जब भी ट्रेवल से जुड़े एडवर्टिजमेंट की बात होगी, तब हमारे दिमाग में सबसे पहले 'एमपी अजब है, सबसे गजब है' वाला जिंगल अपने आप बज जाएगा। इसके साथ ही 'हिंदुस्तान का दिल देखों' गाने की तो बात ही क्या करनी। बचपन में टीवी पर जब भी मध्यप्रदेश में पर्यटन बढ़ाने के उद्देश्य से दिखाए जाने वाले एडवर्टिजमेंट देखते थे, तब बहुत जोर से बहुत जल्द मध्यप्रदेश पहुंच जाने का मन करता था। मुमकिन है कि बचपन के बहुत से ख्वाबों की तरह बहुत से लोगों का हिंदुस्तान के दिल मध्यप्रदेश को घूमने का सपना भी अब तक सच में तब्दील नहीं हो पाया हो।
अब अगर आप भी बड़े होकर बचपन के अधूरे ख्वाबों को पूरा करने वाली पीढ़ी से हैं, तो हमारे पास आपके लिए एक हफ्ते में मध्यप्रदेश का कोना-कोना घूम लेने का परफेक्ट प्लान है। आपको बस करना यह है कि अंत तक इस आर्टिकल को पढ़ना है और इससे मिली जरूरी जानकारियों के जरिए हफ्ते भर की छुट्टी लेकर अपने सपनों को साकार करने के सफर पर निकल जाना है। तो चलिए जानते हैं कि सफर की शुरुआत कैसे करनी है? कहां-कहां घूमना है? क्या-क्या देखना है? कहां क्या खाना और कहां पर ठहरना है? और यह भी जानना है कि एक हफ्ते के सफर में हिंदुस्तान के दिल मध्यप्रदेश को कितने करीब से देखा और कितने महिन तरीके से समझा जा सकता है।
Day-1
सबसे पहले दिन सबसे पहला काम यह करना है कि अपने शहर से मध्यप्रदेश में बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन पहुंच जाना है। देश के किसी भी कोने से आप सड़क, रेल और हवाई इन तीनों मार्गों के जरिए उज्जैन बड़ी आसानी से पहुंच सकते हैं। उज्जैन आने के बाद सबसे पहले कहीं कुछ देर के लिए ठहरकर तरोताजा हो लेना है और फिर अपने सफर की शुरुआत महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के साथ कर देनी है। दिन के पहले पहर में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के बाद आप दोपहर को पेट पूजा करने का काम स्थानीय व्यंजन का स्वाद लेकर कर सकते हैं। इसके बाद आपको अपने दूसरे पड़ाव पर यानी मध्यप्रदेश में मौजूद दूसरे ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने निकल जाना है।
हमारा सौभाग्य है कि महाकाल ज्योतिर्लिंग से महज 150 किमी की दूरी पर ही मां नर्मदा नदी के किनारे ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग मौजूद है। अगर आप दिन के दूसरे पहर तक उज्जैन से निकल जाएं, तो फिर शाम होने से पहले ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग पहुंच जाएंगे। शाम के वक्त यहां का वातावरण एकदम बम-बम हो जाता है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के बाद नर्मदा नदी में नौकायन करते हुए सूरज को धीरे-धीरे अस्त होते देखने का सुकून सफर के पहले दिन की आपकी सारी थकावट को दूर कर देगा। इसके साथ समूचे परिसर में पसरी हुई आध्यात्मिक शांति भी आपकी सारी चिंताओं को समेटकर मां नर्मदा नदी में बहा देगी।
ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग की संध्या आरती में शामिल होने के बाद आप रात की रोशनी में नहाकर निहायती खूबसूरत नजर आने वाले बाबा की नगरी को कुछ देर भटक कर निहारने का काम किया जा सकता है। फिर थक हार कर आप यहीं एक अच्छा का ठिकाना तलाश कर रात के खाने और फिर आरामदायक नींद की व्यवस्था कर सकते है।
Day-2
दूसरे दिन हम सुबह तड़के सूरज के आगमन से पहले अपने अगले पड़ाव यानी भीमबेटका की गुफाएं देखने के सफर पर निकल पड़ेंगे। ओम्कारेश्वर से भीमबेटका की 250 की दूरी हंसते-गाते हुए तय करने तक दोपहर दस्तक दे देगा। भीमबेटका मानव इतिहास से जुड़ी एक बहुत खूबसूरत और महत्वपूर्ण जगह है। इस जगह का महाभारत काल से भी संबंध जुड़ा हुआ है। क्योंकि भीमबेटका का शाब्दिक अर्थ 'भीम के बैठने की जगह' ही है। करीब 10 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैले भीमबेटका के जंगलों में 700 से ज्यादा गुफाएं मौजूद हैं। इनमें से 400 गुफाएं ऐसी हैं, जिनमें करीब 30 हजार साल समय पहले के लोगों द्वारा तैयार किए गए खूबसूरत भित्ति चित्र है। हालांकि पर्यटकों के लिए इनमें से महज 20 ही गुफाएं खोली गई हैं। दीवार पर अपने पूर्वजों की कला की शानदार प्रदर्शनी देख आप इनके जरिए अपने बीते कल को करीब से समझ पाएंगे।
भीमबेटका में अपने पूर्वजों की चित्रकला का नमूना देखने के बाद हमारा अगला पड़ाव उनके चित्त को साधने की कला को जानने वाली एक जगह होगी। हम बात कर रहे हैं भीमबेटका से करीब 100 किमी की दूरी पर स्थित सांची स्तूप की। शाम शुरू होने से पहले हम यहां पहुंच कर बौद्ध धर्म से जुड़े इस बेहद अहम स्थल के साथ ही संध्या का समय बिताएंगे। सम्राट अशोक ने इस स्थान पर ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सबसे पहले यहां सांची स्तूप का निर्माण करवाया था। इसके बाद 12वीं शताब्दी तक बौद्ध धर्म से जुड़े अन्य स्मारकों का निर्माण इस इलाके में होता रहा। प्रचलित मान्यता के अनुसार सांची स्तूप का निर्माण गौतम बुद्ध के अवशेषों के ऊपर किया गया है। गौतम बुद्ध से जुड़े होने के चलते इस जगह का आध्यात्मिक महत्व तो है ही, साथ ही भारत की सबसे पुरानी पत्थर से निर्मित संरचना में भी इसका शुमार होता है।
सूरज के अस्त होने तक हम सांची स्तूप के सानिध्य में बैठकर अपने अंदर सवालों के शोरगुल को स्वाहा कर उसे आत्मिक शांति से भरने का काम करेंगे। इसके बाद रात के खाने के लिए किसी लोकल होटल का रुख किया जाएगा। पेट पूजा करने के बाद सीधे बिस्तर पर चले जाएंगे, ताकि अगले दिन के सफर के लिए जरूरी एनर्जी रिस्टोर की जा सके।
Day-3
मध्यप्रदेश घूमने निकले हैं, तो फिर इसकी राजधानी भोपाल के दर्शन किए बिना सफर में आगे बढ़ना सही नहीं होगा। तीसरे दिन हम सुबह-सुबह सांची स्तूप से 50 किमी का सफर तय करने के बाद झीलों के शहर भोपाल पहुंच जाएंगे। सुबह अपने सफर की शुरुआत हम एशिया के सबसे बड़े मानव निर्मित तालाब 'बड़ा तालाब' देखने के साथ करेंगे। शहर के बीच मौजूद यह बड़ा तालाब शहर की रौनक है। आप चाहे किसी एक किनारे बैठकर यहां की शांति में डुबकी लगा सकते हैं। या फिर तालाब में होने वाली बोटिंग का भी लुत्फ़ उठा सकते हैं। दिन का पहला पहर यहां बिताने के बाद आप दोपहर में अपनी शहरी दुनियादारी को पीछे छोड़ आदिवासी जनजीवन को समझने के लिए मध्यप्रदेश ट्राइबल म्युज़िम पहुंच जाएंगे। यहां आप आराम से आदिवासी जनजाति के सामान्य जनजीवन को समझने और उनकी असामान्य कलाकृतियों को देखकर अपनी दोपहर बीता सकते हैं।
शाम होने पर हम भगवान की शरण में पहुंच जाएंगे। मेरा मतलब शाम के वक्त आप खूबसूरत बिरला मंदिर जाकर अपने मन-मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकते हैं। मंदिर में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी के दर्शन करने के बाद हम मंदिर परिसर में ही सूरज को क्षितिज पर अस्त होते देखेंगे। और फिर रात के आगमन के बाद हम भोपाल शहर की चटोरी गली चले जाएंगे। जैसा कि नाम से ही जाहिर होता है कि खाने-पीने के शौकीन लोगों के लिए यह जगह एक दम जन्नत है। खासकर उनके लिए जो नॉन-वेज खाने से परहेज नहीं करते हैं। नॉन-वेज खाने वाली जमात के लिए भोपाल की चटोरी गली पेट पूजा की सबसे परफेक्ट जगह है। तो यहां स्थानीय व्यंजन का स्वाद चखने के बाद अपने ठिकाने पर लौट जाना है। ताकि एक अच्छी नींद लेकर अगले दिन के लिए खुद को तैयार किया जा सके।
Day-4
चौथे दिन दोबारा जल्दी सुबह उठकर हम फिर एक लंबी सड़क यात्रा पर निकल जाएंगे। और इस बार हम सांची स्तूप से करीब 300 किमी दूर जबलपुर स्थित भेड़ाघाट तक का सफर तय करेंगे। दोपहर होने से पहले ही हम यहां तक की दूरी तय कर लेंगे। और इस सफर का यह हमारा पहला स्पॉट होगा जहां हम एडवेंचरस होने की लिबर्टी का लुत्फ उठाएंगे। क्योंकि अपने मार्बल के पहाड़ के लिए जगप्रख्यात भेड़ाघाट में आपको धुंआधार जलप्रपात भी देखने को मिल जाएगा। सिर्फ देखना भर ही नहीं है बल्कि आप अगर चाहे तो नर्मदा नदी के 30 फीट ऊंचाई से गिरने के पश्चात बने जलप्रपात में बोटिंग जैसी वाटर एक्टिविटी भी कर सकते हैं। दूध से सफेद नदी के बहाव पानी में मचलती नाव पर बैठकर करीब 100 फीट तक की ऊंचाई वाले सफेद संगमरमर की चट्टानों के बीच गुजरने का जो अद्भुत अनुभव आप यहां हासिल करेंगे, वो हमेशा के लिए आपके जीवन का खुशनुमा हिस्सा बन जाएगा।
भेड़ाघाट में पूरी दोपहर धमाचौकड़ी कर गुजारने के बाद अपने इमोशंस को थोड़ा बैलेंस करने की जरूरत होगी। इसके लिए हम यहां से करीब 30 किमी की दूरी पर मौजूद प्राकृतिक करिश्मे का जीता जागता उदाहरण 'बैलेंसिंग रॉक' देखने चल पड़ेंगे। यह अजूबा इसलिए है क्योंकि एक बहुत बड़े चट्टान पर एक दूसरा बहुत बड़ा अर्धगोलाकार चट्टान बहुत छोटे से सहारे के जरिए टिका हुआ है। इसे पहली नजर में देखने के बाद ऐसा लगेगी कि यह किसी भी वक्त गिर सकता है। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि साल 1997 में जब जबलपुर में बहुत बड़ा भूकंप आया था, तब भी यह चट्टान जस का तस बरकरार था। फिर चाहे इन झटकों से शहर से बड़े से बड़े इमारत ही क्यों न ढह गए हो। यहां से आप समय निकालकर चाहे तो मदन महल किला और रानी दुर्गावती किला भी देखने जा सकते हैं।
रात के समय जबलपुर शहर की नाइट लाइफ को भी एन्जॉय किया जा सकता है। जबलपुर स्टेशन से सटे इलाकों में मौजूद बाजारों में अपने लिए शॉपिंग की जा सकती है। इसके बाद आप रात को बिस्तर पर जाने से पहले स्ट्रीट फूड के जरिए पेट पूजा का काम भी निपटा सकते हैं।
Day-5
सफर के पांचवे दिन की शुरुआत भी हम सुबह जितनी जल्द हो सके उतनी जल्द कर देंगे। इस दिन हम अब तक का सबसे लंबा सफर तय करने वाले हैं। जबलपुर से करीब 275 किमी का लंबा सफर तय करने के बाद हम जग प्रसिद्ध खजुराहो मंदिर पहुंच जाएंगे। यहां पर पहुंचने के बाद सबसे पहले ठहरने का ठिकाना ढूंढकर सफर की थकान को दूर भगाया जाएगा। इसके बाद हम दीवार पर बनाई गई सेक्स एजुकेशन से जुड़ी मूर्तियों के लिए दुनियाभर में विख्यात खजुराहो के मंदिरों को देखने चल पड़ेंगे। साल 950 से लेकर 1050 तक करीब 100 सालों के दरम्यान यहां करीब 85 मंदिर बनाए गए थे। हालांकि वर्तमान में सिर्फ 22 मंदिरों का ही अस्तित्व बचा रह गया है। यूनेस्को विश्व विरासत स्थल खजुराहो को तीन भागों में बांटा गया है। इसके ज्यादातर मंदिर पश्चिम हिस्से में आते हैं। पूर्वी इलाके में ज्यादातर जैन मंदिर है और दक्षिणी इलाके में महज गिनती भर के ही मंदिर सही सलामत बचे हुए हैं। खजुराहो के मंदिरों में बनी नग्न मूर्तियों के पीछे तमाम तरह के तर्क दिए जाते हैं। हालांकि गलत और सही से इतर यहां बनाई गई एक भी नग्न मूर्ति देखने में अश्लील नहीं लगती।
कुछ लोगों का मानना है कि क्योंकि उस वक्त के राजा लोग का ज्यादातर समय भोग विलास में ही बीतता था इसलिए उन लोगों ने इस तरह के मंदिर बनाए। लोगों का यह भी मानना है कि हमारे पूर्वजों ने सामान्य जन मानस को सेक्स एजुकेशन देने के लिए मंदिरों में इस तरह की मूर्तियों का निर्माण कराया होगा। इसके साथ ही यह भी सोच काफी सशक्त है कि इस तरह की मूर्तियों का निर्माण ज्यादा से ज्यादा लोगों को मंदिर की ओर आकर्षित करने के लिए किया गया। क्योंकि उस दौर में ज्यादातर लोग बौद्ध धर्म का रुख कर रहे थे। इसलिए नग्न मूर्तियों के जरिए उन्हें हिन्दू मंदिरों से दोबारा जोड़ने का काम किया गया। वैसे इस तरह की संरचना का आध्यात्मिक पहलू यह भी है कि हिन्दू धर्म में आदमी को धर्म, अर्थ, योग और काम इन चारों रास्ते से होकर गुजरना होता है। इसलिए खजुराहो मंदिर के बाहर कामुक मूर्तियों का निर्माण कराया गया, ताकि आम आदमी मंदिर के बाहर ही इस तरह की सारी काम भावनाओं को भोग लेने के बाद भगवान से जुड़ जाए।
अपने सफर का पांचवा दिन हम पूरी तरह खजुराहो के मंदिरों और उनमें मौजूद मूर्तियों को बेहद करीब से देखने, इनके जरिए अपने अतीत को पूरी शिद्दत के साथ समझने और अध्यात्म को लेकर उनके नजरिए को जानने में ही खर्च कर देंगे। खजुराहो को दिन भर पूरी तरह खंगाल लेने के बाद अपने कमरे में लौटकर आरामदायक नींद के लिए खुद को बिस्तर के हवाले कर देंगे।
Day-6
सफर के छठवें दिन हम ओरछा फोर्ट और ग्वालियर फोर्ट देखने के लिए सुबह-सुबह ही खजुराहो से अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर निकल जाएंगे। यहां से कुछ 170 किमी का सफर कर हम ओरछा फोर्ट के प्रांगण तक पहुंच जाएंगे। इसके परिसर में आपको एक साथ खूबसूरत संरचना और ऐतिहासिक महत्व रखने वाले ढेर सारे किले देखने मिलेंगे। यहां पर मौजूद सबसे अहम ओरछा फोर्ट का निर्माण राजा रुद्र प्रताप ने साल 1501 में कराया था। ओरछा फोर्ट परिसर में ही आपको राम महल और राम मंदिर दोनों ही देखने को मिल जाएंगे। इसके अलावा पैलेस ऑफ मिरर भी देखने में इतना खूबसूरत है कि एक बार नजर पड़ गई तो फिर इस पर से नजर हटाना मुश्किल हो जाता है। वैसे यहां दोस्ती की मिसाल पेश करने वाला जहाँगीर फोर्ट भी है। जिसके पीछे की कहानी यह है कि इस फोर्ट को साल 1605 में राजा उदित सिंह ने अपने दोस्त मुगल सम्राट जहाँगीर के आतिथ्य सम्मान के लिए बनाया था।
दोपहर तक ऐतिहासिक निर्माणों को घूमने-फिरने के बाद हम पहले तो पेट पूजा का इंतजाम करेंगे और फिर थोड़ा सुस्ता लेने के बाद चल देंगे अपने अगले पड़ाव यानी ग्वालियर फोर्ट की ओर। ओरछा से करीब 120 किमी दूरी तय कर आप ग्वालियर शहर पहुंच जाएंगे। इस शहर का निर्माण राजा सूरज सेन पाल के किया था और इन्होंने ही 9वीं शताब्दी में इस बेहद ही खूबसूरत किले को बनवाया था। इसकी खूबसूरती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुगल सम्राट बाबर ने ग्वालियर के किले को भारत में मौजूद सभी किले के बीच का मोती बताया था। करीब 3 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैले होने और 350 फीट की ऊंचाई पर स्थित होने के चलते इस किले को ग्वालियर शहर के हर कोने से देखा जा सकता है। किले पर आपको अनगिनत ऐतिहासिक सम्मारक, बुद्धा और जैन धर्म से जुड़े मंदिर, गुजारी महल, मानसिंह महल, जहांगीर महल और शाहजहां महल देखने को मिल जाएगा।इसके साथ ही आप गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ साहिब जी के दर जाकर मत्था भी टेक सकते हैं।
समय निकालकर अगर आप ग्वालियर किले पर मौजूद पुरातत्व संग्रहालय भी देख आएंगे, तो एक ही छत के नीचे आपको भारत के राजा-महाराजों से जुड़ी अनेक चीजे देखने को मिल जाएंगी। इसके बाद हम ग्वालियर शहर में ही रात गुजारने के लिए एक कमरा तलाश लेंगे। और दिनभर की सारी थकान मिटाने के लिए जरूरी लंबी नींद की तलाश में बिस्तर पकड़ लिया जाएगा।
Day-7
अपने इस सफर के आखिरी यानी सातवें दिन हम अपने अंतिम पड़ाव के लिए ग्वालियर से करीब 100 किमी का सफर तय कर कूनो नेशनल पार्क पहुंच जाएंगे। यह नेशनल पार्क पिछले साल तब अखबारों की सुर्खियां बना था जब प्रधानमंत्री मोदी ने अपने जन्मदिन पर नामिबिया से 5 मादा और 3 नर चीते लाकर उन्हें यहां छोड़ा था। आप यहां प्रति व्यक्ति 1000 रुपए खर्च कर जंगल सफारी का रोमांचक सफर कर सकते हैं। यहां नामीबिया चीतों को देखने के अलावा आप तेंदुआ, जंगली सूअर, भेड़िया, सियार, हिरण, नीलगाय, चिंकारा, बड़े-बड़े सींग वाले मृग और सांभर आदि जानवर के साथ-साथ अन्य कई विलुप्त जानवर को भी देख सकते हैं। करीब 400 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैले कूनो नेशनल पार्क में घूमते-घूमते शाम हो जाएगी। और फिर हम जंगल में हो रहे सूर्यास्त के साथ मध्य प्रदेश के सात दिनों के अपने सफर को अलविदा कह देंगे।
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