताल मठ में प्रवेश के लिए किसी तरह का शुल्क नहीं वसूल किया जाता है। इस मठ के मुख्य प्रवेशद्वार में दाखिल होने से पहले आपको एक पवित्र पुल से गुजरना होता है। जिसे लेकर ऐसी मान्यता है कि इसे पार करने भर से ही आपके सारे पाप कट जाते हैं। सामान्यतः फुगताल मठ में यहां आने वाले पर्यटकों के ठहरने की कोई सुविधा नहीं है। मठ के के नीचे एक गेस्ट हाउस है जहां पर ठहरा जा सकता है। हालांकि विशेष परिस्थितियों में देखा गया है कि कई बार मठ में भी यहां आने वाले पर्यटक के ठहरने की व्यवस्था कर दी जाती है। यहां महज एक दिन बीताकर भी आप अपने लिए जीवनभर की यादें जुटा सकते हैं।

Photo of फुगताल मठ: 2500 साल पुराने मोक्ष के द्वार तक का सफरनामा by रोशन सास्तिक
Photo of फुगताल मठ: 2500 साल पुराने मोक्ष के द्वार तक का सफरनामा by रोशन सास्तिक

फुगताल मठ में होने वाले त्यौहार भी एक अहम वजह होते हैं जिसे देखने के लिए हर साल हजारों लोग लाख जोखिम उठाकर भी यहां पहुंच जाते हैं। अगर आप भी फुगताल मठ को त्यौहार के समय ढेर सारे खूबसूरत रंगों में नहाए हुए देखना चाहते हैं; तो फिर आप फरवरी अंत और मार्च महीने के शुरुआती दिनों में मनाए जाने वाले स्मोनलैम चेनमो, मार्च महीने में ही मनाए जाने वाला चोंगा चोदपा, जुलाई और सितंबर महीने के मध्य में मनाए जाने वाले यार्न, साल के अंतिम महीने यानी दिसंबर की शुरुआत में मनाए जाने वाले गडम नागचोद जैसे त्यौहार में शामिल हो सकते हैं। फुगताल मठ के त्यौहारों का साक्षी बनकर ही आप इस जगह की खूबसूरती को असल में देख और जी पाने का सौभाग्य हासिल कर पाएंगे।

फुगताल मठ तक पहुंचना टेढ़ी खीर है। क्योंकि यहां तक जाने का कोई सीधा रास्ता उपलब्ध नहीं है। अगर आप हवाई मार्ग के जरिए यहां आ रहे हैं तो आपको सबसे पहले लेह एयरपोर्ट पर उतरना होगा। जो कि फुगताल से करीब 350 किमी दूर है। ट्रेन से आने वाले मुसाफिरों को कटरा रेलवे जंक्शन तक का टिकट कटाना होता है। और स्टेशन भी फुगताल तक की दूरी 500 किमी से ज्यादा है। इसके बाद दोनों ही स्थान से आपको अपने गंतव्य स्थान यानी फुगताल मठ तक पहुंचने के लिए सबसे पहले पदुम शहर तक किसी गाड़ी के जरिए पहुंचना होता है। इसके बाद ऑफ रोड ड्राइविंग करने के बाद आप फुगताल मठ के सबसे निकटतम गांव 'चा' तक पहुंचते हैं। 'चा' से करीब 2 से 3 घंटे की ट्रेकिंग के बाद आपको सुनहरे रंग के बंजर पहाड़ की चोटी पर फुगताल मठ के दर्शन हो जाते हैं।

फुगताल मठ जाने का सबसे सही समय अप्रैल से जून तक का होता है। हालांकि ऐसे लोगों की भी संख्या कम नहीं है जो सितंबर और अक्टूबर के महीने में यहां जाने का प्लान बनाते हैं। उपर्युक्त महीनों के दौरान यहां लोगों के आने के दो अहम कारण होते हैं। पहला तो मौसम साफ होने के चलते रास्ता सूखा और सुरक्षित रहता हैं। दूसरा इन दिनों में यहां का तापमान भी 20 से 25 डिग्री सेल्सियस ही रहता है। हालांकि रात में यहां कई बार तापमान का स्तर 5 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। लेकिन ठंड से बचने के तमाम उपाय और उपकरण मौजूद होने के चलते लोगों को कोई खास परेशानी नहीं होती है। परेशानी का असली सामना जुलाई से अगस्त और नवंबर से फरवरी के महीनों में की जाने वाली यात्रा के दौरान करना पड़ता है। क्योंकि इन दिनों में यहां भयंकर बर्फबारी होती है और फुगताल मठ तक पहुंचने का रास्ता लगभग बंद हो जाता है।

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